२०.०१.२०१२, बौद्धगया, बिहार
जीवन अनमोल है। यह
प्रभु की भेंट है। अगर हम इसकी परवाह नहीं करेंगे तो सदैव दुखी ही रहेंगे। जब हम इस
जीवन की देखरेख करेंगे, तब हमें वो सब प्राप्त होगा जिसकी कामना हम
करते हैं। मै यहाँ आपको कुछ स्मरण करने आया हूँ, क्या आप जानते
हैं वो क्या है? नहीं, इसीलिए मैं यहाँ
आपको उनका स्मरण कराने आया हूँ (एक प्यारी सी मुस्कराहट)। क्या आप नहीं जानते मैं यहाँ क्यों आया हूँ? मै आपको
स्मरण कराने आया हूँ कि एक शक्ति है जिसका अस्तित्व है; ईश्वर
का अस्तित्व है। अगर आपको विश्वास नहीं तो आप मुझसे पूछ सकते हैं। मैं यही कहूँगा कि
ईश्वर का अस्तित्व है। और वो आप से अत्याधिक प्रेम करते हैं। अब आप मुझसे पूछेंगे,
"वह हमें इतने कष्ट क्यों देते हैं? अगर परमात्मा
का अस्तित्व है, तब भी विपदाएं क्यों हैं? जब भी हम उसके विरुद्ध जाते हैं, या फिर उससे अप्रिय
होते हैं तब हमारे दुःख बढ़ने लगते हैं। जब हम अशांत होते हैं तब हमें प्रभु की ही
शरण में जाना पड़ता है| तब हमें पता लगता है कि हमारे दुःख के
समय में कोई हमारे साथ है।
यह कहा जाता है कि
प्रभु पहले नापते हैं तभी किसी भी पशु की पूछ जोड़ते हैं। प्रभु कभी भी हाथी की पूछ
बकरी पर नहीं जोड़ते हैं, क्योंकि बकरी उसका बोझ नहीं उठा सकेगी। हर पशु
को उतनी ही लम्बी पूछ मिली है जितनी की वो संभाल सके। उसी
प्रकार से हर व्यक्ति की समस्या उसकी पूँछ जैसी है। आप पर उतनी ही विपदाएं आयेंगी जितनी
की आप संभाल सकें। मैं यहाँ उन समस्याओं का समाधान करने आया हूँ जिनको आप संभाल नहीं
सकते हैं। समाज में प्रस्तुत सभी गुरु एवम बुद्धिजीवी प्रमुख्यत: आपकी समस्या का समाधान
ही कराने के लिए हैं। संपूर्ण विश्व, आपके मित्र और आपके सम्बन्धी
आपके साथ हैं। आप अकेले नहीं हैं। इसीलिये, "प्रभु है,
उनका अस्तित्व है", मैं आपको इसी सत्य का
स्मरण कराने आया हूँ।
प्रभु है, आपके
अंदर ही है और प्रभु आपसे अत्यधिक प्रेम करते हैं। अगर हम छोटे एवम नियमित अंतराल पर
अपने मन को शांत करें तो हम परमात्मा से संपर्क स्थापित कर पायेंगे। उसके बाद आप जो भी कामना करेंगे वह सब संभव हो जायेगा।
"जो इच्छा करियो मन माहि, प्रभु प्रताप
कछु दुर्लभ नाहीं" (यह कहावत उत्तरी-मध्य एवम पूर्वी भारत में बोली जाने वाली भाषा में है)। यह सिद्ध है कि हम सभी यहाँ सत्संग के लिए एकत्रित हुए हैं। इसका यह लाभ
होना चाहिए कि जो मुस्कराहट आप सभी के मुख पर है वो सदैव बनी रहे और कभी मुरझाये नहीं।
आप यहाँ अपनी चिंताए ले कर आये हैं, इसे यही छोड़ जाएँ,
और मुस्कराहट के साथ वापस जाएँ, और यह सुनिश्चित करके कि आपका कार्य
जरूर पूर्ण होगा। कार्य पूर्ण होने में थोडा समय जरूर लगेगा,
परन्तु कार्य पूर्ण होगा। इसमें कुछ समय लग
सकता है, परन्तु ऐसा जरुरी नहीं कि
इसमें समय लगेगा ही।
मुझे इस विश्व का
भ्रमण करते हुए तीस वर्ष हो गए हैं। आप आज ऐसा पायेंगे कि भारतीय संस्कृति एवम धार्मिकता
का विश्व के हर कोने में आदर किया जाता है। अगर आप उत्तरी ध्रुव के अंतिम शहर, ट्रोम्सो,
