"सकारात्मक उर्जा का रहस्य हमारे श्वास में है"

बर्लिन, जर्मनी में श्री श्री रवि शंकर द्वारा दिए गए संवाद के अंश
मई, २०१०


प्रश्न : क्या ये संभव है कि दोबारा बच्चे जैसे हो जायें और अपने आस पास सकारात्मक उर्जा प्रसारित करें?

श्री श्री रवि शंकर :
ये संभव है। इसका रहस्य हमारी अपनी सांस में है। सांस लेने की कुछ विशेष प्रक्रिया, प्राणायाम, थोड़ा ध्यान - इन सब से हम अपने भीतर सकरात्मक उर्जा फिर से जगा सकते हैं। क्या तुम इस बारे में सजग हो कि बिना किसी कारण के तुम्हें किसी व्यक्ति से बात करने की इच्छा होती है, और किसी किसी व्यक्ति से तुम दूर ही रहना चाहते हो? मुझे यकीन है कि ऐसा सब का अनुभव रहा है।
हम अपने शब्दों से अधिक अपनी मौजूदगी से व्यक्त करते हैं। अगर हम क्रोध या तनाव में हों तो दूसरे लोग स्वतः हम से दूर रहते हैं। अब प्रश्न उठता है कि ये नकरात्मक स्पंदन हमारे शरीर के ऊर्जा क्षेत्र में कैसे आती हैं? जीवन में जो भी नकरात्मक अनुभव हम देखते यां सुनते हैं, वे हमारे ऊर्जा क्षेत्र में संग्रहित हो जाते हैं।

प्रश्न : क्या विश्व शांति संभव है?

श्री श्री रवि शंकर :
व्यक्तिगत शांति के पीछे पीछे विश्व शांति आती है। अगर एक एक व्यक्ति शांत हो जाये तो जन समूह शांत बन जाता है। फिर, विश्व का नेतृत्व करने वाले भी शांत हो जायेंगे और हम विश्व शांति पायेंगे। जब लोगों की सोच विशाल होती है और वे समस्त विश्व को अपने दायरे में ले लेती है तब विश्व शांति संभव है। हमें राजनीति में आध्यात्म, व्यापार में सामाजिकता और धर्म में धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता है।

प्रश्न : किसी रिश्ते को मज़बूत कैसे कर सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं इस विषय में विशेषज्ञ तो नहीं हूँ पर मैं महिलाओं, पुरुषों, और दोनो को एक सलाग दूंगा!
पहली सलाह है महिलाओं के लिये: कभी भी अपने पुरुष के अहं को चोट मत पंहुचाना। हमेशा उसके अहं को उत्साहित करो। उसे नीचा मत दिखाओ। चाहे सारी दुनिया कहे कि तुम्हारा पति बेवकूफ़ है, पर तुम ऐसा कभी मत कहना। तुम्हें कहना चाहिये कि, ‘तुम्हारे पास दुनिया का सर्वश्रेष्ठ दिमाग है। तुम उसका प्रयोग नहीं करते तो इसका मतलब ये नहीं कि तुम्हारे पास दिमाग नहीं है।’ उससे हमेशा कहो, ‘तुम सर्वश्रेष्ठ पुरुष हो। बहुत अच्छे हो।’ पुरुष के अहं का पोषण करो। अगर तुम उसे बेवकूफ़ कहोगी तो वो वैसा ही बन जायेगा। ठीक है?
अब एक सलाह पुरुषों के लिये: कभी स्त्री की भावनाओं को चोट मत पंहुचाना। तुम्हे पता है, कभी कभी वो अपने परिवार के बारे में शिकायत कर सकती है, अपने भाई की, यां अपने पिता की, यां अपनी मां की। पर अगर तुम भी इसमे शामिल हो जाते हो तो वह बिल्कुल पलट जायेगी और तुम पर मुसीबत आ सकती है। कभी भी उसके परिवार का अपमान मत करना। ना कभी उनके बारे में कुछ भी नकरात्मक कहना। वो कह सकती है, पर तुम कभी मत कहना। किसी भावनात्मक बात पर उसे मत रोको, जैसे कि किसी सत्संग या धार्मिक कार्य करने से या खरीद्दारी करने में। अगर वो खरीद्दारी करना चाहती है तो उसे अपना क्रेडिट कार्ड दे दो।
अब एक सलाह, पुरुषों और महिलाओं, दोनो के लिये: कभी भी इस बात का प्रमाण ना मांगो कि वह तुमसे प्रेम करता/करती है या नहीं। ये मत पूछो, "क्या तुम सचमुच मुझसे प्रेम करते हो? तुम मुझसे पहले जैसा प्रेम नहीं करते।" अपना प्रेम प्रमाणित करना किसी के भी लिये एक बहुत बड़ा बोझ है। अगर कोई तुमसे तुम्हारे प्रेम का प्रमाण मांगे तो तुम कहोगे, ‘हे भगवान! मैं इसे कैसे विश्वास दिलाऊं?’
हरेक काम कुछ विशेष तरह से करो और मुस्कुराते हुये करो।

