०१.०१.२०१२, जर्मनी
वेदिक
कैलेंडर(पंचांग) के अनुसार इस साल का नाम है ‘नन्द’ यानि आनंद| यह आनंद का वर्ष है| पिछला साल था निश्चयता का साल| उसके पहले वाला साल था अराजकता और भ्रम का| मगर अब आने
वाला साल है, आनंद और खुशी का साल| तो इस साल हम सबको प्रण लेना
चाहिए कि हम समाज में और अधिक खुशियाँ फैलाएगें| अगर आप देखें,
कि जीवन में सभी कुछ खुशी पाने के लिए ही तो है|
मनोरंजन
होता है खुशी पाने के लिए| राजनीति होती है लोगों को खुशी देने के लिए| अर्थव्यवस्था
है खुशी लाने के लिए, ज्ञान है खुशी पाने के लिए| आप कोई भी विषय
या कोई भी मार्ग ले लीजिए, वे सब खुशी लाने के लिए ही हैं| और
लगता है कि कहीं हमारा मानव समाज यह भूल जाता है| अपने लक्ष्य
पर ध्यान रखने के बजाय, हम बीच में कहीं खो जाते हैं| हम सोचते
हैं कि साधन ही अपने आप में लक्ष्य है| हम सोचते हैं कि सड़क ही
घर है| आप हाईवे (बड़ी सड़क) पर गाड़ी चला रहें हैं और आप यह भूल
गयें हैं कि आपको कहीं जाना है और आप यही सोचकर गाड़ी चला रहें हैं कि यही घर है| यही हो रहा है|
हमें
लगता है कि पैसा ही लक्ष्य है, राजनीति लक्ष्य है, मनोरंजन लक्ष्य है ; नहीं! ये सब
सुख पाने के तरीकें हैं| बल्कि सुख तो बिना किसी शर्त के होता है| यह सब होने
के बावजूद भी आप लक्ष्य से चूक सकते हैं या यह सब नहीं भी है, तब भी आप लक्ष्य को पा
सकते हैं| चाहे कुछ भी हो जाए, यदि आप खुश हैं, तो यही आध्यात्मिकता
है|
चाहे
कुछ भी हो, चाहे सब कुछ कैसा भी हो, उल्टा सीधा या नहीं, आप खुश रहने का निर्णय ले
सकते हैं और खुश रह सकते हैं! आजकल एक बहुत दिलचस्प बात है, कि
दुनिया में लोग ‘सकल राष्ट्रीय खुशी’ (Gross National Happiness) की बात
कर रहें हैं| यह GDP (Gross Domestic Product/ ‘सकल
घरेलू उत्पाद) नहीं बल्कि GDH (Gross
Domestic Happiness/’सकल घरेलू खुशी’) है|
मेरे
ख्याल से इन्होंने सबसे पहले इंग्लैंड में इसके बारे में बात की थी| और फिर अमेरिका और यूरोप में, सब जगह| बंगलादेश और भूटान जैसे देश जो बहुत छोटे हैं, और जहाँ संसाधन बहुत सीमित
हैं, उनका GDH (‘सकल राष्ट्रीय खुशी’) उन देशों से कहीं ज्यादा है जहाँ का आर्थिक विकास
बहुत बढ़िया है, जैसे स्कैनडिनीविया, वहां खुशी बहुत कम है| इस
सबका अभिप्राय क्या है? मसला क्या है और हम इसे कैसे देखें? बस यहीं पर हमें दुनिया को जगाना है और उन्हें यह बताना है कि, ‘उठे, जागे| खुश रहे!’
