जब भी आप भ्रमित होते हैं, आप विकसित होते हैं!!!


प्रश्न: क्या भावनाओं का उम्र से कोई सम्बन्ध है?
श्री श्री रविशंकर: हाँ| हमारी भावनाओं का सम्बन्ध शरीर के हार्मोन्स से होता है, समय के साथ भी और भी अन्य कारक होते हैं|

प्रश्न: गुरूजी, आप हमारे शहर कब आएँगे?
श्री श्री रविशंकर: ओह, सिर्फ ये नहीं पूछिये मैं आपके शहर कब आउंगा| मेरे पास समय के अलावा सब कुछ प्रचुरता में है| बहुत सारे स्थानों को जाना है पर समय कम है, कई जगह गए हुए अंतराल हो गया जैसे अफ्रीका या ईंग्लैंड| और मै गाजा, पुर्तगाल या युक्रेन भी जाना चाहता हूँ जहाँ अभी तक गया नहीं| कई स्थानों के आमंत्रण है, दक्षिण अमेरिका| सब हर दिन मुझसे पूछते हैं, क्या किया जाये|

प्रश्न: (प्रश्न नहीं सुना जा सका)
श्री श्री रविशंकर: मन कभी लालसा से अरुचि और कभी अरुचि से लालसा के बीच झूलता रहता है| परन्तु उसे भी कभी कभी आराम की ज़रूरत होती है| साधना इत्यादि से मन शांत होता है, और ज्ञान, विवेक के साथ धीरे धीरे लालच भी और अरुचि भी दूर हो जाएंगी|

प्रश्न: (प्रश्न नहीं सुना जा सका)
श्री श्री रविशंकर: नहीं! स्पंदन हमारे शरीर में पहले ही मौजूद है| सुखद विचार की संवेदना होती है और पीड़ादायक विचार भी अलग संवेदना पैदा करते हैं| हाँ, स्पंदन का अवलोकन करने से अप्रिय विचार धीरे धीरे लुप्त हो जाते हैं, और सुखद संवेदनाएं बढ़ने लगती हैं|

प्रश्न: नकारात्मक विचारों से कैसे कैसे छुटकारा पायें?
श्री श्री रविशंकर: नकारात्मक विचारों के लिए सुदर्शन क्रिया सबसे कारगर है| उज्जई श्वांस और ध्यान भी मदद करेगा| क्या ये काम नहीं कर रहे?

प्रश्न: गुरूजी, पूरे समय मुझे आलस सा क्यों बना रहता है?
श्री श्री रविशंकर: आलस हमेशा रहे, ऐसा नहीं होता, जब ध्येय स्पष्ट हो, या जब कोई आकर्षण हो तो आलस गायब हो जाता है| शरीर में शर्करा या विटामिन डी की कमी हो तो सुस्ती आ सकती है, भोजन एक प्रमुख कारण हो सकता है शरीर में शिथिलता आने का|

प्रश्न: गुरूजी, आत्मा कहाँ से आती है?
श्री श्री रविशंकर: इतने सारे ग्रह कहाँ से आते हैं? इतने सारे फूल कहाँ से आते है? इतने सारे जानवर कहाँ से आते हैं? हम सब कहाँ से आते हैं? क्या यह विस्मयकारी नहीं है इतने किस्म के लोग हैं, फल हैं, फूल हैं, प्राणी हैं, मच्छर हैं, वाईरस हैं, हे भगवान! यह सब कितना अद्भुत है!
(कभी-कभी विस्मय के साथ ही रहें)

प्रश्न: गुरूजी, मै और अधिक आत्मविश्वास कैसे प्राप्त करूँ?
श्री श्री रविशंकर: आप बिलकुल सही जगह में हैं, आसन, प्राणायाम और ध्यान नियमित करते रहें, आत्मविश्वास बढ़ जाएगा

