श्री श्री रविशंकर: आप ही क्रिसमस के पेड़ हैं| क्रिसमस के पेड़ का रुख ऊपर की तरफ होता है, और उसकी शाखाएँ
हर तरफ फैलीं होतीं हैं| वह व्यवथित होता है| साल के जिस समय में किसी भी और पेड़ पर फल नहीं लगते, तब वह
आपको बहुत सारे उपहार देता है| और वह पूरे साल हरा भरा
रहता है| क्रिसमस का पेड़ उन सारे
उपहारों और रोशनी को अपने लिए नहीं रखता|
आपको जीवन में जो भी उपहार मिले हैं, वह औरों के लिए हैं| जो भी आपके पास आये, आप उन्हें अपने उपहार भेंट करें|
श्री श्री
के सोफे के चारों तरफ बहुत से उपहार थे| जॉन ने श्री श्री से पूछा. ‘क्या आप इन सब उपहारों को खोलेंगे?’ श्री श्री ने आँख झपकाते हुए लोगों की तरफ इशारा किया और
कहा, ‘मैं तो हमेशा ही उपहार खोलता रहता
हूँ|’ (सब लोग हँसने लगे)
आपका जीवन
एक उपहार है| और आप इस उपहार को खोलने के
लिए आयें हैं| खोलने के दौरान, आप उस कागज़
को भी बचाते हैं| आपके चारों तरफ का वातावरण,
परिस्थितियां और यह शरीर, ये सब वे कागज़ हैं|
जब हम उपहार को खोलते हैं, तो जिस कागज़ में वह लिपटा है, उसे नष्ट कर देते हैं| कभी कभी हम इतनी जल्दी में होते हैं, कि हम उपहारों को ही
नष्ट कर देते हैं| धैर्य और सहनशीलता से अपने
उपहारों को खोलिए और उनके कागज़ों को भी बचाईये|
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