१९.१२.२०११,बैंगलुरू
आश्रम
प्रश्न:
प्रिय गुरूजी, क्या हम नए साल २०१२ के पर्व पर दुनियाभर में संगठित ध्यान का आयोजन
कर सकते हैं, क्योंकि आप कहते हैं कि यह साल विश्व में बहुत से परिवर्तन लेकर आएगा| क्या दुनिया भर में हम लोग
एक साथ ध्यान करके नए साल की शुरुआत कर सकते हैं?
श्री
श्री रविशंकर: हाँ हाँ, क्यों नहीं! हम समय तय करेंगे कि दुनिया के किसी भी
कोने में आप ध्यान कर सकें| कुछ तय करते हैं|
प्रश्न:
गुरूजी, कृपया बताईये कि ब्रह्माण्ड के सन्दर्भ में समय क्या है?
श्री
श्री रविशंकर: समय एक आयाम है, अंतरिक्ष एक आयाम है, मन एक आयाम है और मन
एवं समय जुड़े हुए हैं| हमने समय के बारे
में बहुत चर्चा करी है| डिवाइन शॉप में
समय के बारे में एक पतली सी किताब भी उपलब्ध है|
प्रश्न:
गुरूजी, मैं हमेशा द्वैता और अद्वैता दर्शनशास्त्र में भेद नहीं कर पाता| माधवाचार्य ने द्वैता के
बारे में चर्चा करी है, और आदि शंकराचार्य ने अद्वैता के बारे में| कृपया मुझे इनका अर्थ
समझाएं|
श्री
श्री रविशंकर: अद्वैता क्वांटम भौतिकी की तरह है और द्वैता रसायन शास्त्र
की तरह| रसायन शास्त्र में आप कहते
हैं, कि इतने प्रकार के समस्थानिक (आइसोटोप) हैं, या आप आवर्त सारणी (पीरिओडिक
टेबल) देखते हैं जिसमे सारे अलग अलग तत्व क्षेणीबद्ध हैं| लेकिन यदि आप किसी क्वांटम भौतिकी के वैज्ञानिक के
पास जायेंगे तो वे कहेंगे कि ‘यह सब तरंग क्रिया
है’! क्वांटम भौतिकी के वैज्ञानिक के लिए आवर्त सारणी का
कोई महत्व नहीं है| वे कहते हैं कि सब
तरंग क्रिया है| दोनों अपनी जगह सही
हैं| रसायन शास्त्र की अपनी
उपयोगिता है, और क्वांटम भौतिकी की अपनी वास्तविकता है| आदि शंकराचार्य ने जो कहा वह बहुत ही रोमांचक बात है,
और जो माधवाचार्य ने कहा वह भी उतना ही दिलचस्प है| उन्होंने कहा कि ‘हर एक वस्तु का अलग
अलग स्तर पर अपना एक अस्तित्व है और उस स्तर पर वह अच्छा है’|
व्यावहारिक
तौर पर देखा जाए, तो माधवाचार्य ने प्रेम और भक्ति पर बल दिया| प्रेम के लिए आपको ‘दो’ चाहियें, और भक्ति में भी
आपको कोई दूसरा चाहिए जिसे आप समर्पण करते हैं, एक उच्च शक्ति जिसे आप समर्पण करते
हैं| तो ऐसे देखें तो
माधवाचार्य ने बहुत ही व्यावहारिक बात करी , ‘अपने सारे दुःख और दर्द समर्पण कर दो’|
आदि
शंकराचार्य ने कहा ‘उठो जागो! देखो यह
सब कुछ भी नहीं है!’ भगवान बुद्ध ने भी
यही कहा था|
प्रश्न:
गुरूजी, कहते हैं कि जब गुस्सा आये तो एक गहरी साँस लेने से गुस्सा शांत हो जाता
है| कृपया कुछ ऐसी
तरकीब बताएं, कि गुस्सा आने पर गहरी साँस लेना याद रहे!
श्री
श्री रविशंकर: एक कहावत है – ‘युद्ध काले शस्त्र अभ्यास’, युद्ध में उतर के अगर आप बोलें कि तीर चलाना सिखाओ,
(मुस्कुराते हुए) तब तक तो १० तीर आपके सिर पर आ जायेंगे! आप साधना करते रहिये,
अपने आप गुस्सा कम हो जाएगा| गुस्सा आये तब
क्या करना चाहिए, इस बात का कोई मतलब नहीं है| बताएँगे तो भी कोई फ़ायदा नहीं है| समझ में आ रहा है न आपको, इसलिए पहले से इसकी तैयारी करें|
प्रश्न:
गुरूजी, किसी बूढ़े व्यक्ति को देख कर मुझे बहुत दुःख होता है| जैसे मेरी दादी माँ थीं,
उनके शरीर को देखकर मुझे बहुत कष्ट होता था| मैं जानता हूँ कि बुढ़ापा एक दिन सबको आएगा लेकिन फिर भी इस
परेशानी को कैसे दूर करूँ?
