अंतर्ज्ञान मतलब वह जो बिना किसी तर्क के सहज ही उभर आता है!!!


०९.०१.२०१२, बैंगलुरू आश्रम
प्रश्न: प्रिय गुरूजी, मुझे हर एक के साथ सहज होना मुश्किल लगता है| आपने कहा है कि अगर हम सहज हैं तो ईश्वर के ज्यादा करीब होते हैं| मैं सहज कैसे रहूँ?
श्री श्री रविशंकर: आपको असहज बनाता है आपका यह डर कि कोई कहीं आपकी आलोचना न करे| कोई सोच सकता है कि आप मूर्ख हैं| क्यों न आप आधे दिन के लिए एक मूर्ख की तरह अभिनय करें? तब आप देखेंगे कि आपका सारा डर गायब हो जायेगा| गलतियाँ करने के डर से ही आप असहज होते हैं| ज़रा देखिये, गलतियाँ करना कोई बड़ी बात नहीं है| अगर कोई बहुत बड़ी भूल नहीं है, तो गलतियाँ ठीक हैं| आपको बहुत बड़ी भूलों को करने से डरना चाहिए, छोटी छोटी गलतियों को नहीं|
                                                     
प्रश्न: गुरूजी, मैं कई बार आपको वादा कर चुका हूँ कि मैं एक ही गलती को नहीं दोहराऊंगा| मैं दोहराता हूँ और फिर बहुत परेशान हो जाता हूँ, और उसके बाद मुझे बहुत बुरा लगता है|
श्री श्री रविशंकर: यह अच्छा है| अगर वह कहीं चुभ रहा है, तो अच्छा है| एक बार, दो बार, तीन या चार बार हो जाता है, फिर दसवीं बार कम से कम आप इसके प्रति सजग हो जायेंगे और उससे दूर चले जायेंगे| चिंता मत करिये, उस चुभन का होना अच्छा है, और मुझे बार बार वादा करते रहिये|

प्रश्न: क्या साधना में गहन जाने से या लोगों को ध्यान करवाने से आज की दुनिया की भ्रष्टाचार और आतंकवाद की समस्याएं हल हो जाएँगी,? या फिर हमें साथ में शारीरिक स्तर पर भी कुछ प्रयास करना होगा?
श्री श्री रविशंकर: दोनों! हमें शारीरिक स्तर पर भी प्रयास करना होगा और आतंरिक और आध्यात्मिक शक्ति से भी| दोनों आवश्यक हैं| वे आँख और कान की तरह हैं, जब हम टीवी देख रहें होते हैं| आपको देखने की भी ज़रूरत होती है और सुनने की भी|

प्रश्न: गुरूजी, आपने कहा है कि प्रत्येक को स्वीकार करिये और उन्हें इसलिए मत छोड़िये क्योंकि वे आपकी तरह नहीं हैं| लेकिन आपने यह भी कहा है कि अगर संगति आपको प्रभावित कर रही है तो अपने आप को ऐसी संगति से दूर कर लीजिए| कृपया इस पर थोड़ा प्रकाश डालें, क्योंकि ये अंतर्विरोधी लग रहें हैं|
श्री श्री रविशंकर: हाँ, जीवन अंतर्विरोधियों से परिपूर्ण है, और सारे निर्देश अंतर्विरोधी होंगे| इसीलिए यह सत्य है| बस यहीं पर विवेक की आवश्यकता है| आपको संतुलन करना है, देखिये कि कब, कहाँ, किसे!

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, गुणों में लिप्त हुए बिना उनका सम्मान कैसे करें? कभी कभी कोई आसक्ति की जकड़ का विरोध नहीं कर पाता है| इस पर काबू कैसे पाएं?
श्री श्री रविशंकर: अगर मन में गलती न करने का संकल्प है, तो यह ऐसे है जैसे गाड़ी में ब्रेक| आप कहीं जा रहें हैं और अगर हैण्ड ब्रेक है और वह बढ़िया काम करता है, तो आप वह ब्रेक जब मन चाहे लगा सकते हैं! और अगर ब्रेक है ही नहीं, तो आपका एक्सीडेंट हो सकता है| इसी तरह, जब मन कहता है, मैं यह नहीं करना चाहता या मुझे यह नहीं करना चाहिए, तो वह मात्र इसलिए है क्योंकि वह सिर्फ आनंद देने का वायदा करता है, मगर वास्तव में देता नहीं है, बल्कि दुःख देता है|
कोई चीज़ बुरी क्यों होती है? क्योंकि वह खुद को और दूसरों को दुःख देती है| इसी वजह से किसी चीज़ को हम बुरा कहते हैं| वह निकट समय में तो खुशी देती है, लेकिन लंबे समय में आपको और दूसरों को कष्ट देती है|