प्रश्न : भविष्य की पीढ़ियों के लिये हम मनुष्य, प्रकृति और जीव-जंतुओं में तालमेल कैसे ला सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
हमें पृथ्वी को प्रदूषित करना बंद करना होगा। प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करो। Recycled चीज़ें इस्तेमाल करो। नहाने के लिये जहां तक हो सके रासायनिक पदार्थों से बने साबुन और शैंपू का प्रयोग मत करो। जैविक खेती करो। मैं तो कहूंगा के सभी को शाकाहारी हो जाना चाहिये। एक समय का मांसाहारी आहार, ४०० शाकाहारी भोजन बनाने जितने संसाधनों का उपयोग होता है! (जानवर के भोजन इत्यादि को मिलाकर)। मैं कहूंगा कि सभी को शाकाहारी हो जाना चाहिये। पर्यावरण-वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर विश्व की १०% जनसंख्या शाकाहारी हो जाती है तो green house effect की समस्या का हल हो जायेगा।

प्रश्न : क्या आप विपासना ध्यान के बारे में जानते हैं? क्या सुदर्शन क्रिया के साथ इसे किया जा सकता है?

श्री श्री रवि शंकर :
हां, सुदर्शन क्रिया के साथ इसे किया जा सकता है। विपासना में शरीर में हो रही सभी स्पदंनों को - सुखदायी हों या और दुखदायी  - दोनों को देखना है। ये अच्छा है। पर स्पंदनों को महसूस करने में कुछ समय लग जाता है। सुदर्शन क्रिया के अभ्यास से तुमसे ये आसानी से होगा। तुम जो भी ध्यान की प्रक्रिया करते हो, तुम पाओगे कि तुम्हें उसमें गहरे उतरने में सहायता मिलेगी। 

प्रश्न : मैं आत्म-गौरव को कैसे जगाऊं?

श्री श्री रवि शंकर :
सुदर्शन क्रिया के साथ। २-३ पार्ट २ कोर्स करना बहुत आवश्यक है।

प्रश्न: कैंसर से कैसे निबटें?

श्री श्री रवि शंकर :
प्राणायाम करते रहो, ध्यान, शाकाहारी भोजन, योगासन।

प्रश्न: अगर ये कोर्स और प्रक्रियायें मानव जाति की भलाई के लिये हैं तो ये इतने महंगे क्यों हैं?

श्री श्री रवि शंकर:
कोर्स की फ़ीस कम है, बहुत महंगा नहीं है। कोर्स कराने में कई खर्च आते हैं - किराये की जगह, टीचर के आने का खर्च..। कोर्स से मुश्किल से १०-१५% की बचत होती है। कभी इससे कुछ अधिक भी होती है, और ये बचत का धन परोपकार के कार्यों में लगता है। हां, हम कई जगहों पर ये कोर्स मुफ़्त में कराते हैं - जैसे के जेल, शरणार्थी शिविरों, गांव, और जहां लोग इसका खर्च देने में अस्मर्थ होते हैं। अगर कोई व्यक्ति कोर्स का खर्च देने में अशक्त हो तो टीचर से बात करें। टीचर उसके लिये स्थान बनायेंगे।

प्रश्न: मैं कितना काम करूं?

श्री श्री रवि शंकर :
ये तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है।

प्रश्न : आप २०१२ के बारे में क्या कहेंगे?

श्री श्री रवि शंकर :
चिंता मत करो। कुछ नहीं होगा। सब ऐसा ही चलेगा। हां, और अधिक लोग आध्यात्म की ओर आयेंगे।

प्रश्न : आपकी उपस्थिति में मुझे बहुत अच्छा लगता है। अपने आप को बहुत मज़बूत पाता हूं। मैं आपका आभारी हूं कि आप मेरे जीवन में आये।

श्री श्री रवि शंकर :
अच्छा है। ज्ञान, ध्यान और विश्राम तुम्हारे हृदय को शीतल और पोषित रखेंगे।

प्रश्न : क्या genetically modified भोज्य पदार्थ सचमुच खतर्नाक हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
जो वैज्ञानिक इन की कंपनियों में कार्यरत नहीं हैं, वे तुम्हें सही जवाब दे सकते हैं।

प्रश्न : किसी ऐसे व्यक्ति को कैसे माफ़ करे जिसने आपको बहुत कष्ट पंहुचाया है और इस बात का ज़रा भी पश्चाताप नहीं है?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं बताना चाहूंगा कि बहुत से प्रश्नों के उत्तर दो किताबों में हैं - Celebrating Silence और Celebrating Love। (मौन की गूंज)

प्रश्न : जब हम दुखी होते हैं तो भगवान को कैसा लगता है?

श्री श्री रवि शंकर :
भगवान कहते हैं, ‘हे भगवान! ये व्यक्ति कितना मूर्ख है!’ ये दुनिया इतनी सुंदर है, और तुम इतनी तुच्छ बात सोच रहे हो और दुखी हो रहे हो। विश्व के सत्य को देखो, अंतरिक्ष के रहस्य को जानने की खोज रखो, तो दुख खत्म हो जाता है।

प्रश्न : मैं अपने आप को प्रेरित कैसे करूं?