श्री
श्री रविशंकर: जब भीतर की खूबी निखरती है, भीतर की सुंदरता निखरती है, तब आप
जितना बूढ़े होते जायेंगे, उतने सुन्दर होते जायेंगे| अगर जीवन में त्याग हो, प्रेम हो, सेवा हो, ये तीनों बातें जीवन में होनी
चाहियें| अब जैसे महात्मा गाँधी जितने
बूढ़े हुए तो सुन्दर दिखते थे कि नहीं? दिख रहे थे न!
बुढ़ापे में भी एक मुस्कान थी, एक सुंदरता थी| सुंदरता अंदर की होती है, बाहर की नहीं|
प्रश्न:
गुरूजी, विष्णु शक्ति कैसे बढ़ाये?
श्री
श्री रविशंकर: सहनशीलता बढ़ाने से! अब आप पूछेंगे कि सहनशीलता कैसे बढ़ाएँ? (हँसते हुए) इस प्रश्न का जवाब हम अगले साल देंगे!
प्रश्न:
गुरूजी, सारे आध्यात्मिक मार्ग कहते हैं कि ‘आप अकेले नहीं हैं, कोइ शक्ति है जो आपकी देखभाल कर रही है’| तो अफ्रीका में इतने सारे
लोग जो भूख से मर रहें हैं, वे अकेले क्यों हैं?
श्री
श्री रविशंकर: ये एक बहुत बड़ा प्रश्न है, कि संसार में पीड़ा क्यों है| तीन प्रकार की पीड़ा होती हैं –
१.
प्राकृतिक आपदाओं की वजह से पीड़ा|
२.
अपने स्वयं के अज्ञान या आलस्य की वजह से पीड़ा| यह मनुष्य की अपनी बनायीं हुयी है|
३.
कर्मों के कारण पीड़ा जहाँ हमें पता भी नहीं होता कि इस
पीड़ा की वजह क्या है| वह वर्तमान समय से
परे है| इसका कारण जानने के लिए
आपको अपनी चेतना में बहुत गहन जाना होगा| इसका कोई सीधा सीधा कारण नहीं है| लेकिन इसका कारण भूतकाल में कहीं छिपा हुआ है| वह कारण आपको ढूँढ के निकालना पड़ेगा|
ये तीन प्रकार की पीड़ा हैं, और इन सबसे हम बच सकते
हैं, और इनका निवारण कर सकते हैं|
प्रश्न: गुरूजी, भगवद्गीता में एक वाक्यांश है ,‘सर्वारम्भपरित्यागी’, तो जो व्यक्ति सब आरम्भों
को त्याग देगा वह आगे कैसे बढ़ेगा?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, ‘सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः सो मेप्रियः’ ; “मैं आरम्भ कर रहा हूँ” , यह बात छोड़ दें, सब कुछ
मेरे द्वारा हो रहा है| ऐसा व्यक्ति भक्त
होता है| भक्त समझता है, मैं कर
नहीं रहा हूँ, मुझसे करवाया जा रहा है, हो रहा है| इतना साक्षी भाव जिस भक्त में होता है, एक लोचवान चेतना जिसमे होती है,
वह भक्त है, और वह मुझे बहुत प्रिय है, ये बात कही है|
प्रश्न: गुरूजी, मैंने आपसे कई बार बात करी और आपने
कहा कि ‘सब माया है, छोड़ दो
इसे’| माया क्या है और
क्यों मुझे बिना किसी वजह परेशान करती है? मैं आपको देख रहा हूँ क्या यह भी माया है, और यह सब जो हो
रहा है क्या यह भी माया है? अगर यह सब माया है
तो फिर सत्य क्या है?
