"ईश्वर वो शक्ति है जिसके कारण सब कुछ हो रहा है"

बैंगलोर आश्रम, भारत

प्रश्न : भगवान क्यों?

श्री श्री रवि शंकर :
क्यों नहीं? अगर भगवान ना होते तो तुम यह प्रश्न ही क्यों पूछोगे? तुम क्या कहोगे अगर एक लहर सागर के अस्तित्व पर सवाल करे? सागर है तभी तो लहर है। जिसके कारण तुम खड़े हो, तुम्हारा अस्तित्व है, तुम सोचते हो, समझते हो, साँस लेते हो, वही भगवान है। ईश्वर क्या है? ईश्वर आकाश में यां कैलाश पर्वत पर बैठा कोइ व्यक्ति नहीं है। ईश्वर वो शक्ति है जिसके कारण सब कुछ हो रहा है।
(प्रश्नकर्ता अभी भी वही प्रश्न पूछता है)
एक काम करो - भगवान के बारे में सब धारणाएं छोड़ो। पहले यह तो जानो तुम कौन हो?,कौन यह प्रश्न पूछ रहा है? अगर तुम यह जान लेते हो तो काम हो गया।
मैं तुम्हे एक कहानी सुनाता हूँ। एक बार एक व्यक्ति भगवान बुद्ध के पास गया और ऐसे ही कहने लगा, "मुझे भगवान में यकीन नहीं है, भगवान क्यों?" भगवान बुद्ध कहते हैं, "ठीक है! तुम सही हो"। यह सुनकर वह व्यक्ति खुशी से वापिस चला गया। एक और व्यक्ति उनके पास आया और कहने लगा, "भगवान है"। वो फिर कहते हैं, "ठीक है! तुम सही हो"। अब एक तीसरा व्यक्ति उनके पास आया और प्रार्थना भाव से बोला, "कई लोग कहते हैं कि भगवान नहीं है। उनका तर्क सुनकर ऐसा ही लगता है। पर जब मैं संतों का प्रवचन सुनता हूँ तो लगता है भगवान हैं। अब मैं दुविधा में हूँ कि भगवान है यां नहीं। मुझे भगवान का अनुभव तो नहीं है और मैं समझ नहीं पा रहा हूँ। कृप्या आप मुझे बताएं।" यह सुनकर भगवान बुद्ध बोले, "तुम यहाँ रुको। तुम्हारे मन में भगवान को लेके कोई धारणा नहीं है। हम दोनो एकसाथ खोजते हैं भगवान हैं के नहीं।" अशांत मन कभी ईश्वर के करीब नहीं जा सकता। अशांत मन में ज्ञान भी नहीं उपजता। और अगर कोई ज्ञान ऐसे मन में उपजता भी है तो वो सही नहीं होता। इसलिए मैं कहता हूँ पहले शांत हो जाते हैं। तुम सही जगह आए हो। यही रास्ता है। भगवान के बारे में अपनी धारणाएं छोड़दो। आँखे बंद करो और यह खोजो कि तुम कौन हो? क्या तुम यह शरीर हो? क्या तुम यह मन हो? क्या तुम विचार हो? "मैं इन विचारों के परे भी कुछ हूँ" - जब तुम यह अनुभव करते हो तो सत्य अपने आप ही उदय होने लगता है।

प्रश्न : मुझे कैसे पता चले मैं प्रबुद्ध होंगा के नहीं?

श्री श्री रवि शंकर :
हमारा संदेह हमेशा सकारात्मक चीज़ों पर होता है। हम किसी की ईमानदारी पर संदेह करते है, बेईमानी पर कभी संदेह नहीं होता। अगर कोई कहता है कि वो हमसे प्रेम करता है तो हम संदेह करते है। परन्तु अगर कोई कहे कि वह हमसे नफ़रत करता है तो हम उसी समय मान लेते हैं। कैसे जाने मुझे ज्ञान प्राप्त हुआ है कि नहीं? पहले तो यह संदेह उठता है। इसके पीछे पीछे इसका उत्तर भी मिलता है। जब तुम्हारा मन शांत होता है, तुम प्रसन्न होत हो, ऐसे एक खुशबु तुमसे प्रवाहित होती है और तुमसे प्रेम का प्रवाह फूटता है। कई बार यह धीरे धीरे होता है और तुम्हे एहसास नहीं होता। फिर अचानक तुम पाते हो कि तुम प्रसन्न हो, तुम शांत हो, और कुछ भी तुम्हे दुखी नहीं कर सकता। यह बात धीरे धीरे तुझ में आ जाए। कभी अचानक भी हो सकता है। पर धीरे धीरे होता है तो वो बड़िया है।

प्रश्न : अगर मैं प्रबुद्ध हो जाता हूँ तो क्या मैं शादी कर सकता हूँ? मेरे माता पिता मुझे शादी के लिए मजबूर कर रहे हैं। क्या मै अपनी पत्नि को खुश रख पाऊँगा?

श्री श्री रवि शंकर :
अच्छा होगा अगर तुम दोनो एक साथ प्रबुद्धता प्राप्त करो।


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