१२.०१.२०१२, बैंगलुरू
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“ॐ नमो प्रणवार्थाय शुध्द ज्ञान एक अमृताये निर्मलाय प्रशान्ताय श्री
दक्षिणामूर्तये नमः”
व्यास पीठ पर भी सुन्दर, सुन्दर मूर्तिया और श्रोता गण
में भी आप सबका किसी मूर्ती की तरह स्तब्ध होकर सावधान चित्त से यहाँ बैठना यही दर्शाता
है, कि भारत जाग रहा है| जब लोग कही मनोरंजन के लिए जाते है तब वहाँ तो बिलकुल डटकर बैठे रहते है पर
वे जब किसी आध्यात्मिक प्रवचन के लिए जायेंगे तो क्या नजारा होता है? आधे लोग तो सिर
झुकाके झपकी लेते रहते है या फिर आधा समय उनका ध्यान किसी और जगह होता है| पर आप सब यहाँ
जिस लगन से बैठे है लगता है आप सब सही पथ पर आगे बढ़ रहे है|
स्वामी विवेकानंदजी इस राष्ट्र के युवाकों के लिए एक
सपना छोड़ गए| जब वहीँ सपना, हम हमारा अपना सपना बनायेंगे,
तब इस देश का विकास ज्यादा दूर नहीं होगा| अगर इस देश के ६१२
जिलों मे से २०० जिले पिछड़े हुए है तो बस यह समझ जाना कि रामकृष्ण मिशन अब तक वहा पहुंचा
नहीं| अगर किसी जगह नक्सलवाद या कोई और हिंसक गतिविधियां चल रही
है तो उसकी वजह यह है कि वहाँ सही तरीके से स्कूली शिक्षा उपलब्ध नहीं है|
आपको पता होगा की जब सुश्री किरण बेदीजी रिटायर हो गयी
तब कई लोगो ने चैन की सांस ली| पर आप
उनको सेवानिवृत्त अधिकारी मत समझना| उनके लिए निवृत्ति है ही
नहीं| अब तो वे और भी बड़े पैमाने पर कार्यरत हो गयी है| आजकल जब भी मै कोई पुरस्कार वितरण करता हूँ, तब ६ में से ५ पुरस्काररार्थी
लड़कियाँ होती है|लड़कियों में सचमुच ज्यादा भावना शक्ति होती है क्योंकि वे खुद
प्रभारित होती है और पूरे वातावरण को प्रभारित कर सकती है| वे
लोगों को प्रेरित कर सकती है| अगर इस देश की हर महिला अपने कम्फर्ट
जोन से बाहर निकलकर कर काम करें तो यहाँ काफी बदलाव लाया जा सकता है|
जब सुश्री किरण बेदीजी "कम्फर्ट जोन" के बारे
में बता रहीं थी तब लग रहा था कि मानो आर्ट ऑफ़ लिविंग का प्रवचन दे रही है|
स्वामीजी का जीवन ही एक प्रेरणादायी स्त्रोत है| स्वामीजी जो भी थे, जैसे थे उनके पीछे माँ शारदा देवी की शक्ति जरूर थी| माताजी ने कभी कभार जो भी कुछ कहा, उससे उनका जीवन की तरफ देखने का नजरिया अभूतपूर्व तरीके से बदल गया|
अभी तीन दिन पहले ९ तारीख को मैं कोलकाता में रामकृष्ण
मिशन के स्वामीयों के साथ था सालों साल वे जिस कठिन परिस्थितियों से गुजर कर, पूरे
समर्पण भाव से अपने अंगीकृत कार्य को कर रहे है वह बहुत ही उल्लेखनीय है| अरुणाचल प्रदेश में हम रामकृष्ण मिशन
के साथ काफी एकजूट होकर काम कर रहे है| अस्पताल तथा स्कूलों में आर्ट ऑफ़ लिविंग कार्यकर्ता
साथ साथ काम कर रहे है| उन्हें कई चुनैतिओं का सामना करना पड़ता
हैं उसके बावजूद वे बिना कोई पछतावे, क्रोध या नफ़रत से काम कर रहे हैं| कठिन परिस्थिति और कष्टदायी वातावरण में भी उन्होंने जो ठहराव बनाये रखा हैं
वह काफी तारीफ योग्य है और देश भर में अनुकरणीय है|
सक्रिय आंदोलनों को आध्यात्मिक शुद्धता के साथ काम करना
चाहिए| अन्नाजी में भी हमने वही देखा है| वे एक गहरे आध्यात्मिक व्यक्तित्व के व्यक्ति
हैं| फिर भी वे अपनी जगह बैठे बैठे यह नहीं सोचते है कि जो चल रहा है चलने दे या फिर
सब भगवान पर छोड़ दे और खुद आराम से बैठ जाये| नहीं! अपने अन्दर के भगवान ही यह काम करने को प्रेरित करते है|
मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ|
अद्वैत तत्वज्ञान के प्रतिपादक आदि शंकराचार्यजी ने कहा
है "सब तात्कालिक है, सब बदल रहा है, सब माया है|"
एक दिन जब वे रास्ते से गुजर रहे थे तब एक उन्मत्त हाथी
उनके पीछे पड़ा तो आदि शंकराचार्यजी भागने लगे, तब किसी ने कहा ये सब माया का खेल है
आप ही ने कहा था यह हाथी माया है तो आप क्यों भाग पड़े?"
