२२.१२.२०११, बैंगलुरू आश्रम
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‘जीवन जीने की कला’ क्या है? वह है जीवन के सत्य का बोध होना! और सत्य क्या है? जीवन विरोधाभासी मूल्यों से परिपूर्ण है, अच्छा समय और बुरा समय|
जीवन में उतार चढ़ाव के बावज़ूद अपने मन को स्थिर रखिये| चुनौतीपूर्ण
समय में, त्याग की भावना रखिये, उसका सामना कीजिये, इस बात का बोध रखिये कि यह भी बदल जाएगा| अच्छे समय में,
सेवा का भाव रखिये और क्षमता के अनुसार सबकी सेवा कीजिये| यह है पहला सूत्र|
लोगों
को, वे जैसे भी हैं, स्वीकार करें|
हम उम्मीद करते हैं कि लोग एकदम हमारे जैसे हों|
क्या आपको कभी कोई ऐसा व्यक्ति मिला है जो बिलकुल आपके जैसा हो? और अगर आपको कभी कोई ऐसे लोग मिल भी गए,
तो आप उनके साथ ५ मिनट भी बिता नहीं पाएंगे! आपका
मन होगा कि वहां से भाग जाएँ! इसलिए, जो
व्यक्ति जैसा है,
उन्हें स्वीकार करें|
यह है दूसरा सूत्र|
एक
अन्य बहुत महत्वपूर्ण जीवन सूत्र है,
कि अपने मन को दूसरों के मंतव्यों का फुटबाल न बनने दें|
हम हमेशा सोचते हैं,
‘यह व्यक्ति हमारे बारे में क्या सोचेगा?', ‘वह
व्यक्ति हमारे बारे में क्या सोचेगा?’ सच्चाई
तो यह है कि किसी के पास भी आपके बारे में सोचने का समय नहीं है|
हर कोई अपनी खुद की दुनिया में खोया हुआ है|
आप बेकार ही यह सोच कर परेशान होते हैं कि लोग आपके बारे में क्या सोचेंगे! अपनी
तरफ से लोगों को पूरी छूट दे दीजिए, चाहे
वे आपके बारे में कुछ भी सोंचे! धारणाएँ
तो बदलती रहतीं हैं|
यह तीसरा सूत्र है|
अगर
कोई कुछ गलती करे,
तो यह मत सोचिये कि उसने ऐसा जानबूझ के किया है|
ये जानें, कि
जैसे आप से कभी कोई भूल हो जाती है,
उसी तरह दूसरे से भी हो गयी है और आगे बढ़िए|
यह है चौथा सूत्र|
पाँचवा
सूत्र है वर्तमान क्षण में जीना|
अगर आप भूतकाल को पकड़े बैठे रहेंगे, तो
न तो आप खुद खुश रहेंगे और न ही किसी और को खुश कर पाएंगे| बिलकुल
एक बच्चे की तरह,
वर्तमान क्षण में जियें|
हमारा
जीवन बिलकुल बेदाग़ होना चाहिए| यह
कैसे संभव है? यह संभव है ईश्वर के प्रति भक्ति के द्वारा| जब
आप सुबह उठें,
तो अपनी हथेलियों को देखें और कहें,
‘मेरे हाथों से कुछ भी गलत न हो| ईश्वर करे कि मेरे हाथ हमेशा भरे रहें और मैं हमेशा दूसरों के साथ बाँटने में सक्षम रहूँ’|
यह हमारे देश की पुरानी परंपरा है|
जब हम उठें,
हम अपनी हथेलियों कि तरफ देख कर कहें,
‘मेरे हाथों में हमेशा लक्ष्मी का वास रहे| मैं इन हाथों से हमेशा सम्पन्नता ही लाऊँ’|
लक्ष्मी
जी का एक हाथ नीचे की ओर है,
जिसका अर्थ है कि वे दे रहीं हैं|
दूसरा हाथ है ‘अभय हस्त’,
जिसका अर्थ है कि वे ये आश्वासन दे रहीं हैं कि ईश्वर सदैव हमारे साथ है और हमें डरने की कदापि ज़रूरत नहीं है|
हम यह भी प्रार्थना करते हैं कि हमारे हाथों के द्वारा ज्ञान प्राप्त करें|
अंत में,
हम यह प्रार्थना करते हैं कि हमारे हाथों से केवल शुभ काम ही हों|
यही वह प्रार्थना है जो हम सुबह उठते ही करते हैं,
और अगर आप इसे दिल से करते हैं,
तो यह सच भी होती है|
अगर यह कभी सच नहीं भी होती,
हम तब भी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं,
कि वे हमारी देखभाल करें और हमारी सारी प्रार्थनाओं को भविष्य में स्वीकारें| जो
हो चुका है,
उसे छोड़ देना ही सच्ची आहूति है|
ईश्वर आपसे कोई उपहार नहीं चाहता| ईश्वर
आपसे केवल आपकी परेशानियां चाहता है|
आपको
जो प्रसाद मिलता है वह है मन का माधुर्य| आपके
माता पिता के मुकाबले ईश्वर आपसे १०० गुना अधिक प्रेम करता है|
