"भारतीयता जिसपर हमे गर्व होना चाहिए"

बैंगलोर आश्रम, भारत

प्रश्न : गुरुजी, क्या ये आवश्यक है कि जीवन में कोई ध्येय हो, कोई मंज़िल हो, यां हम बस बहाव के साथ बहते रहें?

श्री श्री रवि शंकर : इन दोनों में चुनाव नहीं कर सकते हो। तुम्हें दोनों को ही अपनाना है। तुम्हारे पास ध्येय होना चाहिये। उस ध्येय की तरफ़ बढ़ो, और रास्ते में जो कुछ भी आये उसे स्वीकार करो।

प्रश्न : आप भारतीय संस्कृति के पश्चिमीकरण पर क्या कहना चाहेंगे?

श्री श्री रवि शंकर : पश्चिम की संस्कृति से उस में जो अच्छी बातों हों, उन्हें स्वीकार लो, जैसे कि सफ़ाई, नियमों का पालन करना..। इस मामले में भारत में गंदगी है। हमें इसे सुधारना है।

मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। ये सन १९७८ की बात है, जब तुम में से कईयों का जन्म भी नहीं हुआ था। मैं पहली बार स्विट्ज़रलैंड गया था। मैं एक एकाकी स्थान पर घूम रहा था। मैंने एक चौकलेट ली और उसका आवरण सड़क पर फेंक दिया जैसा कि भारत में हम करते हैं। वहां बहुत कम लोग थे। बहुत दूर एक बुज़ुर्ग महिला जो कि छड़ी का सहारा लेकर चल रहीं थी, मेरे पास आकर कहती हैं, ‘तुम्हें इसे उठा कर कूड़ेदान में डालना होगा।’ उन्होंने थोड़ा आगे बढ़ कर मुझे वो स्थान दिखाया जहां कूड़ेदान रखा था।

एक बुज़ुर्ग महिला, छड़ी का सहारा लेकर मेरे पास चल कर आई, मुझे ये बताने के लिये कि मुझे चौकलेट का आवरण कूड़ेदान में डालना चाहिये! मैं इस बात से बहुत प्रभावित हुआ कि लोग अपने शहर को साफ़ रखने की ज़िम्मेदारी लेते हैं। हमें पश्चिम के देशों से ये सीखना चाहिये कि किस तरह से अपने शहर और पर्यावरण को साफ़ रखने की ज़िम्मेदारी और जागरूकता हम में हो।

पश्चिमी देशों में अगर लोग किसी बात का विरोध भी करते हैं तो शांतिपूर्ण ढंग से करते हैं। हमें पश्चिमी संस्कृति से ये बातें सीखनी हैं।

फिर प्रश्न आता है कि पश्चिम की संस्कृति से क्या नहीं सीखना है। रिश्तों में सहजता की जगह औपचारिकता। एक मां को अपनी बेटी से मिलने के लिये उससे समय लेना पड़ता है। एक बेटी को अपनी मां से बात करने के लिये समय मांगना पड़ता है। ये हमारे शहरों में भी कुछ हद तक आ रहा है। सहजता और अपनत्व का भाव समाज में कम हो गया है। हमारी संस्कृति में बुज़ुर्गों का सम्मान होता है, हमें इसे नहीं भूलना चाहिये। ये हमारी संस्कृति का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है।

पश्चिम में प्रेम को बहुत अधिक जताने की प्रथा है। लोग घड़ी घड़ी एक दूसरे को honey, honey कहते हैं। पूर्व की संस्कृति इसके ठीक विपरीत है। तो, प्रेम की अभिव्यक्ति में हमें बीच का मार्ग अपनाना चाहिये। प्रेम की अभिव्यक्ति बिलकुल ना करना, जैसा कि कुछ मां बाप अपने बच्चों के साथ करते हैं, यां भाई बहन आपस में करते हैं, ग़लत है। पर, बार बार प्रेम की अभिव्यक्ति करते रहना भी ग़लत है।
प्रेम की अभिव्यक्ति बीजारोपण जैसा है। अगर बीज को मिट्टी की सतह पर रख दोगे, तो बीज अंकुरित नहीं होगा। पर उसे बहुत गहरे मिट्टी के भीतर दबा दोगे, तब भी वह अंकुरित नहीं होगा।
पूर्व की संस्कृति में ऐसी कई चीज़ें हैं जिसे पश्चिम में लोग चाहते हैं, जैसे कि अपनेपन की भावना, संयुक्त परिवार।

प्रश्न : संयुक्त परिवार की धारणा मेरे लिए नई है। मैं इसके लिए पूरे स्मर्थ में हूँ, पर क्या इसका कोई बुरा प्रभाव भी है?

