याद रखिये कि वर्तमान क्षण में आप मासूम हैं


११.१२.२०११, बैंगलुरू आश्रम

प्रश्न: ज्ञान के पथ पर हम ये कैसे जाने कि इच्छा पूर्ति की सीमा क्या है?
श्री श्री रविशंकर: मन जहाँ भी जाए, वह  उसका अधिकार क्षेत्र है| जब कोई इच्छा पूरी हो जाती है, तो मन उससे दूर चला जाता है|उदाहरण के लिए, यदि आपको छाता चाहिए, तो यह  आपकी इच्छा है, लेकिन  जब आपको छाता मिल जाता है, तो क्या आप छाते के बारे में सोचेंगे? जब तक छाता नहीं मिलता, मन उसे तलाशता है, और जब इच्छा की वस्तु मिल जाती है, तो मन उससे दूर चला जाता है| यह  मन का स्वभाव है, इसीलिए मन एक इच्छा से दूसरी इच्छा के बीच झूलता रहता है|
ज्ञान के पथ पर, हमारे आवश्यकता की सारी चीज़ें स्वतः ही मुहैया करा दी जाती हैं|

प्रश्न: कहते हैं, कि गुरु हम सबका कचरा इकठ्ठा करते हैं| हम अपने विचार, भावनाएं और परेशानियां आपको दे देते हैं| आप उनका क्या करते हैं? आप कैसे हैं?
श्री श्री रविशंकर: ऐसा नहीं है, कि गुरु वास्तव में कचरा इकट्ठा करते हैं| गुरु अज्ञान के कचरे को आपसे दूर करते है| और मैं कचरे का क्या करता हूँ, इसकी चिंता आप मत करिये| सिर्फ उसे मुझे दे दीजिए और खुश रहिये| मैं उसका संसाधन करना जानता हूँ! मैं आपको कैसा लग रहा हूँ, अच्छा ही हूँ न!

प्रश्न: यदि  सरकार आगे आये, तो क्या आप उनके सलाहकार बनना चाहेंगे?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, आप सब को मिल कर ऐसी सरकार बनाने के लिए काम करना चाहिए| हम तो सलाह देते ही रहते हैं, मगर कुछ लोग उसे फ़ौरन न मानकर, बाद में मानते हैं,वह  भी अच्छा है|

प्रश्न: आर्ट ऑफ लिविंग के प्रतीक चिन्ह में उगते हुए सूरज और दो हंसो का क्या अर्थ है?
श्री श्री रविशंकर: जब विशालाक्षी मंडप की इमारत बन रही थी, तब क्या हुआ कि मुंबई के एक सत्संग में हंस थे| तो कोई उनको मुंबई से ले आया और यहाँ रख दिया| अब जहाँ हंस होते हैं, वहां पानी की आवश्यकता होती है, तो हमने यहाँ फव्वारा बना दिया|
फिर कोई और नंदी ले आये| उन लोगो ने अमेरिका के एक मंदिर के लिए उसे मंगवाया था, मगर किसी कारणवश वो वहाँ जा नहीं पाया, तो वो यहाँ ले आये|
फिर कोई और गरुण ले आयें| इसका वजन एक टन हैं, और इसे इण्डोनेशिया से लाया गया है| हमें कुछ ही समय पहले यह  बात समझ आयी कि कैसे यह  तीन वाहन अपने आप ही गुरु पीठ के सामने आ गए हैं|
यह  ईश्वर की मर्जी से हुआ है, नहीं तो कोई क्यों यहाँ हंस लाना चाहेंगा? इसका अर्थ है, कि गुरु तत्व जल मार्ग, धरती मार्ग या वायु मार्ग कहीं से भी यात्रा कर के आप तक पहुँच सकता है, और आपकी रक्षा कर सकता है| आपके जीवन में जो भी बदलाव चाहिए, वह  संभव हो सकता है|
ऐसा नहीं है, कि बस ऐसे ही कोई इसे यहाँ ले आये हैं| इसके पीछे एक कारण है| हमने तो कभी इन्हें यहाँ लाने के बारे में सोचा भी नहीं था| ये स्वतः ही एक के बाद एक यहाँ आने लगे| इसका अर्थ है, कि इस गुरुपीठ में सत्य है|

प्रश्न: मुझे हमेशा बुरे विचार आते हैं| मैं कितना भी उन्हें रोकने की कोशिश करूँ, वह  बढ़ते ही जाते हैं|
श्री श्री रविशंकर: कम से कम आपको इस बात का एहसास तो हुआ कि जब आप बुरे विचारों को रोकते हैं, तो वे बढ़ते हैं| उन्हें रोकने की कोशिश न करें, उन्हें स्वीकार करें|

