"पूर्ण रूप से वर्तमान क्षण में रहकर भविष्य के लिए बेहतर दृष्टिकोण मिलता है"


प्रश्न : मैं अपने आप को भय से कैसे मुक्त कर सकता हूँ जो कि बहुत वर्ष पहले मेरे भीतर बैठ गए थे? मैं समझता हूँ कि वो बेबुनियादी हैं और केवल मेरे मन में ही हैं, पर फ़िर भी भय बार बार सामने आता है। वो मुझे बाँध के रखे हैं।

श्री श्री रवि शंकर :
ध्यान करो यां किसी मंत्रों का संगीत सुनो। यह सब सहायक होगा। ध्यान, प्राणायाम, क्रिया, कुछ व्यायाम, उज्जई श्वास भय से मुक्त होने में बहुत सहायक है। यह मत सोचो भय तुम्हारी गहराई में है। यह psychology की गलत धारणा है जिसके अनुसार भय और गलानि तुम्हारी गहराई में है। तुम्हारे भीतर गहराई में केवल खु:शी और आनंद है। और उस केन्द्र में कोई भय, लालच, वासना, क्रोध, यां गलानि तुम्हे छू नहीं सकता। तुम भीतर में अद्‍भुत हो। इसलिए यह मत सोचो कि तुम में यह सब गलत भावनाएं हैं। जो कहते हैं तुम्हारे भीतर गहराई में कुछ गलत है वो अंधे हैं। कोई भी बुरा गुण केवल बाहरी सतह पर है। अगर कोई उसे गहरा कहता है तो मैं कहूँगा और गहराई में जाओ। अपने केन्द्र की गहराई में तुम केवल आनंद स्वरूप हो। अपने भीतर गहराई में कुछ गलत है, ऐसा सोचना अज्ञानता की निशानी है। इस को सच जानते हो तो इससे मुक्त होना मुश्किल हो जाता है। यह भाव और स्थिर हो जाते हैं।

प्रश्न : मन को शांत कैसे कर सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
मन को शांत करने की इच्छा ही बहुत तरह से कार्य करती है। सुदर्शन क्रिया और ध्यान इसमें बहुत सहायक हैं।

प्रश्न : ध्यान करने की कोई सीमा है?

श्री श्री रवि शंकर :
जितना चाहिए उतना ही करो। ज़रुरत से ज़्यादा करने की कोई आव्श्यकता नहीं है। ध्यान स्नान लेने जैसा है। तुम शरीर को स्वच्छ रखने के लिए सुबह स्नान करते हो। पर तुम सारा दिन स्नान नहीं करते रहते। मन को साफ़ और निर्मल करने के लिए ध्यान है। एक बार मन स्वछ हो जाने पर तुम प्रसन्न महसूस करते हो।

प्रश्न : ध्यान करते दौरान एकाग्रता कैसे बनाएं?

श्री श्री रवि शंकर :
एकाग्रता ध्यान नहीं है। ध्यान एकाग्रता का उलटा है। मन को ढीला छोड़ना ध्यान है। ध्यान से मन शांत हो जाता है, और तुम्हे सुखद अनुभूति होती है। पर रोज़ाना की जीवन शैली में हमें कई काम करने होते हैं, जैसे बिल का भुगतान...। इस दौरान भी हम मन को कैसे शांत रखें? तुम ध्यान करते हो और मन शांत होता है। फिर तुम अपने कार्य में लग जाते हो। उस दौरान भी मन को शांत रखना इतना आसान नहीं होता, पर निरंतर ध्यान के अभ्यास से तुम ऐसा कर सकते हो।

प्रश्न : गुरुजी, मन में चल रहे संघर्ष का क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
जब तुम यह एहसास करते हो कि मन में इतना संघर्ष है तो तुम्हारी आँखे खुलती हैं। प्राणायाम और ध्यान से इससे मुक्ति मिल सकती है।

प्रश्न : मन को केन्द्रित रखकर और वर्तमान क्षण में रहते हुए हम भविष्य के लिए दृष्टि कैसे रख सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
भविष्य के लिए एक दृष्टि होना और वर्तमान क्षण में रहना एक दूसरे के विरोध में नहीं हैं। तुम दृष्टि रखते हुए भी वर्तमान क्षण में रह सकते हो। पूर्ण रूप से वर्तमान क्षण में रहकर भविष्य के लिए बेहतर दृष्टिकोण मिलता है।

प्रश्न : मृत्यु के भय से कैसे मुक्त हो सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
ध्यान से।

प्रश्न : मैं अपने अहंकार के कारण गिरा हूँ। मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
कोई बात नहीं। अगर तुमने पहचाना कि तुम गिरे हो तो तुम उससे अधिक ऊपर उठोगे। तुमने जाना कि तुम में अहंकार है, यह बहुत है। इससे लड़ने का प्रयत्न मत करो। इसे जहाँ है वहीं रहने दो, और इससे छेड़ छाड़ मत करो।
अगर तुम्हे अहंकार नहीं पसन्द तो इसे मुझे दे दो। मगर मैं चाहूँगा तुम इसे अपने पास रखो। हमारा अहंकार को मिटाने की चेष्टा करना, एक और बड़ी समस्या बन जाती है। तुम्हारे पास पहले ही और समस्याएं हैं सुलझाने के लिए।


art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality