२६.१२.२०११,
जर्मनी
क्या आप भगवान को देखना चाहते हैं? आपमें से कितने लोग भगवान को देखना चाहते हैं? इसमें ज्यादा समय नहीं लगता| दुनिया को देखना छोड़ दीजिए| यदि आप दुनिया को देखेंगे, तो आप भगवान को नहीं देख पाएंगे|
या तो आप भगवान को देख सकते हैं, या फिर दुनिया को देख सकते हैं| आप दोनों नहीं देख सकते| आपको एक ही चुनना पड़ेगा| यदि आप भगवान को देखना चाहते हैं, तो मैं आपको फ़ौरन दिखा सकता
हूँ; इनमें अंतर देखना बंद कर दीजिए| दुनिया को देखना बंद कर दीजिए| क्वांटम भौतिकी भगवान को देख सकती है| यह जानिए, कि यह सब एक ही हैं, और सब कुछ एक से ही बना है| यह सिर्फ एक भ्रम है, कि यह एक व्यक्ति है, यह दूसरा व्यक्ति
है| यह मात्र एक भ्रम है, कि यह एक वस्तु
है, यह दूसरी वस्तु है| सारी वस्तुएं एक से ही बनी हैं|
हम एक होलोग्राम की तरह हैं| एक प्रकाश की किरण से होलोग्राम बनता है| ऐसा लगता है, कि कोई वस्तु बन गयी है, लेकिन वास्तव में वह वस्तु नहीं है, मात्र प्रकाश का ही
खेल और प्रदर्शन है| यह पूरी सृष्टि प्रकाश का खेल
और प्रदर्शन है, जो दिखने में अलग लगता है|
इस ग्रह पर भगवान के अलावा और कुछ भी नहीं है|
यदि आप कोई फिल्म देखने
बैठते हैं, आप सामने परदे पर जो भी देखते हैं, वह केवल प्रकाश है जो उससे निकल रहा
है, बस! एक चलती हुई तस्वीर है, जिसमें से प्रकाश निकल रहा है, और प्रतीत होता है जैसे
अलग अलग वस्तुएं हैं, लोग हैं, और अलग अलग घटनाएं हैं| इसी तरह यह पूरी दुनिया, चेतना का ही खेल और प्रदर्शन है| न तो कोई तत्व है, और न ही कोई ऊर्जा| न कोई आप हैं, न कोई मैं हूँ, न ही कोई ये है, न ही कोई वो है| ये सब एक ही है| बस! आप स्थिर रहिये|
बाइबल में कहा है, ‘स्थिर
रहिये, और जानिए कि मैं ही भगवान हूँ’
यह हमारा मन है, जो भिन्नता देखता है| हमारी बुद्धि इन अंतरों को अनुभव करती है| आप बुद्धि से परे जाइये, और स्थिर रहिये| केवल एक ही है| आप ‘एक’ नहीं कह सकते, क्योंकि ‘एक’ कहने के लिए, आपको दो चाहिए| अगर आप किसी को पूर्ण कहते हैं, तो इसका मतलब कि आप उससे बाहर
हैं और कह रहें है कि वह पूर्ण है| पुराने ज़माने के लोग इतने कुशाग्रबुद्धि
थे कि आप हैरान रह जायेंगे| उन्होंने कहा, ‘अद्वैत’, यानि दो नहीं है|
‘एक’ कहना गलत होगा, केवल ‘दो’ ही कह सकते हैं कि ‘एक’ है| यह कहना कि ‘दो’ नहीं है, यही व्यक्त करने का
उत्तम तरीका है| यही है जिसे ‘अद्वैता‘ कहते हैं, लेकिन द्वैत का मतलब
होता है ‘दो’| यह ऐसे है जैसे शुद्ध विज्ञान जो स्वयं सिद्ध सत्यों के निगमनों
पर आश्रित हो, जैसे क्वांटम भौतिकी| आप उसका अनुभव कर सकते हैं,
उसे जान सकते हैं, मगर व्यावहारिक जीवन में, आपको एक कदम नीचे उतरना पड़ेगा| आपको द्वंद्व को मानना पड़ेगा, सृष्टि की बाहुलता को मानना पड़ेगा| यहाँ मेज़, कुर्सी, छत, दरवाज़ा सब लकड़ी का बना है और यह सत्य है| मगर आप दरवाजें की जगह कुर्सी और कुर्सी की जगह दरवाज़े का इस्तेमाल
नहीं कर सकते| उस स्तर पर आपको द्वंद्व में
संचालन करना होगा| इसलिए रसायन शास्त्र में आवर्त
सारणी (पीरिओडिक टेबल) और क्वांटम भौतिकी दोनों ही सही हैं| दोनों एक ही तत्व की बात करते हैं|
प्रश्न: हनुमान जी और उनकी तरह के बाकी सब कहाँ विलुप्त हों गए? क्या वे सच में वानर थे, या क्या थे? ऐसी उत्तम वानर जाति कैसे विलुप्त हो सकती है?
