यह विश्वास रखो कि जो तुम्हारी ज़रुरत है वो तुम्हे मिलेगा

आज श्री श्री ने क्या कहा...

१९ जून २०१०, बैंगलोर आश्रम, भारत
प्रश्न: भक्ति कैसे प्राप्त करें?
श्री श्री रवि शंकर:
ये मान लो कि तुम में भक्ति है। भक्ति प्राप्त करने के लिए संघर्ष मत करो। ये मान लो कि हम सब में प्रेम और भक्ति है ही। जब तुम्हें ये विश्वास हो जाता है, तो तुम में जो भक्ति है वो बढ़ती है। जब तुम सोचते हो कि तुम में भक्ति नहीं है तो पैदा तो होती ही नहीं है।

प्रश्न: आप ध्यान करते वक्त कहाँ जाते हैं?
श्री श्री रवि शंकर:
जाते कहीं नहीं, होते सब जगह हैं।

प्रश्न: जब बुद्धि और हृदय अलग अलग सलाह दें तो दोनों में से किस की बात माने?
श्री श्री रवि शंकर:
जब काम के बारे में बात हो तो बुद्धि की बात माननी चाहिए। जब सेवा के बारे में बात हो तो अपने हृदय की बात मानो।

प्रश्न: मैं अपना शत प्रतिशत कैसे दूं? मुझे अक्सर ऐसा लगता है कि मैंने अपना शत प्रतिशत नहीं दिया है|
श्री श्री रवि शंकर:
क्या तुम्हें जवाब चाहिये?

(प्रश्नकर्ता ने कहा, ‘हाँ।’)

क्या तुम्हें सच में जवाब चाहिये?

(प्रश्नकर्ता ने फिर कहा, ‘हाँ।’)

क्या तुम्हें शत प्रतिशत इसका जवाब चाहिये?

(प्रश्नकर्ता ने बड़े जोश से कहा, ‘हाँ!’)

सच में चाहिए?

(प्रश्नकर्ता ने शांतिपूर्ण होकर उत्साह से कहा, ‘हाँ।’
देखा, तुम पहले ही जानते हो।

प्रश्न: क्या ये सच है कि मेरी अगली और पिछली पुश्तों को भी मेरे ध्यान करने से लाभ होता है? मतलब अगर मैं ध्यान करता हूँ तो मेरे माता-पिता भी तर जाएंगे?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ, कुछ बात ऐसी है।
अजब प्रेम की गजब कहानी!

प्रश्न: मैं ज्ञान प्रदान करने वाली पुस्तकें पढ़ता हूँ। मैं ये कैसे जानूँ कि मैंने ज्ञान को केवल बौधिक स्तर पर प्राप्त किया है यां सचमुच ज्ञान अनुभव कर किया है?
श्री श्री रवि शंकर:
ये बहुत आसान है। तुम रेस्टोरेंट में जा कर मीनू पढ़ते हो। जब तुम भोजन खाते हो तो तुम ये जानते हो कि तुमने खाया है। अनुभव का खंडन नहीं हो सकता। पीठ में दर्द के बारे पढ़ना एक बात है और सचमुच पीठ में दर्द का अनुभव करना एक और बात है। तुम्हारा अनुभव ही सबसे महत्वपूर्ण है।

प्रश्न: ध्यान, नींद और स्वपन में क्या अंतर है?
श्री श्री रवि शंकर:
तुमने तीन शब्दों का प्रयोग किया है। पहले मुझे बताओ कि इन शब्दों की तुम्हारी क्या परिभाषा है?

ध्यान वही है जब तुम जगे हो और विश्राम में हो।

गहरी नींद में तुम कुछ नहीं जानते हो। जब तुम जागते हो तभी जान पाते हो कि तुम सो रहे थे। सपना तो सपना होता है। जो अनुभव तुम्हें पहले हो चुके हैं, जब वे तुम्हारे चित्त में दोबारा प्रतिक्षेपित हों तो वो सपना है।

प्रश्न: कुछ अंधविश्वास होते हैं, जैसे कि अमुक काम मंगलवार या बृहस्पतिवार को नहीं करने चाहिये, बिल्ली रास्ता काट जाये तो आगे नहीं जाना चाहिये। क्या इन में कुछ तथ्य है?
श्री श्री रवि शंकर:
मेरे हिसाब से इन में कुछ नहीं है।

