बैंगलोर आश्रम, भारत
प्रश्न : कर्म सिद्धांत के अनुसार एक जन्म के कर्मों का प्रभाव हम दूसरे जन्मों में लेके जाते हैं। इसको कैसे समझें?
श्री श्री रवि शंकर : आप दो साल पहले नारियल का पेड़ लगाते हैं और आज वो पेड़ बड़ा हो गया। जब तक आपके मन पर पहले किए हुए कर्म की छाप है तब तक उसका कर्म रहेगा। जब तक ध्यान, साधना, और सेवा द्वारा उसकी छाप नहीं हटती है तब तक कर्म रहता है। जब उसकी छाप मिट जाती है तो उस कर्म से मुक्त हो जाते हैं। इस ज्ञान से ही हम मुक्ति पा लेते हैं।
यह सब चित्त पर ही तो है। चित्त पर जो भी संस्कार पड़ा हुआ है, वही तो कर्म है। जब मैं जागकर देखता हूँ कि यह चित्त मैं नहीं हूँ पर यह मेरा है, मेरा एक अंग है और चित्त से भी बड़ा मेरा निरंजन स्वरूप है, तब कर्म अपने आप विलीन हो जाता है।
प्रश्न : आपको मिलने से पहले मन में बहुत प्रश्न थे पर आपको देखकर मैं सारे प्रश्न भूल गया हूँ। मैं जानता हूँ आप शिवजी का अवतार हैं। हैं ना?
श्री श्री रवि शंकर : चलो एक प्रश्न तो रह गया तेरे मन में! उसको रहने देते हैं!
जहाँ प्रसन्नता छाती है वहाँ सब प्रश्न गायब हो जाते हैं।
प्रश्न : जिसमें अहिंसा मज़बूत होके प्रतिष्ठित हो जाती है, उनके आसपास हिंसा खत्म हो जाती है। तो क्या भगवान श्री कृष्ण अहिंसा में प्रतिष्ठित नहीं थे, उनके सामने तो इतनी बड़ी लड़ाई हो गई?
श्री श्री रवि शंकर : इसके पीछे रहस्य यह है कि अलग अलग व्यवस्था है। उस वक्त वो उनका धर्म था। एक तो कर्म है व्यक्तिगत और एक सामुहिक कर्म है। एक पूरे विश्व के ऊपर का कर्म है। तरह तरह के कर्म होते हैं। जब इतना पाप और अधर्म पूरे समूह पर छा गया तो उन्हे हाथ में शस्त्र लेना ही पड़ा। जैसे बीमारी की हालत पर दवा की डोज़ निर्भर करती है। अलग अलग परिस्थिति में अलग अलग डोज़ दी जाती है। हल्कि सिर दर्द है तो उस हिसाब से दवा देते हैं, और अगर सिर दर्द ज़्यादा हो तो उस हिसाब से।
गहना कर्मो गति - कर्मों की गति बहुत गहरी है, इसे बहुत आसानी से समझ नहीं सकते।
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