१०.१२.२०११, बैंगलुरू आश्रम
प्रश्न: गुरुजी, यह कहा जाता है कि बुद्धि, स्मृति, और अहंकार स्वेच्छ्या से बदल रहे हैं| सब कुछ सहज परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है और हम इस चित्र में कहीं नहीं हैं| तो कौन है जो मुक्त हो जाता है, और कौन है जो बाध्य है?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ, यह सब बदल रहे हैं, लेकिन कौन है जो साकार है कि यह सब बदल रहे हैं? यह आत्मा है, जो गवाह है|
जब कोई इन पहलुओं के साथ देखता है वे बाध्य हो जाते हैं| लेकिन एक बार आपको एहसास हो जाये कि मेरे चारों ओर सब कुछ बदलता रहता है, लेकिन मैं नहीं बदल रहा हूँ - 'मैं यह नहीं हूँ, मैं इस का गवाह हूँ' - तो मुक्ति हासिल हो जाती है|
प्रश्न: गुरुजी, कृपया चंद्र ग्रहण के महत्व और ग्रहण में लगाए जाने वाले प्रतिबंध पर टिप्पणी किजिए| आमतौर पर यह सुझाव दिया जाता है कि चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए, और ग्रहण से कुछ घंटों पहले कुछ नहीं खाना चाहिए क्योकि यह अपच का कारण हो सकता है| कृपया इस पर कुछ प्रकाश डाले|
श्री श्री रविशंकर: हाँ, आप चंद्र ग्रहण देख सकते हैं, कोई समस्या नहीं है! यह एक खगोलीय घटना है| केवल सूर्यग्रहण आपको नग्न आँखों से नहीं देखना चाहिए| आपको चश्मा पहनना चाहिए क्योंकि किरणे हानिकारक हैं| हमारे प्राचीन लोगों ने कहा कि ग्रहण के समय पर नहीं खाना चाहिए वह इसलिए कि ग्रहण से पहले भोजन अच्छी तरह से पचा हो और आप ध्यान कर सकते हैं| ग्रहण के समय जब आप जप, ध्यान, या प्रार्थना करते हैं, इसका एक सौ गुना अधिक प्रभाव पड़ता है - यह कहा जाता है|
सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी एक पंक्ति में होते हैं और इसलिए ब्रह्मांडीय किरणे ऐसे प्रवाहित हो रही होती हैं कि उस समय जो भी साधना करते है,उसका प्रभाव कई गुणा अधिक होता है| तो ग्रहण के दौरान आप ध्यान, मंत्र 'ओम नमः शिवाय' या 'ओम नमो नारायण' का जाप करे|
यदि अब आप मंत्र 108 बार करते हैं, इसका मतलब है कि आपने इसे दस हजार बार किया है|
यह साधक के लिए एक बहुत शुभ समय है, यह एक बुरा समय नहीं है| यह आनंद के लिए एक बुरा समय है|
प्रश्न: गुरुजी, कैसे और क्यों तुलसी (पवित्र तुलसी) पृथ्वी पर अस्तित्व में आई, और यह भगवान श्री कृष्ण को प्रिय क्यों है?
श्री श्री रविशंकर: क्योंकि हमको इस पृथ्वी पर आना था, पौधे पहले अस्तित्व में आये जिससे कि हम यहा आ सके|
हमारे देश में जो कुछ भी जीवन के लिए फायदेमंद है और जो प्राण शक्ति बढ़ाता है उसे पवित्र माना गया है| नींबू और तुलसी को बहुत ही पवित्र माना गया है| नीम के पेड़ को भी बहुत पवित्र माना जाता है| किसी भी संक्रमण से छुटकारा पाने के लिए नीम और नींबू बहुत मूल्यवान हैं| ऐसा माना जाता है कि देवी इन सब में रहती हैं|
तुलसी छाती के लिए अच्छी है - जो की भगवान विष्णु का निवास है| छाती सुरक्षा और संरक्षण के लिए है, और यही वजह है कि वे कहते हैं कि भगवान विष्णु और तुलसी शादीशुदा हैं| मतलब इन दोनों का एक बहुत ही घनिष्ठ संबंध है| यदि आपको खाँसी है, आपको तुलसी का काढ़ा पीना चाहिए|
बेल के पत्ते उसी तरह मन और तंत्रिका तंत्र के लिए बहुत अच्छे हैं, इन से शांत प्रभाव पड़ता है| इसके अलावा, यदि आपको पेट परेशानी है, तो बेल के पत्तों का इस्तेमाल करे|
तो हमारे लिये जो कुछ भी पवित्र है, उसे शरीर के विभिन्न भागों के लिए उपयोगी पाया गया है|
प्रश्न: गुरुजी, क्या किसी की सुंदरता देखना ठीक है? क्या किसी की सुंदरता देखना वासना है?