श्री श्री रविशंकर: आप किसी मानव विज्ञानी से बात करिये| वे आपको इतिहास बताएँगे| यह दुनिया सिर्फ परिवर्तन है| सब कुछ बदलता रहता है|
इस दुनिया का केवल एक ही अचल सत्य है, कि ‘सब
कुछ बदलता रहता है’|
प्रश्न: गुरूजी, क्या आप हमें कुछ ऐसे सूत्र दे सकते हैं, जिससे हम अपनी रोज़मर्रा
की जिंदगी में हर समय आपकी उपस्तिथि को महसूस कर सकें?
श्री श्री रविशंकर: बस स्थित रहिये| चाहे केवल एक मिनट या आधे मिनट के लिए ही सही|
प्रश्न: गुरूजी, आपकी हर दिन की साधना क्या होती है? क्या आप भी हमारी तरह उन्हीं मुद्दों में पड़ जाते हैं, जैसे बहुत
विचार आना, चिंता, या फिर आप हमेशा अपने सहज स्वभाव में रहते हैं?
श्री श्री रविशंकर: एक शिक्षक के लिए एक आचरण संहिता (कोड ऑफ कंडक्ट)
होती है, कि वे अपने अनुभवों को बाँट नहीं सकते| क्या आप जानते हैं क्यों? क्योंकि फिर छात्र सोचने लगेंगे, ‘मुझे ऐसा क्यों नहीं हो रहा, मुझे भी यह चाहिए’| यह चाहना, स्वयं से प्रश्न करते रहना चलता रहेगा| इसलिए उत्तम है, कि अपने ही अनुभवों के साथ रहें| एक एक कदम बढ़ते हुए, आपकी उन्नति ही होगी, और एक समय आएगा जब
सब कुछ ही ध्यान है|
प्रश्न: मैं अपने रुपये पैसे का क्या करूँ, क्या आप मुझे कोई सलाह दे सकते
हैं?