हमें
आध्यात्मिक जागरूकता और मानवीय गुणों की एक लहर लानी है|मानवीय गुणों के अभाव में मानव समाज
सिर्फ पाशविक दुनिया जैसा रह जाएगा|मानवीय मूल्यों के बिना समाज
को मानवीय समाज नहीं कह सकते| और उसे पशु समाज भी नहीं कह सकते
क्योंकि पशु भी कुछ नियमों के साथ रहते हैं और उनके भी कुछ मापदंड होते हैं|
कोई
भी शेर शिकार के लिए नहीं जाता अगर उसकी मूल प्रवृत्ति संतुष्ट है, अगर वह भूखा नहीं
है| इस ग्रह
का कोई भी पशु जंगलों को दूषित नहीं करता| लाखों सालों से जंगल
हैं, मगर आपको जंगलों में प्रदूषण नहीं मिलेगा| वे सब कुछ स्वच्छ
रखते हैं|
वह
तो मानव समाज है जो अपने लोभ और उपभोक्तावाद के कारण ग्रह को दूषित कर रहें हैं| आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए उसे अनुपयुक्त कर रहें हैं| बस यहीं पर यह वर्ष इतना महत्वपूर्ण है| लोग मानवीय गुणों के प्रति जागरूक होंगे, आध्यात्मिक गुण और पारिस्थितिक गुण, और आर्ट ऑफ लिविंग के सदस्य होने के कारण आपको इसमें बहुत अहम किरदार निभाना
होगा| आप अग्रदूत हैं, और आपको समाज में यह जागरूकता लानी है
और फैलानी है|
साल
२०११ में, हमने बहुत से उथल पुथल देखे| सारे दबे हुए समाज उस तानाशाही, हिंसा और स्वार्थ के विरोध
में जाग उठे, जो सिर्फ कुछ चंद लोगों की वजह से थे| २०११ ने अरब
देशों में बहुत सी उथल पुथल और क्रांति देखी है| हम सब यह आशा
करते हैं, कि आने वाला साल उन सब घायल लोगों के ज़ख्मों के लिए मरहम का काम करेगा| और सिर्फ शारीरिक ही नहीं, बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक भी| तो यह हम सबकी जिम्मेदारी है| हम सबको जागना है और लोगों
के टूटे हुए दिलों को वापस दुरुस्त और चंगा करना है और समाज को आशा देनी है|
आर्ट
ऑफ लिविंग काफी समय से एक ऐसा समाज के बारे में दृष्टिगत है जो तनावमुक्त और हिंसामुक्त
हो| हम सही
दिशा में चल रहें हैं और हमारी उपलब्धियां भी अच्छी हैं|
हमने
बीते हुए सालों में जो भी हासिल किया है, उसका हमें गर्व है, चाहे वह निगमित हो या
सार्वजानिक| हम बहुत से प्रोग्राम करने में सक्षम हुए हैं और बहुत लोगों को सांत्वना दी
है और अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है| और इसलिए जो हमें करना है
वह हम खुशी खुशी करते रहेंगे|
आज
हम वैसे ही ४० मिनट का बहुत सुन्दर ध्यान कर चुके हैं; इतना स्थिर और चित्ताकर्षक ध्यान| पूरी दुनिया के लोग इस ध्यान में एक
साथ आये और मुझे पूरा यकीन है कि इससे दुनिया में एक बहुत बड़ा परिवर्तन होगा|
प्रश्न:
गुरूजी, आजकल अच्छे लोगों का पीड़ित होना बहुत सामान्य है| जब लोग कुछ पाप करते हैं तब उन्हें
उसी जन्म में उसका दंड क्यों नहीं मिलता, जबकि वे अपने पापों से अवगत होते हैं?
