प्रकृति विभिन्न लय और चक्र से परिपूर्ण है| जैसे रात के बाद दिन आता है और दिन के बाद रात आती है, मौसम आते जाते रहते
हैं| उसी तरह शरीर, मन और भावनाये की जैविक लय होती है| जब यह लय समकालिक होती है, तो आप सामंजस्यता और परिपूर्णता महसूस करते
हैं| जब तनाव या रोग इस लय को बिगाड़ देते हैं तो आप बेचैनी,
असंतोष का अनुभव करते हैं और उसके कारण परेशानी, कष्ट और दुःख को महसूस करते हैं|
सुदर्शन क्रिया में श्वास की विशिष्ट प्राकृतिक लय
समाविष्ट होती है जिससे शरीर और मन की लय को सामंजस्यता प्रदान होती है जिससे उनकी
प्रकृति की लय से संगति हो जाती है| श्वास शरीर और मन को जोड़ती है| जैसे भावनायें आपके श्वास की पद्दति को प्रभावित करती हैं, वैसे हि आप
अपनी श्वास की लय में बदलाव लाकर अपने मानसिक और व्यवाहारिक पद्दति में बदलाव ला
सकते हैं| यह आपके क्रोध,चिंता और परेशानी को निकाल देती हैं,
जिससे मन पूर्णता विश्रामयुक्त और उर्जायुक्त हो जाता है|
इस एकल तकनीक ने जीवन के हर क्षेत्र के हजारों लोगो को
लाभान्वित किया है| जिसमें निगमित कार्यकारी, आघात लोग, आपदा प्रभावित, शोषित बच्चे और गृहणी सम्मलित हैं|
मैं वैसे भी ध्यान और योग का प्रशिक्षण देता
था| परन्तु मुझे ऐसा लगा कि कुछ ऐसा था जिसका अभाव है| लोग अपने आध्यात्मिक अभ्यास करते हैं परन्तु उनका जीवन लेकिन उनका जीवन
परिपूर्ण नहीं होता| वे अपनी प्रार्थना, ध्यान और आध्यात्मिक
अभ्यास करते हैं, परन्तु जीवन की दिनचर्या में वे बहुत ही अलग व्यक्तितत्व में पेश
आते हैं| इसलिए मैं सोचता था कि इस भीतर के मौन और जीवन की
बहारी अभिव्यक्ति के भेद को कैसे बदल सकूँ|
मेरे मौन के दौरान, सुदर्शन क्रिया मुझे प्रेरणा
के जैसे मिली| जब मैं मौन से निकला, तो मैंने लोगो को यह सिखाना
शुरू किया जो मुझे प्रेरणा से मिला था और इससे लोगो को अनोखे अनुभव प्राप्त हुए|
सुदर्शन क्रिया के उपरान्त कई लोग बहुत
शुद्ध, स्पष्ट, पूर्णता: महसूस करते हैं क्योंकि चेतना जो बाहर के तत्व और द्रव्यो
में जकड़ी होती हैं, वह उससे मुक्त होकर अपने स्वयं में आ जाती है| यह शुद्धता की
अनुभूति और संवेदना हैं|
आपको आपके भीतर की सफाई
के लिए सफाई प्रक्रिया की आवश्यता होती है| निंद्रा में आपको थकान से आराम मिलता है परन्तु गहन तनाव
शरीर में रह जाते हैं| सुदर्शन
क्रिया आपके तंत्र को भीतर से साफ करती है| श्वास को भेट में देने के लिए कई गहन रहस्य हैं|मकर संक्रांत पर सन्देश -
दुनिया में तिल के जैसे छोटे और विनम्र और गुड़ के जैसे मीठे बन के रहो!!!
तिल और
गुड़ के जैसे बनो| तिल जितना छोटा और गुड़ जैसा मीठा| अपने आप को बड़ा मत समझो, गुड़ की
तरह मीठे रहो और मीठा बोलो| पर दोनों साथ साथ में ही रहना| (छोटा और मीठा) तिल में
ही तेल होता है, वहीँ आप के भीतर की चेतना है|© The Art of Living Foundation