श्री श्री रविशंकर: आप दुनिया में सुंदर चीजों को देखे और प्रत्येक खूबसूरत चीज आप को देवत्व की याद दिलाती है| फिर सौंदर्य अपने आप में एक प्रार्थना हो जाता है| यह सौन्दर्य लहरी है|
आदि शंकराचार्य ने सुंदर श्लोक (संस्कृत छंद) सौन्दर्य लहरी लिखे थे| वह कहते हैं कि वह कुछ देखता है, उन्हे वह परमात्मा की याद दिलाता है| सौंदर्य की लहरे, यह सब उन्हे देवत्व की याद दिलाता है|
यदि आप कुछ सौंदर्य देखते हैं और आप उस पर अधिकार चाहते हैं, तो यह वासना है|
प्रश्न: गुरुजी, आप आज के युवाओं को क्या संदेश देना चाहते हैं?
श्री श्री रविशंकर: यह देश आपका है| जागे! अब इस का ध्यान रखना शुरू कर दीजिये|
प्रश्न: गुरुजी, एक प्रबंधक की क्या प्राथमिकता होनी चाहिये? लिए क्या पूर्वता लेना चाहिए, अधीनस्थ कर्मचारिओं की अच्छी देखरेख या उन से काम निकलवाना चाहे उनकी मनोदशा कैसी भी हो ? श्री श्री रविशंकर: काम खत्म करवाना!
मन की दशा बदलती रहती है| यह तराजू पर मेंढक का वजन लेने का प्रयास करने जैसा है| आप उसके वजन को कभी पता नहीं कर सकते है क्योंकि यह कूदता रहता है|
आपको अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए अच्छाई और दिव्यता पर जो कि हमारे चारों ओर प्रत्येक व्यक्ति में मौजूद है| आपको सोचना चाहिए कि, 'मैं अन्य लोगों में देवत्व समृद्ध करने के लिए कैसे मदद कर सकता हूँ ?'
अन्यथा हमारी एक नकारात्मक मानसिकता हो जाती है कि यह दुनिया बदमाश और बुरे लोगों से परिपूर्ण हैं | इसके बजाय यह सोचिये कि दुनिया मासूम और प्यारे लोगों से परिपूर्ण हैं|
यहाँ बहुत कम बुरे लोग और कई मासूम लोग हैं| सभी में अच्छा देखे और जब भी आप कर सकते हैं उन की मदद करने की कोशिश करे|
प्रश्न: (दर्शकों के एक सदस्य ने एक सवाल पूछा लेकिन यह अश्राव्य था)
श्री श्री रविशंकर: दृष्टा आत्मा है और जो आत्मा से परे है,म वह परमात्मा है| जैसे सागर में लहर की तरह|
जब लहर शान्त है, यह सागर में है| इसी तरह जब सीमित मन शान्त है,तो वह परमात्मा के साथ है|
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प्रश्न: गुरुजी, सांसारिक अस्तित्व एक सपना है| फिर इस सपने में ध्यान, साधना और सत्संग कैसे इस सपने से जागृत करेगे?
श्री श्री रविशंकर: आप सो रहे हैं और आपके सपने में सांप आता है और आपको काटता है और आप चिल्ला कर जाग जाते हैं!
तो, एक सपने में भी कुछ चीजें है जो कि आपको सपने से जागने का कारण बन सकती हैं|
यही कारण है कि यह कहा गया है, 'नेकी कर और कुए में डाल - अच्छे कर्म करो और उनके बारे में भूल जाओ जैसे कि वे भी सपने का एक हिस्सा हैं| जब आप उन कामों को भूलकर ध्यान करेगे, तो आप जाग जाएगें|
निश्रेय और अभ्युदय: साधना के दो पहलू हैं|
एक जागृति और दूसरा सुविधा है|
साधना वह विश्राम है जो कि हर एक चाहता है और इससे मुक्ति उपलब्ध हो जाती है| आप सपने से जाग जाते हैं और इससे बाहर आ जाते हैं| इसलिए साधना के दो पहलू: विश्राम और मुक्ति|
प्रश्न: गुरुजी, कृपया हमें ’पुरुषार्थ’ के बारे में बताये| क्या सिर्फ हमारे प्रयास, साधना, सेवा और सत्संग है जो कि हम कर रहे है या यह कुछ और है?