श्री श्री रविशंकर: आप एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जो बहुत जटिल
है| किसी न किसी तरह आप किसी न किसी चीज़
के लिए दुनिया पर निर्भर हैं| आप अपने आप को पूरी तरह से पृथक
नहीं कर सकते|
अब देखिये, जर्मनी ने अपनी मुद्रा ‘डच मार्क’ से ‘यूरो’ कर ली है| तब आप यह नहीं कह सकते थे, कि ‘नहीं, मुझे ‘यूरो’ में नहीं रहना, मैं तो वही पुरानी ‘डच मार्क’ अपने पास रखूंगा| आप ऐसा नहीं कह सकते थे, और अगर आप ऐसा करते, तो आप बहुत बड़े
मूर्ख हों जाते| तो इसलिए, दुनिया में जो भी
हों रहा है, उससे आप पूर्णतः अलग और पृथक नहीं हों सकते|
आप तीव्रबुद्धि हो सकते हैं, लालची नहीं| जो लोग लालची होते हैं, वे मुसीबत में पड़ जाते हैं| वे इश्तिहार देखते हैं जो कहते हैं, ‘अपना पैसा लगाईये और २०० प्रतिशत मुनाफा पाईये’| आप वैज्ञानिक तौर से नहीं सोचते, कि वे आपको २०० प्रतिशत क्यों
देंगे| आप ख्याली बादलों में फँस जाते हैं,
‘कि ये लोग मुझे बहुत सा पैसा देने वाले
हैं’ ऐसे वक्त में, जब आप इतना उत्तेजित होते
हैं, आपके दिमाग में कोई बुद्धिमत्ता नहीं जागती| आपको लगता है, कि यह इतना वास्तविक है, आप पैसा लगते हैं, और
आपका पैसा डूब जाता है| मैंने इतने लोगों को देखा है
जो ऐसा करते हैं, और इतना लोगों को अपना सारा पैसा खोते हुए देखा है, सिर्फ इसलिए कि
वे लोभी हैं|
इसलिए आपको इतना बुद्धिमान
होना चाहिए कि यह देख पाएं कि कहाँ पैसा लगाना अच्छा है| मैं आपको वह सब तो नहीं बता सकता| यह तो नीति के विरुद्ध होगा| आप ऐसी जगह लगाईये, जहाँ आपको लगे कि पैसा सुरक्षित है|
प्रश्न: प्रिय गुरूजी, मैं बातों को छोड़ नहीं पाता| क्या करूं?
श्री श्री रविशंकर: बस पकड़े रहिये| साँस अंदर लीजिए और रोक लीजिए| देखिये कि आप कितनी देर रोक पाते हैं| कोई और चारा ही नहीं है! क्या आप अपनी उम्र को रोक सकते हैं? नहीं! आप यह नहीं कह सकते, कि ‘मैं अगले साल ४९ साल को होऊंगा, मैं सोचूंगा, कि मैं ५० का होऊं
या नहीं’| क्या आप अपनी जन्मतिथि बदल सकते
हैं? नहीं! अगर आप कर भी लेते हैं, तो यह
सत्य नहीं होगा| आप ऐसा पासपोर्ट में कर सकते
हैं, मगर वह वैध नहीं है, सही नहीं है| आप एक निश्चित दिन पैदा हुए
थे, और बस वही है|
प्रश्न: मैं हमेशा ढूँढता हूँ कि कोई मुझे प्यार करे| मैं यह कैसे जानूं, कि कोई मुझे प्यार करता है, या मैं किसी के
प्यार करने के लायक हूँ?
श्री श्री रविशंकर: मेरे प्रिय, मैं कितनी बार कह चुका हूँ, कि
‘आप ही प्यार हो’! प्यार ढूँढिये नहीं, बल्कि प्यार दीजिए| जब आप देने लगते हैं, तब वह बहुत बार गुणा होकर आपसे पास वापस
आता है|
प्रश्न: गुरूजी, कुछ दिन पहले मेरे पिता का देहांत हो गया था| मेरी माताजी अकेली हैं, कमज़ोर, जीवन में जैसे कोई लक्ष्य नहीं
है| मैं उनकी सहायता करने के लिए क्या कर सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर: ज्ञान सहायता करेगा! उनसे ज्ञान के बारे में
बात करें| उनके साथ बैठें, और कुछ ज्ञान
पढ़ के सुनाएं| शास्त्र पढ़ें, कुछ कहानियां
या योग वशिष्ट| उन सबसे ज्यादा, आप उनके आस
