"सत्य दिमाग के स्तर से परे है"

बैंगलोर आश्रम, भारत

प्रश्न : धर्म और आध्यात्म में क्या अंतर है?

श्री श्री रवि शंकर : आध्यात्म सबको जोड़ता है। अलग अलग मान्यताएं हैं पर आध्यात्म इन सबको एक सूत्र में बांधता है। कोई वैष्नव हो सकता है, कोई हिंदु हो सकता है, कोई सिक्ख हो सकता है, पर आध्यात्म मान्यता नहीं बल्कि अनुभव है।

प्रश्न : आत्म हत्या को अपराध माना जाता है। फिए जीव समाधि क्या है?

श्री श्री रवि शंकर : हाँ, आत्महत्या गलत है। कुछ संत जीव समाधि ले लेते हैं। वे सहजता से मन आत्मा से अलग कर लेते हैं, और २० साल तक वो ऐसे ही रह सकते हैं। संत ज्ञानेशवर और बड़े बड़े संतो ने ऐसा किया था।
आत्महत्या तो दुखी होकर के शरीर को समाप्त करने की चेष्टा है। दुख से बोझिल हैं और सुख की तलाश करता करता कोई ऐसा बेवकूफी का कदम उठा लेता है। पर यह ऐसा है जैसे ठंड लग रही है और आप कंबल निकाल दो। आत्महत्या के बाद केवल पश्तावा ही होता है। फिर एक दूसरे शरीर के लिए तरसते रहते हैं। शरीर को खत्म करने की चेष्टा मत करो और ना ही इसे पकड़ कर चलो।

प्रश्न : Advance course करने के बाद भी मुझमें क्रोध, ईर्ष्या और लालच जैसी नकारात्मक भावनाएं हैं। मुझे क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर : तुमने पहले ही यह मान किया कि तुममें यह सब मौजूद है। सोचो अगर तुमने कभी ध्यान किया ही नहीं होता तो क्या होता? तुम्हे पहले भी क्रोध आता था और अब भी आता है। पर अब क्रोध क्षण भर के लिए आके निकल जाता है। शायद कुछ और Advance course करने के बाद यह भावनाएं पूर्ण रूप से खत्म हो जाएं। ’मुझ में यह भावनाएं हैं’ - यह मान कर मत चलो। यह मान कर चलोगे तो वैसे ही हो जाओगे। अभी कहाँ हैं यह भावनाएं? वर्तमान क्षण में तुम निर्दोष हो। वर्तमान की निर्दोषता पर यकीन करो। धीरे-धीरे ऐसा होगा कि तुम्हे लगेगा, "यह सब भावनाएं मुझमें है ही नहीं"। तुम्हे ऐसा अनुभव होने लगेगा कि तुम भीतर से कितने सुन्दर हो। पहले सुना था पर अब अनुभव में आएगा।

प्रश्न : आप आध्यात्मिक गुरु ही नहीं पर इतने अच्छे प्रबंधक भी हैं। आप इतना सबकुछ कैसे संचालित करते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : गुरु तत्व है, ज्ञान है, विवेक है। शुद्ध चेतना ही गुरु है। स्व, गुरु और ईश्वर में कोई भेद नहीं है। तुम भी किसी ना किसी के गुरु बनो। मतलब? उनसे कुछ ना चाहो और प्रेम भाव से जो कर सकते हो करो। एक से शुरु करो, फिर २, ३,...१०। फिर एक समय ऐसा आएगा जब तुम सबके लिए कह सकोगे, "मैं तुम्हारे लिए हूँ, तुम चिंता मत करो"।

प्रश्न : काम वासना पर कैसे नियंत्रण करें?

श्री श्री रवि शंकर : काम वासना दबा करके कोई ऊपर उठे तो संभव नहीं होगा। उसमें पूरा डूब जाओगे तो भी नहीं होगा। मध्य मार्ग पर चलो। गृहस्थ में जाकर आगे बड़ो। ज़बरदस्ती ब्रह्मचर्या थोपना यां वासना में बह जाना - दोनो ही उचित नहीं है। कभी Night club जाने वालों के चेहरे देखो तो कोई मुस्कान ही नहीं होती। ऐसा प्रतीत होता है जैसे सड़क पर मरे पीटे पड़े हों।

प्रश्न: योगी का क्या अर्थ है?

श्री श्री रवि शंकर : योगी वो है जिसकी चेतना पूर्ण है। वो जो भी कहते हैं अर्थ पीछे भागता है। जब ज्ञानी बोलते हैं तो वो केवल दिमाग के स्तर पर नहीं होता। उन शब्दों में गहराई होती है। गुरु मुख से सुनने का अधिक लाभ होता है क्योंकि वो जीवन के अनुभव को ही बोल रहे हैं। अनुभव से अनुभव जग जाएगा। हम अपने शब्दों से कई ज़्यादा अपने अस्तित्व से व्यक्त करते हैं, हमारे मन की भावनाएं जल्दी पहुँच जाती हैं। अगर हमारे स्वभाव में ही प्रेम है तो शब्दों की ज़रुरत नहीं पड़ती। और यदि वो प्रेम अस्तित्व में ही नहीं है तो घंटे भर चिल्लाकर बोलने पर भी कोई असर नहीं होता। हम जो भी व्यक्त करते हैं अपने पूरे अस्तित्व से व्यक्त करते हैं। जैसे एक बच्चा हंसता यां रोता है तो पूरे अस्तित्व से निकलता है। योगी का यही लक्षण है कि योगी अस्तित्व से ही बोलता है।
सत्य सिर्फ दिमाग से बोलने वाली बात नहीं होती।

प्रश्न : ’पैसे में सुख नहीं है’ - यह ज्ञान पैसे होने के बाद में होता है यां पहले?

श्री श्री रवि शंकर : बुद्धिमान हो तो पहले ही आ जाता है, थोड़ा कम बुद्धिमान हो तो कर करा के। बुद्धिमान औरों को देखकर भी सीखता है। पर यह अनुभव तभी प्रमाणिक है जब दूसरों का अनुभव अपना अनुभव लगे। यदि भीखारी बोले कि उसने सब त्याग दिया, तो कैसे त्याग दिया? कमाया ही नहीं! कई लोगों को पैसा कमाने के बाद भी यह समझ में नहीं आता कि पैसे में सुख नहीं है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि तुम पैसे नहीं कमाओ। पर पैसे से ही सुख लगता हो तो कर के देखो यां औरों के अनुभव से सीखो।

शेष अंश अगली पोस्ट में।

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