श्री श्री रविशंकर: धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष: पुरुषार्थ का मतलब है यह चार चीजें प्राप्त करना| धर्म कर्तव्य करना है, काम इच्छाओं को पूरा करना है, अर्थ धन बनाना है, और मोक्ष इन सब से मुक्ति प्राप्त करना है| सभी चारो आवश्यक हैं| यह ’पुरुषार्थ’ है|
श्री श्री रविशंकर: आप सो रहे हैं और आपके सपने में सांप आता है और आपको काटता है और आप चिल्ला कर जाग जाते हैं!
तो, एक सपने में भी कुछ चीजें है जो कि आपको सपने से जागने का कारण बन सकती हैं|
यही कारण है कि यह कहा गया है, 'नेकी कर और कुए में डाल - अच्छे कर्म करो और उनके बारे में भूल जाओ जैसे कि वे भी सपने का एक हिस्सा हैं| जब आप उन कामों को भूलकर ध्यान करेगे, तो आप जाग जाएगें|
निश्रेय और अभ्युदय: साधना के दो पहलू हैं|
एक जागृति और दूसरा सुविधा है|
साधना वह विश्राम है जो कि हर एक चाहता है और इससे मुक्ति उपलब्ध हो जाती है| आप सपने से जाग जाते हैं और इससे बाहर आ जाते हैं| इसलिए साधना के दो पहलू: विश्राम और मुक्ति|
प्रश्न: गुरुजी, कृपया हमें ’पुरुषार्थ’ के बारे में बताये| क्या सिर्फ हमारे प्रयास, साधना, सेवा और सत्संग है जो कि हम कर रहे है या यह कुछ और है?
श्री श्री रविशंकर: धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष: पुरुषार्थ का मतलब है यह चार चीजें प्राप्त करना| धर्म कर्तव्य करना है, काम इच्छाओं को पूरा करना है, अर्थ धन बनाना है, और मोक्ष इन सब से मुक्ति प्राप्त करना है| सभी चारो आवश्यक हैं| यह ’पुरुषार्थ’ है|
प्रश्न: गुरुजी, यह कहा जाता है कि बुद्धि, स्मृति, और अहंकार स्वेच्छ्या से बदल रहे हैं| सब कुछ सहज परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है और हम इस चित्र में कहीं नहीं हैं| तो कौन है जो मुक्त हो जाता है, और कौन है जो बाध्य है?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ, यह सब बदल रहे हैं, लेकिन कौन है जो साकार है कि यह सब बदल रहे हैं? यह आत्मा है, जो गवाह है|
जब कोई इन पहलुओं के साथ देखता है वे बाध्य हो जाते हैं| लेकिन एक बार आपको एहसास हो जाये कि मेरे चारों ओर सब कुछ बदलता रहता है, लेकिन मैं नहीं बदल रहा हूँ - 'मैं यह नहीं हूँ, मैं इस का गवाह हूँ' - तो मुक्ति हासिल हो जाती है|
प्रश्न: गुरुजी, कृपया चंद्र ग्रहण के महत्व और ग्रहण में लगाए जाने वाले प्रतिबंध पर टिप्पणी किजिए| आमतौर पर यह सुझाव दिया जाता है कि चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए, और ग्रहण से कुछ घंटों पहले कुछ नहीं खाना चाहिए क्योकि यह अपच का कारण हो सकता है| कृपया इस पर कुछ प्रकाश डाले|
श्री श्री रविशंकर: हाँ, आप चंद्र ग्रहण देख सकते हैं, कोई समस्या नहीं है! यह एक खगोलीय घटना है| केवल सूर्यग्रहण आपको नग्न आँखों से नहीं देखना चाहिए| आपको चश्मा पहनना चाहिए क्योंकि किरणे हानिकारक हैं| हमारे प्राचीन लोगों ने कहा कि ग्रहण के समय पर नहीं खाना चाहिए वह इसलिए कि ग्रहण से पहले भोजन अच्छी तरह से पचा हो और आप ध्यान कर सकते हैं| ग्रहण के समय जब आप जप, ध्यान, या प्रार्थना करते हैं, इसका एक सौ गुना अधिक प्रभाव पड़ता है - यह कहा जाता है|
सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी एक पंक्ति में होते हैं और इसलिए ब्रह्मांडीय किरणे ऐसे प्रवाहित हो रही होती हैं कि उस समय जो भी साधना करते है,उसका प्रभाव कई गुणा अधिक होता है| तो ग्रहण के दौरान आप ध्यान, मंत्र 'ओम नमः शिवाय' या 'ओम नमो नारायण' का जाप करे|
यदि अब आप मंत्र 108 बार करते हैं, इसका मतलब है कि आपने इसे दस हजार बार किया है|
यह साधक के लिए एक बहुत शुभ समय है, यह एक बुरा समय नहीं है| यह आनंद के लिए एक बुरा समय है|
प्रश्न: गुरुजी, कैसे और क्यों तुलसी (पवित्र तुलसी) पृथ्वी पर अस्तित्व में आई, और यह भगवान श्री कृष्ण को प्रिय क्यों है?
