"भक्ति के संस्कार से मन के बाकी संस्कार और विकल्प हटते हैं"

बैंगलोर आश्रम, भारत

प्रश्न : आप आतंकवाद को समाप्त करने के लिए इतना समय बिताते हैं। क्या मुझे आपका समय लेने के लिए आतंकवादी बनना पड़ेगा? आपके माध्यम से रुपांतरण होना मुझे अच्छा लगेगा।


श्री श्री रवि शंकर : आतंकवादी तो बन्दूक लेके मारता है, आप अपने भाव के तीर लगाते हो। आप का भाव कई अधिक बलवान है।

एक दिन ऋषिकेश में एक भक्त बेहोश होकर गिर गए। सब लोगों का ध्यान उधर आकर्षित हो गया। हमे तो पता था यह सब ध्यान खींचने का नाटक है। हम पहले तो चलते रहे पर फिर जब यह ज़्यादा देर तक चला तो गए उधर। पूछने पर वह बोले, "आप तो देखते नहीं, इसलिए यह हरकत करनी पड़ी"। ऐसी हरकत तुम मत करने जाना। आपको कैसे पता हम तुम्हारी तरफ़ नहीं देखते? जब आप इधर उधर देखते हो तो मैं आप की तरफ़ ज़रूर देखता हूँ। लक्ष्य तो एक ही है - आपका मन, चेतना एक जगह टिकाना।जब आपका मन टिक गया, आप शांत हैं, मुस्कुरा रहे हैं तो मुझे उनको देखना पड़ता है जिनका मन अभी टिका नहीं और इधर उधर भाग रहा है।

प्रश्न : जब आप सामने होते हैं तो आँखे बंद करके ध्यान करने के लिए कहते हैं। पर हमारा मन तो पलक झपकने का भी नहीं होता। हँसकर टालिए मत, भक्त परेशान है।

श्री श्री रवि शंकर : आइना ला के दे दूँ। तुम अपने अंदर जाके तो देखो तुम कितने सुन्दर हो।

प्रश्न : आप कहते हैं, "मुझ में और तुम में कोई भेद नहीं है"। तो फिर मैं दुख क्यों अनुभव करता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर : दुख इसलिए है क्योंकि इस बात को निश्चित रूप से नहीं जाना। मन और दिल की गहराई से इसको नहीं स्वीकार किया अभी। स्वीकार करते ही दुख भाग जाता है।

प्रश्न : सबकुछ भगवान है तो तामसिक कार्य कौन करता है? कोई संत है और कोई चोर - ऐसा क्यों?

श्री श्री रवि शंकर : जिस अनुसार तुम कार्य करते हो उसके अनुसार भगवान फल भी देता है। चोरी करोगे तो भगवान पुलिस के रूप में आएंगे। गलत काम करोगे तो दुख देने जैसा आएंगे भगवान। अच्छा काम करोगे तो सुख देने जैसे आएंगे। सुख-दुख विवेक से ही मिलता है। जिस विवेक से काम करते हैं उसके ऊपर निर्भर करता है। एक गलास दूध पिया तो ठीक है पर मानलो तीन किलो दूध पी लिया तो...। बिना विवेक के वही अमृत ज़हर जैसा कार्य करता है।

प्रश्न : मेरे पति सुदर्शन क्रिया करते हुए भी अधर्म का काम करते हैं। मुझे क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर : ऐसा कैसे हो सकता है? यां फिर वो क्रिया सिर्फ़ एक अभ्यास की तरह करते होंगे। साधना शिविर पर लेके आओ उन्हे। यां उन्हे समझ में नहीं आया जो वो कर रहे हैं वो अधर्म है। तुन्हे अधर्म लगता होगा पर उन्हे लगता होगा वो ठीक ही कर रहे हैं। बात करके देखो।

प्रश्न : जब बच्चे नासमझी की बात करते हैं तो माता पिता उन्हे समझाते हैं। पर बड़ती उम्र में माता पिता नासमझी की बातें करने लगते हैं और कुछ समझते नहीं तो बच्चों को क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर : फिर भी उनकी सेवा करते रहें। जब तुम परिस्तिथि से पृथक होकर देखते हो तो हो सकता है तुम्हे लगे वो सही हैं। यां फिर वो गलत भी हो सकते है। यह ज़रूरी नहीं कि उनकी हर बात पर चलें क्योंकि उनकी समझ और अनुभव अलग हैं, दुनिया अलग है और बच्चों की समझ और अनुभव अलग हैं।

प्रश्न : क्या भक्ति का चित्त पर संस्कार होता है?

श्री श्री रवि शंकर : हां, ज़रूर होता है। भक्ति के संस्कार से बाकी संस्कार हटते हैं, विकल्प हटते हैं। भक्ति का संस्कार भी अपने आप विलीन हो जाएगा। जैसे आप पानी को शुद्ध करने के लिए फिटकारी डालते हैं तो वो पानी को शुद्ध करता है और खुद भी गल जाता है। उसी तरह से भक्ति का संस्कार भी है।

प्रश्न : आप सबको अपने नटखनपन से नाच नचाते हैं। पूरी दुनिया पागल हुई जा रही है। आप अपने इस नटखनपन के बारे में कुछ बताएं।

श्री श्री रवि शंकर : नटखनपन बोलने का नहीं होता, नटखनपन तो करने का होता है।
हरेक में तो बालपन है। बचकाना नहीं, पर बालपन। योगी होते होते ऐसा हो ही जाता है, सहजता आ जाती है जीवन में, सब अपने लगने लगते हैं। यह सहज ही है। सब तरह का अहंकार मिट जाता है।

प्रश्न : कैसे समझे के पूर्व कर्म खत्म हुए, जल गए हैं?

श्री श्री रवि शंकर : मान ही लो। जैसे ’मैं मुक्त हूँ’ - यह अभिमान करके मुक्त हो जाते हैं। कर्म मिट गया मानने से मिट ही गया समझो।

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