प्रश्न: इनमें से किसका स्थान अधिक ऊँचा है, देशप्रेम यां अपने धर्म के लिये प्रेम?
श्री श्री रवि शंकर:
इसमें बड़ा छोटा क्यों कर रहे हो? देखना बड़ा होता है यां सुनना? दोनो का अपना अपना स्थान है। दोनो एक साथ चलते हैं।

प्रश्न: जब में ध्यान में आपकी उपस्थिति का अनुभव करता हूँ तो क्या ये प्रेम है या समर्पण?
श्री श्री रवि शंकर:
प्रेम से समर्पण। समर्पण के साथ जो होता है, वो प्रेम है।

प्रश्न: जब कोई बड़ा कार्य पूर्ण होता है, तो आमतौर पर उत्सव मनाया जाता है। हम भी उम्मीद कर रहे थे कि अष्टावक्र गीता पूरी होने के बाद कोई बड़ा महोत्सव होगा, पर ऐसा कुछ विशेष नहीं हुआ?
श्री श्री रवि शंकर:
यहाँ रोज़ ही उत्सव है। आष्टावक्र गीता कभी समाप्त नहीं होती। अभी बहुत बाकी है।

प्रश्न: जब प्रेम, भक्ति और विश्वास हिल जाये तो क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर:
ये बहुत अच्छा है। चुनौती का सामना कर के सच्चा प्रेम और भक्ति गहरे हो जाते हैं। परीक्षा की घड़ियां सब के जीवन में आती हैं। कभी कभी तुम प्रार्थना करते हो और तुम्हारी प्रार्थना का जवाब नहीं मिलता। १० बार तुम जो चाहते थे तुम्हें मिला, पर अगर ग्यारहवीं बार तुम्हें नहीं मिला तो तुम शिकायत करने लगते हो। क्या ऐसी ही बात है? (प्रश्नकर्ता ने कहा, ‘हाँ, मेरे दोस्त ने मुझे धोखा दिया है और मैं बहुत पीड़ा महसूस कर रहा हूँ।’) ऐसे समय में तुम अपने आप को इससे ऊपर ले आओ और अपनी साधना को जारी रखो। भगवान सब के हृदय में हैं। सब जगह हैं। तुम्हारे इर्द गिर्द हैं। तुम्हारे भीतर हैं। भगवान जानते हैं कि तुम्हारे लिये सर्वश्रेष्ठ क्या है और वे तुम्हें वही देते हैं। जब तुम उनसे कुछ मांगते हो तो कहो, ‘मुझे यह चाहिए यां इससे श्रेष्ठ।’

प्रश्न: खेद और निराशा के नकारात्मक भाव क्यों आते हैं ? क्या इन से कभी कुछ सकारात्मक निकलता है? अगर नहीं, तो इन भावनाओं को सकारात्मक भावनाओं से कैसे बदलें?
श्री श्री रवि शंकर:
तुम्हें मौन की गूँज किताब पढ़नी चाहिये। इन सभी प्रश्नों के उत्तर मैंने उस में दिये हैं।

प्रश्न:  अगर हम कुछ पाना चाहते हैं, पर लगातार प्रयास से भी वो प्राप्त नहीं हो पा रहा है, तो इसे ऐसे ही स्वीकार कर लें, यां प्रार्थना करते रहें?
श्री श्री रवि शंकर:
अगर उसकी तुम्हें बहुत आवश्यकता है तो तुम प्रार्थना के बिना नहीं रह पाओगे। ये विश्वास रखो कि जो तुम्हारी आवश्यकता है, वो तुम्हे मिलेगा।

प्रश्न: क्या अंक-ज्योतिष का कुछ असर होता है? मैं एक अंक को अपने लिये शुभ मानता हूँ और कुछ अंक इतने शुभ नहीं होते। क्या ये मेरे दिमाग की उपज है यां सच में इसमें कुछ सार है?
श्री श्री रवि शंकर:
इसका कुछ असर होता है, पर ’ॐ नमः शिवाय मंत्र’ का जाप करने का असर इससे कहीं अधिक होता है। मंत्र शक्ति से अशुभ अंकों का असर कट जाता है, और फिर सभी अंक तुम्हारे लिये शुभ होंगे। ध्यान इन सब से ऊपर उठना है।


इस वार्ता के आगे का भाग अगली पोस्ट में...

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