"आपके बच्चे आपके जीवन में सहभागी होने चाहिए"

बैंगलोर आश्रम, भारत

श्री श्री रवि शंकर और अभिभावकों की वार्ता के शेष अंश:


एक स्वस्थ व्यक्ति में तीन तरह का विश्वास होता है - अपने पर, अपने आस पास लोगों की अच्छाई पर और दिव्यता पर। उसे हर कोई धोखेबाज़ नहीं लगता। उसमे समाज के प्रति डर नहीं होता और लोगों की अच्छाई में विश्वास होता है। उसे अपने पर, समाज पर और ईश्वर की अनदेखी शक्ति पर यकीन होता है। यह तीन तरह का विश्वास बच्चे को कुशल और प्रतिभाशाली बनाता है। उनके पूर्ण विकास के लिए उनमें यह गुण उजागर करना अनिवार्य है।
अगर आप बच्चों को यह ही सिखाते रहें कि सब धोखेबाज़ हैं तो उसका लोगों पर और समाज पर से विश्वास उठ जाता है। इससे उनके व्यक्तित्व और प्रतिभाओं के साथ साथ संचार कौशल का भी विकास नहीं हो पाता। इससे लोगों के साथ उनके संपर्क पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है, और वे व्यापार, कला यां किसी पेशेवर क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते। माँ-बाप होने के नाते आपको उन्हे अपने पर और समाज पर विश्वास करना सिखाना होगा। अगर आपका बच्चा आपके पास किसी की शिकायत लेके आता है तो आप क्या करते हैं? क्या आप उसमें नाकारात्मक भाव को बड़ावा देते हैं? यां आप उसमे इस परिस्तिथि में भी कोई साकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करते हैं? आपको एक संतुलित भूमिका निभानी होगी। अगर आपका बच्चा किसी दोस्त की बहुत तारीफ करता है और आप जानते हैं कि वह दोस्त में कुछ गलत आदतें हैं तो आपको अपने बच्चे को उसकी गलती का सही ढंग से एहसास कराना होगा और उसे मध्य में ले के आना होगा। और अगर वह आपके पास किसी का नाकारात्मक पहलु सामने रखता है तो आपको उसमें भी कोई अच्छी बात दिखानी चाहिए। तो जब भी वह एक तरफ़ ज़्यादा झुक जाता है आपको बच्चे में एक संतुलन लेके आना होगा । क्या आप मेरे से सहमत हैं? हम अपने आसपास माहौल बनाते हैं।यदि हम विश्वास का माहौल बनाते हैं और बच्चा उस माहौल में बड़ा होता है, तो उसका व्यक्तित्व कुशल बनता है। लेकिन, अगर हम नकारात्मकता, अविश्वास, या निराशा का माहौल बनाते हैं तो वो हमारे पर ही किसी ना दिन वापिस आता है।
मैं आपको एक प्रयोग करने के लिए कहूँगा। जब भी आप काम से वापिस आते हैं तो पहली चीज़ जो आप अपने बच्चे से करें वह उत्साह लाने वाली हो जैसे ताली बजाना, कुछ खेलना यां उसके साथ हँसना। २-३ दिन यह बनावटी लग सकता है पर इसके आदि होने पर यह आपको और बच्चे दोनो को तनावमुक्त रहने में बहुत सहयोगी सिद्ध होगा। जहाँ तक हो सके सब परिवार के सदस्य एक साथ भोजन करें। कम से कम हफ़ते में ३-४ दिन। भोजन करते समय उनमें दोष ना निकालें। इस समय उन्हे प्रसन्न चित्त से भोजन करने दें। गलती बताने का भी अपना समय होता है, पर ध्यान दें कि आप ऐसा भोजन के वक्त नहीं करते।
३० सैकंड के लिए अपनी आँखें बंद करें और सोचें यहाँ मौजूद हर कोई आपसे कह रहा है कि वे आप पर विश्वास नहीं करते। आपको कैसा लगता है? (३० सैकंड बाद) अब आँख खोलें और बताएं आपको कैसा लगा? बुरा और मन दुखी हुआ! क्या आप इसके प्रति सजग हैं कि हम भी ऐसा ही माहौल बनाते हैं अपने आस पास। हमे बच्चों के आस पास एक स्वस्थ और प्रसन्न चित्त वातावरण बनाने की आवश्यकता है। मैं समझता हूँ कि आप लोगों के जीवन में अपने बच्चों के इलावा और भी बहुत कुछ है जो ज़रुरी है पर इसके के लिए हमे थोड़ा प्रयत्‍न करना ही पड़ेगा। अगर आपका अपनी भावनाओं पर ही नियंत्रण नहीं है तो बच्चों के लिए ऐसा करना आपके लिए कठिन हो सकता है। पर हमें ऐसा करने के लिए कुछ प्रयत्‍न तो करना ही होगा।
अंत में यह बहुत आवश्यक है कि आप केवल उन्हे सिखाने का प्रयत्न ना करें पर उनसे सीखें भी। उनके साथ भागीदार बनकर उनसे भी सीखें।

प्रश्न : कई बार बच्चे दूसरे बच्चों के साथ तुलना करके वो सब माँगते हैं जो हम उन्हे नहीं दे सकते। ऐसे में बच्चों को कैंसे समझाएं?

