बैंगलोर आश्रम, भारत
१९८० में हमने पहली बार दिल्ली में आयुर्वेद पर एक सम्मेलन का आयोजन किया था। आयुर्वेद के वरिष्ठ वैद्य और गुणीजन, और AIIMS के सर्वश्रेष्ठ एलोपैथिक डौक्टरों ने इसमे हिस्सा लिया। वहां एक मज़ेदार घटना हुई। मैंने सभी डौक्टरों से पूछा कि भोजन में हल्दी का क्या महत्व है? एक ऐलोपैथिक डौक्टर नें कहा कि हल्दी केवल रंग के किए है, और इसके अतिरिक्त इसका भोजन में कोई महत्व नहीं है। पर एक आयुर्वेदिक डौक्टर ने कहा कि हल्दी antioxidant होने के कारण, बढ़ती उम्र के दुष्प्रभावों की रोकथाम करता है।
दस सालों के बाद, १९९० में ऐलोपैथिक डौक्टर भी शोध से इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हल्दी antioxidant है, और ये कोशिकाओं को बढ़ती उम्र के दुष्प्रभावों से बचाती है, और आपके शरीर में युवापन बना रहता है। आयुर्वेद, एक संपूर्ण चिकित्सा प्रणाली है। जो आयुर्वेद का ज्ञान हम लोगों के पास हज़ारों सालो से था, उस ज्ञान को स्वीकार करने में इतना समय लग गया!
नीम, आमला और नींबू जैसी कई दिव्य जड़ी बूटियां बहुत महत्वपूर्ण हैं – ये सभी antioxidants हैं। कड़ी पत्ता, जिसे हम चिवड़ें और कई तले व्यंजनों में डालते हैं, तुम्हें इसका महत्व पता है? ये खराब cholesterol को कम करता है। किसी का cholesterol बढ़ गया हो तो उसे कड़ी पत्ते की चटनी बना कर तांबे के बर्तन में परोसे, वह ठीक हो जायेगा। cholesterol घटाने के लिए ली गई कुछ एलोपैथिक दवायें जिगर और गुर्दों पर दुष्प्रभाव डालती हैं। तो, ये कुछ अद्भुत चीज़ें हैं जो हमारे देश में पहले से ही मौजूद हैं।
१९८० से हमने पंचकर्मा को प्रोत्साहित किया। कई प्रतिष्ठित आयुर्वेदिक डौक्टर हमारे साथ जुड़ गये और उन्होनें हमारे साथ जगह जगह की यात्रा की। वे नाड़ी परीक्षण से ये जान लेते हैं कि किस को क्या तकलीफ़ है, और ये भी बता देते हैं कि निकट भविष्य में क्या बीमारी हो सकती है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां उनके इलाज से बड़ी बड़ी बीमारियां ठीक हो गई।
मुझे एक घटना याद है, जब नाड़ी परीक्षण के बाद आयुर्वैदिक डौक्टर से अपने स्वास्थ्य का इतिहास सुन कर एक व्यक्ति अचंभित हो गया कि बिना बताये वे ये कैसे जान गये। ऐसे एक-दो नहीं, हज़ारों दृष्टांत हैं। हमारी कमी है कि हम आंकड़ों का संकलन कर उस पर शोध प्रकाशित नहीं करते हैं। हमें वैज्ञानिक और शोध की दृष्टि से इसे देखना चाहिये। हमें पश्चिम से ये सीखना चाहिये। हम उनकी अच्छी बाते वहीं छोड़ आते हैं पर बुरी बाते सीख आते हैं।
प्रश्न : मैं एक विद्यार्थी हूं, और यहां की शिक्षा प्रणाली से बहुत प्रभावित हूं। मुझे कुछ ऐसी बात सिखाइये जो मैं अपने साथ वापिस ले जा सकूं।
श्री श्री रवि शंकर : अपने शिक्षकों का सम्मान करो। भारतीय शिक्षा प्रणाली में गुरु का बहुत सम्मान है। इस सम्मान की पश्चिम के विद्यालयों और महाविद्यालयों में कमी है। अपने से बड़ों का भी सम्मान करो।
तो, हम एक नई लहर बनायें जहां पूरब और पश्चिम की संस्कृतियों से सर्वश्रेष्ठ गुण अपना कर एक उत्तम वैश्विक परिवार बनाये। दोनों से सर्वश्रेष्ठ ले कर एक सुंदर समाज का निर्माण करें।
प्रश्न : गुरुजी मैं ऐसी नौकरी में हूं जहां सरकारी अफ़सरों को रिश्वत दिये बिना कोई काम नहीं हो पाता है। मेरा मार्गदर्शन कीजिये कि मैं बिना रिश्वत दिये अपना काम कैसे कराऊं?
श्री श्री रवि शंकर : तुम कर सकते हो। तुम उनकी आंखों में देख कर कहो, ‘मैं आध्यात्म के पथ पर चलता हूं, मैं रिश्वत नहीं दूंगा। अगर आप चाहो तो मैं पचास बार तुम्हारे पास आउंगा, पर रिश्वत नहीं दूंगा।’ तुम्हारी आवाज़ दृढ़ पर नम्र हो, मिठास और दृढ़ता। कई बार हम सच कहते हैं पर गुस्से में कह जाते हैं।मन में गुस्सा या नफ़रत हो, तो सच बोलने पर भी सफलता नहीं मिल पाती। दृढ़ता और मिठास से अपनी बात कहो। ऐसा एक-दो बार करो, फिर देखो क्या होता है।
प्रश्न : गुरुजी, आध्यात्म में धर्म परिवर्तन के बारे मैं कभी मेरा मन कहता है कि, कम से कम धर्म परिवर्तन के कारण लोगों को भोजन, शिक्षा और स्वास्थ-सेवायें तो मिल रहीं है। आप का क्या विचार है?
श्री श्री रवि शंकर : नहीं। धर्म परिवर्तन के बिना भी तुम्हें स्वास्थ-सेवा, शिक्षा, भोजन और सभी कुछ मिल सकता है। जिस धर्म में तुम हो, वह तुम्हारे ऊपर है। तुम्हें पता है, अगर कोई अपनी पूर्ण रुचि के कारण दूसरा धर्म अपनाता है तो वह दूसरी बात है, पर उन्हें भोजन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा का लालच देकर ऐसा नहीं करना चाहिये।
प्रश्न : मैंने कोर्स करने के बाद शराब और सिगरेट की आदत छोड़ दी है, पर मेरे माता पिता अब भी इन आदतों से ग्रस्त हैं। मैं क्या करूं?
श्री श्री रवि शंकर : अगर तुम्हारे माता यां पिता, किसी एक ने भी, ये कोर्स नहीं किया है और शराब की आदत से ग्रस्त हैं, तो निश्चित ही तुम्हे बुरा लगता होगा। उन्हें किसी भी तरह, कोर्स के लिये ले कर आओ, और तुम पाओगे कि उनकी भी नशे की आदत छूट जायेगी। आज समस्या ये है कि कई परिवार नशे के गु़लाम हैं। ये बहुत दुख की बात है।
बहुत से बच्चे ये पूछते हैं कि उनके माता पिता कैसे ये आदतें छोड़ सकते हैं? तुम्हें इसके लिये काम करना होगा। तुम्हें कोई तरकीब लगानी होगी। कभी कभी बच्चे भी माता पिता को सुधार देते हैं। यहां कितने बच्चे हैं, जिनके माता पिता सुधर गये हैं? (कई बच्चे हाथ उठाते हैं।) बहुत अच्छा।
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