अवलोकन बुद्धि लाता है, और अवलोकन के लिए संवेदनशीलता होनी चाहिए!!!

बैंगलुरू आश्रम


प्रश्नः  आसक्ती माने रुची, रुझाया झुकाव और निरासक्ती माने अरुची, या झुकाव का अभाव। किसी कार्य मे रुची रुझान या झुकाव ना होते हुऐ भी वह कैसे कर सकते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : अब मैं आप से एक सवाल पूछता हूँ। आप सुबह नहाते है, क्या आप नहाने मे खूब रुची लेते हैं? या जब दांत साफ करते हैं तो बडी रुची से करते हैं? नहीं, क्योंकि ये काम आपको करने ही हैं, इसलिए आप यह काम बिना किसी प्रयास के बड़ी सहजता से करते हैं। जो भी काम आप निसर्गतः करते हो उसमें सहजता होती है।
जब आप को निसर्गतः अंदर से हंसी आती है तो उसमे सहजता होती है लेकिन जब आप को जबरदस्ती हँसने के लिये कहा जाता है तो वह बड़ा मुश्किल होता है। वह काम जिसमें प्रयास है वह आसक्ती है और वह काम जो आप सहजता निसर्गतः से करते है  और उसमे आप को एक मानसिक शांति मिलती है वह  निरासक्ती है| उदाहरण के तौर पर यदि आप यहाँ की महिलाओं को खाना बनाने के लिये कहेंगे तो वे खाना बड़ी सहजता से बनायेंगी। यदि यही काम किसी आदमी को दिया जाये तो वह  पाक कला की किताब के पन्ने पलटता रहेगा और स्वाद ठीक है या नहीं यह  देखता रहेगा।
तो जहाँ प्रयत्न करना पडता है वहाँ आसक्ती है और उससे उद्वेग पैदा होता है। उद्वेग से मैसुर जाना आसक्ती है, सहजता से गाडी चलाते जाना निरासक्ती है। निरासक्ती का अर्थ अरुची या उदासीनता नहीं है।

प्रश्नः संजय भगवान श्रीकृष्ण से अर्जुन से भी पहले मिले थे तो कृपया आप हमें संजय और उनकी दिव्य दृष्टि के बारे में बताएं।
श्री श्री रविशंकर: आप ने कभी यह  महसूस किया होगा कि आपकी अंतरात्मा आपको कहती है कि यह  करना चाहिये या ऐसा होने वाला है। जब आपकी अंदर से आने वाली आवाज महसूस करने की क्षमता बढ़ जाती है तो एक वक्त ऐसा आता है कि आप के अंतरचक्षु इतने संवेदनशील हो जाते हैं कि भविष्य में होने वाली घटनाएँ भी आपको महसूस होती हैं। पहले पहले यह  एक झलक की तरह आयेगी|
हर किसी के पास यह गुण होता है। हर किसी को कभी ना कभी बिना पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ या बुद्धी के प्रयोग से क्या होने वाला है, इसकी झलकी देखी होती है।
यह छठी इंद्री शक्ती है। संजय को इस शक्ती का वरदान था। उन्होने लंबी कालावधी तक ध्यान किया और ध्यान की अवस्था मे दिव्य दृष्टि से युद्ध भूमि पर जो हो रहा है, उसका वर्णन धृतराष्ट्र को किया।
आज कल आप अमेरिका में कई ऐसे मनःशक्ती के प्रयोग करने वाले लोगों से मिलेंगे लेकिन उनका वर्णन सटीक नही होता है। अंशतः होता है क्योंकि वे  पूरी तरह से उस परिस्तिथि से जुड़ते नहीं हैं और उनका अपना मन बीच में आ जाता है। इस अंतःशक्ति को जगाने के लिये आप को पूर्णतः खाली और खोखला होना पड़ेगा। हर तरह के  आकर्षण और आसक्ती से मुक्त रहना होगा|

