सत्य एक स्वरूप अनेक


बैंगलुरू आश्रम

प्रश्न: गुरूजी आकर्षण और प्रेम में क्या अंतर है?
श्री श्री रविशंकर: आकर्षण शुरुआत है| आकर्षण थोड़ा समय रहता है, चला जाता है |प्रेम हमारा स्वाभाव है, वह  छूटता नहीं|आकर्षण छूट जाता है |
 
प्रश्न: गुरूजी, दान का महत्व  क्या है? परम श्रेष्ठ दान क्या है?
श्री श्री रविशंकर: दान चित्त, मन  और आपको  शुद्ध करता है, दान से धन और  कर्म की शुद्धि होती हैं | परन्तु  दान को इतना भी श्रेष्ठ नहीं माना जाता | क्योंकि दान तो परायों को दिया जाता हैं | इसलिए, दान से शुरू करेदया, दान और फिर, उसके आगे होता है धर्म| पहले तो दया होनी चाहिए, फिर दान और फिर धर्म | धर्म अर्थात कोई भी पराया नहीं है, सब मेरे अपने हैं |अपनों को जो देते हैं, उसे दान थोड़ी ही मानते हैं |
सबसे श्रेष्ठ दान विद्या का दान, ज्ञान का दान है |

प्रश्न: गुरूजी मैं अपने आप को ऐसा कैसे बना लूं कि जो भगवान चाहते हैं मैं वही करूं?
श्री श्री रविशंकर: खाली हो जाये | सिर्फ यही कहे भगवान जो तुम चाहते हो, वोही मुझसे करवाओ. और बस हाथ जोड़ दो.

प्रश्न: गुरूजी भक्त गुरु को ढूँढता है या गुरु भक्त को ढूँढता है? और गुरु का मतलब क्या है?
श्री श्री रविशंकर: जैसे माता , पिता है, वैसे ही गुरु है | माता पिता शरीर से जन्म देते हैं, गुरु आत्मा का जन्म देता है |गुरु अंधकार को  दूर करता है | वह जीवन में नया प्रकाश, नयी रौशनी लाने वाला होता है |

प्रश्न: गुरूजी, मुझे काम भावना के विचार आते हैं और मुझे बहुत तंग करते है | मैं इस से कैसे छूट सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर: आप वह किताब सच्चे साधक के लिये अंतरंग वार्ता को पढ़े ? उसमे मैंने यह सब बातें बताई है, कैसे काम क्रोध, मोह, लोभ की भावनाओं को वश में किया जा सकता हैं |

प्रश्न: गुरूजी चेतना का क्या होता है जब कोई कोमा में चला जाता है, जब आँखें खुली रहती हैं परन्तु  कोमा की स्थिति बनी रहती है?
श्री श्री रविशंकर: चेतना निद्रा में चली जाती है | चेतना तो रहती है, पर बाहर की दुनिया से संपर्क नहीं कर पाती | जिसके ज़रिये से वह  संपर्क करती है, वह  कमज़ोर पड़ जाता है ! जैसे टेलीफ़ोन तो है पर कनेक्शन कट गया |

प्रश्न: जो व्यक्ति नफ़रत करते हैं, उन्हें हम कैसे स्वीकार करें?
श्री श्री रविशंकर: उन्हीं को तो स्वीकार करना है | जो प्यार करते हैं, उन्हें स्वीकार करने की बात ही कहाँ आती हैं ? यदि किसी को स्वीकार करना है  तो उसी को करना चाहिए जो नफ़रत करता है | पहले तो यह स्वीकार करो कि वह  नफ़रत कर रहा है, यह इनका स्वभाव है  और इस स्वाभाव का व्यक्ति है, इतना तो स्वीकार करे | यह तो बदलेगा नहीं, यह ऐसे ही रहेगा, यह प्रकृति की ऐसी विलक्षण चीज़ है, ऐसा  समझे |
आप  सब  सिनेमा देखते हैं |  सिनेमा में नायक का भी पात्र होता है और खलनायक का भी | सबकी अपनी अपनी जगह है | जैसे इस दुनिया में हमें प्रेम करने वाले हज़ार हैं, वैसे नफ़रत करने वाले भी २-४ हो सकते हैं |

प्रश्न: गुरूजी, प्राण और आत्मा में क्या सम्बन्ध है?
श्री श्री रविशंकर: प्राण के कारण आत्मा शरीर में है | यदि  प्राण नहीं हों तो शरीर में आत्मा भी नहीं है |

प्रश्न: गुरूजी  किसकी सुनें - दिमाग या दिल?
श्री श्री रविशंकर: कभी दिमाग की सुनो, कभी दिल की | अगर हमेशा  दिल की  सुनेंगे  तो मुश्किल में पड़ जायेंगे | और अगर हमेशा दिमाग कि सुनेंगे तो भी मुश्किल में पड़ जायेंगे | कभी दिल और कभी दिमाग कि सुने |

प्रश्न: गुरूजी, जीवन में कमाना ज़रूरी है? क्या पूरी जिंदगी सेवा कर सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: अपनी जिम्मेदारियां हो तो वह देख लीजिये | यदि  जिम्मेदारियां हैं तो कमाना पड़ेगा |अगर जिम्मेदारियां नहीं हैं, तो सेवा में लग जाये, वह  ठीक है |

प्रश्न: गुरूजी, मेरा बेटा आर्ट ऑफ लिविंग का शिक्षक है, येस प्लस कोर्स का | मैं आज सुबह उसकी सगाई के लिए बैंगलुरू आई हूँ | यह  लड़की उसकी मंगेतर है, वह कहता  है जो गुरूजी कहेंगे  वहीँ  सही है | कृपया बताएं कि क्या करना है?
श्री श्री रविशंकर: मैं कहता हूँ, जो माता पिता  बोलते हैं वहीँ बात सही है, उसे ही माने |

(आप ही बताईये गुरूजी..) मैं कह  रहा हूँ ना वो दोनों मान जायें, आप लोग मान जायें, पूरे परिवार को पसंद आये, एक दूसरे  को पसंद करें, अच्छे से शादी करे | (वह  आप के भरोसे है) | मैं तो आशीर्वाद देता हूँ |आप चुनो, मैं आशीर्वाद देता हूँ | (मैं आशीर्वाद लेने आई हूँ |मैं आपसे पहली बार बात कर रही हूँ, और अकेले में भी आपसे कुछ बात करना चाहती हूँ, यदि आपके पास जब भी समय हो तो )  ठीक है, आप हमें लिख कर देना, अभी बात करेंगे |

प्रश्न: गुरूजी मुझे  जब भी आपकी याद आती है, आप मेरे सपने में आ जाते हैं | क्या आप भी उसी समय मुझे याद करते हैं? या ये मेरा भ्रम है?
श्री श्री रविशंकर:  देखो, आपका  काम हो रहा है न? आपका  काम हो गया यह काफी है |
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