भगवद गीता पर श्री श्री


श्री श्री रविशंकरजी के द्वारा

आतंकवादी कायर होते हैं| जब भी दुनिया के किसी कोने में आतंकवादी हमला हुआ है, वहाँ लोगों को हमने कहते हुए सुना है कि वह कायरों के द्वारा किया गया काम था| कायर आगे बढ़कर काम करने से भागता है, और अपने मन में सारी नकारात्मक भावनाओं को रखता है, और पीछे से छुप कर कुछ करता है|
अर्जुन के साथ भी ठीक ऐसा ही हुआ था| वह क्रोधित, परेशान और निराश था और भाग जाना चाहता था| भगवद गीता में भगवान कृष्ण ने उसे कायरता त्यागंने के लिए कहा| अर्थात, यह आतंकवाद को समाप्त करने का उपाय है| कृष्ण ने वीरता के मार्ग को बताया| जब युद्ध अनिवार्य हो तो उसका सामना करे और अपने कर्तव्य को निभाये
एक आतंकवादी अपनी सीमित पहचान में अटका होता है| वह उसे छुपाता फिरता है, उसके पास कोई औचित्य नहीं होता, और वह दूसरों को पीड़ा पहुँचाता है| जब कि भगवद गीता व्यक्ति को उसकी अपनी पहचान से ऊपर उठाने में, उसकी विवेक शक्ति को बढ़ाने में, और उसको ज्ञान से भरने में सहायक हैं| इस प्रकार गीता को आतंकवाद अंत करने का उपाय बताया जा सकता है
एक पुलिसवाला, सैनिक या राजा का कर्तव्य है कि राष्ट्रहित के लिए वे निष्पक्ष रहें चाहे उनके समक्ष उनके पालक हों या उनके रिश्तेदार| आतंकवादी कभी निष्पक्ष नहीं होते| योद्धा वीर होते हैं और आतंकवादी कायर| योद्धा रक्षा करते हैं और हिंसा को रोकते हैं और आतंकवादी पीड़ा व कष्ट पहुँचाते हैं| भगवद गीता भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर साहस का धर्मग्रन्थ है
आतंकवाद घृणा की भावना से भरा हुआ है| जबकि गीता द्वेष रहित कर्म की सीख देती है| गीता धर्मपालन, आध्यात्मिक उत्थान, और प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थिति में भी कर्तव्यनिष्ठ रहने के उपदेश का एक प्रतीक है
गीता के अस्तित्व के पिछले ५१४९ वर्षों में ऐसे एक भी व्यक्ति का प्रमाण नहीं है जो कि गीता को पढने के बाद आतंकवादी बन गया हो| वास्तव में महात्मा गाँधी ने गीता पर कई टिप्पणियाँ लिखीं और वह उनके अहिंसा आन्दोलन की प्रेरणास्रोत थी| भगवद गीता एक ऐसा अनोखा धर्मग्रन्थ है, जो कि मानव इतिहास के सभी चरणों में और इस विशाल अस्तित्व के सभी स्तरों का समावेश करते हुए सबके लिए प्रासांगिक है|
गीता संतुलन, समता तथा कर्तव्यपालन की द्योतक है| कृष्ण सब को शस्त्र उठा कर युद्ध करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते, परन्तु एक योद्धा बाज़ार में केले तो नहीं बेच सकता| उसे लोगों की सुरक्षा के लिए शस्त्र उठाने ही पड़ते हैं| यदि भगवद गीता आतंकवाद का धर्मग्रन्थ है तो विश्व की सभी सैन्य शिक्षण संस्थान भी आतंकवादी संस्थाओं के सिवाय कुछ नहीं हैं| क्या ये अजीब नहीं लगता? क्या न्यायालय लेनिन, मार्क्स, माओ त्सो-तंग पर प्रतिबन्ध लगाएँगे, जिन्होंने सत्ता पर टिके रहने के लिए लाखों लोगों पर आतंक फैलाया?