श्री
श्री रविशंकर: आप मेरी आँखों से देखिये| मुझे कोई बुरे लोग दिखते ही नहीं| मुझे
सिर्फ बुद्धिमान और अज्ञानी दिखते हैं| जो बुद्धिमान हैं वे सत्य
को पहले पहचान लेते हैं| अज्ञानी को थोड़ा ज्यादा समय लगता है
और वे अपने अज्ञान के कारण पीड़ित होते हैं, अपनी अच्छाई के कारण नहीं| लोग मूर्ख हैं कि उन्हें सत्य नहीं दिखता, वास्तविकता नहीं दिखती|
प्रश्न:
प्यारे गुरूजी, अब जब हम इस मार्ग पर हैं, हममें से ज़्यादातर लोग मोक्ष पाना चाहते
हैं| और आपकी कृपा से हमें मोक्ष
मिल भी जायेगा| तो फिर हमें इस अग्नि परीक्षा से गुजरने की क्या
ज़रूरत है? आप हमें ऐसे ही मोक्ष क्यों नहीं दे देते?
श्री
श्री रविशंकर: अरे आइये, कुछ मौज मस्ती तो करें! मुझे तो हमेशा कुछ चटपटा ही अच्छा
लगता है, सादा भोजन तो पसंद नहीं| इसीलिए, यहाँ वहां कुछ मसाला, इस सबको थोड़ा रोचक बनाता है|
प्रश्न:
गुरूजी, मनुष्य को अपने पूर्व जन्मों का कुछ भी याद नहीं रहता| जिस ईश्वरीय संकल्प ने यह ब्रह्माण्ड
बनाया, वह आत्मा के परमात्मा में मिलने के उपरान्त भी उसका पुनर्जन्म करा सकता है| तब फिर क्यों विद्वान लोग जन्म और मृत्यु के सागर को पार करना चाहते थे?
श्री
श्री रविशंकर: सुनिए, यह बहुत स्वाभाविक है| आपने एक गहरी साँस अंदर ली है तो साँस छोड़ना आपके लिए स्वाभाविक
और सहज ही है| अगर आपने अपनी मुट्ठी को कसकर पकड़ रखा है, तो आपको
उसे खोलने का सहज भाव आएगा ही| जब आपकी हथेली खुली है, तो आपको
उसे दोबारा कसकर पकड़ने की स्वाभाविक प्रवृत्ति आएगी ही| इसीलिए
मोक्ष की चाह उतनी ही स्वाभाविक है जितना अंदर ली हुई साँस को बाहर छोड़ना|
मान
लीजिए के आप किसी संवेदनात्मक क्रिया में जुटे हैं, जैसे कुछ खाने की इच्छा| एक समय आएगा जब आप कहेंगे कि, ‘बस, मुझे अब और नहीं चाहिए’ और आप रुक जाते हैं| इसी
तरह अगर आप निरंतर किसी चीज़ को देख रहें हैं, एक समय के बाद आप कहते हैं, ‘मैं अपनी आँखें बंद करना चाहता हूँ’| मान लीजिए आपको
दस घंटे तक लगातार संगीत सुनना पड़ता है, तब ग्यारहवें घंटे में आप कहेंगे, ‘नहीं, मुझे उसे बंद करने दो| मैं कुछ देर शांति चाहता
हूँ’| आप ख़ामोशी का आनंद उठाने लगते हैं| क्या आपने ऐसा होते हुए देखा है? चाहे कितना ही अच्छा
संगीत क्यों हो, एक समय के बाद आप उसे बंद कर देना चाहते हैं|
इसी
प्रकार, आपको स्पर्श की भावना आनंद देती है, मगर कितनी देर तक? कभी कभी आप कहते हैं, ‘मैं अकेला रहना चाहता हूँ’| तो चाहे वह स्पर्श की भावना
हो, या स्वाद, महक, दृष्टि या ध्वनि, एक समय के उपरान्त आप उससे दूर ही हो जाना चाहते
हैं| आप उसमे हमेशा के लिए संलग्न नहीं रहना चाहते| आप दूसरे छोर पर जाकर विश्राम करना चाहते हैं!