श्री श्री रविशंकर: क्योंकि हमको इस पृथ्वी पर आना था, पौधे पहले अस्तित्व में आये जिससे कि हम यहा आ सके|
हमारे देश में जो कुछ भी जीवन के लिए फायदेमंद है और जो प्राण शक्ति बढ़ाता है उसे पवित्र माना गया है| नींबू और तुलसी को बहुत ही पवित्र माना गया है| नीम के पेड़ को भी बहुत पवित्र माना जाता है| किसी भी संक्रमण से छुटकारा पाने के लिए नीम और नींबू बहुत मूल्यवान हैं| ऐसा माना जाता है कि देवी इन सब में रहती हैं|
तुलसी छाती के लिए अच्छी है - जो की भगवान विष्णु का निवास है| छाती सुरक्षा और संरक्षण के लिए है, और यही वजह है कि वे कहते हैं कि भगवान विष्णु और तुलसी शादीशुदा हैं| मतलब इन दोनों का एक बहुत ही घनिष्ठ संबंध है| यदि आपको खाँसी है, आपको तुलसी का काढ़ा पीना चाहिए|
बेल के पत्ते उसी तरह मन और तंत्रिका तंत्र के लिए बहुत अच्छे हैं, इन से शांत प्रभाव पड़ता है| इसके अलावा, यदि आपको पेट परेशानी है, तो बेल के पत्तों का इस्तेमाल करे|
तो हमारे लिये जो कुछ भी पवित्र है, उसे शरीर के विभिन्न भागों के लिए उपयोगी पाया गया है|
प्रश्न: गुरुजी, क्या किसी की सुंदरता देखना ठीक है? क्या किसी की सुंदरता देखना वासना है?
श्री श्री रविशंकर: आप दुनिया में सुंदर चीजों को देखे और प्रत्येक खूबसूरत चीज आप को देवत्व की याद दिलाती है| फिर सौंदर्य अपने आप में एक प्रार्थना हो जाता है| यह सौन्दर्य लहरी है|
आदि शंकराचार्य ने सुंदर श्लोक (संस्कृत छंद) सौन्दर्य लहरी लिखे थे| वह कहते हैं कि वह कुछ देखता है, उन्हे वह परमात्मा की याद दिलाता है| सौंदर्य की लहरे, यह सब उन्हे देवत्व की याद दिलाता है|
यदि आप कुछ सौंदर्य देखते हैं और आप उस पर अधिकार चाहते हैं, तो यह वासना है|
प्रश्न: गुरुजी, आप आज के युवाओं को क्या संदेश देना चाहते हैं?
श्री श्री रविशंकर: यह देश आपका है| जागे! अब इस का ध्यान रखना शुरू कर दीजिये|
प्रश्न: गुरुजी, एक प्रबंधक की क्या प्राथमिकता होनी चाहिये? लिए क्या पूर्वता लेना चाहिए, अधीनस्थ कर्मचारिओं की अच्छी देखरेख या उन से काम निकलवाना चाहे उनकी मनोदशा कैसी भी हो ? श्री श्री रविशंकर: काम खत्म करवाना!
मन की दशा बदलती रहती है| यह तराजू पर मेंढक का वजन लेने का प्रयास करने जैसा है| आप उसके वजन को कभी पता नहीं कर सकते है क्योंकि यह कूदता रहता है|
प्रश्न: आत्म बोध का अर्थ क्या है? आत्म बोध के बाद, क्या पुनर्जन्म नहीं है?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, यह बिल्कुल सच है और आप सही जगह पर आ गए|
अक्सर लोग गलत जगह पर होते हैं| वे चाय या कॉफी का एक कप चाहते हैं और वे एक कपड़े की दुकान में पाया जाते हैं| लेकिन आप सही जगह पर हैं, बस थोडा सा धिरज रखे|
प्रश्न: यदि एक व्यक्ति रोजमर्रा के जीवन में अपने सभी कर्तव्यों को पूरा करता है, लेकिन उसमे अभी भी मानवता, करुणा, और सत्य का अभाव है, तो इस तरह के जीवन का कितना मूल्य है?