श्री श्रे रवि शंकर : आपको उन्हे समझाना चाहिए कि आप उन्हे इतना ही दे सकते हैं और अन्हे अपनी तुलना बाकियों से नहीं करनी चाहिए। यह भी ज़रुरी है कि आप उन्हे कोई गलत आशा ना दें। पर हम उन्हे एक सपना दे सकते हैं जैसे अगर वो यह काम करते हैं तो उन्हे ऐसा कुछ मिल सकता है जो उन्हे चाहिए।
यह आवश्यक है कि आप उनमे सहनशीलता और अपनेपन का भाव जगाएं। इसलिए मैने पहले कहा कि यह ज़रुरी है कि आप उन्हे सिखाने की बजाए उनके साथ भागीदार बने। वो आपके जीवन में सहयोग दे। ऐसे में वो आपसे ऐसा कुछ मांगेंगे ही नहीं जो आप उन्हे नहीं दे सकते।
एक अच्छे माँ/बाप होने के लिए यह ज़रुरी है कि पहले आप एक अच्छे आन्टी/अंकल बने। क्या आप समझ रहे हैं जो मैं व्यक्त करना चा रहा हूँ। यह बहुत आवश्यक है कि आप अपने बच्चों के दोस्तों से बात-चीत करें। वे अपने माता पिता से अधिक आपकी बात सुनेंगे। तो अगर उनमें कोई बुरी आदत है तो आप उसे छुड़ाने में सहायक हो सकते हैं। इसी तरह उनके माँ/बाप अपने बच्चों से अधिक अपने बच्चों के दोस्तों की देख-रेख कर सकते हैं।

प्रश्न : आज समाज में इतनी प्रतिस्पर्धा है कि बच्चों के पास विश्राम करने का भी समय नहीं है। उनमे यह भय है कि वो समाज में ठीक से अपनी जगह नहीं बना पाएंगे। हम इस परिस्तिथि को कैसे संभाल सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : मेरे अनुसार आपको बच्चों पर ज़्यादा ज़ोर नहीं देना चाहिए। आपको उन्हे आराम करना भी सिखाना चाहिए। तभी मैने कहा था कि संगीत, ध्यान और कुछ खेल जीवन शैली में होने आवशयक हैं।

प्रश्न : बड़े होने पर बच्चे अपने मां/बाप की देख-भाल नहीं करते। इस कारण ही आज इतने वृद्ध आश्रम हैं। माँ/बाप होने के नाते हम कहाँ चूक जाते हैं? माता-पिता को आप क्या सुझाव देंगे तांकि ऐसी परिस्तिथि खड़ी ना हो?

श्री श्री रवि शंकर : इसीलिए मैने कहा कि तीन प्रकार का विश्वास होना बहुत अनिवार्य है। थोड़े बहुत धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्य, और जिस तरह से आप उन्हे अपने भव्य माता पिता (grand parents) से व्यवहार करने के लिए प्रेरित करते हैं, उसका उन पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

प्रश्न : आध्यात्मिक क्रियाएं का बच्चों की पढ़ाई में क्या प्रभाव पड़ता है?

श्री श्री रवि शंकर :
इंगलैंड में इस पर अनुसंधान किया गया कि जो बच्चे संस्कृत पढ़ते हैं वो गणित में उत्कृष्ट होते हैं और वे बच्चे कोई भी भाषा बहुत जल्दी सीख सकते हैं। १५ साल के अनुसंधान के बाद उन्होंने पाया कि भारत में IT sector की प्रगति का क्या कारण है। संस्कृत का प्रभाव होने के कारण भारतीय दिमाग कम्पयूटर में बहुत अच्छा है। इसलिए बच्चों के लिए संस्कृत भाषा पढ़ना अच्छा है। इसके साथ प्राणायाम के प्रभाव के बारे में भी कई अनुसंधान है। इससे उनका मन शांत और एकाग्र हो जाता है, उनकी समझने और ग्रहण करने की शक्ति बड़ जाती है। ऐसे कई अनुसंधान है जो यह साबित करते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले लाभ जानने के लिए आप Yes Plus website देख सकते हैं।

