१०.०१.२०१२, बैंगलुरू आश्रम
कैलाश का अर्थ ही है, वह जगह जहाँ केवल उत्सव और आनंद के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हैं| इसी प्रकार, वैकुण्ठ, जहाँ नारायण का वास है, माने वह स्थान जहाँ किसी वस्तु का अभाव नहीं| सब कुछ प्रचुर मात्रा में है, और यहाँ सम्पूर्ण समृद्धि और आनंद हैं| वह वैकुण्ठ है| क्या कैलाश और वैकुण्ठ कहीं दूर हैं? कहाँ हैं वे? बिलकुल यहीं! और आपने जो यह भजन का गान किया ‘विशालाक्षी’, इसका अर्थ क्या है? जिस के विशाल नेत्र हैं, जिस की दृष्टि विशाल है|
प्रश्न: परम प्रिय गुरूजी, शिव सूत्र में कहा गया है ज्ञानम
बंधनम्| ज्ञान बंधन कैसे हो सकता है?
श्री श्री रविशंकर: आप उसका अभ्यास करे| मैंने उस पर बहुत अच्छा कहा है| सारा
शिव सूत्र पढ़े|
प्रश्न: गुरूजी, हमारे जीवन में सरलता और अहम्
किस अनुपात में होने चाहिएँ? मैं इन दोनों के बीच संतुलन कैसे बनाए रखूँ? क्योंकि कभी
कभी जब मैं सरल रूप से पेश आता हूँ, तो लोग मुझ से गंभीरता
से पेश नहीं
आते|
श्री श्री रविशंकर: वह आपका विवेक है, विवेक
की समझ| आपको मालूम है, कहाँ
क्या करना है| सरल रहना श्रेष्ठ है|
प्रश्न: प्रिय गुरूजी, मेरा परिवार कश्मीर
से हैं, आतंकवाद के कारण हमें ज़बरदस्ती वहाँ से अन्य जगहों पर स्थानांतरण
करवाया गया| जब कश्मीर में इतना आध्यात्मिक और धार्मिक ज्ञान था, और इस ने कितने
संत और सूफियों को जन्म दिया, तब भी वहाँ इतनी हिंसा क्यों है?
श्री श्री रविशंकर: समय बदलता रहता है| कश्मीर
में कट्टरता प्रवेश कर चुकी है, लेकिन अब अगली पीढ़ी के लोग ये
समझ रहे हैं| तो वहाँ अपनी पकड़ बनाए रखे, कश्मीर
की वादियों में वापिस जाये| वहाँ वादी
में अब भी कुछ लोग हैं|
अब लोग समझ रहे हैं कि हम ने यहाँ अपने पंडितों को खो दिया
है|पहले यहाँ इतना सुंदर वातावरण था, लेकिन
अब ऐसा नहीं है| तो वे आपका स्वागत कर रहे
हैं; आप कश्मीर
वापिस जाये, ज़मीन खरीदे और वहीँ रहे या तो कम से कम
वहाँ आते-जाते रहे| कई लोग जो कश्मीर से वापिस आ गए
हैं, वहाँ
वापिस जाना नहीं चाहते, यही
समस्या है|अब परिस्थितियाँ अलग हैं और आप को वापस जा कर
वहाँ अपना
हक़ मांगना चाहिए|
प्रश्न: गुरूजी, मैं अपने कार्य और आर्ट ऑफ़ लिविंग दोनों
में १००% रहना चाहता
हूँ| अगर मैं एक को १००% देता हूँ तो दुसरे के लिए समझौता करना
पड़ता है| क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर: कोई ज़रुरत नहीं!