या फिर दक्षिण ध्रुव के अंतिम शहर, तिएर्रा देल फुएगो तक जाए
तो आप पाएंगे कि लोग वहॉ पर कीर्तन, प्राणायाम एवम ध्य़ान कर रहे होंगे। अगर आप वहां गए तो आप को यही कहते हुए लोग
मिलेंगे "जय गुरु देव", आपको
ऐसे हज़ारों लोग मिलेंगे। भारत एक आश्चर्यजनक स्थान है। प्रभु के चरण यहीं पर स्थापित हैं (यह बौद्धगया,
बिहार के सम्बन्ध में कहा गया है जहाँ पर यह सत्संग हुआ था)। "विष्णु पाद" भी यहीं
पर स्थापित हैं। यही गया का महत्व है। बुद्ध को इसी स्थान पर ज्ञान प्राप्त हुआ था।
सिद्धार्थ यहीं पर बुद्ध बने और अपने ज्ञान को विश्व भर में फैलाया। आप ऐसी पावन धरती
पर रहते हैं। मैं आपको यह आश्वासन देना चाहता हूँ कि आपके अन्दर शक्ति है, परन्तु आप उसका उपयोग नहीं कर रहे हैं। अगर आप उसका उपयोग कर रहे होते तो फिर
आपके पास दुखी होने का कोई कारण नहीं होता। ‘दुःख में त्याग, सुख में सेवा’; अगर
हम ऐसा करें तो हममें भक्ति का भाव निरंतर ही पैदा होगा। जब भी हम प्रसन्न हों, हमें
सेवा करनी चाहिए। जब हम दुखी हों तब सब परमात्मा को सौंप देना चाहिए और विश्वास रखना
चाहिए की हमारा कार्य अवश्य पूर्ण होगा। आज आप दो सूची बनायें : एक जिसमें ये बतायें की आप क्या चाहते हैं और दूसरी जिसमें ये बतायें कि आप
किन उत्तरदायित्त्व का निर्वाह करना चाहते हैं| अगर आपके उत्तरदायित्त्व
आपकी इच्छाओं से कम होंगे, तो आप दुखी होंगे। परन्तु अगर आपके
उत्तरदायित्त्व आपकी इच्छाओं से अधिक हुए तो आप खुश होंगे। जब हमें ऐसा महसूस होगा कि हमें अपने लिए कुछ नहीं चाहिए तब हमारे अन्दर एक
अध्यात्मिक उर्जा का संचार होगा जिससे हम दूसरों को भी आशीर्वाद दे सकते हैं। तब ही
हमारे संकल्प पूर्ण होने लगते हैं। फिर हम दूसरों की इच्छाओं की पूर्ती कर सकते हैं।
यह कोई अन्धविश्वास नहीं है, यह एक सिद्ध तथ्य है।
फिर हमें क्या करना
चाहिए? हमारे उत्तरदायित्त्व क्या हैं? सबसे पहले हमें रसायन-मुक्त खेती को बढावा देना चाहिए अर्थात जैविक-खाद को
बढावा देना चाहिए। यहाँ पर जितने भी लोग खेती करते हैं उन्हें जैविक-खाद का प्रयोग करना चाहिए। आर्ट ऑफ़ लिविंग आपको बाजार से सम्बन्ध स्थापित
करने में मदद करेगा। अगर आपको आपकी खेती के उचित मूल्य नहीं मिलते तो आप बता सकते हैं।
परन्तु ऐसा नहीं होगा। दूसरी बात, यहाँ पर कितने युवा बेरोजगार
हैं। हमने यहाँ आर्ट ऑफ़ लिविंग की तरफ से एक कार्यालय बना रखा है, "रोज़गार कार्यालय", आप में से जो भी बेरोजगार हैं
वे सभी अपने नाम दर्ज करायें। आप अपना नाम, आपकी योग्यता एवम
अपेक्षा लिखवा दें, हम निश्चिन्त ही कोई उपाय निकालेंगे। क्या
आप जानते हैं, बिहार से काफी अधिक संख्या में लोग आये और यहाँ
बैंगलुरू (बैंगलुरू, भारत) में प्रशिक्षित किये गए हैं। वह लोग वहां पर आश्रम की देखरेख करते हैं|
बिहार के युवा बहुत ही मेहनती एवम निडर हैं। कर्मशीलता, निडरता एवम विश्वसनीयता यह तीन गुण उनमें आत्मसात है।
बीच में कुछ गड़बड़ हो गयी। कुछ
सालों के लिए यहाँ झगडों की वजह से काफी तनाव बना रहा। पर मुझे अन्दर की बात पता है।