प्रश्नः शिवलिंग का मतलब क्या है ?
श्री श्री रविशंकर: आप एक शिशु को  लिंग या एक चिन्ह से जानते है। उसके जननांगो से उसके लिंग की पहचान होती है इसलिए जननांगों को लिंग कहा जाता है। लिंग वह चिन्ह  है जो विश्व और विश्वकर्ता को एकत्रित दर्शाता है। यह  विश्व शिव और शक्ति दो तत्वों से बना है। व्यक्त और अव्यक्त दोनों को शिवलिंग मे एकत्रित दर्शाया गया है। शिवलिंग सिर्फ़ शिव को नहीं दर्शाता बल्कि पूर्ण ब्रह्मा को दर्शाता है।

प्रश्नः लालसा और तड़प में क्या फर्क है? मै कैसे जान लूं कि मुझे लालसा है या मैं तड़प रहा हूँ?
श्री श्री रविशंकर: लालसा कुछ समय के लिये छोटी तुच्छ चीजों के लिये होती है। लेकिन तड़प बड़ी और पक्की होती है। जैसे कि आपको चीनी या सफलता या संभोग की लालसा हो सकती है लेकिन तड़प प्रेम के साथ संबधित है। जब तड़प उठती है तो आपके दिल में कुछ होता है।

प्रश्नः अंधश्रद्धा का अर्थ और प्रयोजन क्या है इसे हमने अपने जीवन  में कितना महत्व देना चाहिये।
श्री श्री रविशंकर: जैसे ही आप अंधश्रद्धा कहते है तो सब वहीं पर रुक जाता है। आगे और विश्लेषण की जरुरत नहीं है। आप कूड़ेदान का विश्लेषण नहीं करते। जो भी हम कचरा समझते हैं उसे कूड़ेदान में फेंकते हैं। और क्या।

प्रश्नः गुरुजी जब मुझे कोई शक हो या दुविधा हो और उसका निराकरण करने के लिये आसपास कोई नहीं हो तो मै क्या करुँ।
श्री श्री रविशंकर: चीन में एक कहावत है कि जब आप दुविधा में हो तो तकिया लेके सो जाये । सब अपने आप ठीक हो जायेगा। दुविधा प्राण शक्ति की कमी से होती है। अपनी  प्राण शक्ती बढाये , भस्रिका करें, अपनें आहार और व्यायाम के तरफ ध्यान दें। व्यायाम से प्राण शक्ती का संचालन होता है और उससे दुविधा दूर होती है।

प्रश्नः भगवान और अंतर्ज्ञानी, ब्रम्हज्ञानी और  गुरु में क्या फर्क है ?
श्री श्री रविशंकर: यदि आप कहते हैं कि ईश्वर प्रेम है तो आप सब प्रेम से ही बने हैं। यदि ईश्वर कला है तो आप सब में कला है कम से कम नकल तो कर ही सकते हैं। तो ईश्वर सच्चिदानंद हैं, जो सत्य, अस्तित्व और चेतना है। जब आत्मा होती है वहाँ परमात्मा होता है। आत्मा नही हैं तो परमात्मा भी नही हैं। ईश्वर वह  चैतन्य शक्ति है जो हर जगह मौजूद है| ईश्वर आकाश(अवकाश) है और आप आकाश(अवकाश) का हिस्सा हैं।
प्राचीन उपनिषदों में एक कथा है। एक बालक अपने पिता से पूछता है भगवान कहाँ हैं। पिता बालक को घर से बाहर ले जाकर पूछता है कि इस घर के बनने से पहले यहाँ क्या था, बालक कहता है कि कुछ नहीं खाली जगह, पिता पूछता है तो घर आज कहाँ खड़ा  है। बालक कहता है खाली जगह में। कल अगर घर नही रहता तो क्या रह जायेगा, बालक कहता है खाली जगह। पिता कहता है, बस वही ईश्वर है।
आकाश(अवकाश) ही ईश्वर है। वह जिसमें आज सब कुछ है, जिससे सबकुछ आया है और भविष्य में जिसमें सब कुछ विलीन हो जायेगा वही दिव्य ईश्वर है। वही सबकी मौजूदगी का केंद्र है। ईश्वर सबमें है लेकिन उसका एहसास जब आप अपने केंद्र में स्थिर हो जाता  होता है, या जब आपको अंतर्ज्ञान हो जाये। आकाश सारी जगह है लेकिन जैसे खिडकी से ही बाहर का आकाश (अवकाश) दिखता है दीवार से नहीं, जबकि दीवार के बाहर भी वहीँ आकाश है|

