गायंत्री मंत्र


१५ दिसम्बर २०११, बैंगलुरू आश्रम 

प्रश्नः गुरुजी पुराने जमाने में किसी को गायत्री मंत्र मिलना एक बहुत बड़ी बात होती थी लेकिन आज कल यह सभी जगह पर गाया और बजाया जाता हैं।
श्री श्री रवीशंकर: जब आप कोई भी मंत्र को दीक्षा में लेते है, जैसे आप सहज समाधी का मंत्र लेते है तो आप उसे गुप्त रखते है। जब नमः शिवाय मंत्र सत्संग मे गाने की तरह गाया जाता है तो उसके महत्व अलग है। जब वह दीक्षा में मंत्र की तरह दिया जाता है तो उसके साथ एक पवित्रता होती है इसिलिये उसे आप गुप्त रखते है। आज कल मंत्रों के प्रति यहीं रुख रहता है।
अनादि काल से भारतवर्ष मे पवित्रता और गुप्तता एक साथ चले आ रहे हैं। जो भी गुप्त रखा जाता है उसे पवित्र मानते है| यह पश्चिमी सभ्यता के बिल्कुल विपरीत है। पश्चिम में जो भी शर्मनाक है उसे छुपाते हैं। जबकि भारत में आप अपनी कमजोरियों को नही छुपाते। जिस किसी बात से आप को खेद होता है आप उसे अपने माता, पिता,गुरु या मित्र के साथ बाँटते हैं। असत्य को कभी गुप्त नहीं रखा जाता बल्कि उसे बताया जाता है।
इसलिये जो भी गुप्त हैं, उसे पवित्र माना गया है, और गुप्तता का सम्मान करना एक बडा सदाचार माना गया है।
पश्चिम में पवित्र चीजों को कभी गुप्त नही रखा गया। जीवन में जो भी शर्मसार है, उसे गुप्त रखा गया। यदि आप कोई चीज गुप्त रख रहें है तो आप कुछ छुपा रहें है और आप सत्य से परे है। लेकिन भारत में जब आप कुछ गुप्त रखते है तो आप सत्य के साथ है। यह दोनों गुप्तता के प्रति बिल्कुल विपरीत रुख हैं।
पश्चिम में गुप्तता धोखेबाजी, विश्वासघात, असत्य, चालाकी और बेईमानी से जुडी हैं।
भारत मे जो भी गुप्त है, वह श्रद्धा योग्य, पवित्र, व्यक्तिगत, आंतरिक और उत्थान करने वाला हैं, प्रेममय और अनंत दिव्यता के साथ जोडने वाला हैं। यह विशेषताऐं गुप्तता के साथ जुड़ी हुई हैं। इसिलिये मंत्रों को गुप्त रखने के लिये कहा जाता हैं।

जब गायत्री मंत्र कि दीक्षा दी जाती हैं तो पिता पुत्र और गुरु के सिर को एक वस्त्र से ढकते है और गुप्तता के साथ पुत्र के दाहिने कान में मंत्रोचारण किया जाता हैं। और मंत्र का अर्थ हैं मेरे मन तथा बुद्धि में दैवत्व का उदय होये। इस तरह बडी गुप्तता के साथ मंत्र की दीक्षा दी जाती है। प्राचीन काल में गायत्री मंत्र की दीक्षा सबको न देने का यह कारण था कि क्योंकि यह अत्यंत शक्तिशाली मंत्र है| लोग सोचते थे कि यह इतना शक्तिशाली मंत्र है जिससे प्रत्येक व्यक्ति शक्तिशाली हो जायेगा और वर्तमान राजसत्ता कमजोर हो सकती है।

 पुरुष प्रधान संस्कृति के कारण इसकी दीक्षा महिलाओं को भी नही दी जाती थी। पुरुषों को इस बात का भय था कि यदि महिलायें इसका जाप करेंगी तो उनका ज्ञानोदय हो जायेगा और वे पूर्णता को शीघ्रता हासिल कर लेंगी|
उन्होंने सोचा कि यदि घर मैं समस्या है; और उन्होंने मुझे कोसा तो मैं सब कुछ खो दूंगा।
 यह गलत है परन्तु शुरूआत मै ऐसा नही था।
भय के कारण पुरुषों ने महिलाओं से मंत्रोच्चारण के तकनीक को तंत्र को छिन लिया। लेकिन आज महिलाऐं जागृत और सजग हैं।
मंत्रोच्चारण कोई भी कर सकता है। कुछ हजार साल पूर्व भारत ने में पुरुषों ने यह संस्कृति की शुरूआत करी परन्तु भारत में एसी परम्परा नहीं थी परन्तु आज महिलायें जागृत और सजग है मंत्रोच्चारण कोई भी कर सकता है। हजारों साल पूर्व यह परम्परा की शुरूआत हुई| पहले पुरुष और महिलाओं के अधिकार समान थे।
काल के ओघ में पंडित, राजा और मंत्रीयों ने मिल के साठगांठ की और तय किया कि सिर्फ़ पुरुष मंत्रजाप करेंगे। लेकिन यह अभी भूतकाल विषय हैं।
तो जब आपको सहज समाधी का मंत्र दिया जाता है तो उसे गुप्त रखे बाकि मंत्रों का जाप आप उँची आवाज में कर सकते हैं। उँची आवाज में प्रकट रुप से मंत्र जाप करने में कोई दोष नही हैं।


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