प्रश्न: गुरूजी, जब कृष्ण थे, तब गोप और गोपियाँ भी कृष्ण के साथ थे| मेरा दिल जानता है कि अब कृष्ण कौन है, लेकिन क्या हम वही गोप और गोपियाँ हैं?
श्री श्री रविशंकर: क्या पता आप कोई नए हों| आपको वही पुराने क्यों होना हैं?
हो सकता है! आप वही भी हो सकते हैं!
देखिये, ज्ञान अनंत है और भावनाएँ भी अनंत हैं| अब यह मत कहियेगा, गुरूजी, आपने कहा था कि भावनाएँ अस्थायी हैं, वे आती हैं और जाती हैं! वे अस्थायी भी हैं, और अनंत भी हैं!
क्या आप उलझन में हैं? तब मेरा काम हो गया!
किसने कहा कि मेरा काम लोगों को विश्वास दिलाने का है? नहीं! मेरा काम है आपको भ्रम में डालना| और जब जब आप भ्रम में होते हैं, आप एक कदम ऊपर उठते हैं|

प्रश्न: मुझे छोटी छोटी बातों तक में भी बहुत भ्रम होता है, और कोई निर्णय लेने में दिक्कत होती है| दो अच्छी चीज़ों के बीच ही उलझन होती है, जैसा आप कहते हैं, लेकिन मैं अच्छी चीज़ों के बीच चुनाव कैसे करूँ?
श्री श्री रविशंकर: अगर मैं आपको कुछ और बताऊँगा, तो आप और उलझन में पड़ जायेंगे| आपको लगता है आपकी उलझन काफी नहीं है? मैं उसे और बढ़ाना नहीं चाहता| बहुत ज्यादा उलझन भी एक समस्या है| अपनी उलझन के साथ रहें और देखें, कि वह आपको कहाँ ले जाती है| अपने अंदर लोभ को आंकें| अगर आप बहुत लोभी हैं, लोभ को परखें, और फिर जो आपके लिए सही होगा वह आपकी गोद में खुद ही गिर जायेगा|

प्रश्न: मैंने एक ज्ञान पुस्तिका में पढ़ा था कि भय वह होता है जब प्रेम उलट गया है| क्या प्रेम भी वह भय होता है जो उलट गया है?
श्री श्री रविशंकर: अगर आप उलट के देखेंगे, तब आप उसे भी उल्टा हुआ देखेंगे| समझ गयें?

प्रश्न: नेपाल में बहुत से त्यौहार पशुओं की बलि देकर मनाएं जाते हैं| क्या हमारे धार्मिक ग्रंथों में इस तरह की प्रथाओं का वर्णन है? हम इसमें परिवर्तन कैसे ला सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: शिक्षा! आपको लोगों को शिक्षित करना है| किसी भी धार्मिक ग्रंथ में यह नहीं लिखा है कि आपको देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बलि देनी होगी|
अहिंसा परमोधर्म| आपको किसी भी पशु की बलि नहीं देनी चाहिए|
आपको पता है, कि दुनिया में सभी धर्मों और संस्कृतियों में क्या हुआ है? वह रेत और चीनी के मिश्रण की भांति बन गया है| कुछ अच्छी बातें हैं, और कुछ और चीज़ें हैं, जो ग्रंथों में नहीं हैं मगर वे बढ़ा चढ़ा दी गयीं हैं या वे प्रथा बन गयी हैं| और लोग सोचते हैं कि यही धर्म है, और यही परंपरा है| यह दुर्भाग्यपूर्ण है| ऐसी प्रथाओं का त्याग करना चाहिए और उन्हें रोकना चाहिए| आपको लोगों को शिक्षा देनी चाहिए कि वे पशुओं की बलि न दें|
शास्त्रों में कहा है, कि अपनी पाशविक प्रवृत्तियों को त्याग दें| अपने अंदर की जड़ता को त्यागें|
आपको पता है, संस्कृत में बहुत से शब्द हैं जिनके दो भिन्न अर्थ हैं| जैसे, महिषा मतलब जड़ता| उसका मतलब सिर्फ भैंस नहीं है|
एक भैंस को भी भैंस इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह जड़ है| अगर आप गाड़ी का हॉर्न बजायेंगे, तब भी वह नहीं हिलेगा| आपको गाड़ी से उतरकर उसे धक्का देना होगा| अगर आप डंडा दिखायेंगे, तब भी वह नहीं हिलेगा|
गायें बहुत संवेंदनशील होती हैं, मगर भैंस उतनी संवेंदनशील नहीं होतीं| इसलिए भैंस को महिषा भी कहते हैं| तो महिषा का मतलब कि अपने अंदर की जड़ता को मार देना चाहिए|
इसी तरह, अज मतलब सिर्फ बकरी नहीं होता| उसका मतलब यह भी है कि जिसका न जन्म कल हुआ और न ही कल होगा| मतलब जन्म| तो इन सबमें बहुत गहरे अर्थ छुपे हैं|
आम तौर पर “गौ” मतलब गाय| गाय शब्द संस्कृत मूल शब्द गौ से आता है| और गौ का मतलब ज्ञान भी होता है, चलना या प्राप्ति|
गौ के चार अर्थ होते हैं
-         ज्ञान
-         गमन
-         प्राप्ति
-         मोक्ष
दुर्भाग्य से इनके अर्थ को बिगाड़ दिया गया है|