अगर
आप निरंतर सक्रिय हैं, तो एक समय के बाद आप कहते हैं, ‘मैं विश्राम करना चाहता हूँ’| बस मोक्ष इसी को कहते हैं! मोक्ष माने स्वतंत्रता! दुनिया में संलग्न रहने
से आज़ादी, गतिविधियों से आज़ादी, आनंद उठाने से आज़ादी और संवेदी सुखों से आज़ादी| हर एक किसी चीज़ से आज़ादी, यही है जो आपको सहज है| यह
सबमें जन्मजात होता है| आज नहीं तो कल, आप थोड़ा पीछे होना चाहते
हैं| और ध्यान आपको वह स्वंत्रता देता है, सर्वाधिक वांछित स्वंत्रता|
प्रश्न: गुरूजी, कृपया प्रमात्रा (क्वांटम) सिद्धांत पर कुछ कहें|
श्री श्री रविशंकर: क्वांटम के सिद्धांत के अनुसार सब-कुछ एक तरंग मात्र
है| रसायनशास्त्र में अवर्त सारणी (पिरिओडिक टेबल) के रूप में विभिन्न
अणुओं को व्यवस्थित किया गया है, आण्विक जीव विज्ञान के अनुसार अणु ही विभिन्न पदार्थ
बनाते है ; क्वांटम सिद्धांत अणु को और भी
छोटे परमाणुओं, इलेक्ट्रोन,
प्रोटोन, न्यूट्रॉन में; फिर और आगे तरंगों में विभाजित रूप में देखता है| यह वह स्तर है जहाँ कोई भी चीज़ दो नहीं है सिर्फ एक है, यही
है क्वांटम| आदि शंकराचार्य ने भी ठीक यही कहा था; समूचा ब्रम्हांड सिर्फ
(एक) ब्रम्ह से बना है|
"सर्वम खल्विदं ब्रम्ह नेहा ननास्ती
किन्चना" अर्थात समूचा ब्रम्हांड सिर्फ
(एक) ब्रम्ह से बना है, ब्रम्ह और कुछ भी नहीं|
प्रश्न: गुरूजी, पैसा किस सीमा तक महत्वपूर्ण है? हमारे अन्दर और अधिक धन अर्जित करने की क्षमता है परन्तु यदि हम ऐसा न करें, तो क्या यह गलत है?
श्री श्री रविशंकर: यह आप पर निर्भर करता है| पैसा आवश्यक है परन्तु इसे जेब में होना चाहिए, सिर पर नहीं चढ़ना चाहिए; नहीं तो इसकी कितनी भी मात्रा
कम ही लगेगी|
आज अमेरिका की हालत देखिये, ऐसा देश जिसकी मुद्रा (डॉलर) पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को चलाती है, अरबों डॉलर के गहरे क़र्ज़ में है, अब आप ही बताये,
अमेरिका को क्या कहंगे,
एक अमीर देश या एक गरीब देश?
पैसा कमाए ज़रूर परन्तु उसे ही जीवन का उद्देश्य न बना लें, अपने स्वास्थ्य या सुख और आनंद के कीमत पर नहीं| स्वास्थ्य की कीमत पर पैसे कमा भी लिए तो पैसे दे कर स्वास्थ्य वापस मिल जायेगा; ऐसा मत सोचिये, ऐसा होता नहीं| जीवन में एक संतुलन बना कर रखें| पैसा कमाएं लेकिन इस बारे में ब्यग्रता या ज्वर न रखें| लोगों की सेवा में आनंद के साथ
जीये; बड़े बैंक खाते की तुलना में यह अधिक संतुष्टि देगा!
प्रश्न: गुरूजी, वेदांत को सबसे उत्कृष्ट विद्या क्यों माना जाता है?
श्री श्री रविशंकर: क्योंकि यह सर्वोत्कृष्ट है! कुछ भी इसके सामानांतर नहीं
है|
प्रश्न: गुरूजी, आज हम (आर्ट ऑफ़ लिविंग) १५१ देशों में है| आगे क्या?
