बैंगलोर आश्रम, भारत
प्रश्न : आप कहते हैं हम सब आपस में किसी ना किसी तरह जुड़े हुए हैं। पर जिस तरह से हम आपसे संबंद्ध महसूस करते हैं, वो बाकियों के साथ नहीं करते। मुझे यह समझ नहीं आता। क्या इसकी कोई व्याख्या है?
श्री श्री रवि शंकर : जुड़ाव दिल से संबंधित है, समझना और व्याख्या दिमाग का खेल है।
प्रश्न : मेरे दफ़्तर में कुछ लोग ’आर्ट ओफ़ लिविन्ग’ के बारे में उलटा सीधा कहते हैं। मुझे अच्छा नहीं लगता पर मैं नज़र अन्दाज़ कर देता हूँ। मुझे ऐसे में क्या करना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : ऐसा है क्या जिसके बारे में वो बुरा कह सकते हैं? यह सब उनकी कल्पना है। तुम जो कर सकते हो, करते रहो। उन्हे भी इसका एहसास हो जाएगा। अतीत में भी कई संतों के साथ ऐसा हुआ। कई लोग उन्हें पसन्द करते थे, और ज्ञान प्राप्त कर उसका लाभ ले सके। कई लोग उन्हे नापस्न्द करते थे। इससे क्या फ़र्क पड़ता है?
’आर्ट ओफ़ लिविन्ग’ एक शिक्षा है। क्या शिक्षा निशुल्क होनी चाहिए? अगर होनी चाहिए तो मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि की शिक्षा भी निशुल्क होनी चाहिए। और अगर बाकी की नहीं है तो आध्यात्म की शिक्षा क्यों निशुल्क होनी चाहिए? अतीत में भी दक्षिणा की प्रणाली थी। दक्षिणा दिए बिना शिक्षा पूर्ण नहीं होती। और कोर्स का खर्च निकालने के बाद जो धन राशि आती है उससे हम समाज में कितना कार्य कर रहे हैं।
कई लोग ईर्ष्या के कारण भी कुछ गलत बातें फ़ैलाते हैं। इससे पता चलता है हमे अभी और बहुत काम करने की ज़रुरत है, और यह ज्ञान अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचना कितना आवश्यक है। जिसने भी यह ज्ञान अपने जीवन में उतारा है, उनका जीवन परिवर्तित हो गया है।
प्रश्न : पिछले जन्म के कर्मों का इस जीवन पर क्या असर होता है? मुझे लगता है मैने अतीत में बहुत पाप किए हैं?
श्री श्री रवि शंकर : पिछले जन्मों के कर्मों के बारे में सोचने में अपनी उर्जा मत गवायो। अपनी उर्जा को वर्तमान मुश्किलों से बाहर आने में लगाओ।
ॐ नम: शिवाय मंत्र, प्राणायाम, सतसंग.. - यह सब तुम्हारे पिछले जन्मों के कर्मों को देख लेते हैं। अपनी गलानि की भावनायों का समर्पण करो और जीवन में आगे बड़ो।
प्रश्न : मैं मन को एकाग्र नहीं कर पाता। यह बहुत चंचल है। मैं क्या करुँ?
श्री श्री रवि शंकर : मन जिधर जाता है, उसे जाने दो।
प्रश्न : दिनचर्या का काम करते हुए मैं अपना आपा खो देता हूँ, खासतौर पर जब कोई मुझसे कुछ बुरा कहे। मुझे क्या करना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : अपना मन शांत रखो। पर अगर कोई कुछ बुरा कहता है तो सतर्क रहो। अगर ज़रुरत हो तो जवाब भी दो पर बिना मन को अशांत किए। मन को शांत रखने में सेवा, सतसंग और साधना बहुत सहायक हैं। और यह जानो - सत्यमेव जयते (सत्य की हमेशा विजय होती है)। तुम्हे परिस्थितियों से विचलित नहीं होना चाहिए। अपना मन शांत रखो और इस नीति से आगे बड़ो।
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