"जो विश्वास शक से होकर गुज़रता है और फिर भी बना रहता है, वही सच्चा विश्वास है"

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मुझे एक घटना याद है जो पिताजी मुझे बताते थे। मेरे दादीजी ने दादाजी को अपना साढ़े दस किलो सोना महात्मा गांधी को देने के लिए दिया और दादाजी २० साल तक महात्मा गांधी के साथ रहे। तुम्हें पता है, भारतीय महिलायें सोने से बहुत प्रेम करती हैं इसलिये विवाह इत्यादि उत्सवों में उन्हें आमतौर पर उपहार में सोने के आभूषण दिये जाते थे। मेरी दादीजी के पास साढ़े दस किलो सोना था। सोचो यह उस समय में कितना होगा! एक सोने की चेन को छोड़कर उन्होंने बाकी सब सोना महात्मा गांधी को दे दिया जब उन्होंने भारत का स्वतंत्रता संग्राम शुरु किया। कुछ देने के लिये कोई तुम्हें मजबूर नहीं करता, पर जब तुम कुछ देते हो तो तुम्हें अपने भीतर एक संतोष का अनुभव होता है।
मैं कहता हूँ अपने जीवन में दो बातें आवश्यक हैं – एक तो अधिक मुस्कुराओ और जितना हो सके उतना सेवा कार्य करो।

प्रश्न : अहंकार और आत्मविश्वास में क्या संबंध है?

श्री श्री रवि शंकर :
किसी और की उपस्थिति में सहज ना होना अहंकार है। तुम कहीं भी और किसी के साथ भी सहज हो तो यह आत्मविश्वास है। अहंकार का इलाज है - सहजता। सहज होना और आत्मविश्वास होना एक साथ ही होता है। ये आत्मविश्वास से अलग नहीं किया जा सकता। जब तुम में आत्मविश्वास होता है तो तुम सहज होते हो। अगर तुम सहज हो तो आत्मविश्वास भी होगा।

प्रश्न : क्या खुश होने के लिये धन का होना आवश्यक है?

श्री श्री रवि शंकर : इसमें कोई शक नहीं है कि जीवन की रोज़मर्रा की आवश्यकताओं के लिये तुम्हें कुछ धन की आवश्यकता है, पर धन से तुम खुशी खरीद नहीं सकते हो। खुशी आती है ज्ञान से।

प्रश्न : आप हर अवस्था में मुस्कुरा कैसे लेते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : मुस्कुराहट हमारा brand mark है। मुस्कुराहट हमारी पहचान है। अगर तुम किसी को देखो जो मुस्कुरा नहीं रहा है और कहे कि उसने Art of Living कोर्स किया है, तो उसकी बात पर यकीन मत करना। मुझे यकीन है कि यहां मौजूद लोगों में जिन्होंने भी सही माइने में ये कोर्स किया है, मेरी बात से सहमत होंगे।

प्रश्न : जीवन में भीतरी संतुष्टि अनुभव करने के लिये सेवा का क्या योगदान है?

श्री श्री रवि शंकर : जीवन में हमारे पास कोई ध्येय होना चाहिये। मेरा ध्येय है अधिक से अधिक लोगों के जीवन में खुशी लाना। अगर हम बैठ कर हर समय सिर्फ़ अपने बारे में ही सोचते रहें तो हम विषादग्रस्त हो जायेंगे। हमें देखना चाहिये, ‘मैं सेवा कैसे कर सकता/सकती हूँ? मैं दूसरों के लिये उपयोगी कैसे हो सकता/सकती हूँ?’ ये विचार बहुत उपयोगी है। बहुत, बहुत, बहुत उपयोगी है।

Art of Living एक मंच प्रदान करता है जहाँ सब मिल कर सेवा कार्य कर सकें। तुम्हें पता है, ‘जब यूनाईटेड नेशन्स ने वृक्षारोपण के लिये ‘Stand up and take action’ का एलान किया तो Art of Living के सदस्यों नें विश्व भर में ५५० लाख वृक्ष लगाये।
हम सब मिलकर कोई सेवा कार्य कर सकते हैं। हिंसा कम कर सकते हैं, तनाव कम कर सकते हैं, अपनेपन का भाव फैला सकते हैं, और प्रेम और शांति की सकारात्मक उर्जा फैला सकते हैं। हम सब मिलकर ये करेंगे। क्या हम सब लोग प्रतिबद्ध हैं ऐसा करने के लिये? (सभी श्रोता एक स्वर में हाँ कहते हैं।’)

प्रश्न : अद्वैत का आधार क्या है?