पास हैं, यही उन्हें उठाएगा| समय बहुत आरोग्यसाधक है| बल्कि, समय ही सबसे बड़ा आरोग्यसाधक है|
प्रश्न: मेरे प्यारे गुरूजी, आप कहते हैं, कि कर्म बदला नहीं जा सकता| सिर्फ कृपा से ही कर्म का बंधन छुट सकता है| कृपा क्या है, और क्या करने
से कृपा को ला सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: ऐसा कोई भी काम जो विकासवादी है, और जो जीवन
का भरण-पोषण करता है, नि:स्वार्थ निष्ठावान सेवा| ऐसा नहीं कि मैं कोई सेवा करूँ, और फिर सोचूँ, कि मुझे बदले में
क्या मिलेगा? नहीं, वह सेवा नहीं है| सेवा ऐसा कृत्य है, जिसके बदले में हम कुछ नहीं चाहते| यह कृत्य बहुत महत्वपूर्ण है| सेवा हमारे कर्मों की शुद्धि करती है|
भारत में कहावत है, ‘एक
चम्मच घी को चावल पर डालने से चावल शुद्ध हो जातें हैं| पता है क्यों? क्योंकि अगर आप बिना घी के चावल
खायेंगे तो वह बहुत जल्दी पच जाएगा और बहुत जल्दी ‘शुगर’ बन जायेगा| इसलिए बहुत से लोग जो चावल बिना घी के खाते हैं, उन्हें मधुमेह
(डायबिटीज़) हो जाता है|
एक बार एक हृदयरोग विशेषज्ञ ने मुझे बताया था, कि जब भी आप अनाज
लें, तो उसके साथ कुछ वसा भी लें| एक चम्मच घी से पाचन धीमा हो
जाता है, और उससे आपका ह्रदय स्वस्थ तरीके से काम करता है| वह कार्बोहाइड्रेट बन जाता है, और शरीर में ‘शुगर’ की मात्रा को संतुलित रखता है| इसीलिए पुराने ज़माने के लोग कहते थे, कि ‘एक चम्मच घी से चावल शुद्ध होते है’|
ज्ञान बुद्धि को शुद्ध करता है| आपमें से कितने लोगों ने इस बात का अनुभव किया है, कि ‘ज्ञान बुद्धि को शुद्ध करता है’? सारा गुस्सा, लालसाएं, दूसरे लोगों से घृणा, सब दूर हो जाती है| संगीत भावनाओं को शुद्ध करता है|
दान करने से आपके कमाए हुए पैसे की शुद्धि होती है| आप जितना कमाएँ, उसमे से कम से कम ३-४ प्रतिशत दान में देना चाहिए| अगर हम जो भी कमाएँ, वह सारा अपने ही ऊपर खर्च करें तो उसे शुद्ध
धन या अच्छा धन नहीं माना जाता| दान देने से धन शुद्ध होता है
और फिर शेष बचे हुए धन का आप आनंद उठा सकते
हैं| नहीं तो, पैसा सिर्फ अस्पतालों में या
इधर उधर जाता है|
प्रार्थना मन की शुद्धि करती है| ध्यान आत्मा की शुद्धि करता है| आयुर्वेद, त्रिफला शरीर की शुद्धि करते हैं और आँतों को स्वच्छ
करते हैं| आप हमेशा शरीर में भोजन ठूंसते रहते हैं, लेकिन कभी
कभी आपको अपने शरीर की प्रणाली (सिस्टम) को
साफ़ भी करना चाहिए| ४-५ गोलियाँ रात में सोने से
पहले लेने से, सुबह पेट एकदम साफ़| इसलिए आयुर्वेद, योग, प्राणायाम
और व्यायाम शरीर की शुद्धि करते हैं| प्राणायाम से पूरी प्रणाली शुद्ध
होती है, मन शरीर सब कुछ| इसीलिए सुदर्शन क्रिया के बाद
आप इतना स्वच्छ और निर्मल महसूस करते हैं|
वह आपको सारे कर्मों से शुद्ध कर देती है, जिससे वह प्रांजलता, स्पष्टता आती है|
प्रश्न: गुरूजी,
क्या आत्मा को बार बार जन्म लेना पड़ता है, जब तक कि सारी इच्छाएं और सारे कर्म पूरे
नहीं हो जाते? जन्म और मृत्यु के इस चक्रव्यूह से कैसे बाहर आ सकते हैं? क्या निर्वाण ही इसका मार्ग है?
