२३.१२.२०११, बैंगलुरू
आश्रम
आप सब लोग तीन बातें ध्यान में रखिये; सहजता,
सरलता और आत्मीयता| मैं इतने
देशों में घूमा हूँ, इतने करोड़ों लोगों से मिला हूँ, कभी भी ऐसा नहीं लगा कि ये हमारे
नहीं हैं या पराये हैं| कभी ऐसा लगा ही नहीं|जब हमें नहीं लगता, तो उन्हें भी नहीं लगता| वे भी हमें
अपना मानेंगे| कब? जब हम उनको अपना मानेगें| सब अपने हैं, कोई पराया नहीं, कोई गैर नहीं| यह सबसे
पहला मंत्र है जीवन में|
फिर जो अंदर है, वहीँ बाहर! दिल खोल के रख दिया!
सहजता के साथ!
और सरलता! सरल तरीके से जीवन जीना| ठीक है न? क्या
चाहिए हमें, हमें जो चाहिए वह मिल ही जायेगा, इस विश्वास से जीना| सही हैं या गलत हैं, जैसे भी हम हैं, वैसे हैं! इस तरह से जब हम अपने आप को
सहजता में रखते हैं, तो कभी भय नहीं होगा, निर्भीक रहेंगे! समझ रहें हैं न? निर्भीक रहेंगे, भय नहीं होगा कभी! किसी तरह से कोई संकोच नहीं है, कोई दीवार
नहीं है कहीं| अपना आर्ट ऑफ लिविंग का यह मुख्य मंत्र है|
अच्छा इसका मतलब यह नहीं है कि यदि आपका बॉस
मूर्ख है, तो आप दफ्तर में जाकर कहें, कि ‘मैं तो सरल हूँ जी’, और बॉस को कहें,
कि ‘आप तो मूर्ख हैं!’ (मुस्कुराते हुए),
ऐसा नहीं बोलना! अपना दिमाग थोड़ा इस्तेमाल करना| है न? अरे, गुरूजी ने कहा, ‘सहज रहो’| किसी की शोक सभा में गयें है, सहज हैं, (तो ये न बोलें), कि ‘जी मुझे तो कुछ लग ही नहीं रहा है, आप क्यों रो रहें हैं?’ (हँसते हुए) ‘मैं तो सहज हूँ जी, सब ठीक है, उत्सव मनाईये!’, ‘चलिए उत्सव मनाते हैं’| हमने
सुना कि एक सज्जन एडवांस कोर्स करने के बाद अपने घर गए, और घर जाकर अपनी पत्नी को उठाया
और खुशी से घुमाने लगे! तो पत्नी ने पूछा कि,
‘आज क्या बात हों गयी? क्या गुरूजी ने बोला
है, कि पत्नी को बहुत प्यार करो?’, तो वे बोले कि, ‘नहीं नहीं, गुरूजी ने बोला है, कि अपने बोझ को खुशी खुशी उठाओ!’ (हँसते हुए), ‘अपनी परेशानियों को मस्ती से उठाकर चलना
चाहिए’|
प्रश्न: प्रिय गुरूजी, नए साल के लिए आपका क्या
संदेश है? साधकों को नए साल में विशेषतः
किस पर ध्यान रखना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर: एक बेहतर दुनिया! हमारी सेवा एक बेहतर दुनिया और
बेहतर समाज के लिए केंद्रित होनी चाहिए| और व्यक्तिगत जीवन में, हमें यह दृढ़ विश्वास और श्रद्धा रखनी है, कि सब कुछ
बढ़िया है, और केवल अच्छा ही होगा| वैदिक कैलेंडर के मुताबिक,
अपने सुना होगा, कि यह मयन कैलेंडर का आखिरी साल है, और क़यामत का दिन आने वाला है| इसके बारे में बहुत सी फिल्में भी आ चुकी हैं, कि दुनिया खत्म होने वाली है| मैं अप्पको बता रहा हूँ, कि ऐसा कुछ नहीं होगा, और दुनिया निरंतर चलती रहेगी|
वैदिक कैलेंडर के मुताबिक, मार्च २०१२ से शुरू
होने वाले साल का नाम है ‘नंदा’| नंदा का अर्थ है, ‘खुशी’! पहले खुशी आती है, और फिर उसके आगे आता है ‘विजय’! तो आप ‘खुश’ और ‘विजयी’ होंगे, इसलिए परेशान न हों!
प्रण लें, कि आप समाज में कुछ अच्छा काम करेंगे
और ज्ञान को फैलायेंगे|आप देखेंगे कि अगले साल के अंत तक, ज्यादा से ज्यादा लोग आध्यात्मिकता की तरफ
मुड़ेंगे| जो लोग आतंकवाद में संलग्न हैं, वे अलग हों जायेंगे
और जो हिंसा में हैं, उनकी शक्ति क्षीण हों जायेगी| ऐसा होगा,
और आप उस होनी का हिस्सा हैं|
प्रश्न: गुरूजी, आपने कहा है कि आध्यात्मिकता
चेतना की प्रौद्योगिकी
(टेक्नोलॉजी)
है| यह सुनने में बहुत बढ़िया लग रहा है| अगर आप इस बारे
में थोड़ा और बताएँगे तो मैं आप का आभारी होऊंगा|
श्री श्री रविशंकर: प्रौद्योगिकी का अर्थ क्या है, एक ऐसी व्यवस्था या विधि जो प्रकृति के नियमों का उपयोग करते हुए लोगों को आराम दे| जैसे हवाई जहाज एक
ऐसी प्रौद्योगिकी है, जो प्रकृति के नियमों पर आधारित है| टेलीफ़ोन एक ऐसी
व्यवस्था है जो प्रकृति के नियमों पर आधारित है और जिससे लोगों को सुविधा होती है| इसी तरह आध्यात्मिकता है| यह प्रकृति के नियमों
पर आधारित है और लोगों को असीम आंतरिक शांति प्रदान करती है, पूर्ण आराम|
प्रश्न: गुरूजी, मैं एक कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत हूँ| दुर्भाग्य से, मेरे विभागों के अध्यक्षों की आपस में नहीं बनती| कृपया कुछ ऐसे सूत्र बताएं, जिससे मैं इतने सारे विभागों को ठीक तरह से संभाल सकूं?
