"प्रेम पराकाष्टा भक्ति है"

जीवन का केन्द्र प्रेम है, पर फिर भी हम अपने केन्द्र से इतने दूर प्रतीत होते हैं। ऐसा क्या है जो हमे अपने केन्द्र से जोड़ सकता है, जो हमे अपने में वापिस ला सकता है? यह एक निरंतर खोज है। जुड़े रहने के लिए एक सूत्र चाहिए, ऐसा कुछ जो जीवन में तुम्हारी आशा बढ़ाए रखे, ऐसा कुछ जो तुम्हारी आँखों में चमक ला सके, जो तुम्हारे हृदय को हलका रखे। वो ऐसा क्या है जिसकी जीवन में कमी है, और जिसके होने से जीवन पीड़ा से उत्सव में परिवर्तित हो जाता है, जिससे पीड़ा के आँसु खुशी और शुकराने के आँसुओं में परिवर्तित हो जाते है। वो धागा हमे चाहिए और उसे ही सूत्र कहते हैं - कुछ ऐसा हो जो तुम्हे थामे रखता है। पतंग एक सूत्र से आकाश में ऊँचा उठती है। मन को भी इसी तरह के सूत्र की आवश्यकता है।

नारद भक्ति सूत्र ऐसे ही सूत्र हैं। एक प्राचीन ऋशि थे - नारदा। नारद का अर्थ है जो केन्द्र और परिधि दोनो में है, और जो केन्द्र से जोड़ता है। हम में से बहुत केवल परिधि में ही अटके रहते हैं, केन्द्र में जाने की तलाश तो करते हैं पर कभी केन्द्र तक नहीं पहुंचते, हम बाहर ही चक्कर काटते रहते हैं। और कुछ लोग ऐसे हैं जो केवल अपने ही केन्द्र में रहते हैं, अपनी ही दुनिया में रहते हैं, और जीवन के व्यवहारिक स्तर से नहीं जुड़ते। केवल अपनी ही विचारधारा में अटके रहना और जगत की व्यवहारिकता को भूल जाना, यां फिर केवल जीवन की व्यवहारिकता में अटके रहना और अपनी विचारधारा को पूर्णत्या त्याग देना - दोनो ही परिस्थितियों में कोई विकास नहीं है। ज्ञान वो है जिससे आप उच्च विचारधारा को जीवन के रोज़मर्रा व्यवहार में ला सकते हैं। नारद ऋशि को देवर्षि भी कहते हैं - जो अपने नटखट तरीको से कोतुहल पैदा करने के लिए विख़्यात हैं। दो अलग जगहों पर वो अलग अलग भूमिका निभाते हैं। भारत में कहावत है जो कहती है नारादा की तरह नहीं होना चाहिए। वो कोई ना कोई मुश्किल खड़ी कर देते हैं। पर किसी ना किसी तरह वो मुश्किल भी हर किसी के लिए लाभदायक ही सिद्ध होती है। बिना शरारत के जीवन में कोई आनंद नहीं है। जीवन संघर्ष नहीं है, जीवन सिर पर पड़ा कोई बोझ नहीं है, पर जीवन एक उत्सव है, खेल है। तुम्हारा जीवन तुम्हारी ही चेतना का खेल और प्रतिबिंब है। नारदा अपनी ही तरह के ऋषि हैं जो कुछ शरारत पैदा करते हैं, और ऐसे लोगों को जोड़ देते हैं जो आमतौर पर नहीं जुड़ते। वो तुम्हे तुम्हारे केन्द्र से जोड़ देते हैं, तुम्हारे अस्तित्व से।

जब जीवन रुका हुआ सा प्रतीत हो तो तुम्हे नारदा के पास जाना है, वे तुम्हे आगे बढ़ाते हैं। और वे ऐसा कैसे करते हैं? कुछ सूत्र से, कुछ ज्ञान के शब्दों से - भक्ति सूत्र। भक्ति दिव्य प्रेम है - प्रेम की पराकाष्टा।


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