श्री श्री रविशंकर:
बिलकुल सही! इस प्यास को बुझाने का एक ही रास्ता है, कि कुछ पी लिया जाये! भूख मिटाने
के लिए कुछ खाना ही पड़ता है| इसी तरह इस चक्रव्यूह से बाहर
आने के लिए निर्वाण, या ध्यान से पूर्ण तृप्ति
मिलेगी|
प्रश्न: पिछली
किसी भूल के कारण लोग मेरी प्रतिभा को कम क्यों समझने लगते हैं?
श्री श्री रविशंकर:
आपने अपने प्रश्न का खुद ही उत्तर दे दिया|
आपके अंदर प्रतिभा है, लेकिन जब आप कोई गलती कर बैठते हैं, तो वे डर जाते हैं, क्योंकि
हर गलती किसी व्यक्ति या कंपनी को बहुत महंगी पड़ सकती है| इसलिए आपको उन्हें यह भरोसा दिलाना पड़ेगा कि अब गलती नहीं होगी,
और आप अपनी प्रतिभाओं का सही उपयोग करेंगे|
आज कल लोग ज्यादा खतरा नहीं उठाना चाहते|
प्रश्न: गुरूजी,
ज्ञान के पथ पर चलने के लिए क्या कोई सही तरीका है? हम उन
विचारों और धारणाओं का क्या करें, जो हमें परेशान करती हैं, और ये उन लोगों के बारे में है, जो हमारे जीवन
में बहुत महत्व रखते हैं?
श्री श्री रविशंकर:
आपका अतीत जैसा भी है, उसके बारे में ज्यादा चिंता न करें| वर्तमान समय में अपनी मासूमियत पर भरोसा करें| आप वर्तमान क्षण में मासूम हैं| अतीत में जो भूलें आपसे हुईं, वे आपकी नादानी की वजह से हुईं
थीं| मगर असली बात तो यह है कि वर्तमान क्षण
में आप मासूम हैं|
प्रश्न: क्या ज्योतिष
विद्या पढ़ने का कोई फायदा है? क्या हम कभी भी बहुत जान पाएंगे?
श्री श्री रविशंकर:ज्योतिष
विद्या एक विज्ञान है, मगर किसी वजह से यह विलुप्त हो चुकी है| इसका पूरा ज्ञान अब उपलब्ध नहीं है, इसलिए वे जो भी ज्ञान देते
हैं, वे केवल ७०-८० प्रतिशत ही है| वे थोड़ा बहुत भविष्यवाणी कर
सकते हैं|
लेकिन, एक तर्क
है जो सभी ज्योतिषी देते हैं, कि एक जो सबसे बड़ी शक्ति है, सब से ऊंची ताकत, वह इन
सब से कहीं ज्यादा ताकतवर है| क्योंकि वह उच्चतम शक्ति, वह
उत्कृष्ट बल स्वतंत्र है, वह दैवीय है, दैवीय कृपा है और दैवीय कृपा कभी भी कुछ भी
बदल सकती है|
प्रश्न: गुरूजी,
मैं किस प्रकार अपनी बीवी को अपने से अभद्रता से बात करने से रोकूँ?
श्री श्री रविशंकर:
ओह! यह तो चुनौती है! अगर वे आपसे खराब तरीके से बात करती हैं, वह भी बिना किसी कारण,
तो आप उनसे वजह बताने के लिए कहें!
प्रश्न: अष्टवक्र
गीता में आपने कहा है कि जीवन तीन चीज़ों से बना है; बीज, अंडे और शून्यता| जीवन शून्यता से कैसे बना है?
श्री श्री रविशंकर:
सब कुछ शून्यता में आता है, शून्यता में रहता है, और शून्यता में ही समा जाता है| आपको शून्यता का अध्यनन करना चाहिए| तब आप देखेंगे, कि शून्यता के अलावा तो कुछ और है ही नहीं! सब
कुछ शून्यता में ही बना है|
प्रश्न: प्रिय
गुरूजी, मुझे लगता है कि मैंने पिछले तीन साल में बहुत सी गलतियाँ की हैं, और मुझे
उनका फल भुगतना पड़ेगा, जिससे मैं भयभीत हूँ| क्या मैं ऐसा कुछ कर सकता हूँ,
जिससे इन परिणामों को कम कर सकूं?
