"गुरु विवेक और ज्ञान है"

बैंगलोर आश्रम, भारत

प्रश्न : प्रिय गुरुजी गुरु गोबिंद सिंह जी ने संत सिपाही तैयार किए जो समाज में कितनी बुरे लोगों का मुकाबला कर सके। आप जिन योद्धाओं को तैयार कर रहे हैं, उनके लिए आपकी क्या दृष्टि है?

श्री श्री रवि शंकर : सबसे पहले अज्ञान की बुराई से लड़ो। समाज में तरह तरह की मुश्किले हैं - भ्रष्टाचार, भुखमरी, अज्ञानता, आध्यात्म का विरोध करने वाली शक्तियाँ, और मानवता विरोधी शक्तियाँ। हमें इनके विरोध में खड़े होना है। इनको तो पराजित करना ही है।

प्रश्न : अगर बुरी आदत छोड़ने के लिए आपकी कसम खाऊँ तो चलेगा?

श्री श्री रवि शंकर : तुम छोड़ो तो सही। आदत छोड़ने के लिए तुम यह कर सकते हो। पहला यदि तुम्हे आदत के विरोध में प्रेम हो गया। यां किसी प्रेमी से वादा कर लिया। उस प्रेम से तुम आदत छोड़ दोगे।
दूसरा अगर तुम्हे कोई कहे आदत छोड़ दो तो तुम्हे इतने करोड़ का मुनाफ़ा हो जाएगा, तुम्हारी लौटरी निकल जाएगी तो भी बुरी आदत छूट जाती है।
यां फ़िर भय से। अगर तुम्हे कोई कहे कि सिगरेट पीने से कोई बीमारी हो जाएगी तो भी आदत छूट जाती है।

प्रश्न : गगन तत्त्व के परे कुछ है क्या?

श्री श्री रवि शंकर : गगन तत्व के परे? मैं हूँ!

प्रश्न : मैं दुविधा में हूँ। मैं गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानता हूँ। आपके सानिध्य में आकर मुझे भीतर से खुशी अनुभव हुई है। अब मैं किसे गुरु मानु?

श्री श्री रवि शंकर :
दुविधा कहाँ हैं? गुरु ग्रन्थ साहिब तो बड़ा पूजनीय ग्रन्थ है। उसे तो मानना ही है। गुरु व्यक्ति नहीं है, गुरु तो विवेक है, ज्ञान है। चाहे वो ज्ञान पुस्तक में हो, व्यक्ति में यां चेतना में। उसी ज्ञान को तो मान रहे हो। गुरु तत्व को ही गुरु मान रहे हो। मन में उलझन पैदा मत करो। मन अपने आप यह उलझन पैदा कर लेता है। गुरु ग्रन्थ साहिब में वेदों के ज्ञान का निचोड़ है। तो इस ग्रन्थ का सम्मान करें। इसमें कोई विकल्प ही नहीं है।
माता हमारी पहली गुरु होती हैं।
स्कूल में अध्यापक हमारे दूसरे गुरु।
आध्यात्मिक गुरु यां सत्य का ज्ञान देने वाले सदगुरु होते हैं।
जीवन में गुरु तत्व जब जगता है तो पूरी तरह से रहता है। इसलिए मन में भय रखने की इतनी आवश्यकता नहीं है। सहजता में रहो। प्रेम में रहो, मस्ती में रहो।

प्रश्न : मैं दुविधा में हूँ? क्या मुझे सब तरफ़ से और खुशी मिल सकती है?

श्री श्री रवि शंकर : इस अधिक की दौड़ में मरे जा रहे हैं। अधिक मिलेगा, अधिक मिलेगा - मुझे और अधिक कहाँ से मिलेगा? अरे भई - विश्राम करो। जितना मिला उसे भोगने के लिए भी समय नहीं होता। हमे यह सोचना चाहिए हम समाज में अधिक उपयोगी कैसे हो सकते हैं? क्या भीखारी की तरह अधिक मिलने का ही सोचते रहना? जो व्यक्ति समाज में अधिक उपयोगी होने के बारे में सोचता है, उसके पीछे सब कुछ अपने आप आ जाएगा। कोई कमी नहीं रहेगी।

प्रश्न : मेरी बहन ने मुझे सुबह फोन पर बताया कि उसके बेटे की तबीयत ठीक नहीं है। वो रोने लगी। मैं उसके पास तो नहीं जा सकता था पर मैनें आँखे बंद करके आपसे प्रार्थना की। अभी थोड़ी देर पहले उसका फोन आया और उसने बताया कि उसका बेटा ठीक है। मैं जानना चाहता हूँ कि यहाँ बैठे बैठे आप से प्रार्थना करने पर इतनी दूर सब कैसे कुशल मंगल हो गया?

श्री श्री रवि शंकर : यह रहस्य है। गुरु बनने के साथ प्रसिद्धि तो मिलती है पर ज़िम्मेदारी भी आ जाती है।

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