भगवान हैं और आप के दर्द को सुन रहें हैं


जनवरी २०१२
आज, मेरा कोलकता आने का मुख्य उद्देश्य स्वामी विवेकानंद के एक सौ पचासवें जन्मदिवस के उत्सवों का शुभारंभ करना है।
स्वामी विवेकानंद भारतीय युवाओं के दिलों में एक स्वप्न छोड़ गये हैं यह स्वप्न कि भारत का सिर हर क्षेत्र में ऊँचा रहना चाहिये, चाहे यह उद्योग हो, धर्म हो, सामाजिक न्याय हो, आर्थिक क्षेत्र हो या फिर राजनीतिक क्षेत्र। हर क्षेत्र में भारतीयों को सिर ऊँचा उठा कर चलना चाहिये; और इस स्वप्न को सच्चाई में बदलने का जिम्मा भारतीय युवावर्ग का है। एक सौ पचास साल पहले, स्वामीजी उस समय पर आये, जब लोग भारतीय ज्ञान व धर्म को कोई महत्त्व नहीं देते थे। हमारे धर्म को अंधविश्वास समझा जाता था। स्वामी विवेकानंद ने हमारे धर्म को वैज्ञानिक तरीके से प्रस्तुत किया और विश्व में इसे इसका सही स्थान दिलवाया।
आर्ट ऑफ लिविंग इस प्रेरणा को आगे बढ़ा रहा है और भारतीय संस्कृति व आध्यात्म का प्रकाश विश्व के एक सौ बावन देशों में फैला रहा है। चाहे इराक हो या श्रीलंका, बहुत से स्वयं सेवकों ने अपनी सेवायें अर्पित की हैं। जहाँ भी सेवा की आवश्यकता थी, लोग शामिल हुये और बड़ी संख्या में शामिल होते जा रहे हैं। यहाँ आने से पहले मैं अपने नशा-मुक्ति केंद्र गया था जहाँ हज़ारों युवा लड़के-लड़कियों में नशे से मुक्त होने का बल फूँका जा रहा है। उन युवक-युवतियों के चेहरों की मुस्कान ने मुझे बहुत ही संतुष्टि प्रदान की। कहा जाता है कि यदि हम एक भी व्यक्ति के आँसू पोंछ पायें तो समझना चाहिये कि हमारा जीवन सफल हो गया। पर यहाँ सैंकड़ों-हज़ारों लोगों के आंसुओं को मुस्कान में बदलते देख कर मेरी प्रसन्नता और भी बढ़ गई है। मैं चाहता हूँ कि यहाँ उपस्थित सब लोगों को यह संकल्प मन में दोहरा लेना चाहिये कि हम एक खूबसूरत, स्वच्छ, सुरक्षित भारत और एक मजबूत समाज चाहते हैं और हम सब इसके लिये मिल कर काम करेंगे। सरकारें बदलती रहती हैं, पर केवल सरकार यह काम नहीं कर सकती। यदि भ्रष्टाचार को मिटाना है, तो आम आदमी को संकल्प लेना होगा, अपने भीतर छिपी स्वामी विवेकानंद की पुकार को सुनना होगा, और इसे आगे भी बढ़ाना होगा। हम इस देश को मजबूत बनाना चाहते हैं और ईश्वर से अपना संपर्क स्थापित करना चाहते हैं। इसलिये हमारे पास दो चीज़ें होनी चाहिये : एक तो आंतरिक शुद्धता हम अपने जीवन को इतना शुद्ध रखें कि यह बेदाग रहे। मैंने इसे ऐसे ही रखा है, और मैं चाहता हूँ कि हर युवा इसे ऐसा ही रखे। भारत ने विश्व को अपनेपन की कला सिखाई है।
आज यदि आप अर्जेंटीना के अंतिम शहर में जायें, या फिर दक्षिण गोलार्द्ध में, आप लोगों को योग, ध्यान और प्राणायाम का अभ्यास करता पायेंगे। इसी तरह यदि आप उत्तरी गोलार्द्ध के अंतिम शहर में जायेंगे तो आप लोगों को वहाँ भजन, ध्यान करता हुआ पायेंगे। यहाँ तक कि यदि आप पाकिस्तान भी जायेंगे तो वहाँ पर भी हमारा केन्द्र चल रहा है, और लोगों को योग व प्राणायाम के शिविरों से लाभ मिल रहा है।
जब हमारा देश आज़ाद नहीं हुआ था, स्वामी विवेकानंद अद्वैत के ज्ञान के साथ अमरीका गये थे यह हम सब जानते हैं। इस से पहले, परमहंस योगानंद, और बहुत से संत, विशेष रूप से बंगाल के संत, वहाँ गये थे। यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि देश भर में बह रही अध्यात्म की हवा बंगाल से ही शुरु हुई थी; चाहे यह ब्रह्मा समाज हो या थियोसोफिकल सोसायटी, बहुत सी धारायों की उत्पत्ति बंगाल में हुई। परंतु, भारत की स्वतंत्रता के साथ ही इस धारा का प्रवाह रुक गया। चाहे यह चैतन्य महाप्रभु रहे हों या फिर श्री अरविंद, पिछली शताब्दी में, भक्ति व ज्ञान की धारायें बंगाल से ही निकलीं। मैं आशा करता हूँ कि बंगाल का युवा वर्ग वर्तमान युग को भी निराश नहीं करेगा; बंगाल से ऐसे युवा फिर से उभरेंगे जो कि इस देश को और विश्व को एक आदर्श प्रदान करेंगे।