श्री श्री रवि शंकर :
केवल तीन कारण तुम्हें प्रेरित कर सकते हैं - प्रेम, भय, लालच! मैं भय और लालच को नहीं मानता, मैं प्रेम को मानता हूं।

प्रश्न : उन बुरी शक्तियों का क्या जो राजनीति, सेना और खूफ़िया एजेन्सीज़ में भ्रष्टाचार फैलाती हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम्हें पता है मै ये मानता हूं कि सत्य की हमेशा जीत होती है। सत्य हमेशा जीतेगा। मैं कहूंगा कि तुम भी ये विश्वास रखो।

प्रश्न : इतने सारे धर्म और संप्रदाय क्यों हैं? बुराई इतनी शक्तिशाली क्यों है?

श्री श्री रवि शंकर :
बुराई शक्तिशाली नहीं है। तुम उसे शक्ति दे रहे हो। ऐसा लगता है कि बुराई में शक्ति है, पर ऐसा है नहीं। विश्व में सबसे बड़ी शक्ति प्रेम है। प्रेम किसी भी बुराई को पिघला सकता है। प्रेम और ज्ञान की कमी में बुराई पनपती है। जैसे ही प्रेम और ज्ञान सामने आते हैं, बुराई खत्म हो जाती है। जैसे सूरज निकलने पर ओस गायब हो जाती है। हमने ये अनुभव किया है। कई आतंकवादियों में इस ज्ञान और प्रेम से संपूर्ण बदलाव आ गया। जेलों के ३००,००० कैदीयों ने Art of Living का पार्ट १ कोर्स किया है और उनका जीवन बहुत बदल गया है।

प्रश्न : शक से कैसे छुटकारा पा सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
क्या तुम इसके प्रति सजग हो कि हम हमेशा किसी सकरात्मक बात पर शक करते हैं? तुम हमेशा किसी व्यक्ति की ईमानदारी पर शक करते हो। किसी की बे‍इमानी पर शक नहीं करते। जब कोई तुम से कहता है कि, ‘मैं तुम से प्रेम करता हूं,’ तो तुम पूछते हो, ‘सच?’ जब कोई तुम से कहता है, ‘मैं तुम से नफ़रत करता हूं,’ तो तुम कभी संदेह नहीं करते।
कोई हमसे पूछता है कि क्या हम खुश हैं, तो हम कहते हैं, ‘शायद मैं खुश हूं।’ पर हम दुखी हैं, अवसाद में है, इस पर हमें पूरा यकीन रहता है। हम कभी अपनी कमज़ोरी पर शक नहीं करते। हमेशा अपनी क्षमताओं पर शक करते हैं।
तुम गौर करो तो पाओगे कि अच्छाई पर हम शक करते हैं - जैसे, प्रेम, खुशी, ईमानदारी और वफ़ादारी।

प्रश्न : पोलैंड, चीन और आइसलैंड में इतनी आपदायें क्यों आ रही हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
क्योंकि हम इस पृथ्वी का दुरुपयोग कर रहे हैं। हम धरती में इतनी खुदाई कर रहे हैं, इतने dynamite लगा रहे हैं, इतने परमाणु बमों का परीक्षण कर रहे हैं...तो धरती हिलने लगती है। हमें पहाड़ों का, नदियों का, पेड़ों का सम्मान करना है। अगर हम धरती का दुरुपयोग नहीं करेंगे तो प्राकृतिक आपदायें घटने लगेंगी।

प्रश्न : ऐसा क्यों होता है कि चर्च में दृढ़ विश्वास होने पर भी, कभी कभी हम भगवान को भूल जाते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
अभ्यास आवश्यक है। ध्यान और भीतर का अनुभव आवश्यक है। जब तुम्हें भीतरी अनुभव होगा तो तुम नहीं भूलोगे।

प्रश्न : विश्व का नव-निर्माण कैसे होगा?

श्री श्री रवि शंकर :
अगर हम सब इसके लिये काम करें। अधिक आध्यात्म, ध्यान, गान - और विश्व एक बेहतर जगह बन जायेगी।

प्रश्न : क्या मुझे गुरु की आवश्यकता है?

श्री श्री रवि शंकर :
क्या तुम्हें उत्तर की आवश्यकता है? अगर तुम्हें उत्तर की आवश्यकता है तो तुम्हें किसी की आवश्यकता है जो तुम्हें उत्तर दे, और जो कोई भी तुम्हें उत्तर देगा वह स्वतः ही गुरु बन जाता है। गुरु का अर्थ है जो उत्तर दे। अंग्रेज़ी का शब्द ‘guide’, संस्कृत के ‘गुरु’ शब्द से ही आया है। तुम्हें हर जगह एक गुरु की आवश्यकता है - गिटार बजाना सीखने में, संगीत सीखने में, चाहे जो भी क्षेत्र ले लो। वह गुरु है जो तुम्हारा मार्गदर्शन कर सके ध्यान में, ज्ञान में।
 
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