आपको पता है, देश भर में हमारे
अत्याधिक आर्ट
ऑफ़ लिविंग के ट्रस्टी और अपेक्स बॉडी
के सदस्य,
उन की कई सारी ज़िम्मेदारियाँ
हैं|वे अपना व्यापर करते हैं, कामकाज
करते हैं,
और फिर भी व्यस्त रहते हैं|और ऐसे हजारों
टीचर हैं,
जो अपना व्यापर करते हैं| उनके
व्यापर बड़े अच्छे चल रहे हैं और वे आर्ट ऑफ़ लिविंग के
कोर्स भी सिखा रहे हैं|वे दोनों कर रहे हैं| आपको उनका
अनुभव सुनना चाहिए| हमारी टीचर्स रेफ्रेषर मीट (टी.आर.एम) हुई थी, और देश
भर से टीचर्स आए थे| मात्र एक टी.आर.एम में ३५१
उद्योगपति थे और वे सब कोर्स सिखा रहे हैं| उन्होंने
कहा,
"गुरूजी, पहले हमारे व्यापर मंद थे और हम
कुछ नहीं कर रहे थे| लेकिन अब हम आर्ट ऑफ़ लिविंग
कोर्स सिखा रहे हैं और अपने व्यापर पर ध्यान नहीं
देते, पर वह
भी बहुत बढ़िया चल रहा है|"
उन में से कुछ ने अपने व्यापर में ४ से ५ गुना अधिक बिक्री
की है|
तो यह न सोचे कि वे विपरीत हैं|ये
या वो वाली बात न सोचे|आप दोनों कर सकते हैं, यह और वह| जब तक आप
यह नहीं समझते कि आप देश के लिए और विश्व के लिए इस से
भी बड़ी ज़िम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं , और आपकी अपनी ज़रूरतें
बहुत छोटीं हैं या ज़रूरतें ही नहीं हैं, तब आप आना और फुल
टाइमर बन जाना और हम आपको हर जगह भेजेंगे|लेकिन जब आपकी कुछ ज़िम्मेदारियाँ
हों और कुछ ज़रूरतें हों, तब आपको उन दोनों करना चाहिए|
प्रश्न: गुरूजी, आज मैं किसी कारण से बहुत उदास था, लेकिन आप को
वेब पर देखने और सुनने के बाद मैं बहुत खुश महसूस कर रहा हूँ| आप का जादू वर्ल्ड
वाइड वेब पर छा रहा है| क्या आप ने आज मेरे विचार पकड़ लिए?
श्री श्री रविशंकर: मैं आपको पकड़ सकता हूँ, पर
मुझे आपके विचार पकड़ने की ज़रुरत नहीं है| विचार
तो आते-जाते रहते है, उन्हें न अपनाये| वे आपके नहीं
हैं और मेरे भी नहीं हैं| लेकिन मुझे आपको पकड़ने की
ज़रुरत नहीं है क्योंकि आप सब मेरे अपने हैं| अगर आप
मुझ से अलग हैं, तभी मुझे आपको
पकड़ना पड़ेगा| आप मेरा ही हिस्सा
हैं|
प्रश्न: गुरूजी, आप ने हमें सब को प्रेम करने के लिए बोला
था| इसका नतीजा यह हुआ कि सभी मुझ से प्रेम
करने लगे हैं| अब मेरे लिए एक साथी ढूँढना बहुत कठिन हो
गया है| मैं क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर: अच्छा, ये
चुनौती मैं आप पर छोड़ता हूँ| मैं
देखूं तो सही आप क्या करने वाले है और किसे चुनने वाले है| आप किसी
को चुनते है या कोई आपको चुनता है, ज़रा
देखें| लेकिन बहुत देर मत करना, ठीक
है!
एक ६२ वर्ष के सज्जन मेरे पास
आए और बोले, "गुरूजी, मुझे शादी करनी है| मैं एक
श्रेष्ठ नारी को ढूंढ़ रहा था और इन ६० वर्षों में एक भी नहीं मिली|" मैंने
बोला,
'ठीक है, और १५ वर्षों के लिए तलाश करे| हो
सकता है,
बाद में आप दोनों एक दुसरे से स्वर्ग में ही मिले|’ यदि आपको
६२ वर्षों तक इस ग्रह पर श्रेष्ठ जोड़ीदार नहीं मिला, क्या
गारंटी है कि कुछ वर्षों में आपको वह मिल जाएगा|
प्रश्न: गुरूजी, जब मैं आश्रम में होता हूँ, मैं बहुत खुश और
उर्जायुक्त होता हूँ| लेकिन जब मैं घर वापस जाता हूँ, तुरंत ही यह सब
उतर जाता है|कृपया मेरी सहायता कीजिए कि कम से कम इसका आधा घर पर रहे|
श्री श्री रविशंकर: क्या घर में सभी ने यह कार्यक्रम किया
है? यदि नहीं, तो
उन्हें करवाये| ज्ञान
सुनते रहे , गाते रहे|और आप कृत्य-निश्चयी बन जाये, कि
चाहे जो कुछ भी हो जाए, मैं चुनौती लेता हूँ कि मैं अपना उत्साह कम
नहीं होने दूँगा| आपको मालूम है यह कैसे
नीचे उतर जाता
है| क्योंकि आप तर्क करते है, और आप दूसरों
को अपनी तरह और आपने जैस यहाँ अनुभव किया है उस प्रकार समझदार होने
की आशा रखते है|ये सब नहीं हो सकता| आपको आर्ट
ऑफ़ लिविंग का पहला सिद्धांत अमल में लाना है, 'लोगों
और परिस्थतियों को वह जैसे हैं वैसे ही स्वीकार करे|’
प्रत्येक परिस्थिति में उस इरादे से न उलझ
जाये कि इस परिस्थिति के अनुभव से मुझे सुख और प्रसन्नता मिलेगी| जब आप आमोद-प्रमोद और सुख की ओर
भागते हैं,
तब आपको कहीं न कहीं दुःख ही मिलता है| आमोद-प्रमोद और सुख ही
केवल जीवन के लक्ष्य नहीं हैं| लोगों को जैसे
वे हैं वैसा ही स्वीकार करे और ज्ञान की गहन में जाये| इससे
आश्चर्यजनक परिवर्तन आएगा|
प्रश्न: प्रिय गुरूजी, आजकल के इंजीनियरिंग संस्थानो में हमें पदवी प्राप्त करनेके लियें लगभग ५४ विषय पढ़ना जरूरी है| क्या पुराने जमाने मे नालंदा जैसे विश्वविद्यालायोंमे छात्रों को इतने सारे विषय पढ़ाते थे?
इस बारे मे आप कृपया कुछ करें|
श्री श्री रविशंकर: हाँ! तब लोग काफी अध्ययनशील थे| उन दिनों विद्यार्थियोंको मनोरंजन के लिए कोई समय नहीं था| एक कहावत है, "अगर आप विद्यार्थी है तो आपको सुख की कोई गुंजाईश नहीं
है और यदि आप सुख प्राप्त करना चाहते है, तो आप विद्यार्थी नहीं बन सकते" आपको
मेहेनत करनी पड़ेगी| उन दिनों लोग काफी मेहेनती थे|
आजकल आपके पास संगणक है, कैल्कुलेटरस है| पिछली पीढीयों के पास संगणक, कैल्कुलेटरस
कभी नहीं थे| हमें सब गुणन सारणी याद करना पड़ती था| और भी कई बाते याद रखनी पड़ती थी| सच कहे तो उन दिनों
दिमाग का इस्तेमाल ज्यादा करना पड़ता था, जो आजकल नहीं होता| आपको याद है, जब कुछ ही
साल पहले, सेल फ़ोन नहीं थे तब लोगों के टेलीफ़ोन नम्बर्स याद करने पड़ते थे| आजकल सेल फ़ोन की वजह से कोई भी नम्बर्स
याद नहीं रखते| एक बार उसे वहां फीड कर दिया तो बस हो गया काम| जब भी किसी का नाम दबाया, उसका नंबर अपने आप आ जाता है| कई बार आपको अपना खुद का नंबर याद नहीं रहता| तो आप
अपनी स्मरण शक्ति कम और टेक्नोलोजी ज्यादा इस्तेमाल करने लगे है| कभी कभी तो डर लगता है, कि आप अपनी स्मरण शक्ति खो न दे और वह बहुत जल्दी
होता जा रहा है|
कोई भी युवक जो हफ्ते मे दो फिल्मे देखता है, उसे तीन
महीने बाद किसी एक फिल्म की स्टोरी पूछो, तो वह सोच में पड़ जायेगा और एक फिल्म की स्टोरी
में दूसरी फिल्म की स्टोरी मिला देगा| वह कोई एक स्टोरी अंत तक बता भी नहीं पायेगा| इसी की वजह से आजकल "ध्यान की कमी"
जैसी बीमारी ज्यादा नजर आती है|
प्रश्न: गुरूजी योगसूत्र में व्याधि को बाधा या रूकावट माना गया है| क्या व्याधि मेरा ही एक हिस्सा नहीं
है?
श्री श्री रविशंकर: नहीं, व्याधि एक रूकावट है| व्याधि, सत्य, समस्या, प्रमाद, आलस्य,
अविरति, भ्रान्ति दर्शन, अलब्ध भूमिकत्व और अनवस्थितत्व इन्हें नौ बाधाये बताया गया
हैं| इनसे मुक्ति पाने का साधन भी बताया गया है, बस, उसे उठाये
और उसमे डूब जाये|
प्रश्न: गुरूजी, दो पीढ़ीयों के बीच के अंतर की वजह से बच्चे और माँ-बाप में जो मतभेद उठते है
उसे कैसे दूर किया जाएँ?
श्री श्री रविशंकर: उसके लिए उन्हें येस+ और आर्ट एक्स्सल
कोर्स में लाये और यह अनुभव करे कि कितनी जल्दी फर्क आता है|
प्रश्न: उत्तराखंड में मनुष्य के अन्दर देवी, देवता प्रगट होने की प्रथा को मान्यता है, यह कहा तक सच है?