आप में से बहुत से लोग कहते रहते हैं, गुरुजी, हावड़ा आइए। मैं भी हावड़ा आना चाहता हूँ, गंगा के दूसरी ओर जाना चाहता हूँ। सत्संग हमेशा गंगा के एक ओर होते हैं। और इस बार गंगा के इस ओर के लोग उत्साहपूर्वक मेरा स्वागत कर रहे हैं और मैं यहाँ हूँ, आप सबके साथ|
मेरे यहाँ आने का एक ओर उद्देश्य है, आपको विश्वास दिलाना कि भगवान हैं, और वह आपके दर्द को सुन रहे हैं! बस यह भरोसा रखें। आप जो भी माँगेंगे, आपको मिलेगा, पर आपको भगवान का काम करना होगा; तभी आप यह पा सकोगे। और भगवान का काम क्या है?  समाज की सेवा करना। भगवान का काम करने का अर्थ केवल मंदिरों, मस्जिदों और गिरिजाघरों में प्रार्थनायें करना नहीं है। भगवान हर व्यक्ति के दिल में रहते हैं। यदि आप लोगों की सेवा करेंगे तो आपका काम अपने आप होता रहेगा।
आप में से कितने लोगों को लगता है कि आप जो भी चाहते हैं पूरा हो रहा है? हिंदी में एक कहावत है, जो इच्छा करिहो मन माहि, प्रभु प्रताप कछु दुर्लभ नाहिं।
वे असम्भव नहीं है, हमारी इच्छायें अवश्य पूर्ण होंगी ; कुछ तुरंत और कुछ थोड़ा बाद में।
आपकी जो भी परेशानियां, जो भी समस्यायें हैं, सत्संग का नियम है कि उन्हें पीछे छोड़ जायें। अपनी सब समस्यायें यहाँ छोड़िए, और आत्म-विश्वास व मुस्कान के साथ जाइए। जहाँ भी आँसू दिखाई दें, उनसे बात करें, ओह, अपनी सब परेशानियां छोड़ दीजिये, केवल मुस्कुराइए ! आइए, उठिये ! जीवन बहुत मूल्यवान है। इसे इस प्रकार नष्ट मत कीजिये। हमें आज एक शपथ लेने की भी आवश्यकता है। सबसे बड़ा रोग जो इस देश को लगा है, वह है भ्रष्टाचार। इसलिये यदि हम यह संकल्प लें कि हम न तो रिश्वत लेंगे और न ही रिश्वत देंगे, तो यह समस्या ही सुलझ जायेगी। केवल यही सुधार ले आयेगा। मैं नहीं समझता कि केवल कानून पास करने से पूरे देश में सुधार लाया जा सकता है। कानून आवश्यक है, पर सुधार केवल तभी आयेगा, जब हमारे भीतर आध्यात्मिक जागृति आयेगी। इसलिये हमें जागना चाहिये और सबको गले लगाना चाहिये। जहाँ अपनेपन की भावना समाप्त होती है, वहीं भ्रष्टाचार आरम्भ होता है। अपने आप को सीमित करने की अपेक्षा हमें अपनेपन की भावना को विकसित करना होगा। जीवन कुछ वर्षों का ही होता है। हमें अपना जीवन इस तरह व्यतीत करना चाहिये कि न केवल हम खुश रहें, बल्कि आने वाली पीढ़ियां भी। आप कितने लोग यहाँ इकट्ठा हुये हैं। मैं सुझाव दूँगा कि आप सब पाँच से छ: लोगों का समूह बना लें, हर रविवार केवल दो घंटे अपने क्षेत्र की सफाई में लगायें। आस-पास जो प्लास्टिक फेंका गया है साफ हो जायेगा, सेवा की नई धारा प्रवाहित होगी। क्या आप सब तैयार हैं ? बहुत से लोग इच्छुक हैं; बस प्रेरणा की आवश्यकता है। सेवा करिये, और देखिये कि भगवान आपके सब काम कैसे पूरे करता है। विभिन्न प्रकार के प्राणायाम और ध्यान हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि एक ठीक है और दूसरा गलत। आप को जो भी उपयोगी लगता है, आप वह कर सकते हैं। जो तकनीक हम सिखाते हैं वह आज काम के समय की तनावपूर्ण परिस्थितियों को झेलने में बहुत कारगर हैं।