प्रश्न: गुरूजी, ईश्वर ने यह श्रृष्टि बनाई, ईश्वर को किसने बनाया?
श्री श्री रविशंकर: इस प्रश्न का उत्तर तो मैं आपको दे देता हूँ, मुझे पहले बताईये कि टेनिस की गेंद का पहला बिंदु कौन सा है?
अधिकतर हमारी सोच रैखिक (सीधी चलने वाली ) होती है, यानी हमें लगता है की हर चीज़ का एक आरम्भ होता है और एक अंत| आरम्भ और अंत - ऐसा प्रकृती के साथ भी होगा, एक दिन सबकुछ समाप्त हो जाएगा - यह रैखिक सोच है|  लेकिन पूर्व (भारत आदि) में सोच सीधी नहीं, घुमावदार है| वहां कहा जाता है तीन चीज़ें ऐसी हैं जिनका न तो सृजन किया गया न ही इनका कभी अंत होगा, ये क्या है? एक है दिव्य ऊर्जा जिसे हम ईश्वर कह सकते हैं - यह आकाश की तरह अनादी-अनंत है| क्या आकाश को कोई पहला बिन्दु होता है, या इसका कोई अंतिम छोर होता है? नहीं|
दूसरा है तत्व जिससे संपूर्ण जगत बना है यह भी अनादी - अनंत है| और तीसरी है आत्मा जिससे जीवन चलता है - इसका भी कोई आरम्भ नहीं, कोई अंत नहीं| ऐसा लगता है कि जीवन समाप्त हुआ, लेकिन वह तो आगे चलता ही रहता है जैसे समुद्र में लहरें आती है, चली जाती हैं वही पानी दूसरी लहर बन कर फिर वापस आता है| ऊर्जा, तत्व और आत्मा - इनका कोई प्रारंभ या अंत नहीं है, ये तीनों एक ही हैं| तो यदि आप इश्वर को देखना चाहते हैं तो सृजन को देखना बंद कर दें, क्यों? क्योंकि, जैसे कि एक अणु वैज्ञानिक के लिए इस फूल, पत्ती और तने में कोई भेद नहीं है, सब कुछ अणु से ही बने हैं| वे तो लार या त्वचा के सिर्फ एक कण से पूरे डी.एन.ए. की संरचना मालूम कर लेंगे| दूसरी और फूल, पत्ती नहीं है और तना फूल नहीं, सब भिन्न हैं,
अतः यदि ईश्वर को महसूस करना हो तो पूरे ब्रह्माण्ड को सिर्फ एक उर्जा के रूप में देखें, इतना ही काफी है|

प्रश्न: जो लोग हमें पसंद नहीं उनसे भी कैसे प्रेम करें?
श्री श्री रविशंकर: ओह! मेरा इस तरह का कोई अनुभव तो नहीं है फिर भी उत्तर देता हूँ| इससे पहले की आप उनसे प्रेम करने की कोशिश करें, उन्हें नापसंद करना छोड़ें| आप उन्हें नापसंद क्यों करते हैं? उनके किसी अवगुण के कारण| अब सोचिये की ये दोष उनमे क्यों हैं? क्योकि उन्हें सही शिक्षा नहीं मिली| वे भी आप ही की तरह इस दुनिया में आये थे, एक प्रसन्नचित्त बच्चे के रूप में, लेकिन समुचित वातावरण, शिक्षा न मिलने और असुरक्षा की भावना के कारण उनका व्यवहार ऐसा हो गया| बुराई या दंभ के पीछे असुरक्षा होती है, उन्हें जीवन में कभी प्यार मिला ही नहीं| लालच भी डर और असुरक्षा के ही कारण होता है| डर का कारण भी प्रेम का अभाव ही है| तो जब ऐसे दोष किसी में दिखें, तो जान लीजिये कि उनके जीवन में सही शिक्षा, अध्यात्म और प्रेम की कमी रह गई, और इस कारण उनका दिमाग भी संकुचित हो गया है|
अर्थात, पहले वैमनस्य हटाएं| यह एक तथ्य है, लोग क्रूर या आक्रामक क्यों हो जाते हैं? अत्यधिक तनाव के कारण| उनका भी मस्तिष्क संकुचित हो जाता है और कुछ बड़ा सोच ही नहीं पाते; यानि इसका कारण भी उचित शिक्षा और आध्यात्मिकता (परमार्थ) की कमी है| ऐसा अवसर (जो हम सबके पास यहाँ पर है) उन्हें मिला नहीं - ऎसी शिक्षा जिसमें प्रेम, अहिंसा और खुश कैसे रहें, यह सिखाया जाता हो| इसलिए उनके दिल और दिमाग बंद से हो गए|
तो इस तरह से पहले नापसंद करना छोड़ें| फिर दया भाव जागेगा "ओह बेचारे..!" अन्य लोगों और विश्व के प्रति उनका नज़रिया ठीक नहीं है, वे गलत मूल्यांकन करते हैं, दूसरों के बारे में बुरा सोचते हैं और बुरा ही वर्ताव करते हैं, और अपने आप को क्षति पहुंचा लेते हैं| यह सब समझ में आने के बाद आप के अन्दर उनके लिए दया आ ही जायेगी|
अतः प्रेम करने का प्रयास न करें, द्वेष छोड़ें, दयाभाव रखें, फिर तीसरे स्तर पर आपके अन्दर सभी के लिए प्यार उमड़ ही जाएगा|
और जिसे आप नापसंद करतें हों, उन्हें प्यार करने के लिए तो अपने आप पर कभी दबाव न डालें, हरगिज़ नहीं|