एक आतंकवादी या कायर छिपता है और दूसरों को दर्द देता है जबकि एक सैनिक लोगों में सुरक्षा और शांति लाने के लिए अपने जीवन का बलिदान देता है| वे दोनों ही भले बंदूक उठाते हों, लेकिन उनके पीछे छिपे उद्देश्य में ज़मीन आसमान का अंतर है|
गीता विवेक और संवाद को प्रोत्साहित करती है जबकि आतंकवादी तर्क से दूर रहकर किसी भी तरह की बातचीत के प्रति अपने को बंद रखता हैं| दिलचस्प है, कि दुनिया भर के सभी सैन्य प्रशिक्षण संस्थाओं में, सैनिकों को कहा जाता है कि वे दुश्मन को एक खतरनाक वस्तु की तरह देखें जिसका विनाश करना ज़रूरी है, ऐसी सोच बनाने की सीख के पीछे यह मनोविज्ञान है कि यदि उन्हें लगता है कि शत्रु मानव है तो सैनिक अपने हथियार उठाने में असमर्थ हो जाते हैं| ऐसे कई रणनीतियाँ हैं जहाँ सैनिकों को अपने बचाव के लिए असंवेदनशील बनाया जाता है| 
एक ऐसी ही परिस्थिति अर्जुन के सामने आयी| भगवान श्री कृष्ण ने क्रमपूर्वक अर्जुन की भावनाओं को, अहंकार को, मानसिकता को, और अवधारणाओं को सम्भाला| वह आखिर में उसके आत्मस्वरूप तक पहुँचे, उसे सर्वोच्च ज्ञान दिया और उसे उसकी शाश्वत प्रकृति का एहसास दिलाया| इससे उसे भारी बल मिला और फिर उसे अपने सांसारिक कर्तव्यों को पालन करने के लिए प्रेरित किया|एक डॉक्टर को सिर्फ इसलिए एक डाकू नहीं समझ लेना चाहिए क्योंकि वह मरीज के पेट को चीरता है| भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि ऐसी बुद्धि जिसमें मोह न हो जो और राग और द्वेष से मुक्त हो उसे कोई पाप नहीं लगता है भले ही वह पूरी दुनिया को मार डाले| अब, एक राग और द्वेष से रहित बुद्धि की स्थिति ही अपने आप में आतंकवाद का इलाज है| आतंकवाद तब पनपता है जब बुद्धि में गहरा मोह हो और घृणा से भरा हो| भगवत गीता में दिखाए गए दृष्टांत और मानवता के उच्च मान वाकई में अद्भुत हैं|
यीशु ने कहा था, "मैं शांति लाने के लिए नहीं बल्कि तलवार लाने के लिए आया हूँ| मैं बेटे को अपने पिता के खिलाफ, बेटी को उसकी माँ के खिलाफ, बहु को उसकी सास के खिलाफ खड़े करने के लिए आया हूँ, आदमी के खुद के घर के सदस्य उसके दुश्मन बन जायेंगे|" कुरान में कई आयतें हैं जिसमें काफिरों के दिलों में आतंक बैठाने और उनकी उंगलियों को काटने के बारे में ज़िक्र है| इन पैमानों पर यदि गीता को एक आतंकवादी ग्रन्थ कहा जाए तो ऐसा कहने से पहले बाइबल और कुरान को भी ऐसा ही घोषित कर देना चाहिए|

सच तो यह है कि ग्रन्थ आतंकवाद नहीं पैदा करते, वह एक अज्ञानी और तनावपूर्ण मन होता है जो कि शास्त्रों का उलटा मतलब निकालकर उनका गलत उद्धरण देकर अपने कार्यों को उचित ठहराते हैं|
श्री श्री रवि शंकर द्वारा

यह लेख आम जनता के लिए है| इसे भगवद गीता के खिलाफ एक रूसी अदालत में चल रहे मामले के चलते दिसम्बर 2011 में लिखा गया था| रूसी अदालत ने प्रतिबंध को खारिज कर दिया और मामला समाप्त हो गया|



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