श्री श्री रविशंकर: (मुस्कुराते हुए) बस, यह
जिज्ञासा शुरू हुयी ‘ये सब माया है, फिर
सत्य क्या है’ पूछने का मन हुआ
न, यह सच है| यहाँ से सफर शुरू
होता है| अब किसी ने कहा है कि यह
माया है, इसीलिए हम यह पूछे ऐसा नहीं होना चाहिए| यह हमें खुद को अनुभव होता है कि यह सब तो दो मिनट रहा फिर खत्म हो गया,
यह तीन मिनट रहा यह खत्म हो गया| इसके पीछे मैं
क्यों दौड़ता रहा! यह बात हमरी बुद्धि में अपने आप उपजती है तो प्रौढ़ता आ जाती है,
जब प्रौढ़ होते हैं तो तृप्त होते हैं| जहाँ वह तृप्ति
आती है तब पता चलता है कि ‘यही बात तो गुरूजी
कितनी बार कहते रहे’!
प्रश्न: गुरूजी, बाइबल में कहा है ‘आप सत्य को जानेगें और सत्य
आपको मुक्त कर देगा’! फिर भी दुनिया
में इतने सारे मुद्दों के बारे में इतने सारे झूठ हैं| ऐसे झूठ, अन्याय, हिंसा और
कष्ट की दुनिया में कोई खुश कैसे रह सकता है?
श्री श्री रविशंकर: जब हमारे मन में ऐसे
प्रश्न आते हैं, तब हम यह जानते हैं कि संसार में अज्ञानता है, एवं मानवीय मूल्यों
और आध्यात्मिकता की कमी है| यदि कोई व्यक्ति
संवेदनशील है, तो वह दूसरों के साथ ऐसा कोई काम नहीं करेगा, जो वह नहीं चाहता कि
दूसरे उसके साथ करें| कोई भी व्यक्ति
कोई अपराध क्यों करता है? क्योंकि वह
असंवेदनशील है, और कहीं अपनी मानवीयता से संपर्क खो बैठा है| वह एक दानव की भांति हो गया है| मगर वह दानवीयता स्थायी नहीं है| इसीलिए हम कहते हैं, कि ‘हर एक अपराधी के अंदर एक विपत्ति-ग्रस्त व्यक्ति छिपा
है जो मदद के लिए रो रहा है’| यदि आप उस
विपत्ति-ग्रस्त व्यक्ति के रोग को खत्म कर देंगे तो उसके अंदर का अपराधी स्वयं ही
गायब हो जायेगा|
बस यहीं पर आतंरिक जागरूकता, आध्यात्मिक उठान या चेतना
को एक ऊंचे स्तर पर ले जाने की बेहद आवश्यकता है| आज काफी नहीं है, कि हम अपने बच्चों को केवल कंप्यूटर चलाना सिखाएं| हमें चाहिए कि उनके अंदर मानवीय गुण बों दें| हमारे युवकों को चाहिए कि वे दूसरों के बारे में
सोचें, हिंसा को छोड़ दें| और वे हिंसा कब
छोड़ सकते हैं? जब वे तनाव मुक्त
हों! यदि वे तनाव में हैं, तो हिंसक हों
ही जायेंगे|
हिंसा के दो मुख्य कारण हैं; एक है तनाव, और दूसरा है
अज्ञान या गलत शिक्षा|
प्रश्न: गुरूजी, रूस की अदालत में भागवद गीता को लेकर
कुछ गलत टिप्पणी की गयी है| कृपया इसके बारे
में हमारा मार्गदर्शन करें?
श्री श्री रविशंकर: यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है
कि रूस में भगवद्गीता पर रोक लगाई गयी है| यह सही नहीं है! क्योंकि इसमें भगवान कृष्ण ने अर्जुन को अन्याय के खिलाफ़
लड़ने के लिए प्रेरित किया है, कुछ लोगों के मुताबिक यह आतंकवाद को बढ़ावा दे सकता
है|
५००० सालों से एक भी ऐसा वाकया नहीं हुआ है, जिसमे
श्रीमद्भगवद्गीता पढ़कर कोई आतंकवादी बन गया हों| महात्मा गाँधी भगवद्गीता के बहुत बड़े प्रशंसक थे, और उन्होंने उसका विवरण
अपने भाषा में भी किया है| आज भगवदगीता के
कुछ १००० अनुकरण उपलब्ध हैं| अगर आप यहाँ वहां
से कुछ वाक्यांश उठाएंगे जो कहते हैं ‘हाँ, लड़ों, अज्ञान के विरूद्ध लड़ो’ और फिर उसे आतंकवादी ग्रन्थ कहेंगे तो यह सही नहीं है|
