जो गहन अंतर्ज्ञान के साथ कार्यशील है, वह योगी है


०६.१२.२०११, बैंगलुरू आश्रम

प्रश्न: गुरूजी, जब अत्यंत  लोभ या लालच का प्रलोभन हो तो उससे कैसे बचें? ठीक उसी क्षण उससे कैसे बाहर आएं?  
श्री श्री रविशंकर: क्या लड़ाई के मैदान में धनुर्विद्या सीखी जा सकती है? जब लोभ आ ही गया तो उस क्षण में शायद ही कुछ कर पाएँगे - आप सोंचे कुछ भी, भावनाएं उसे बहा ले जाएंगी |
भावनाएं विचारों से अधिक प्रबल होती है | फिर भी, यदि आप इस विचार के साथ रहेंगे कि 'यह ठीक नही है, मुझे इसे रोकना चाहिए' ; थोड़े समय में (भावनाओं पर) विराम लग जाएगा | यह कुछ इस तरह है कि आपके कार में ब्रेक है, परन्तु इसका उपयोग करने के लिए आपको एक निर्णय लेना होता है| इच्छाशक्ति बढे इसके लिए आत्मबल बढ़ाना पड़ता है, और आत्मबल बढ़ता है, जागरूकता (प्रज्ञा) के विस्तार से |  फिर तो लालच छोटा होकर गायब ही हो जायेगा |

प्रश्न:  गुरूजी, मै इतना मजबूत कैसे बनू कि दूसरों के दुर्व्यवहार से मुझे कोई परेशानी न होये?  
श्री श्री रविशंकर: आप कमजोर हैं, ऐसा कभी सोचिये ही नहीं | ऐसा विचार एक समस्या है| ज़रा पीछे मुड़ कर देंखे, पहले आप कितने कमज़ोर थे, और अब आप कितने शक्तिशाली हो चुके हैं| आप आज जो है; कही और अधिक प्रबल,  उस पर ध्यान केन्द्रित रखें |

प्रश्न: अंतर्विरोध क्यों होता है? हमारे मन  में एक ही स्थिति के बारे में दो विपरीत विचार  क्यों आते है? 
श्री श्री रविशंकर: संसार भी और हमारा मन  भी ऐसे ही है!
कल किसी ने पूछा था कि परिणाम के बंधन में रहे बिना कर्म कैसे करें| भगवत गीता के ६ अध्याय में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं,“अनासृतः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः”|

योगी वह है जो केन्द्रित है, जिसके आज के कर्म पुराने कर्मो पर निर्भर नहीं है.  अनासृतः  अर्थात जो प्रतिक्रिया न करे | दूसरे, यह स्वीकार करना कि अभी जो भी है, पिछले कर्मों के कारण है |

ऐसा होते ही आप जागरूक हो जाएँगे 'जो हो गया सो ठीक है| मै आज से एक अलग, नयी शुरुवात करूँगा' - आप बिलकुल केन्द्रित हो जाएँगे | अपना अतीत छोड़ दें,  भुला दें कि आप चिकित्सक है, अभियंता है या वाणिज्य स्नातक है; सारी उपाधियाँ और भूमिकाएँ एक तरफ रख दें - फिर देंखे आपके भीतर  एक नया व्यक्तित्व जन्म लेता है; (मान  लें) | आपको अचानक मंगल गृह पर भेज दिया गया, आप सारे डिग्री और संगी-साथी पीछे ही छोड़ आए|

जागृत हो जाएं, आज, अभी; 'मैं हूँ, यहाँ, अभी, मैं हूँ'
यह सोच ऊर्जा की लहर भी लाता है, केन्द्रीयता भी| अतीत का बंधन टूट जाता है, देखकर, सुनकर या कल्पना के द्वारा अपने भविष्य की जो उत्कंठाएं बना ली थी, वे दूर हो जाती है; और आप इस क्षण में शेष रह जाते, पूरी तरह जीवंत|

आप आज चिकित्सक या  अभियंता है, क्योंकि कल आपने इसकी पढाई की| यदि आज आप परेशान है तो इसका भी कारण अतीत के कुछ कर्म ही है| पुराने कर्मों से मुक्त हो कर पूरी तरह से इसी क्षण में आ जाना - यही है अनासृतः |

मैं ऐसा नहीं कह रहा कि पुराने कर्मों या उनके फलों की उपेक्षा कर दें, यह पूरी तरह संभव भी नहीं है, हमारा शरीर भी कर्मों के फल ही है, मन भी कर्मों  का फल है, बुद्धी भी पिछले कर्मों का फल है, हमारे पास जो भी है - अहंकार, शरीर  , बुद्धी, सबकुछ कर्मों का ही फल है| (परन्तु) इन पर आश्रित नहीं रह कर गहन अंतर्ज्ञान के साथ कर्म  करना, शून्यता के विस्तार से, एकदम नए विचार, नए अनुयोजन; सन्यासी या योगी (होने का) यही अर्थ है|