प्रश्न: जय गुरुदेव, मैं वह ज्ञान सूत्र नहीं समझ पाया जो कहता है, आपसे उत्तम कर्म तब होता है जब आप बिना किसी उद्देश्य के कर्म करते हैं|
श्री श्री रविशंकर: हाँ, यह अंतर्ज्ञान का काम है या विचार का अचानक अंकुरित होना| अंतर्ज्ञान में, आप बैठकर गुणा नहीं करते| अंतर्ज्ञान मतलब वह जो बिना किसी तर्क के सहज ही उभर आता है|
क्या आपको समझ में आया? आपने देखा है, कि जब Archimedes सोचते रहें और सोचते रहें, तो कुछ काम नहीं बना| परन्तु, जब उन्होंने विश्राम किया, अचानक उन्हें Archimedes सिद्धांत मिल गया|
इसी तरह, बहुत से वैज्ञानिकों को अपनी छठी इन्द्रिय से कुछ न कुछ प्राप्त किया है| यह अंतर्ज्ञान है, और इसे विकसित करने की आवश्यकता है| तो इसलिए, सिर्फ अपनी पांच इन्द्रियों या बुद्धि पर ही निर्भर मत रहिये| अंतर्ज्ञान भी बहुत ज़रूरी है| यही गहन, सत्य के करीब है, और वास्तविकता है| नहीं तो आप देखेंगे कि आपके निर्णय अक्सर गलत होते हैं| आपमें से कितने लोगों को लगता है कि आपके निर्णय गलत थे? आपने लोगों के बारे में राय बनाई और कुछ समय के बाद आपको लगा कि वैसा नहीं है जैसा आपने सोचा था| मैंने तो कुछ और सोचा था, और कुछ और निकला| है न?
तो आपका अंतर्ज्ञान आपको कभी धोखा नहीं देगा क्योंकि वह एक गहराई से आ रहा है| अगर वह अंतर्ज्ञान है, और अगर वह वास्तव में आ रहा है|

प्रश्न: गुरूजी, एक पुरुष को कितने समय तक सफल होने का प्रयास करना चाहिए? अगर दस साल के प्रयास के बाद भी किसी को सफलता नहीं मिली है, तब क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, तब आपको अपनी रणनीति बदलनी चाहिए| अगर आपमें हिम्मत है, तब थोड़ा समय और प्रयास कर सकते हैं, जितने समय तक कर सकते हैं| अपनी सारी शक्ति लगा दीजिए, और अगर फिर भी काम न बने, तब हारे को हरी नाम, स्वीकार कर लीजिए कि इससे काम नहीं बन रहा है और आगे बढ़िए| विश्राम करिये|
किसी संकल्प के फलीभूत होने में, प्रयास तो अवश्य चाहिए, ऊर्जा तो खर्च करनी पड़ेगी| हालाँकि, किसी काम के हो जाने के बाद जो तृप्ति मिलती है, वो काम को करने की इच्छा जागी; उसके भी पहले थी! बस इतना याद रखिये| 


The Art of living © The Art of Living Foundation