प्रश्न: आजकल तलाक बहुत बढ़ गए हैं. रिश्तों में सामंजस्य रखने के लिए आप क्या सलाह देंगे?
श्री श्री रविशंकर: सबको आर्ट ऑफ लिविंग का कोर्स करना चाहिए| पति पत्नी को साथ में इसे करना चाहिए| सिर्फ एक बार नहीं, बल्कि हर ३ महीने में एक बार या हर ६ महीने में एक बार| आप देखेंगे, कि सारी कड़वाहट दूर हो जायेगी, और सेवा का भाव जागेगा| यदि वे सेवा और उत्सव में व्यस्त  हैं, तो लड़ने का समय ही कहाँ मिलेगा?

प्रश्न: गुरूजी, कृपया क्या आप कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग के बारे में बताएँगे? हमें कौन सा मार्ग चुनना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर: आपको क्या पसंद हैं? (उत्तर भक्ति) आपको कैसे मालूम कि आपको भक्ति पसंद हैं? ज्ञान के द्वारा|
अब जब आपको मालूम है, कि आपको क्या पसंद है, तो क्या आप शांत बैठेंगे?
आप उसे पाने की कोशिश करेंगे| यह कर्म योग है|
इस प्रकार, एक के माध्यम से बाकी सब भी साथ में आ जाते हैं|

प्रश्न: जब हम सत्संग में होते हैं, तो मन शांत और स्थिर होता है, मगर जब वापस जाते हैं, तो मन फिर से विचलित हो जाता है| ऐसा क्यों है?
श्री श्री रविशंकर: यह स्वाभाविक है| यह सिर्फ आपको याद दिलाने के लिए है, कि सत्संग में बार बार जाना चाहिए| जब आप अच्छे लोगों की संगति में होते हैं, तो मन उसके मुताबिक़ बदल जाता है, जब आप बुरे लोगों की संगति में होते हैं, तो मन स्वाभाविक ही उसकी तरफ जाता है|

प्रश्न: कहते हैं, कि योग के मार्ग पर बिना गुरु के नहीं जाना चाहिए. पर क्या एकलव्य की भांति भी सीख सकते हैं, जिनको द्रोणाचार्य ने कोई दीक्षा नहीं दी थी परन्तु वो उन्हें अपना गुरु मानते थे?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, ऐसा हो सकता है| एक बार आपने गुरु से सीख लिया, उसके बाद सिर्फ गुरु की तस्वीर ही काफी होती है|

प्रश्न: क्या मैं एक सी.डी. के माध्यम से सीख सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर: नहीं, पहले एक शिक्षक से सीखिए| बाद में, खुद से अभ्यास कर सकते हैं| आप सी.डी. के माध्यम से ध्यान कर सकते हैं, मगर सुदर्शन क्रिया नहीं| इसीलिए, हमने बहुत सारी ध्यान की सी.डी. उपलब्ध करायीं हैं|

प्रश्न: मैंने आपकी किताब में पढ़ा है, कि राधा कृष्ण से उम्र में बड़ी थीं, और उनका विवाह भी हो चुका था, राधा कृष्ण के प्रेम को माना जाता है| एक विवाहित महिला के लिए इसकी स्वीकृति कैसे थी?
श्री श्री रविशंकर: उन दिनों में इसकी स्वीकृति थी| द्रौपदी को भी स्वीकार किया गया था| समाज के नियम जगह और समय के साथ बदलते हैं| द्वापरयुग के सारे नियम आज लागू नहीं हो सकते| उन दिनों, छेड़कानी करना स्वीकृत था, मगर आज यह अपराध है| हमें हर युग से अच्छी बातें सीखनी चाहियें| हर युग की अपनी समस्याएं भी रही हैं| इतिहास के हर समय में कुछ कमियां भी थी|

प्रश्न: जब मैं ध्यान के लिए बैठता हूँ, तो मैंने जाने अनजाने जो गलत काम किये हैं, उनका अपराध बोध मुझे बहुत कष्ट देता है|
श्री श्री रविशंकर: उनका समर्पण करिये| यह जानिए, कि मैं यहाँ आपकी देखभाल करने के लिए हूँ| अपनी सारी परेशानियों को छोड़ कर, आप शांत हो जाईये| याद रखिये, कि वर्तमान क्षण में आप मासूम हैं| आपने भूतकाल में शायद कुछ गलत किया हो, मगर इस बात का भरोसा रखिये, कि वर्तमान क्षण में आप मासूम हैं|


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