प्रश्न : (श्रोतायों में से एक ने माइक में बोले बिना अचानक ही प्रश्न पूछा। प्रश्न रिकॉर्डिंग में सुनाई नहीं दिया।)
श्री श्री रविशंकर : हाँ, नशा-मुक्ति केंद्र के कारण बहुत से युवायों के जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया है, पर इस कार्य के लिये स्थान बहुत ही सीमित है। आप में से कुछ आगे आयें, अधिक सुविधायों वाला बड़ा स्थान लें, ताकि और बहुत से युवायों के जीवन में खो चुकी आशा की किरण वापस आ सके और वे उस नशे से मुक्त हो सकें, जिसमें कि वे डूब चुके हैं।
आप में से कितने लोग उन लोगों के संपर्क में आये हैं जो कि नशे से लड़ रहे हैं ? उन्हें केंद्र में लेकर आयें। उन्हें प्राणायाम, सुदर्शन क्रिया करने दें, और केंद्र के नशा-मुक्ति के कार्यक्रम में बैठने दें। उनका जीवन बदल जायेगा।
देश के विभिन्न भागों में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन आरंभ हो चुका है। एक कानून का पास होना आवश्यक है, मैं मानता हूँ, पर अकेले कानून का नहीं। कानून रोग के बाद का इलाज़ है; लेकिन रोग हो ही न आध्यात्मिक तौर पर यही हमारी कोशिश होनी चाहिये। मैं सभी साधु, संतों, महात्माओं से कहूँगा कि अपने मंदिर, मस्जिद और धार्मिक स्थानों से यह आवाज़ उठायें कि जो कोई भी रिश्वत लेगा या देगा उसे मंदिर या मस्जिद में प्रवेश नहीं दिया जायेगा। उनका कम से कम एक साल के लिये मंदिर या मस्जिद में प्रवेश निषिद्ध कर दिया जायेगा। यदि हम धार्मिक तौर पर यह कदम उठायें, तो ही हम इस देश से भ्रष्टाचार की समाप्ति की आशा कर सकते हैं।