श्री श्री रविशंकर:
आप अब सही रास्ते पर हैं, यही परिणामों को कम कर रहा है| और आप इन परिणामों को स्वीकार रहे हैं, वही एक बहुत तसल्ली की
बात है| यह आपको एक ऊंचा दर्जा दे रहा
है|
प्रश्न: प्रिय
गुरूजी, मैंने तीन साल तक बहुत मेहनत की, मगर मेरे पर्यवेक्षक (सुपरवाइज़र) ने बिना
कुछ सोचे मेरे कैरियर को खत्म कर दिया| अब मेरे पास नौकरी नहीं है,
और न ही जीवन के लिए कोई लक्ष्य| अपने बॉस के लिए मेरे मन में
जो नकारात्मक भावनाएँ हैं, उनसे मैं कैसे निपटूं?
श्री श्री रविशंकर:
सुनिए, जो हो चुका है, अब उसके बारे में बैठ कर सोचने से कुछ नहीं होगा! जागिये! पूरी
ऊर्जा के साथ आगे बढ़िए! अगर आपकी एक नौकरी चली गयी, तो क्या हुआ? दुनिया में लाखों और नौकरियां हैं आप कोई और ले सकते हैं| कोई बात नहीं, अगर आपको यहाँ थोड़ी कम तनख्वाह मिले, और वहां थोड़ी
ज्यादा थी, आगे बढ़िए!
खाली बैठकर
सोचना, और जो हो चुका है उसके बारे में सोच कर अपनी ऊर्जा व्यर्थ करना | जीवन इस सबसे
कहीं ज्यादा मूल्यवान है| ऐसा इसलिए हुआ होगा, कि या तो
वर्तमान में आपकी कुछ गलती रही होगी, या फिर भूतकाल में आप अपनी गलतियाँ देख न पाएं
हों| ऐसा आपकी किसी पिछले जन्म की वजह से
भी हो सकता है, मगर फ़िक्र न करें! अतीत का विश्लेषण करने से कोई फायदा नहीं है| हमें आगे का सोचते हुए, आगे बढ़ना होगा! अपने उत्साह को किसी भी
वजह से खोइये मत!
प्रश्न: कुछ दिन
पहले आप सत्व के बारे में बात कर रहे थे, कि जल सबसे उत्तम हस्तांतरण करता है| क्या सत्त्वगुण को माँपने का कोई तरीका है?
श्री श्री रविशंकर:
हाँ, ऊर्जा शक्ति को माँपने का कोई तो तरीका होना चाहिए| हमारे एक आर्ट ऑफ लिविंग के शिक्षक हैं, जो वैज्ञानिक भी हैं| उन्होंने एक ऐसा यंत्र बनाया है, जो ऊर्जा की तरंगों को माँपता
है| वे उसका प्रयोग किसी व्यक्ति पर ध्यान
करने से पूर्व और ध्यान करने के उपरान्त करते हैं, और उन्होंने पाया कि उनका प्रभावमंडल
कुछ दूरी से बढ़ गया है| यह बहुत दिलचस्प है|
प्रश्न: प्रिय
गुरूजी, जब हमारे शरीर को आघात पहुँचता है, तब हम मर जाते हैं, और हमारी आत्मा शरीर
को छोड़ देती है| क्या आत्मा का शरीर से इतना ढीला सम्बन्ध
है? क्या आत्मा बिना किसी आघात के आगे बढ़ पाती है?
श्री श्री रविशंकर:
आत्मा को कभी आघात नहीं पहुँचता| वह आगे बढ़ जाती है|
आप शून्यता को चोट नहीं पहुंचा सकते| आप वायु
को चोट नहीं पहुंचा सकते| आप जैसे जैसे सृष्टि की सूक्ष्मता में जायेंगे, तो वहां
ऐसा कुछ नहीं पाएंगे जिसे आप आहत कर सकें| आप उसका विभाजन भी नही कर सकते| यह बेहद
अद्भुत है|© The Art of Living Foundation