मैं यहाँ आपको सिर्फ यही बताने आया हूँ,
कि ईश्वर आपसे बहुत बहुत प्रेम करता है|
हम
सब एक दिन मर जायेंगे| हमने
शायद अपनी सारी मूल्यवान वस्तुएं किसी तिजोरी में रखीं हैं,
और उस तिजोरी कि चाबियों को भी संभाल कर रखा है,
लेकिन जब हम मरेंगे, तब
हम वह तिजोरी और उसकी चाबियाँ दोनों पीछे छोड़ जायेंगे| हम
अपने साथ कुछ भी नहीं ले जायेंगे| जब
आप बस में,
या ट्रेन, हवाई
जहाज में सफर करते हैं,
तो क्या उसे अपना घर मान लेते हैं? आप अपनी यात्रा के दौरान उनकी सुविधाओं का आराम ज़रूर उठा सकते हैं,
मगर सोचिये क्या होगा अगर आप उसे अपना घर मानने लगें? जब आपकी मंजिल आएगी,
तो आपको उसमे से ज़बरदस्ती उतार दिया जायेगा| आप
चाहे जितना विरोध करें,
आपको जबरन उसमे से निकाल दिया जायेगा| तब
आप यह नहीं कह सकते कि वह आपकी ट्रेन है,
या आपका हवाई जहाज है|
आप भले ही अपनी गाड़ी चलाते हैं,
लेकिन एक बार जब गैराज पहुँच जाते हैं,
तो गाड़ी में से उतरना पड़ता है|
अगर आप नहीं उतरेंगे तो लोग आपको बेवक़ूफ़ कहेंगे|
जीवन
का परम सत्य यही है कि हम सब कुछ यहीं छोड़ के जायेंगे|
यदि कोई दो लोग आपसे मानसरोवर तीर्थ स्थल के बारे कहेंगे, उनमे से एक वहाँ जा
चुका है और अपने अनुभव बता रहा है और दूसरा व्यक्ति वह बता रहा है जो उसे मालूम है| आप किसकी बात पर विश्वास
करेंगे? आप उसी पर विश्वास
करेंगे जिसने उसका अनुभव किया होगा| इसलिये मैं आप से कह रहा हूँ| दैव आपसे गहन प्रेम करते हैं| आप बिलकुल चिंता या भय न रखें| अपना जीवन एक मुस्कुराहट
के साथ व्यतीत करें| मैं
आपको इस बात की अनुभूति करने के लिये ही यहां आया हूँ| पुस्तकों से सहायता मिलती
है परंतु यह अनुभव करने के लिये वे पर्याप्त नहीं हैं| जब आप इसे अनुभव करते हैं तब यह
आप में गहन जड़ें बना लेता है|
सत्संग के दौरान ठंडे मौसम के लिये उन्होंने कहा - मैं आपको ठंडे मौसम से
निपटने के लिये एक टिप दूँगा| यदि आप अपने अंगूठे को गर्म रखेंगे तो आप गर्म महसूस करेंगे| प्रकृति ने इसकी रचना
ऐसे ही की है| क्या
आप अपने हाथों को मोड़ कर अंगूठे को बगल में बंद नहीं कर लेते जब आपको ठण्ड लगती
हैं| जब मैं स्विट्जरलैंड या नॉर्वे
जाता हूँ तो कोई गरम कपड़े नहीं पहनता| लोगों को आश्चर्य होता हैं कि इतने ठंडे मौसम में मुझे ठंड
कैसे नहीं लगती| ठंडा
मौसम मेरा मित्र है| मेरा
उसके साथ एक अनुबंध है| मेरा प्रकृति के साथ भी एक अनुबंध है| मुझे इससे प्रभाव नहीं
पड़ता| प्रतिदिन सिर्फ १०
मिनिटों के लिये कुछ व्यायाम, कुछ आसान करें| प्राणायाम को १० मिनिट तक करें| प्राणायाम से आपका मन
स्वच्छ हो जाता है| सारी
नकारात्मक ऊर्जा गायब हो जाती है| क्या आपने इसका अनुभव किया है| जब आप कुछ लोगों को देखते है तो
आपको उनसे बात करने की इच्छा होती है| कई लोगों को जिन्हें आप जानते भी नहीं हैं, उनसे दूर जाने का मन
करता है| शरीर से जो ऊर्जा की
किरणे प्रवाहित होने के कारण ऐसा होता है| यह सुनिश्चित करने के लिये कि आप सकारात्मक ऊर्जा ही
प्रवाहित करे, आपको
प्राणायाम और ध्यान निश्चित रूप से करना चाहिये, फिर आप के सभी कृत्य बिना किसी प्रयास के स्वाभाविक रूप से
होने लगते हैं|
यदि आप क्रोधित या चिंता में हैं तो लोग भी आपके बारे वैसा ही महसूस करेंगे| वे आप से दूरी बनाना चाहेंगे| आप आश्चर्य करेंगे कि यह
व्यक्ति मुझ से दूरी बनाना क्यों चाहता है| न तो घर या स्कूल में आपको यह सिखाया जाता है कि आपकी शरीर
की ऊर्जा को कैसे परिवर्तित किया जाये| इसलिये प्राणायाम, सत्संग आपकी चेतना को उठाने के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण हैं| पर्यावरण को स्वच्छ रखें| यह सुनिश्चित करें कि