प्रश्न : आज की पीढ़ी पाश्चात्य सभ्यता की ओर खिंचती जा रही है खासकर उनके वस्त्र। हम इस बारे में क्या कर सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : फैशन बदलते रहते हैं। इसलिए इनकी इतनी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। आप अपने बच्चों और उनके दोस्तों को इसके प्रति सजग करा सकते हैं। आप उन्हे अपने लिए अलग स्टाईल चुनने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इसीलिए माँ/बाप का एक अच्चा आंटी/अंकल होना आवश्यक है। आप केवल अपने बच्चों की देखभाल नहीं कर सकते, आपका उनके दोस्तों के साथ घुलना मिलना भी अनिवार्य है। आप उन्हे घर पर बुला कर उनके साथ अच्छा समय बिता सकते हैं। दो महिनों में एक बार ऐसी मुलाकात बहुत अच्छा परिनाम दे सकती है।


प्रश्न : जिन बच्चों की मानसिक तौर पर अधिक ज़रुरतें हैं, उनके लिए क्या किया जा सकता है?

श्री श्री रवि शंकर : उनकी सेवा करो। उन पर तरस मत करो। ऐसे बच्चों का मन एक अलग दिशा में होता है। वो किसी दुखी मानसिकता में नहीं होते। वो इस धरती पर केवल सेवा लेने के लिए आए हैं। इस भाव के साथ उनकी सेवा करो पर उन पर तरस मत करो।

प्रश्न : हम कैसे जान सकते हैं कि बच्चें किसी नशीले पद्धार्थ का सेवन कर रहे हैं यां वैसे ही उस तरह का व्यवहार कर रहे हैं?

श्री श्री रवि शंकर : इसीलिए आपका उनके साथ और उनके दोस्तों के साथ व्यवहार इतना महत्वपूर्ण है। ऐसे में जान सकते हैं कि वो क्या कर रहे हैं यां कहाँ जा रहें है। खासतौर में किशोर अवस्था में। यह जीवन का एक मुश्किल दौर होता है। इस दौरान शरीर में कई परिवर्तन आते हैं। इसलिए वे केवल अपने माँ/बाप के प्रेम से संतुष्ट नहीं होते। वे एक भावात्मक सहारा खोजते हैं। उनके मन में एक अस्तव्यस्तता होती है। इस उम्र के साथ सही व्यवहार करना बड़ी चुनौती है। इसीलिए हमारे Yes और Yes + कोर्स हैं जो किशोर अवस्था और युवा अवस्था के लिए बनाएं गए हैं। इनकी मदद से इस उम्र के बच्चे जितना खिले हैं उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
दिल्ली के एक कोर्स में १००० छात्रों ने भाग लिया। उनको हमने एक प्रश्न पूछा, "तुम्हारे जीवन में तुम किसे पसन्द नहीं करते?" ८० प्रतिशत छात्रों ने कहा उनके अध्यापक और ७५ प्रतिशत छात्रों ने कहा दूसरे क्रम में उनके माता/पिता। जिस देश में हम कहते हैं,
मात्र देवो भव:,
पित्र देवो भव:,
आचार्य देवो भव:,
अतिथि देवो भव:।
जहाँ हम माँ, बाप, अध्यापक और अतिथि को भगवान का दर्जा देते हैं, वहाँ ऐसा देखकर दुख लगता है। हमें अपने देश की शिक्षा प्रणाली में इस तरह का तनाव और हिंसा नहीं चाहिए। हमें अमरिका की तरह कोलेज के माहोल में छात्रों के हाथों में बन्दूक नहीं चाहिए। इस साल की रिपोर्ट के आधार पर अमरिका के कोलेजों में हिंसा में ९० के दशक के मुकाबले तीन गुना वृद्धी हुई है। यह बहुत खतरनाक है और हमें भारत में ऐसा नहीं चाहिए। इसीलिए नैतिक और आध्यात्मिक मूल्य जीवन में लाना इतना अनिवार्य है।

प्रश्न : युवक इतने क्रोधी क्यों है? उन्हे सबकुछ दिए जाने के बावजूद भी वे संतुष्ट नहीं हैं। हम ऐसे में क्या कर सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : उन्हे Yes यां yes + कोर्स में लाओ। जब दिल्ली के इन्ही छात्रों ने यह कोर्स किया तो उनके माता/पिता हैरान रह गए। वही छात्र जो पहले कहते थे कि वे अपने माता/पिता से नफ़रत करते हैं, कोर्स के बाद अपने माता/पिता की देखभाल करने लगे, अपना प्रेम व्यक्त करने लगे और उनसे पूछने लगे कि वे उनके लिए क्या कर सकते हैं। उनके माँ/बाप ने कभी ऐसे परिवर्तन के बारे में सोचा भी नहीं था। अमरिका की ४३ विश्वविद्यालयो में Yes plus क्लब हैं। कोर्नेल विश्वविद्यालय और अन्य कई विश्वविद्यालय में यह कोर्स पाठ्यक्रम का भाग है। आज दुनिया ध्यान, प्राणायाम और योगा की महत्वता समझ रही है और यह ज़रुरी है कि भारत भी अब यह समझे।


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