श्री श्री रवि शंकर : अद्वैत quantum physics है। Quantum physics कहती है कि सभी अणु एक ही स्पंदन की लहर हैं। इस तरह पूरा ब्रह्माण्ड एक ही पदार्थ से बना है – मैं, तुम, वो, सभी लोग और सभी कुछ उसी एक तत्व से बना है। और उस तत्व का स्वभाव है - आनंद। अद्वैत यही कहता है। उसके अनुभव की एक झलक मात्र मिल जाने से ही तुम में इतनी शक्ति और स्थिरता आ जाती है कि कुछ भी तुम्हें हिला नहीं सकता, कोई तुम्हारी मुस्कुराहट नहीं छीन सकता।

प्रश्न : आपको इतनी हिम्मत कहाँ से प्राप्त होती है?

श्री श्री रवि शंकर: हिम्मत कहाँ से प्राप्त होती है? अद्वैत से। ये जानने से कि तुम में ऐसा कुछ है जो बदल नहीं रहा है। मौन, शांत चित्त और ध्यान के अनुभव से तुम्हें भीतर से बहुत हिम्मत मिलेगी।

प्रश्न : Art of Living बहुत बढ़िया काम कर रहा है। क्या ३० प्रतिशत लोगों के विषादग्रस्त होने पर और आने वाले दशक में यह संख्या ५० प्रतिशत होने की संभावना में मानव जाति के लिये कोई उम्मीद रह जाती है? क्या कोई आशा है?

श्री श्री रवि शंकर : हां, और हम सभी को इसके लिये काम करना है। तुम्हें पता है कि हमने शुरुवात भारत में एक छोटे से गांव से, ५० लोगों के साथ की थी। हमारे पास कोई साधन नहीं थे, कार्यकर्ता नहीं थे, पर हमारे पास एक दृष्टि थी – हमें विश्व में बहुत लोगों तक पहुँचना है। इस तरह इन तीस सालों में हम लाखों लोगों तक पहुँचें हैं। ये संभव है। मोबाइल की पंहुच समस्त विश्व में हो गई है। अगर मोबाइल समस्त विश्व तक पहुँच सकता है तो क्या ज्ञान और करुणा समस्त विश्व में नहीं पहुँच सकते हैं? हमें प्रयास करना होगा। ठीक है?

प्रश्न : मैंने विश्वास खो दिया है, मैं उसे दोबारा कैसे प्राप्त करूं?

श्री श्री रवि शंकर : विश्वास को दोबारा प्राप्त करने के लिये कोई प्रयास मत करो। अपने हृदय की सुनो। विश्वास कभी खो नहीं सकता है। जितना शक कर सकते हो करो। सत्य हमेशा शक पर विजयी होता है। सत्य इतना मज़बूत होता है कि शक उसे नष्ट नहीं कर सकता है। तो शक करना अच्छा है। जो विश्वास शक से होकर गुज़रता है और फिर भी बना रहता है, वो सच्चा विश्वास है।
तुम में से कितने लोगों ने अभी तक भारत नहीं देखा है? तुम में से कितने लोग भारत देखने आना चाहते हो? ओह! बढ़िया है! यहाँ से हम एक टोली की भारत यात्रा की व्यवस्था करेंगे। भारत में भी तुम्हारा अपना एक घर है। तुम सब भारत आओ, एक हफ़्ता, दस-पन्द्रह दिन...जो भी तुम्हारे लिये सम्भव हो। वहाँ आकर तुम सब सेवा कार्यों की एक झलक देख सकते हो।

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