श्री श्री रवि शंकर : संयुक्त परिवार में कुछ नुक्सान भी होता है, पर जब परिवार के टुकड़े एक nuclear family के रूप में हो जाते हैं तब बस पति, पत्नि और बच्चे रह जाते हैं -- लड़ने के लिये और कोई बचा ही नहीं! तो, वे आपस में ही लड़ते रहते हैं, और फिर मां-बाप और बच्चे, सब अलग हो जाते हैं। संयुक्त परिवार में ये फ़ायदा है कि लड़ाई के बावजूद भी सब साथ रहते हैं। पश्चिम समाज अब संयुक्त परिवार की संस्कृति अपना रहा है। लोग परिवार को महत्व दे रहे हैं और संयुक्त परिवार की ओर वापस जा रहे हैं। उत्सव और त्यौहार पूरे परिवार को मिलकर मनाने से एक उत्त्म वातावरण बना रहता है।

भारतीय संस्कृति जिस पर हमे गर्व होना चाहिए।

हमे भारतीयता को नहीं खोना है। सात चीज़े हैं जिनपर हिन्दूस्तान गर्व कर सकता है। एक तो यहाँ का ध्यान, विज्ञान और योगा। दूसरे हमारे तरह तरह के कपड़े जो हम यहाँ पहनते हैं। आप देखोगे कि विदेशों में लोग ज़्यादा काला और भूरा पहनते हैं। कोई इतनी विविधता नहीं है। वहाँ के लोग यहाँ आकर तरह तरह के रंगीन कपड़े देखकर चकित होते हैं, और हम उनकी ही नकल करने लग जाते हैं। अरे यहाँ के इतने रंगीन और अलग अलग वेषभूषा है, कोई अपना नया स्टाईल तो बनाओ। हमारे रंग-बिरंगे कपड़े हैं, और इतना रंगीन समाज है। उन रंगों को हमे खोना नहीं है। पश्चिम में शरद ऋतु में वनस्पति अपना रंग बदलती है। वहाँ पर कुदरत बहुत रंगीन है। पर लोगों की वेषभूषाओं के रंग केवल काले, नीले यां भूरे होते हैं। हमारे यहाँ कुदरत इतनी रंगीन नहीं होती पर इतनी रंगीन वेषभूषाएं हैं। हमे पश्चिम की नकल करके इनको नहीं छोड़ना है। तो हमे अपने रीति-रिवाज़, खान-पान, कपड़े, और हमारी रंगीन संस्कृति बनाए रखनी है।

उसके बाद हमारा खान-पान। जितनी विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट खान-पान भारत में हैं उनका कोई हिसाब ही नहीं है- । पर हमे लगता है कि मैदे का पिज़्ज़ा खाने से हम अधिक सभ्य हैं। मैं पिज़्ज़ा के खिलाफ़ नहीं हूँ पर इसे हर हफ़ते की आदत बनाना..हमारे पाचन क्रिया पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हम बचपन से ही आटे की चपाती और परांठे खाते आए हैं। यह अधिक सेहतमंद भी है। हमे इसे नहीं बदलना है। अपने खान-पान पर गर्व करो। हमे तो भारत के विभिन्न प्रातों के स्वादिष्ट भोजन पद्दार्थों का भी नहीं पता है। केवल त्रिपुरा में ही १०८ तरह के विभिन्न भोज्य पद्धार्थ हैं।
इसके अतिरिक्त भारतीय संगीत, नृत्य और IT.

इंग्लैंड में एक अध्ययन के अनुसार संस्कृत भाषा पढ़ने वालों के दिमाग की neuro lingual क्रिया बहुत अच्छी होती है। इसका मतलब है जो बच्चा संस्कृत पढ़ता है, वो कोई भी भाषा अच्छे से और जल्दी से सीख सकता है, और उसका दिमाग कंप्यूटर के लिए भी अधिक तीक्ष्ण हो जाता है। इंग्लैंड में इस विषय पर १५ साल की खोज हुई। भारत की IT के क्षेत्र में उन्नति का एक महत्वपूर्ण कारण पृष्ठभूमि में संस्कृत भाषा की नींव है। इस खोज के बाद लंदन के ३ महत्वपूर्ण स्कूलों में संस्कृत भाषा ज़रुरी कर दी गई है। और हमारे यहाँ संस्कृत भूले जा रहे हैं। आप रशियन, इटैलियन, जर्मन और अंग्रेज़ी भाषा को ही लेते हैं तो इसमें ५० प्रतिशत शब्द संस्कृत भाषा से हैं। तमिल भाषा के इलावा बाकी सब भारतीय भाषाओं में संस्कृत भाषा के अधिकतम अंश हैं। ’संस्कृत भाषा भारत की राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए’ - एक वोट की कमी के कारण यह बिल पार्लियामेंट में पास नहीं हो सका। हाल ही में TV में आया था कि सबसे पहला हवाई जाहज भारत ने विश्व को दिया। यह इंग्लैंड के अखबार में भी आया था। पर उस व्यक्ति को जेल में बंद कर दिया गया। उसके १० साल बाद राईट ब्रदर्स ने अपना उड़ान लिया। डी के हरि जी ने भारत की विश्व को देन पर पूरी खोज की है।


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