प्रश्न: जब आप चिंता तथा डर के चक्र जैसी स्थिती से गुजरते हो तो उसका कैसे सामना करें?
श्री श्री रविशंकर: बस आपके अपने अनुभव से मैं ऐसे परिस्थिती से पहले कई बार गुजर चुका हुँ और एक बार सही। अगर आप बार बार ऐसे परिस्थिती से गुजरते हो तो वो आपको एक तरह से सुन्न बनाती है, आप परिस्थिति से बाधित नही होते। हमारे अंदर जो लोभ, अधिकार जताने कि भावना और संवेग होते हैं उससे ये स्थिती पैदा होती है| अगर आप तृप्त, खुश और शांत हो तो समृद्धि अपने आप आपके पास आयेगी। आपको किसी चीज के पीछे भागने की जरुरत नही है, झपटने की जरुरत नहीं है, चीजें अपने आप आपके पास आयेंगी। क्या आप मेरी बात का अर्थ समझ रहे हैं। इसलिए इस दुनिया को माया कहते हैं। क्या आप जानते हैं माया यानी क्या है| जब आप किसी चीज को पाना चाहते हो तो वो आपसे दूर भागती है। जब आप किसी चीज को हथियाना चाहते हो तो वो आपसे दूर हो जाती है। अगर आप अपने आप में शांत स्थिर और तृप्त हो तो हर चीज आपकी तरफ दौडेगी| इसलिए मैं शुरुवात से कह रहा हूँ अगर आप सुख के पीछे भागोगे तो दुःख आपके पीछे आयेगा, अगर आप ज्ञान के पथ पे चलोगे तो आपको मौज मस्ती मिलेगी।

प्रश्न: एक सांघिक कार्य के सफलता की मूल बातें क्या है?
श्री श्री रविशंकर: एक अच्छे सांघिक कार्य के लिये संघ के सदस्य जैसे हैं उन्हें वैसे ही अपनाना चहिये और आपके अपने निजी मत या दृष्टिकोण को पकड़ के नहीं बैठना चाहिये। अगर आप लचीले नहीं हैं तो संघ में काम नहीं कर सकते। अपने आपको और उदार और लचीला बनाओ।

प्रश्न: अगर आप कर्म के फल से आकर्षित नहीं हो तो आप अपने सगे संबधियों को कैसे छोड सकते हो। ये मेरे लिये एक उलझन है?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, अगर आप कर्म फल के प्रति आकर्षित हो तो उससे एक ज्वरातुरता पैदा होगी। जैसे एक किसान करता है। वो खेत में हल चलवा के बीज बोता है और वो उतावला हो के रोज बीज उखाड के देखता नहीं कि बीज अंकुरित हुआ या नहीं। ऐसा करने से बीज कभी अंकुरित नही होगा। तो जब आपको भरोसा होता है तो आप कर्म के फल के प्रति चिंतित नही होते। इसका मतलब ये नहीं कि आप उदासीन होते हो। क्या आप मेरी बात का अर्थ समझ रहे हो। एक किसान बीज बो के घर आकर आराम से सोता है। वो ये चिंता नही करता कि सारे बीज गायब हो जायेंगे या अंकुरित नही होंगे| अगर वो ऐसा करे तो घर भी नही जा सकेगा वो वहीँ बैठ कर बीज अंकुरित होने की राह देखेगा| रोज खोद के देखेगा। ऐसा करने से कुछ नहीं होगा। तो किसान एक उत्तम उदाहरण है। वो बीज बोके आराम से चैन कि नींद सोता है। दुसरे दिन के ये नहीं देखता कि फसल तैयार है या नहीं। कुछ समय लगता है फसल दूसरे दिन नहीं आती। लेकिन कुछ दिनों के बाद जब वो देखता है तो हर बीज में अंकुर नहीं निकलता। तो क्या हुआ अगर किलो बीज बोये तो हर कोई बीज थोडी निकलेग, ठीक है न। वो थोडी ही रोता है कि कुछ निकले ही नही। जो फसल निकलती है वो उससे खुश होता है।