श्री श्री रविशंकर: शून्य, इसका कोई मूल्य नहीं है| इन मूल्यों के बिना कोई भी कार्य नहीं कर सकता है|
हमारे देश में हमें, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के बारे में सिखाया गया है| ये जीवन की मूल बातें हैं, जीवन का क, ख, ग, घ हैं|
यह बेहतर है किसी और की प्रगति पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अपनी खुद की प्रगति पर ध्यान केंद्रित करे| यदि कोई कुछ गलत कर रहा है, जैसे भी हो सके आप उनकी मदद करे और उनकी सेवा करे| एक दूसरे को दोषी ठहराने का कोई अंत नहीं है| अन्यथा आप भगवान कृष्ण, भगवान राम, बुद्ध और उन सभी को दोष देना शुरू कर देंगे| यदि आप लोगों में दोष देखेंगे तो आपको आसपास सब में दोष दिखेगा|
श्री श्री रविशंकर: हाँ, यह बिल्कुल सच है और आप सही जगह पर आ गए|
अक्सर लोग गलत जगह पर होते हैं| वे चाय या कॉफी का एक कप चाहते हैं और वे एक कपड़े की दुकान में पाया जाते हैं| लेकिन आप सही जगह पर हैं, बस थोडा सा धिरज रखे|
प्रश्न: यदि एक व्यक्ति रोजमर्रा के जीवन में अपने सभी कर्तव्यों को पूरा करता है, लेकिन उसमे अभी भी मानवता, करुणा, और सत्य का अभाव है, तो इस तरह के जीवन का कितना मूल्य है?
श्री श्री रविशंकर: शून्य, इसका कोई मूल्य नहीं है| इन मूल्यों के बिना कोई भी कार्य नहीं कर सकता है|
हमारे देश में हमें, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के बारे में सिखाया गया है| ये जीवन की मूल बातें हैं, जीवन का क, ख, ग, घ हैं|
यह बेहतर है किसी और की प्रगति पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अपनी खुद की प्रगति पर ध्यान केंद्रित करे| यदि कोई कुछ गलत कर रहा है, जैसे भी हो सके आप उनकी मदद करे और उनकी सेवा करे| एक दूसरे को दोषी ठहराने का कोई अंत नहीं है| अन्यथा आप भगवान कृष्ण, भगवान राम, बुद्ध और उन सभी को दोष देना शुरू कर देंगे| यदि आप लोगों में दोष देखेंगे तो आपको आसपास सब में दोष दिखेगा|
आपको अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए अच्छाई और दिव्यता पर जो कि हमारे चारों ओर प्रत्येक व्यक्ति में मौजूद है| आपको सोचना चाहिए कि, 'मैं अन्य लोगों में देवत्व समृद्ध करने के लिए कैसे मदद कर सकता हूँ ?'
अन्यथा हमारी एक नकारात्मक मानसिकता हो जाती है कि यह दुनिया बदमाश और बुरे लोगों से परिपूर्ण हैं | इसके बजाय यह सोचिये कि दुनिया मासूम और प्यारे लोगों से परिपूर्ण हैं|
यहाँ बहुत कम बुरे लोग और कई मासूम लोग हैं| सभी में अच्छा देखे और जब भी आप कर सकते हैं उन की मदद करने की कोशिश करे|
प्रश्न: (दर्शकों के एक सदस्य ने एक सवाल पूछा लेकिन यह अश्राव्य था)
श्री श्री रविशंकर: दृष्टा आत्मा है और जो आत्मा से परे है,म वह परमात्मा है| जैसे सागर में लहर की तरह|
जब लहर शान्त है, यह सागर में है| इसी तरह जब सीमित मन शान्त है,तो वह परमात्मा के साथ है|
प्रश्न: हम सीधे आपसे आपकी कुटिर में क्यों नहीं मिल सकते हैं? ये बेडिया जो कि आपकी कुटीर के द्वार के आसपास हैं हमें और अधिक बेचैन करती हैं?
श्री श्री रविशंकर: मेरे घर के लिए सड़क ऐसी है, थोडी सी कुटिल है, क्योंकि हर किसी का दिमाग थोडा सा कुटिल हैं| चिंता मत करो, भले ही सड़क थोडी सी कुटिल है लेकिन आप सीधे अपने गंतव्य तक पहुंच जाएंगे|
श्री श्री रविशंकर: मेरे घर के लिए सड़क ऐसी है, थोडी सी कुटिल है, क्योंकि हर किसी का दिमाग थोडा सा कुटिल हैं| चिंता मत करो, भले ही सड़क थोडी सी कुटिल है लेकिन आप सीधे अपने गंतव्य तक पहुंच जाएंगे|
© The Art of Living Foundation