प्रश्न : हम आध्यात्मिक व भौतिक जीवन को कैसे संतुलित करेंगे ?
श्री श्री रविशंकर : आध्यात्मिक व भौतिक जीवन विरोधाभासी नहीं हैं। यह तन और मन की तरह है। तन को भौतिक पदार्थ चाहिये और मन को आध्यात्मिकता। हम तन और मन का मेल है। ये एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते। इसी तरह, आध्यात्मिक और भौतिक उन्नति दोनों ही चाहिये। यह गलत धारणा है कि यदि कोई आध्यात्मिक है तो भौतिक उन्नति नहीं हो सकती।

प्रश्न : ढेर से संदेह मन में उठते हैं। हम इससे बाहर कैसे आ सकते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : आप संदेहों से घबराते क्यों हो? विश्वास सूर्य की तरह है और संदेह बादलों की तरह। सूर्य कभी भी बादलों से डरा नहीं। कभी भी बादल सूर्य को पूरी तरह ढक नहीं पाये। इसी तरह, संदेह आते हैं और चले जाते हैं, पर वे आप को छू नहीं पाते।

प्रश्न : आपने अभी कहा कि जो भ्रष्ट हैं उनका मंदिरों व मस्जिदों में प्रवेश रोक देना चाहिये। वाल्मीकि (रामायण के रचयिता) एक डाकू थे, जिन्होंने म-रा, म-रा बोलते बोलते राम का नाम लेना शुरु कर दिया था। भ्रष्ट लोग वे हैं, जो कि रास्ते से भटक चुके हैं। यदि हम उन्हें मंदिर या मस्जिद में प्रवेश करने से रोक देंगे तो हम उन्हें कुछ गलत की ओर नहीं धकेल देंगे?
श्री श्री रविशंकर : भ्रष्ट लोग मंदिरों या मस्जिदों में जाते हैं, प्रार्थना करते हैं और सोचते हैं कि उनके पाप धुल गये, ताकि वे उन्हें जारी रख सकें। मैं सुधार के खिलाफ नहीं हूँ। हर व्यक्ति बदल सकता है।
हिंदी में एक दोहा है, बुरा जो देखन मैं गया, बुरा न मिलया कोय। मेरे विचार में कोई भी व्यक्ति बुरा नहीं होता। हर व्यक्ति में अच्छाई छिपी होती है। इसे जगाने की आवश्यकता होती है। यदि यह मंदिरों या मस्जिदों में जाने से सम्भव होता तो कोई भ्रष्टाचार न रहता। परंतु, ऐसा हो नहीं रहा। यही कारण है कि मैंने भ्रष्ट लोगों के मंदिर में प्रवेश को निषिद्ध करने का सुझाव दिया। जो भी वास्तव में मंदिर या मस्जिद जाना चाहता है, वह भ्रष्टाचार छोड़ देगा। इसी मंशा से मैंने यह कहा है।
मैं तो कहूँगा कि ऐसे लोगों का हमारे आश्रम में हार्दिक स्वागत है। मैं उन्हें एक सप्ताह में ही चमका दूँगा।

प्रश्न : आज का युवा वर्ग इंद्रिय-सुखों में लिप्त है और बहुत अधिक पाश्चात्य प्रभाव में है। आपका इस विषय में क्या विचार है ?
श्री श्री रविशंकर : एक बार वे इस सुंदर ज्ञान का स्वाद चख लेंगे तो उन्हें उन तुच्छ सुखों में कुछ आनंद नहीं आयेगा। हमने यह ज्ञान दिलचस्प रूप में उनके समक्ष प्रस्तुत नहीं किया है। यही कारण है कि वे नशे की ओर आकर्षित होते हैं। वे पाश्चात्य विचारों की ओर उन्मुख होते हैं, क्योंकि उनको लगता है कि इनमें उन्हें प्रसन्नता मिलेगी। मन का स्वभाव है कि वह प्रसन्नता की ओर जाता है। और यदि हम उन्हें अपनी सभ्यता में प्रसन्नता दिखायें तो वे निश्चित रूप से इस मार्ग पर आयेंगे। देखिये, यहाँ कितने युवा हैं|
परिवर्तन पहले से ही शुरु हो चुका है। पश्चिम में, सैंकड़ों हज़ारों युवा हैं जो कि इस प्राचीन भारतीय ज्ञान की ओर उन्मुख हो रहे हैं।