श्री श्री रविशंकर: मैंने यह आप पर छोड़ा है कि आप स्वयं अपनी दूरदृष्टि रखें!
आर्ट ऑफ़ लिविंग के तीस वर्ष हमने २०११ में पूरे किये, और ये उत्सव २०१२ तक चलेंगे| हमारा उद्देश्य पूरे जीवन को ही एक उत्सव में
बदल देने का है| आज भी हम विश्व के कुछ हिस्सों में नहीं पहुँच पाए हैं; वहां पहुचना है; यूरोप में तो उत्साह और उत्सव की एक लहर पैदा करना है! बाकि मै आप पर छोड़ता हूँ,
आप भी अपने विचारों और दृष्टिकोण के साथ आगे आए कि आप क्या हासिल करना चाहते हैं|
अपने व्यक्तिगत ज़रूरतों से ऊपर उठें और वैश्विक कल्याण के
लिए सोचें| आप समूचे विश्व समुदाय के लिए एक सोच और दूरदर्शिता रखें, और मै आपके व्यक्तिगत आवश्यकताओं का ध्यान रखूँगा, मुझपर विश्वास रखें| जब आप दूसरों/समाज के लिए बड़ा काम करने जाएँगे तो आपको कभी भी कोई कमी नहीं
रहेगी; सिर्फ अपने बारे में सोचते रहने में कोई ख़ुशी या आनंद नहीं होता| तो विश्व के लिए, समाज के लिए और आर्ट ऑफ़ लिविंग के लिए एक बड़ा विज़न (स्वप्न) रखकर आगे बढ़ें, आपके दिनचर्या की सारी ज़रूरतें हमेशा पूरी होती रहेंगी|
आपको जो चाहिए,
वह तो पूरा हो ही रहा है,
सारी ईश्वर कृपा एवं आशीर्वाद यूँ ही आपको मिल ही रही है; तो उर्जन्वित हो जाएँ, आलसी नहीं| ऐसा न सोच लें कि "गुरूजी
ने कहा है, केन्द्रित रहें,
सब भूल जाएं क्योंकि इनका ध्यान रखा जा रहा है" नहीं! आलस छोड़ कर गतिशील रहते हुए केन्द्रित
रहें|यही सबसे उत्तम मेल है|
प्रश्न: गुरूजी, वर्ष २०१२ में युवावर्ग के लिए आपका सन्देश क्या है?
श्री श्री रविशंकर: समय,
प्रत्येक मिनट, युवाओं के लिए है| यदि आप की मनोवृत्ति युवा की है तो पूरा साल आपके लिए है| वैसे यौवन होना, उम्र पर नहीं, बल्कि मनोभाव पर अधिक निर्भर होती है; यहाँ उपस्थित सभी के भाव देखिये, वे बाहर किसी भी नौजवान से अधिक उत्साही हैं!