प्रश्न: गुरुजी धर्म और कर्म के बीच में फर्क क्या है?
श्री श्री रविशंकर: धर्म आपका स्वभाव है और कर्म आपके कृत्य हैं। अगर आपको स्वभावतः खाना बनाना या पढाना, या दूसरों की मदद करना या व्यापार करना अच्छा लगता है तो वो आपका धर्म है और उससे जो क्रिया कार्य आप करते हो वो आपका कर्म है।

प्रश्न: गुरुजी जब मैं आपके बारे में सोचता हूँ तो आपको स्वप्न में देखता हूँ| तो जब मैं आपको स्वप्न में देखता हूँ तो क्या आप मेरे बारे में सोच रहें होते हैं?
श्री श्री रविशंकर: ओहो! हाँ, ऐसा हो सकता है। कल या परसों हम पाँच तरह के स्वप्न के बारे में बात करेंगे|

प्रश्न: जब मैं आँखे बंद करता हूँ तो झाँकिया आती हैं?
श्री श्री रविशंकर: आने दीजिए, कोई दिक्कत नही है।

प्रश्न: जब आप जानते हो कि किसी के लिये बेसिक कोर्स करना अच्छा है तो उनको ये कैसे बतायें?
श्री श्री रविशंकर: हाँ। ये मुझे भी नहीं पता। आप सोचो कि आप दूसरों को कैसे समझा सकते हो इसके बारे में। बढ़िया यही है कि आप ज्यादा कुछ ना समझायें, बस कहिये कि ये बहुत अच्छा है और आप कर लीजिए। ये दो वाक्य अच्छे हैं कि ये बहुत अच्छा हैं, मैने किया है, आप भी कर लीजिए| मैं आपको ये नही कहूँगा कि ये क्या है। ये कहना ज्यादा असरदार है बजाय कि ये बताना की प्राणायाम कितना अच्छा है और आप सिर्फ़ प्राणायाम से आप प्रफुल्लित होंगे क्योंकि जब लोगों को पता होता है कि उनके लिये क्या अच्छा है तब भी वो उसका पालन नहीं करते। लेकिन जब आप ये कहते हैं कि बेसिक कोर्स बहुत अच्छा है और थोडी गुप्तता या आश्चर्य छोड देते हो ये कह कर कि मैं आपको नही बताउंगा कि क्या अच्छा है, आप सिर्फ़ कर लीजिए। तो मन में जो उत्सुकता होती है उससे वो ये देखना चाहते हैं कि बेसिक कोर्स क्या है। तो आप सब ये ही कीजिये। बेसिक कोर्स के बारे में या आपने क्या किया इसके बारे में कुछ ना बताएं। आप सिर्फ़ एक उत्सुकता निर्माण कीजिये ये कह कर कि मै ने कुछ बहुत ही विस्मयकारी और शानदार किया है और आप भी कर लो। मै बता नही सकता लेकिन आप खुद कर लो। फिर वो पूछेंगे फिर वही बोलो मैं बता नही सकता ये बताना बहुत कठिन है आप खुद महसूस करो, ये बहुत ही सुंदर है।