ऐसे तो बाइबल में भी ईसा मसीह ने कहा है, ‘हम यहाँ आये हैं, शान्ति के लिए नहीं, बल्कि आग लगाने
के लिए’, ‘हम यहाँ आये हैं पिता को पुत्र के विरोध में करने, और
माता को पुत्री के विरोध में’ उन्होंने ये शब्द
कहें हैं| तो इसका अर्थ यह तो नहीं
कि बाइबल कोई आतंकवादी ग्रन्थ है|
इस
तरह कुरान में भी कुछ छंद हैं जो कहते हैं कि ‘अगर कोई नास्तिक है तो उसकी उँगलियाँ कांट दो’| कुरान में कम से कम २५,००० ऐसे छंद हैं, जो नास्तिकों
को कड़ी सज़ा देने के लिए कहते हैं| इसीलिए, आप इन
प्राचीन ग्रंथों को आतंकवादी ग्रन्थ कहकर, इनपर रोक लगाने का प्रयास नहीं कर सकते|
दूसरों के प्रति लोगों की मनोदृष्टि, दूसरों के लिए
असहिष्णुता; यह आतंकवाद है| असहिष्णुता ही
आतंकवाद का बीज है; चाहे फिर वह कोई भी धर्म क्यों न हों| यदि लोगों में असहिष्णुता है, तो कल वह उपज कर उन्हें
आतंवादी बना देती है| हमें इस पर ध्यान
देना चाहिए| प्राचीन ग्रंथों पर रोक
लगा देने से दुनिया का कुछ भला नहीं होगा| बल्कि, लाखों लोग हैं, जो भगवद्गीता पढ़कर प्रेरित हुए हैं, जिसमे इस शतक
के सबसे महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन भी शामिल हैं! उन्होंने कहा था, ‘जब मैंने भगवद्गीता पढ़ी, मेरी पूरी जिंदगी ही बदल गयी’| इसलिए यदि ऐसी रोक लगती है, तो यह रूस के लोगों के लिए
बहुत बड़ी हानि होगी|
हमें यकीन है, कि भारत सरकार इस विषय में एक ठोस रवैया
रखेगी| १.२ अरब लोग ही नहीं,
बल्कि बहुत सारे गैर-हिंदू भी भगवद्गीता को पसंद करते हैं| जब ऐसा है, तो किसी भी देश की सरकार को इस तरह के कदम
नहीं उठाने चाहिए, वह भी तब जबकि उनके रिश्ते लंबे समय से भारत के साथ अच्छे हैं|
प्रश्न: गुरूजी, मैं बहुत निराश हूँ, क्या आप मुझे
इससे बाहर निकाल सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: ऐसा हों ही नहीं सकता कि
आप सत्संग में हैं, और निराश हैं!
देखिये, कभी कभी ऐसा ही होता है जब आप मनोचिकित्सक के
पास जाते हैं| वे आपके मन में यह
भाव डाल देते हैं कि आप अवसादग्रस्त हैं| और आप कहते हैं –‘ओह, मैं
अवसादग्रस्त हूँ, निराश हूँ’! तो आप ऐसी बात को
बढ़ावा दे रहें हैं, जो सही है ही नहीं! मन की कोई भी स्थिति स्थायी नहीं होती| ‘मैं अवसादग्रस्त हूँ’ , आप इस बात को और प्रबल कर रहें हैं, जबकि आपको कोई
दुःख निराशा नहीं है| आप कहने लगते हैं
;‘हाँ, मैं अवसादग्रस्त हूँ’! यही खतरा होता है, जब मनोविज्ञान के नाम में ऐसे लोग आपको सलाह देते हैं,
जिन्हें मन, चेतना, ध्यान किसी के बारे में कुछ भी पता नहीं है|
हमने देखा है, कि मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों की
वजह से बहुत परिवारों में माँ बाप के रिश्ते अपने बच्चों से बिगड़ गए हैं| एक बच्चा जिसके अपने माता पिता से बहुत अच्छे सम्बन्ध
थे, वह मनोचिकित्सकों के इलाज के बाद अपने ही माता पिता से नफरत करने लगा|
यहाँ आश्रम में एक व्यापारी सज्जन थे जो बहुत दूर
पैरिस से यहाँ आये, एक डेढ़ महीना यहाँ रुके| उन्हें ठीक से नींद न आने की बीमारी थी| और वे बहुत सारी दवाईयां खा रहें थे| आम तौर पर ऐसे मरीजों को १० मिलीग्राम तक दवाई दी जाती है, मगर वे १५०
मिलीग्राम ले रहें थे, दस गुना ज्यादा!