तो, यदि आप इस तरह एक दिन के लिए काम कर पाते है तो आप योगी बन रहे हैं| आप सक्षम हैं, आप कार्यरत हैं| किसी ने आपकी निंदा की , आप वहां अटक नहीं जाते; आप उनसे वैसे ही व्यवहार करते हैं मानो कुछ हुआ ही नहीं| यह हुआ पिछले कर्मों पर निर्भर नहीं रहना | पूर्व में किसी ने आपकी कोइ मदद की, और आज आप आभारी है और उसे किसी रूप में लौटाना चाहते हैं, यह पूर्व कर्मों के बंधन में रहना  हुआ| अतीत पर निर्भर नहीं रहने का अर्थ है आज की श्रेष्ठता जैसी भी है, ले कर चले; अभी, इसी क्षण | ऐसा कार्य सबसे अधिक निपुणता का है

यह बोलना आसान है, कर पाना थोडा मुश्किल, पर संशय नहीं (रखें), यह असंभव भी नहीं है|

प्रश्न: गुरूजी, हिन्दू धर्म में कहा गया है कि शादी सात जन्मों का बंधन होती है; हमें कैसे पता चले हम अभी किस जन्म में है? 
श्री श्री रविशंकर: यदि आज आप अपनी शादी का बहूत आनंद ले पा रहे हैं तो समझिये की यह पहला जन्म है, और यदि आप थक गए है तो समझिये की यह सातवां जन्म है| (हंसकर) यह तो आप स्वयं ही निर्णय करें; यदि कभी खुश, कभी परेशान है तो समझिये कही बीच की स्थिति है अभी|

प्रश्न: मैं जब दूसरों को 'ऑर्ट ऑफ लिविंग' कोर्स करते देखता हूँ तो मुझे ईर्ष्या होती है ? क्या करूं? 
श्री श्री रविशंकर:  आप और लोगो को ऑर्ट ऑफ लिविंग से परिचित कराएं| जब उन्हें कोर्से करके अच्छा लगेगा तो वे आपको धन्यवाद देंगे | तब आपको कैसा लगेगा? क्या ईर्ष्या रहेगी? आपने नए लोगों को सदस्य  नहीं बनाया होगा, विशेषकर करीबी मित्रों / रिश्तेदारों को;  इसीलिए ईर्ष्या है| वे ख़ुशी और आनंद से नाच-गा रहे हो और फिर भी ईर्ष्या है तो मनःस्थिति (के स्तर पर )  कुछ गड़बड़ है| आपको  दूसरों की खुशी में खुशी और उनकी परेशानी से व्याकुलता होनी चाहिए | ऑर्ट ऑफ लिविंग के कोर्सेज़ सभी को आनंद देते है | इसे  लोगो को परिचित कराएं, आप परिवर्तन महसूस करेंगे

प्रश्न: क्या स्त्री जीवन एक दंड है? 
श्री श्री रविशंकर:  नहीं| ऐसा किसने कहा? स्त्रियों के बिना पुरुष अस्तित्व में आ ही नहीं सकते| प्रकृति और पुरुषार्थ सृष्टि  के दो अभिन्न हिस्से है| इनमे में से एक को 'पाप' या बुरा कैसे कह सकते हैं| यह गलत सोच है|

प्रश्न: गुरूजी, यह कैसे सुनिश्चित  करें कि पूरे विश्व में सभी के पास बुनियादी सुविधाएँ जैसे शिक्षा भोजन और आश्रय हो?
श्री श्री रविशंकर: (सिर्फ ये ही) बुनियादी आवश्यकताएं नहीं है|यह  तो किसी तरह पूरी हो भी जाती है| सभी को इनसे अलग भी कुछ चाहिए; यह आप पर निर्भर करता है आप किसे 'बुनियादी' ज़रूरत कहते हैं| आतंरिक शान्ति अत्यावश्यक है| आप के पास ज़रूरत की सभी वस्तुएं हो पर मन शांत न हो तो क्या फायदा ! अच्छा खाना हो पर भूख न हो, अच्छा बिस्तर हो पर अनिद्रा की बीमारी भी हो, धन हो पर जीवन में मित्र, परिवार, उत्साह और प्रेम न हो| हमें स्वीकार करना होगा की हर चीज़ का अपना एक स्थान, महत्व होता है|

प्रश्न: ऐसे लोग जो हमेशा नकारात्मकता ही फैलाते हों, उनसे कैसे व्यवहार करें? 
श्री श्री रविशंकर: ऐसा कभी ना सोचें कि वे सिर्फ और हमेशा नकारात्मक ही है| सभी में थोड़ी तो अच्छाई होती ही है | आप देंखे कि आप उस अच्छाई को कैसे निखार सकते हैं|

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