प्रश्न: क्या शारीरिक पीडा मन के साथ जुडी होती है?
श्री श्री रविशंकर: निश्चित ही शारीरिक पीडा और मन जुडे होते हैं। क्योंकि आपको ये पता है। क्योंकि जब आप सोये होते हो या बेहोशी में होते हो तो आपको शारीरिक पीड़ा महसूस नहीं होती क्योंकि तब आपके मन की गतिविधियाँ बंद होती हैं| जब आपको दवाइयों से बेहोश किया जाता है तो आपके तंत्रिका तंत्र में रुकावट पैदा करते हैं जिससे आपके मन को अहसास नहीं होता। बराबर| तो दर्द या पीडा निवारण से मन का रिश्ता है। वो डॉक्टर जिन्हे दर्द निवारण में महारत होती है वो कहते है कि मन श्वास और ध्यान दर्द निवारण में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न: जब आपका दिल ज्ञान की बात समझता नही हैं, उस वक्त अविश्वास और चिंताओं से कैसे निपटें?
श्री श्री रविशंकर: देखो जब आप ये कहते हो कि आप चिंताओं का विश्लेषण करते हो तो आप उनसे बाहर आ चुके हो। जब भी आप ये कहते हो कि आप बहुत ज्यादा अनुमान लगाते हो तब आप उन चिंताओं से पहले ही बाहर आ चुके हो। समझ में आया। समय उम्र, अनुभव, ध्यान इन सबसे आप चिंताओं से विशाल हो जाते हो। उपर उठ जाते हो। आप खुद पीछे मुड़कर भूतकाल में देखें कि आप पहले कितने संवेदनशील थे, और अब कितने हैं। बहुत फर्क है। है ना।

प्रश्न: ध्यान करते वक्त क्या यही लक्ष्य होना चाहिए की किसी भी चीज के बारे में ना सोचें?
श्री श्री रविशंकर: सही है। आप जैसा कहा जाता है वैसा कीजिये और आपको गहरा अनुभव होगा। आपने कुछ सोचने की, केंद्रित होने की या कुछ भी करने की चेष्टा नही करनी है, सिर्फ बने रहिये।

प्रश्न: करुणा क्या है?
श्री श्री रविशंकर: ये आपको मालूम है। आपको सिर्फ करुणा की परिभाषा चाहिए और करुणा परिभाषा के परे है इसलिये मैं उसकी परिभाषा नहीं कर सकता|

प्रश्न: मैंने आपकी किताब पढ़ी है जिसमें आपने ये कहा है कि आप अगर ये सोच रहे हैं की आपको निर्णय लेना है तो इसका मतलब है आप भ्रमित हैं। मै अब भी भ्रमित महसूस कर रहा हूँ, क्या करुँ?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, जब आप ये सोचते हो कि आपको निर्णय लेना पडेगा, इसका मतलब है आप भ्रम में हो और आपने निर्णय लिया नहीं है। अगर आपने निर्णय लिया है तो आप ये नहीं कहेंगे कि आपको निर्णय लेना पडेगा। अगर आप ये कहते हो कि आप भूखे हो इसका मतलब है आपने कुछ खाया नही हैं। अगर आपने खाया है तो आप भूखे नहीं हो, ठीक है। और मेरा काम है आपको भ्रम में डालना न कि समझाना।

प्रश्न: आप ने आज पहले कहा कि आपके पास समय के सिवा सब कुछ भरपूर है। मैं इस स्थिती में क्या करुँ?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, मैं नहीं जानता। मैं चाहता हूँ कि आप मुझे ये बताएं इस स्थिती में में क्या करुँ? मेरे पास समय नहीं है। मुझे बहुत सारी जगहों से बुलावा आया है। मेरी २०१२ की दिनदर्शिका भर चुकी है, कोई खाली दिन नहीं है। सिर्फ मैं नहीं हमारे कुछ शिक्षकों का २०१३ भी कार्यक्रमों से व्यस्त है। वो मेरे एक कदम आगे हैं। हमारे कुछ स्वामी और ऋषी उनका २०१३ साल भी कार्यक्रमों से पूरा भरा है। अब क्या करें?

प्रश्न: अगर मैं ये समझने की कोशिश करता हूँ कि अंतः प्रज्ञा क्या है और मन क्या है?
श्री श्री रविशंकर: जो भविष्य में सही घटता है वो अंतःप्रज्ञा है| आपको ठहर के देखना पड़ेगा।

प्रश्न: शांतता/मौन का मतलब क्या है?
श्री श्री रविशंकर: (गुरुजी कुछ पल के लिये मौन हो जाते हैं, फिर कहते हैं) समझ में आया|



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