प्रश्न: गुरूजी, आज दत्त जयन्ती है| कृप्या हमें भगवान दत्तात्रेय के बारे में कुछ बताइये |
श्री श्री रविशंकर: आज हनुमान जयंती भी है और आज पिताजी का भी जन्मदिन है| यह पहला वर्ष है कि उनकी काया हमारे बीच नहीं है, पर उनकी आत्मा यहाँ है| जन्मदिन होते हैं उत्सव मनाने के लिए और उनके श्रेष्ठ गुणों को याद करने के लिए|
दत्तात्रेय ने सारी सृष्टि से ज्ञान प्राप्त किया था| अत्री ऋषि की कोई संतान नहीं थी, इस लिए उन्होंने दत्त को गोद लिया था| दत्त का अर्थ है जो दिया, लिया या अपनाया गया हो| इसी लिए, जब कोई बच्चा गोद लेता है, तो उसे ''दत्त स्वीकार'' कहते हैं|
अत्री और अनसूया ने एक बालक को अपनाया जिसका नाम था दत्तात्रेय था जिसके पास ब्रह्म शक्ति, विष्णु शक्ति और शिव शक्ति थी|
बहुत से लोगों में रचना करने का कौशल होता है, पर उस रचनात्मकता को कायम नहीं रख पाते| ऐसे भी लोग हैं जो काम शुरू करने में बहुत अच्छे हैं, पर उसे जारी रखने में नहीं| यह कौशल ब्रह्म शक्ति है| अगर आपके पास ब्रह्म शक्ति हैं, तो आप चीज़ों की रचना कर सकते हैं पर उसे कायम रखना नहीं जानते|
विष्णु शक्ति का अर्थ है अनुरक्षा करना, कायम रखना| बहुत से लोग कुशल प्रबंधक होते हैं| वे स्वयं रचना नहीं कर सकते पर यदि  उन्हें कुछ बना कर दे दिया जाए तो वे बहुत अच्छे प्रकार से उसकी व्यवस्था को देख सकते हैं| तो, विष्णु शक्ति भी आवश्यक है जो आप ने बनाया है, उसको संभालने की, जारी रखने की शक्ति होना|
और फिर है शिव शक्ति, परिवर्तन और नवीनता लाने की शक्ति| बहुत लोग काम की व्यवस्था अच्छे से देख सकते हैं परन्तु जब कुछ नयापन लाना हो, तो वे नहीं जानते कि परिवर्तन कैसे लायें, उस कार्य को अगले स्तर तक कैसे ले जाएँ| इस लिए, शिव शक्ति भी बहुत आवश्यक है|
जब आपके पास तीनो शक्तियां हों तो वो कहलाती है गुरु शक्ति! एक गुरु या मार्गदर्शक को तीनों शक्तियों का ज्ञान होना चाहिए|
दत्तात्रेय के पास तीनों शक्तियां थीं, अर्थात, वे गुरु शक्ति का प्रतीक हैं| मार्गदर्शन, रचना, व्यवस्था, और परिवर्तन, सब शक्तियां एक साथ|
दत्तात्रेय ने हर चीज़ से सीखा| उन्होंने पूरी सृष्टि का अनुसरण किया और हर चीज़ से कुछ न कुछ सीखा| श्रीमद भागवद में कहा गया है, ''ये बहुत दिलचस्प है कि कैसे उन्होंने एक हंस को देखा और उस से कुछ सीखा, कुछ कौए से सीखा, पेड़ों से, और कुछ एक बूढ़ी औरत से|'' उनके लिए ज्ञान हर दिशा से बह रहा था| वो अपने दिमाग और दिल से बहुत खुले थे, ज्ञान पाने और उसे जीवन में एक साथ लाने के लिए, लागू करने के लिए|
अवलोकन बुद्धि लाता है, और अवलोकन के लिए संवेदनशीलता होनी चाहिए| यदि आप अपनी ही दुनिया में मग्न हैं तो आपके अपने आस पास के लोगों से आते हुए संकेतों के प्रति संवेदनहीन हो जाते है|  जब लोग अपने कार्यों में उलझ जाते हैं तो वे दूसरों का दृष्टिकोण देखते ही नहीं| और ऐसे लोगों को लगता है उनका प्रत्यक्ष ज्ञान ही सही है, जबकि आप जानते हैं कि वह  सही नहीं है|
मुल्लाह नसरुद्दीन की एक कहानी है| मुल्लाह नसरुद्दीन को लगा कि वे  मर गए हैं, और उन्हें इस बात का आश्वासन हो गया था| यदि उनकी पत्नी उनसे कुछ कहतीं, तो वे  कहते, कोई मृत व्यक्ति कैसे उत्तर दे सकता है? यदि  वह उनसे कुछ काम करने को कहतीं, तो वे  कहते, कोई मृत व्यक्ति कैसे कोई काम कर सकता है? 
अंत में उनकी पत्नी तंग आकर मुल्लाह को एक मनोवैज्ञानिक के पास ले गयीं| बहुत तर्क वितर्क के बाद मनोवैज्ञानिक ने मुल्लाह से पूछा, मुल्लाह, अब बताइये, क्या एक मुर्दा शरीर में खून होगा? मुल्लाह बोले, नहीं. खून तो पानी बन जाता है|
अब मनोवैज्ञानिक के चेहरे पर चमक आ गयी और उसने एक सुई मुल्लाह के हाथ में चुभा दी, जिससे खून निकलने लगा| देखिये मुल्लाह, आपके हाथ से खून निकल रहा है! आप जीवित हैं !, उसने  बोला|
मुल्लाह ने बहते हुए खून को देखा और बोले, तुम समझते हो मुझे अपने तर्क से मूर्ख बना लोगे| आज मैंने जाना कि मृत लोगों के शरीर में भी खून बहता है!