श्री श्री रविशंकर: हा, यह सच है पर कई बार वे खुद इसमें
उलझ जाते है| जब तक
यह पता नहीं है की वे खुद एक साधक है और अपने अंतर की गहराई तक पहुच पाता है, तब तक
यह नहीं बताया जा सकता की वह किसी देवता की आवाज आप तक पहुँचा सकता है या नहीं| देवता की आवाज के साथ साथ उसका खुद का मन भी कुछ अपनी बात उसमे जोड़ेगा| इसलिय कुछ हद तक वह सही बात कहेगा और कुछ हद तक गलत भी| यह तो, किसी मिटटी- धुल भरी कांच के टुकड़े में से सूरज की तरफ देखने जैसा है,
क्योंकि तब, उससे निकलने वाली किरने उतनी साफ़ नहीं हो सकती, उनपे धुल का असर जरूर होता
है| या फिर कांच नीले रंग की हो तब उससे आता हुवा प्रकाश भी नीला
होगा|
इसलिए देवी देवता की आवाज बनकर आनेवाला व्यक्ति अगर खुद
निर्दोष, सीधा साधा और शुद्ध न हो तब उसकी बताई सभी बाते सच न निकले, पर वह सही मायने
में निर्दोष और शुद्ध है तो सब कुछ सच सच बता भी सकता है|
प्रश्न: क्या सही, क्या
गलत यह कैसे तय किया जाये? कृपया कोई आसान सी चाल बताइए|
श्री श्री रविशंकर: अच्छे और बुरे की एक आसान सी व्याख्या
है|
१. जो बात दूसरे लोग आपसे न करे ऐसा आप को लगता है, वे
बुरी बात हैं और जो बात दुसरे आपसे करे और आप भी उनसे करना चाहेंगे, वह हैं अच्छी बात|
२. जो बात आप थोड़ी देर के लिए सुख और काफी देर तक दुःख
दे वे है बुरी बात और जो बात आप काफी देर तक सुख और थोड़ी देर तक दुःख दे वो है अच्छी
बात|
प्रश्न: बचपनमे माँ-बाप से ,बाद मे शिक्षकों से और अब खुदा से डर लगता है.हम अपने जीवन में भय को जगह क्यों देते है? क्या भय जरूरी है?
श्री श्री रविशंकर: बिलकुल जरूरी नहीं| किस बात का डर? प्यार को उल्टा करवा के शीर्षासन करवाया तो बन गया डर| बस उसे सीधा कर दो,प्यार की वजह से डर होता है|
प्यार नहीं तो डर भी नहीं| तुलसीदास जी ने कहा "भय भी न होते न प्रीत गुसाई"| भय और प्रेम एक ही चीज के दो रूप हैं| जहा प्रेम है वहा भय नहीं, जहा भय है वहा प्रेम नहीं| वहीं चीज दो रूप में प्रगट होती हैं|
प्रश्न: गुरूजी, कई बार, जानते हुये भी मैं गलतिया कर बैठता हूँ| ऐसी कोई तरकीब है जिससे सही वक्त पर मेरा ज्ञान काम आए और मुजसे कोई गलतियां ना हो?
श्री श्री रविशंकर: सिर्फ यह ख्याल
काफी है कि मैं मेरी गलतीया ना दोहराऊ; यह भावना ही जड़ पकड़ने लगेगी| ठीक है, चलो जितनी गलतीया करनी है, उन्हें कर लीजिये|
अंत मे आप थक जायेंगे| मैं आपके लिए रुका रहूँगा| पूरा थक कर गिर पड़ने तक गलतीयां करते रहे| फिर सब कुछ ठीक होगा| जो लोग बार बार वहीँ गलतीयां करते हैं और जिन्हें भुगतना पड रहा हैं, उनको एक नजर देख लीजिये| एक ही गलती एक बार, दो बार, तीन बार, दस बार करने के बाद आप खुद कहेंगे, अब बस, अब और नहीं| लेकिन यह साक्षात्कार यह जीवन खत्म होने से पहले होना जरूरी हैं| पूरी जिंदगी भर वहीँ न चलता रहें| अगर आप सही रास्ते हो तो ऐसा होगा भी नहीं| आप बहुत जल्दी जाग जायेंगे, तभी तो कहा गया है, "स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात" इस ज्ञान का थोडा सा हिस्सा भी अगर पालन करोगे तो बड़े से बड़ा डर आप छु ही नहीं सकेगा|
प्रश्न: पुराने समय से यह परंपरा चलती आ रही है कि राहू काल में कोई नये काम की शुरुआत नहीं की जाती है| इसे बहुत महत्व दिया जाता है, क्या यह सही है?क्या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोन है?
श्री श्री रविशंकर: देखो, ऐसा है कि राहू काल का समय प्रार्थना के लिए सही समय माना गया है| उसे किसी भी आध्यात्मिक काम के लिए सही माना गया है| इस लिए तब कोई सांसारिक काम की शुरुआत करना उचित नहीं माना गया है, क्योंकि तब उस वक्त शरीर में नाडी बदल होता रहता है| फिर भी उसे इतना ज्यादा महत्व देने की जरूरत नहीं| अगर उसी वक्त कोई काम करना जरूरी है तब “ॐ नमः शिवाय"
कहो और आगे बढ़े|
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