आदि शंकराचार्यजी ने क्या कहा यदि यह हाथी माया है तो
मेरा भागना भी माया है|"
आप सपने में कोई शेर देखते हैं तो उसको मारने के लिए असल में बन्दूक नहीं चाहिए?
जीवन हमें मिला हुआ एक अमूल्य उपहार है| जीवन एक उपहार है सजा नहीं| जीवन उपहार तो है पर बड़ा अमूल्य भी है| यह असीमित और सीमित विश्व की जटिलता
भी है| यह शांति, चैतन्य, प्रेम, कार्य, मौन और सेवा है|
यह राष्ट्र रामकृष्ण मिशन के संन्यासियों का ऋणी है क्योंकि
उन्होंने उनका यह जीवनकाल सालों साल देश की आध्यात्मिक प्रगति के लिये दिया है और इस
देश को वेदांत की सीख और कई अच्छे भजन भी दिए हैं|
संस्कृत में
एक कहावत है, “काव्य शास्त्र विनोदेना कालो
गच्छति धीमतम”, जो ज्ञानी हैं, वे अपना समय काव्य
के साथ बिताते हैं, मस्ती में, समर्पण के साथ, एक किसी कारण के लिए ज्ञान को हल्का
बनाते हैं| उसे सुनने के बाद किसी को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि वे उसका पालन नहीं कर
सकते| ज्ञान वह है जो जीवन में आसानी से लागू किया जा सके और जो उपयोगी हो|
बहुत अधिक अंधविश्वास
और मिथकों ने हमारे देश और धर्म में मजबूत जड़ें बना ली थी| जिसे स्वामी विवेकानंदजी ने पूरी तरह से खारिज कर दिया गया
था, बिल्कुल वैसे ही जैसे रेत में से शक्कर को निकालना| इसके लिए हमारे देश के युवा उनके बेहद शुक्रगुज़ार हैं|
आज मैं यह बहुत
जोश और खुशी के साथ कह रहा हूँ कि यह हम सबका कर्तव्य है कि हम स्वामीजी के इस
स्वप्न को पूरा करें| हमें इस देश को भ्रष्टाचार से बचाना है| जहाँ अपनेपन की
भावना खत्म होती है, भ्रष्टाचार वही से शुरू होता है|
आध्यात्मिकता
क्या है? इसका मतलब है अपनेपन की भावना लाना| हम जिसे भी देखें वह हमें अपना लगे|
इस विस्तृत विचारधारा के साथ और एक ऐसे दिल के साथ जो आसानी से नहीं टूटता| आजकल लोगों के दिल बड़ी आसानी से छोटी छोटी बातों पर टूट जाते
हैं| एक मजबूत दिल, खुले विचार, और किसी
भी कार्य को पूर्णता तक लेजा सकता है| १५० साल से स्वामीजी देश के
लिए और हमारे युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत रहें है और वे प्रेरणा बने रहेंगे|
यदि आप देखें
एक व्यक्ति के गुण उनके अनुयायियों में दिखते हैं और जिस त्याग और शांत मन से मठ
के सन्यासी देश में क्रांति की पुकार कर रहें हैं, वह अद्वितीय है| वे धर्म,
अहिंसा, सत्य और न्याय की मजबूत नींव बना रहें हैं|
बल्कि मैं तो
यह कहूँगा कि जितने भी लोग ऐसे मिशन स्कूलों में पढ़ें हैं उनमें से एक ने भी इस
तरह के अहिंसा के कार्यक्रम में भाग नहीं लिया होगा या नहीं ले सकता है और किसी ने
लिया है तो वह बिल्कुल अनोखा होगा|
मैं पूरे
विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि यदि स्कूलों और कॉलेजों में कोई धर्म, ज्ञान,
श्रद्धा और भक्ति की बुनियाद डाले, तब जीवन में संतुलन आ जाता है, और समाज में
सुधार होता है|
जों सबसे
भ्रष्ट लोग हैं, उनसे जाकर पूछिए कि उनकी शिक्षा कहाँ हुई है| उनमें से अधिकतर लोग
सरकारी स्कूलों में पढ़ें हैं, जहाँ नैतिकता को दूर रख दिया जाता है| मैं यह नहीं
कह रहा कि जितने लोग सरकारी स्कूलों में पढ़ें हैं वे सब अनैतिक हैं| हमें सबको एक ही श्रेणी में नहीं रखना चाहिए| वह गलत होगा|
इस देश में संतों और ऋषियों में भी आप को ऐसी कुछ बातें मिलेंगी| तो हमें देखना है
कि हम हर परिस्थिति को कैसे उपयोगी बना सकते हैं अपने लिए और समाज के लिए|
अब बहुत लोग
कहते हैं कि जों सन्यासी है, वेदान्ती है, उनके लिए सभी देश एक समान हैं| तब फिर
वे देश प्रेम के लिए अपनी आवाज़ क्यों उठाते हैं? जब हम कहते हैं ‘मेरा देश’ तब हम सीमित हो जाते हैं|
मैं कहता हूँ कि पूरी दुनिया हमारी है|
देश भक्ति और
देश के लिए समर्पण किसी भी तरह आपकी सार्वभौमता में बाधा नहीं बनेगी| आपको कभी नहीं सोचना चाहिए कि आपकी सार्वभौमता में देश भक्ति
की वजह से कोई बाधा आएगी| स्वामी विवेकानन्दजी ने इसका उत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया
कि किस तरह आप सार्वभौम भी हो सकते हैं और साथ ही साथ देश भक्त भी| दैव भक्ति, देश
भक्ति और गुरु भक्ति, ये तीनो अलग नहीं हैं, यह तीनो एक ही हैं| भगवान से ही यह
दुनिया उपजी है और यह ब्रह्म ही भगवान है| भगवान और प्रकृति को अलग अलग तत्व नहीं
मानना चाहिए| यही इस देश की अनूठी विशेषता है, कि नदी, पहाड़, पेड़, गायें, कौवे, स्वान
सब भगवान के रूप माने जाते हैं|
‘या प्रकृति लीनास्य याप परस्य
महेश्वरः’ जों प्रकृति में डूब गया, वह महेश्वर
है, भगवान है| हमें प्रकृति के प्रति दयालु होना चाहिए और देश भक्ति और दैव भक्ति
को अलग अलग नहीं समझना चाहिए|
इस सजगता और
जोश के साथ हमें देश को आगे बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए और आज यह प्रण लेना चाहिए
कि हम स्वामी विवेकानंदजी का वह स्वप्न पूरा करेंगे जिसमें भारत महान है, और भारत
दुनिया का आध्यात्मिक लीडर है|
यह हम सबकी
जिम्मेदारी है हम सब जो आज यहाँ बैठे हैं हम में से वे लोग जो उम्र और सोच में
युवा हैं| आप में से काफी लोग उम्र में युवा हैं, और बाकी बहुत से मनोवृत्ति से
युवा हैं, और मैं चाहता हूँ कि आप सब आज यह संकल्प लें| अपने आप को इस महान स्वप्न
की याद दिलाएं जों आपको स्वामी विवेकानंदजी ने दिया है; एक सुन्दर, समृद्ध और
न्यायपूर्ण भारत का|
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