प्रश्न : गुरुजी, मुझे बहुत क्रोध आता है। मैं बहुत अधिक अपेक्षा रखता हूँ और जब वह पूरी नहीं होती, तो मुझे बहुत क्रोध आ जाता है। मैं कुछ चीज़ों को स्वीकार नहीं कर पा रहा हूँ। मुझे इस विषय में क्या करना चाहिये?
श्री श्री रविशंकर : अच्छा है, कम से कम आप इस व्यवहार के प्रति अभिज्ञ तो हैं| और आपने यह निश्चय भी किया है कि आप क्रोध पर काबू पायेंगे। यही तो! परिवर्तन की क्रिया पहले से ही आरम्भ हो चुकी है। ध्यान से भी मदद मिलेगी।

प्रश्न : गुरुजी, आजकल पूरी व्यवस्था ही भ्रष्ट है ?
श्री श्री रविशंकर : देखिये, आप यह नहीं कह सकते कि सारा कोलकता ही गन्दा है। केवल कुछ इलाके ही गन्दे हैं। बाकि स्वच्छ व हरे-भरे हैं। इसी प्रकार, ऐसी बातें बोलना गलत है कि सारा शहर ही खराब है या मैं हमेशा ही गलत होता हूँ। हम चीज़ों को सर्वव्यापक बना देते हैं। हम यह नहीं कह सकते कि सारी व्यवस्था ही भ्रष्ट है। अच्छे लोग भी हैं और उन्हीं की वजह से यह देश चल रहा है। यह मत सोचिये कि सभी राजनीतिज्ञ ही बुरे हैं। उनमें से अधिकतर, 80% बुरे हैं, पर अच्छे भी तो हैं न। सभी अफसर खराब नहीं हैं, अभी भी बहुत से सच्चे व ईमानदार अफसर हैं।

प्रश्न : रविवार के अतिरिक्त भी किसी दिन सुदर्शन-क्रिया के फॉलो-अप सेशन होते हैं?
श्री श्री रविशंकर : बिल्कुल। आप इस विषय में प्रशिक्षकों से बात कर सकते हैं।

प्रश्न : सत्संग के प्रचार के दौरान, हमने सबसे कहा कि बारिश रुक जायेगी और वास्तव में ऐसा ही हुआ। यह चमत्कार कैसे हुआ?
श्री श्री रविशंकर : तभी तो इसे चमत्कार कहते हैं। आप इसकी व्याख्या नहीं कर सकते! प्रकृति हमारे साथ है और वह हमारी बात को सुनती है।

प्रश्न : गुरुजी, लोग कहते हैं कि राजनीतिज्ञ भ्रष्ट होते हैं और पहले उन्हें सुधारने की आवश्यकता है। जबकि, इस समाज में बहुत से लोग भी भ्रष्ट हैं। पहले किसे सुधारने कि आवश्यकता है, राजनीतिज्ञों को या समाज के भ्रष्ट लोगों को?
श्री श्री रविशंकर : दोनों को। इतना समय नहीं है कि एक समूह के सुधरने का इंतज़ार किया जा सके| सबसे पहले तो राजनीतिज्ञों को अपने को आम आदमी का हिस्सा समझना होगा। सारे युवा एक दैवीय समाज के निर्माण के लिये तैयार हो जायें।

प्रश्न : मुझे जो भी अच्छा लगता है मुझसे दूर जा रहा है। मैं क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर : यदि हम सुख का पीछा करेंगे, तो दु:ख हमारा पीछा करेगा। यदि हम ज्ञान का पीछा करेंगे तो सुख हमारे पीछे होगा।

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