वे एकदम नीरस लग रहें थे, और बार बार अचानक घबरा जाते
थे, और उनके शरीर की पूरी व्यवस्था बिगड़ी हुयी थी|
हमने उनसे कहा, ‘कि हम आपकी सारी दवाईयां हटा रहें हैं’| हमने हटा लीं, पर वे बोले कि ‘मुझे नींद तो आती नहीं है’| हमारे डॉक्टरों ने
उनकी देखभाल करी, हमारे सारे शिक्षकों ने उनकी देखभाल करी, और फिर वे खर्राटे मार
के सो गए! ४ घंटे तक वे खर्राटे मारते रहें, जिसका मतलब था कि वे वाकई में सो रहें
थे! ४ घन्टों के बाद वे उठे और बोले कि, ‘मैं तो सोया ही नहीं, मुझे तो नींद न आने की बीमारी है’| जिन डॉक्टरों ने उनकी देखभाल करी थी, वे बोले, कि ‘गुरूजी, इन्होंने इतने ज़ोर से खर्राटे लिए थे’!
मगर ये सज्जन थे, कि उन्हें लगता था कि बिना दवाई के
उन्हें नींद आ ही नहीं सकती|
कभी कभी हम मन में धारणा बना लेता हैं, कि डॉक्टर जो
भी कहते हैं वही सही है| जैसे कूटभेषज
प्रभाव (प्लासबो एफेक्ट) कहते है! डॉक्टर कहते हैं, ‘यह दवा ले लो, आप ठीक हों जाओगे’| आप चीनी की गोली ले लेते हैं, और कहते हैं, ‘यह दवा तो बहुत असरकारी है’! एक चीनी की गोली से आपका सिरदर्द ठीक हों जाता है! इसी तरह डॉक्टर कहते हैं,
कि ‘आप अवसादग्रस्त है’| आप उसे अपने दिलों दिमाग में बिठा लेते हैं और कहते
हैं, ‘मैं अवसादग्रस्त हूँ’|
आपका मन एक नदी की भांति है, वह निरंतर बदलता रहता है| यही भगवान बुद्ध ने भी कहा था, ‘आपका मन एक नदी के भांति है’| प्राचीन समय के लोग, जिन्होंने चेतना का अध्यनन किया
था, वे कहते थे कि ‘आप एक ही नदी में २
बार गोता नहीं लगा सकते’| तो ऐसा मत सोचिये
कि आप एक ही जैसे व्यक्ति हैं| आपका मन निरंतर
बदल रहा है|
वर्तमान क्षण में रहिये! अभी, अभी!
अतीत में जो हुआ, उसे वहीँ दफना दीजिए और आगे बढिए!
निराशा कहाँ हैं? आपकी निराशा का
कारण है कि या तो आप अभी तक भूतकाल में अटके हुए हैं या फिर आप ज़रूरत से ज्यादा
महत्वाकांक्षी हैं! आपके अंदर क्षमता तो स्कूल चलाने की है, लेकिन आप बनना चाहते
हैं प्रधान मंत्री! निराशा, अवसाद तब आता है जब आपको लगता है कि आप जो चाहते हैं
वह आप पा नहीं सकते!
भूत काल में मत अटकिये, और भविष्य के बारे में बहुत ज्यादा
बेचैन मत होइये|
प्रश्न: गुरूजी, मैं जो भी करता हूँ, उसमे असफल ही
होता हूँ| इससे कैसे बाहर आ
सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर: हर असफलता, आपको सफलता की
तरफ ले जाती है, यह याद रखिये| और व्यावहारिक
रहें| असफलता दो कारणों से होती
है|
१.
आपके विचार बहुत महान हैं, मगर आपके कर्म उनके मुताबिक़
नहीं हैं| तब असफलता आती है|
२.
आप पूरा परिश्रम तो करते हैं, मगर अपने लक्ष्य तक
पहुँचने के लिए आप इतने लालायित हैं, या किसी एक परिणाम को पाने के लिए इतने
उत्सुक हैं, कि आप उसे एक बड़े नज़रिए से नहीं देख पाते| आप लचीले न होकर, कठोर हों जाते हैं| तब भी असफलता आती है|
या
तो आप बिना सोचे बहुत कुछ करते हैं, या बिना करे बहुत कुछ सोचते हैं, इससे असफलता
आती है| कभी कभी आप अपने मन में
ख्वाब बुनते हैं और असलियत के बारे में कुछ पता नहीं होता| अपने ध्येय को वास्तविकता के साथ परखिये| यदि आप अपनी वास्तविकता से अवगत हैं और जानते हैं, कि
अपने ध्येय को उससे कैसे मिलाना है, तब असफलताएं कम होंगी, नहीं तो वे बनी रहेंगी|