हरियाली बनी रहे| अपने
शरीर को स्वच्छ रखें| आयुर्वेद
का उपयोग करें| सप्ताह
में ३ से ५ त्रिफला कि गोली खाये| यह आपके पाचन नाल को स्वच्छ रखेगी| यदि आपका पाचन ठीक है तो आपका
मन अच्छा रहेगा| आपके
पैर गर्म होने चाहिये, आपका
पेट कोमल होना चाहिये और आपका दिमाग ठंडा होना चाहिये| यह स्वास्थ्य व्यक्ति की
निशानी है|
अस्वस्था तब होती है, जब
आपके पैर ठंडे होते है, दिमाग गरम और पेट पत्थर के जैसे कठोर हो जाता है| यदि आपके बुरे कर्मों से
आपको छुटकारा चाहिये तो आपको प्राणायाम करना चाहिये| “नास्ति तपः प्रानायामत परम”, प्राणायाम से बड़ी तपस्या कुछ भी नहीं है|
ध्यान से चेतना शुद्ध होती है|
भजन से भावनाएं शुद्ध होती हैं| इसलिये संगीत सुनें|
ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है| (यह ज्ञान, कि सब कुछ और हर कोई अस्थायी है)| स्पष्टता से
धन कि शुद्धि होती है| घी
से भोजन शुद्ध होता है|
एक प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ ने मुझे कहा कि “अपने देश में लोग इसलिये बीमार
पड़ रहे हैं क्योंकि वे चावल को घी के बिना खाते हैं”| घी यह सुनिश्चित करता है
कि भोजन जटिल कार्बोहाइड्रेट बन जाये और तुरंत शक्कर में न परिवर्तित हो जाये| इससे पाचन धीरे धीरे
होता है और यह तंत्र के लिये लाभदायक होता है| फिर मधुमेह जैसे रोग नहीं होते|मैं कहता हूँ कि प्राचीन ऋषिओं
ने भी यही कहा था|
व्यायाम और आयुर्वेद से शरीर शुद्ध होता है|
आपमें से कितने लोगों का हिंसा रहित, शानदार और समृद्ध भारत का सपना है? यहाँ के सभी युवा देश के लिये छः
महीने से एक साल देश के लिये समर्पित कर दीजिये| आपमें से कितने लोग तैयार हैं| देश में बहुत सारा भ्रष्टाचार
है| हमारी संस्कृति और
मूल्यों में अत्यंत गिरावट आयी है| हमें हमारी संस्कृति की रक्षा करनी है| यह सिर्फ आध्यात्म के
द्वारा ही संभव है|जब
अपनापन समाप्त होता है तब भ्रष्टाचार की शुरूआत होती है| जिन लोगों से आप का संबंध होता
है उनके साथ आप भ्रष्ट नहीं होते| हम सब को इसके लिए साथ में काम करना होता| हमें एक दिव्य समाज का
निर्माण करना होगा| हमें
यह सुनिश्चित करना होगा कि आने वाली पीढ़ी को हम से बेहतर समाज मिले| हमारे बच्चों को ऐसा
समाज मिले जिसमें और अधिक धर्म, करुणा और अपनापन रहे|
वरिष्ठ नागरिकों के लिये बैंगलुरू अत्यंत असुरक्षित स्थान बन गया है| उन पर बहुत सारे हमले
होते रहते हैं| हमें
एक ऐसे समाज की रचना करनी होगी जहां लोग बिना किसी भय के रह सकें| एक बार पुलिस अधिकारीयों ने
उपद्रवी लोगों को आश्रम में सुधार के लिये लाया था| सिर्फ तीन दिनों में उनमें पूर्ण परिवर्तन हो गया| बैंगलुरू की ४० झुग्गी
झोपड़ियों में बहुत काम हो रहा है| वहाँ बहुत परिवर्तन हुआ| एक समूह बनाकर झुग्गी झोपड़ियों में रविवार के दिन जाएँ| उन्हें शिक्षित करें, कुछ भजनों
का गान करें और प्रसाद वितरित करें| हमारा देश ऐसी स्थिति में बुरे लोगों की वजह से नहीं हैं
बल्कि इसलिये कि अच्छे लोग चुप हैं और इसके लिये कुछ नहीं कर रहे हैं| बुरे लोगों की संख्या
बहुत कम है| रविवार
को सिर्फ दो घंटों के लिये एक समूह में अपने पड़ोस की सफाई करें| उन बच्चों को शिक्षा प्रदान करें
जो इससे वंचित रह गये हैं| सभी चिकित्सक चिकित्सा शिविर लगाएं| आपकी ओर से जो सर्वश्रेष्ठ संभव
हो सके उसे करें| आपको
अपने मायनों के विपरीत नहीं जाना है|
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