यहाँ का युवा वर्ग खुश मिजाज और मजबूत है। मुझे ऐसे ही युवाओं की जरूरत है। राष्ट्र
निर्माण के लिए हमें युवा शक्ति की जरूरत है। हम बहुत ज्यादा भ्रष्टाचार का सामना कर
रहे हैं। क्या आपको पता है भ्रष्टाचार की शुरुआत कहां से होती है? जहाँ एकता की
भावना मिट जाती है बस वहीं से भ्रष्टाचार शुरू हो जाता है। जहाँ आध्यात्मिकता नहीं
है वहाँ भ्रष्टाचार और स्वार्थ आ जाता है। हम सब भ्रष्टाचार से उब गए हैं और उसे मिटाने
के लिए हम सबको प्रयास करने की जरूरत है। तो यह काम हम कैसे करें? सबसे पहले तो हम यह शपथ लेंगे की हम घूंस नहीं देंगे और हम घूंस लेंगे नहीं।
अगर यहां पर कोई ऐसा अधिकारी हो जो सालों साल घूस लेता आया हो तो उसने अब तक यह जान
लिया होगा कि खुद का नाम उसने कितना खराब किया है और दूसरों के दिलों मे खुद के लिए
कितनी कड़वाहट पैदा की है।
और इस तरह कमाए हुए पैसों से हम
क्या करते हैं? यह पैसा हम जमा करते हैं, फिर उसे बैंक में
रख देते हैं और फिर एक दिन मर जाते हैं। हमारे मरने के बाद, हमारे
बच्चे उन पैसों के लिए कोर्ट में जाकर झगड़ते रहते हैं। आपने अपने भ्रष्ट कर्मों से
राम-लक्ष्मण जैसे भाईओं को, पैसे को लेकर
झगडे करने पर मजबूर किया। ऐसा न करें। सिर्फ एक साल के लिए घूंस मत लेना। मै ज्यादा
कुछ नहीं मांग रहा हूं। बस एक साल! अगर कुछ बात बनती नहीं है,
तो फिर जो जी में आये, कर लो। यहां के जो भी युवा
वर्ग अपने देश के लिए ६ महीने या एक साल तक काम करना चाहते हैं, आप सबका स्वागत है। इस देश के लिए काफी कुछ किया जा सकता है। हम सब एक साथ
एक हिंसा मुक्त समाज देखना चाहते हैं। मुझे याद है, बारह साल
पहले जब मै यहाँ आया था, यहां की स्थिति काफी गंभीर थी | लोग
कहते थे, 'यहाँ मत जाना, वहाँ मत जाना,
वहाँ बहुत खतरा है'। बिहार मतलब डर। यह परिस्थिति
थी। कोई सभा-सम्मेलन करना असंभव था। ना जाने कब क्या हो?
पर अब यह स्थिति नहीं है। तबसे अब तक काफी सुधार हुआ है। लोग बिना किसी
डर, कहीं भी घूम सकते हैं और यह अच्छी घटना है। फिर भी हमें और
भी आगे जाना है। और बहुत कुछ करना है। हमें प्रतिज्ञा करनी है कि हमें रिश्वत ना देनी
है, ना लेनी है। जन्म या मृत्यु का दाखिला देने के लिए अगर कोई
रिश्वत मांगता है तो उसके पास अकेले मत जाना, दस और लोगों को
लेकर जाना। उसे बोलो "हमने गुरूजी के सत्संग में रिश्वत
ना देने की कसम खायी है, इसलिए हम यह नहीं कर सकते हैं" और धर्म यह कहता है कि अगर किसी सत्संग में आपने कोई प्रतिज्ञा ली तो आपको
उसके साथ बने रहना है।
और दूसरी बात, शराब,
जो इस देश को बर्बाद कर रही है। अल्कोहोल की व्यसनाधीनता हमें बहुत
परेशान करती है। पिछले कुछ महीनो में देशभर में शराब की बिक्री तीन गुना ज्यादा बढ़
गयी है। लाखों करोड़ों का अल्कोहोल बिक रहा है और लोग और गरीब होते जा रहे हैं। जब
तक शराब की नदी यहाँ बहती रहेगी देश समृद्ध नहीं हो सकता। अगर इस देश से गरीबी मिटाके
देश को वैभवशाली बनाना है तो सबसे पहले शराब की सभी दुकानें बंद करनी पड़ेगी। जो भी