बीते वर्ष ने क्या दिया, यह देखें| कई गलतियों के माध्यम से आपकी
आंखे खुल गई, उन पर पछताने के स्थान पर उन्हें
न दोहराने का संकल्प लें|आपने दूसरों के बड़ी भूल से भी
बहुत सीखने को मिला| अक्सर आपको दूसरों की गलतियों पर गुस्सा आ जाता है| गुस्सा करने की बजाए उनका भी धन्यवाद करें कि अपनी कीमत पर उन्होंने आपको सिखा दिया कि क्या गलती
नहीं करना, मनो वे कह रहे हों "देखो मैंने कितनी भयंकर भूल की, तुम ऐसा नहीं करना" अतः, उनका आभार मानते हुए आगे बढ़ जाना|
और कल्पना करें यदि मृत्यु हो गयी और आपका नया जन्म किसी
नए स्थान में हो गया तो कैसा लगेगा? मान लें आपका नया जन्म कोरिया में हुआ|एक बच्चे के लिए सब कुछ नया होता है, लोग भिन्न भाषा में बाते कर रहे है| सबकुछ नया और दिलचस्प है| (इसी तरह) अध्यात्म के पथ पर चलने वालों
को हर क्षण मर जाना चाहिए| भूतकाल से तो एकदम बाहर; पिछला सब समाप्त, अब, अभी क्या|
बीते समय का रोना और अपनी/दूसरों की गलतियों की एक पोटली बना
कर अटलांटिक या जो भी दूसरा समुद्र सबसे पास हो, उसमे फेंक दीजिये| सब झाड कर उठ
खड़े होईए और दुनिया को एक नए नज़रिए से
देखिये| प्रत्येक परिस्थिति, प्रत्येक व्यक्ति नया है! जीवन-चक्र ऐसे ही चलता है और चलता रहा
है|सभी कई बार मरे हैं, कई नए जन्म लिए है| सच्चा प्रबोधन तब है जब हम हर क्षण
मर कर नया जीवन शुरू करें| यही सत्यानन्द
है, इसी क्षण में रहना| हर पल नया जीवन, अतीत बीत गया, ठीक इसी
क्षण में! और इस क्षण में १०० प्रतिशत रहें; किसी भी चुनौती
का सामना करने को तैयार.. आगे बढ़कर देखें की आप दूसरों के लिए किस काम आ सकते है| सिर्फ ऐसे विचारों के साथ आगे बढ़ते जाये और बढ़ते जाएँ|
इसे कहा जाता है मन को नष्ट करना|मन को नष्ट करके
प्रकाश की और बढ़ें| आपको को पता चलेगा कि आप स्वयं ही प्रकाश
हैं| आखिर मन है क्या? कुछ छाप, अतीत में अटका हुआ, खेद, नाराज़गी,
स्वयं पर या दूसरों पर गुस्सा| एक दोषपूर्ण चक्कर, ऐसे मन को हर पल कुचल कर मार ही दें|
अब ये नहीं कहिएगा कि "फिर तो मै अपना रूम-नंबर ही भूल
जाऊँगा" नहीं, ऐसा नहीं होगा बल्कि ऐसा करने से स्मरंशक्ति में तीक्ष्णता
आएगी| इस सीमा तक कि आपको याद आ जाएगा
कि आप कभी मरे ही नहीं या कभी पैदा ही नहीं हुए, आपकी आत्मा को मालूम है कि जीवन शाश्वत है| पिछले पांच-दस हज़ार सालों में आप जितनी बार भी इस धरती पर आये, उन सबकी संजोई स्मृति जाग सकती है,हालांकि उनकी कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी, परन्तु मै यह कह रहा हूँ कि आप जब चाहेंगे, अपनी पूरी 'बैंडविड्थ' का उपयोग कर उस तक पहुँच सकेंगे|
प्रश्न: गुरूजी, क्या आप सुदर्शन क्रिया के अपने अनुभव हमारे साथ बाँट सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: मैं ठीक यही तो कर रहा हूँ! आज पूरी दुनिया के साथ मैंने
सुदर्शन क्रिया के अपने अनुभव बाँटे हैं|
प्रश्न: गुरूजी, कुछ होने की आशा (उम्मीद) रखने और ऐसा विश्वास रखने में क्या
अंतर है?
श्री श्री रविशंकर: आपने स्वयं ही उत्तर दे दिया| एक आशा मात्र है, दूसरा विश्वास|
प्रश्न: गुरूजी, ऐसा कुछ टिप्स दें कि प्रतिदिन
साधना करने के लिए मैं संकल्प कर सकूँ| दो बच्चों, काम और पढाई के कारण मैं बहुत व्यस्त हो जाता हूँ|
श्री श्री रविशंकर: टिप ये है कि विश्रान्ति
में रहें| विश्राम के साथ ऐसा मन्तव्य कि मुझे साधना करना है,
आपको सही रास्ते पर रखेगा|
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