लोगों के साथ भी ठीक ऐसा ही होता है| उन्हें अपनी धारणाओं पर पूर्ण विश्वास होता है| वे  अपनी छोटी सी दुनिया में रहते हैं और सोचते हैं बस यही संपूर्ण दुनिया है| आपको  उस दुनिया से आगे देखना है|
 
प्रश्न: स्वार्थ और निस्वार्थ के सही संतुलन का निर्णय कैसे करें?
श्री श्री रविशंकर: यह आप पर निर्भर करता है| आप को देखना है कि क्या आवश्यकता है| जो कमीज़ आपने पहनी है उसे आप उतार कर दान नहीं कर सकते| पर, यदि आप दो इडलियां खा रहे हैं और आपके साथ बैठा व्यक्ति भूखा है तो आप उसके साथ एक इडली बाँट सकते हैं| है कि नहीं? क्योंकि यह आपकी प्राकृतिक बनावट में है|
जब आपकी सोच विस्तृत, और ध्यान गहन हो जाता है, तो अपने आप बांटने की क्षमता बढ़ जाती है| मान ले  आपकी जेब में ५०० रुपये हैं और कोई ज़रूरतमंद है, तो क्या आप उसके साथ ये पैसे बांटोगे नहीं ? आप बांटोगे, क्योंकि आप जानते है  कि आपके पास और पैसा है, या उसे कमाने की क्षमता | पर यदि आपको वो पैसे अपनी बस की टिकट के लिए चाहिए, तो पहले आप उसका ख्याल रखेंगे  और यह कोई अनुचित बात नहीं है| इसे "अपद धर्म" कहते हैं|
उड़ान के समय कहते हैं, पहले ऑक्सीजन मास्क स्वयं पहने फिर अपने साथ बैठे बच्चे को पहनाएं| यह इसलिए कि यदि आप नहीं होगे तो बच्चा आपको मास्क नहीं पहना सकता|एक सन्यासी या जो हर इच्छा से मुक्त हो, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता| परन्तु  यदि  आप पर एक परिवार की ज़िम्मेदारी है तो आपको "अपद धर्म" का पालन करना होगा|

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