शराब के नशे में रहना चाहते हैं मैं उन्हें अपने "बार" में बुलाता हूँ| यहाँ पर एक बार अगर आपको नशा चढ़ जाये
तो वो उतरेगी ही नहीं। अगर आप हमारे सत्संग में नाचने का नशा अनुभव करोगे तो उसके सामने
बाकि सभी नशे फीके पड़ जायेंगे। लोग शादियों में, किसी बच्चे के
पैदा होने पर या फिर किसी के मरने पर भी नशा करते हैं। अगर कोई पार्टी चुनाव जीत जाए
तो लोग दारू पीते हैं, और अगर हार जाएँ तो वो गम मिटाने के लिए
भी दारू पीते हैं। बहुत ज्यादा नफा या नुकसान होने पर भी लोग शराब पीते हैं। कुछ भी
हो जाये, शराब पीने की चेन बनी रहती है। यह स्थिति हमें बदलनी
है।
आप प्राणायाम, क्रिया और ध्यान
करो तब आपको पता चलेगा की आपमें ऊर्जा का स्तर कितना है। आप खुद बाखुद शराब पीना छोड़
दोगे। अपना स्वास्थ्य रखने के लिए हमें आयुर्वेदिक दवा लेनी चाहिए, सिर दर्द होने पर
हम एलोपैथिक दवा लेते हैं| उसके बदले आयुर्वेदिक दवाइयां ले,
प्राणायाम करें, ध्यान करें और सब दुःख दर्द गायब
हो जायेगा|
श्रोतागण में से कोई कहता है : हमें भारत में
शराब का उत्पादन ही बंद करवाना चाहिए।
श्री श्री रविशंकर : उसी के लिए मैं
यहाँ हूँ अगर लेने वाला कोई ना हो तो बेचने वाले बेचेंगे किसे ?
आपको पता है, सिर दर्द क्यों
होता है? अनाज उगाने में जो भी रासायनिक खाद और यूरिया इस्तेमाल
होता है वो ही उसकी वजह है| रसायन मुक्त खेती से जो भी फसल निकलेगी
वो शरीर में कभी दर्द पैदा नहीं करेगी और उससे आप हमेशा खुश बने रहोगे और आपकी याददाश्त
तेज बनी रहेगी। इसी लिए हमें हर रोज कुछ देर के लिए योग और प्राणायाम करना भी जरूरी
है। उससे आपका शरीर मजबूत होगा और आप हमेशा खुश रहोगे। आप सबको मेरा आशीर्वाद है। कभी
कोई कमी नहीं होगी।
यही योग का जादू है। योग में आपकी
सभी इच्छाएं पूर्ण करने का सामर्थ्य है। मैंने सुना है कि बौद्ध गया में एक ज्ञान मंडप
आश्रम बनाया गया है। मैं उसके उदघाटन के लिए यहाँ आया हूँ। आज चीन, जापान और बाकि
देशों से से दो सौ से ज्यादा लोग वहां आये हुए हैं। चीन में भी भारत के आध्यात्मिकता
को बहुत सम्मान मिलता है। हमारी शारीरिक समस्याएं मिट जाती हैं, हम स्वस्थ्य बन जाते हैं, समाज में ख़ुशी फ़ैल जाती है,
समस्याओं का निराकरण हो जाता है, और बढती हुई मस्तिष्क
शक्ति का अनुभव होने लगता है। यह बहुत ही सुन्दर और मधुर ज्ञान है पर हमने उसे दूर
ढकेल दिया है। उसे दखल अंदाज करके उसका अनादर किया है। हमसे ये बड़ी भूल हुई है। आपमें
से किस किस को ठंड लग रही है? अगर आपको ठंड लग रही हो तो अपना
अंगूठा इस तरह से पकड़े जिस से वो गर्मी महसूस करे। आप अपने अंगूठे गर्म रखते हो तो
आपका पूरा शरीर गर्म हो जाता है। जब मैं स्विजरलैंड जैसे ठंडे देशों में जाता हूँ तब
भी मैं इन्हीं कपडों में जाता हूं। वहां पूछा जाता है "आपको
ठंड नहीं लगती? और मैं "नहीं"
कहता हूँ। आप भी कर सकते हैं; थोडा सा प्राणायाम और ध्यान। और फिर आपको
गर्मी या सर्दी से कोई परेशानी नहीं होगी। आप मजबूत बन जायेंगे।
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