श्री श्री रविशंकर: यह तो खुला रहस्य है! उन
सबको हमारे एपेक्स कोर्स करवा दीजिए| आपको पता है, हमारे आर्ट ऑफ लिविंग के अपेक्स प्रोग्राम का आदर्श वाक्य है; ‘समूह में काम करिये और चिंताएं भूल जाईये’! १००० से भी ज्यादा कम्पनियों ने इस कार्यक्रम को किया है और कर रहीं है|
प्रश्न: गुरूजी, मैंने यस कोर्स किया है| मेरे स्कूल का पाठ्यक्रम बहुत विस्तृत
है| मैं परीक्षा के दिन इतना सब कुछ याद नहीं रख पाता| क्या आप राय दे सकते हैं, कि मुझे अपने दिमाग की क्षमता बढ़ाने के लिए क्या
करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर: विश्राम करिये! थोड़ा संगीत
सुनें| कुछ रचनात्मक कार्य करें| मौन के कुछ क्षण और प्रकृति में घूम कर उसका आनंद उठाना, ये निश्चय ही आपकी
सहायता करेंगे| प्रकृति को निहारना अच्छा है|
प्रश्न: हम ‘ॐ’ का उच्चारण तीन बार क्यों करते हैं?
श्री श्री रविशंकर: ‘ॐ’ शब्द तीन अक्षरों
से बना है, ‘आ’, ‘उ’ और ‘म’| इसलिए हम तीन बार उच्चारण करते हैं| आप कह सकते है,
कि यह आपके शरीर के निचले हिस्से, मध्य भाग और ऊपरी हिस्से के लिए हैं, जैसे हम कनिष्ठ
(थ्री स्टेज) प्राणायाम करते हैं| अगर हम ४ बार करेंगे, तब भी
आप पूछेंगे कि चार बार क्यों? अगर आप चाहते हैं, तो चार बार कर
लीजिए| जब आप कोई संख्या चुनें, कोई ज़रूरी नहीं कि उसकी कोई वजह
हो| आप चाहे तो ५ बार भी कर सकते हैं|
प्रश्न: गुरूजी, वैसे तो महिलाओं के साथ सब कुछ
अच्छा है, लेकिन ईर्ष्या की भावना मर्दों के मुक़ाबले ज्यादा क्यों होती है?
श्री श्री रविशंकर: क्यों होती है? (मुस्कुराते हुए), मुझे भी नहीं समझ
में आ रहा! वैसे मैं इस बात का सामान्यीकरण नहीं कर सकता,
क्योंकि आजकल पुरुषों में भी बहुत ईर्ष्या होती है, और कई महिलाएं भी हैं, जो शांत
चित्त के साथ बातों को लेतीं हैं, और मन को खाली रखतीं हैं| इसलिए
आप यह सामान्यीकरण मत करिये| हाँ, हों सकता है कि क्योंकि महिलाएं
ज्यादा भावनात्मक होतीं हैं, और ईर्ष्या भी एक भावना ही है, तो हो सकता है कि उन्हें
ईर्ष्या थोड़ी ज्यादा हों जाती हो और पुरुष थोड़ा बुद्धि में ज्यादा होते हैं, तो हो
सकता है कि उनमें ईर्ष्या कम हो| लेकिन ऐसा कोई ज़रूरी नहीं है,
कोई नियम नहीं है| आप तो अखबार में रोज़ पढ़ते ही हैं, कि पुरुष
ईर्ष्या के कारण क्या क्या घोर कृत्य कर बैठते हैं!
प्रश्न: गुरूजी मैं यह कहना चाहता हूँ, कि लोकपाल
की जगह सब सांसदों को सुदर्शन क्रिया करानी चाहिए! भ्रष्टाचार को बाद में रोकना पड़े,
इससे अच्छा है कि भ्रष्टाचार हो ही न!
श्री श्री रविशंकर: (मुस्कुराते हुए) मैं आपसे
बिलकुल सहमत हूँ! अभी चुनाव आ रहें हैं, तो जो भी सांसद इसमें विधायक के लिये खड़ा होना
चाहता है, उनको बोलें कि ‘क्या तुम प्राणायाम करते हो, साधना करते हो, ध्यान करते हो? एक बार करके दिखाओ, फिर तुम्हें वोट देंगे!’ (हँसते
हुए) यही कहना पड़ेगा!
इसीलिए आप जगह जगह जाईये और लोगों को इस खतरे
से अवगत कराईये| ये जो
भ्रष्ट लोग हैं, इनको चुनना नहीं हैं| जाति के आधार पर, या पैसे
के आधार पर, या बाहुबल के आधार पर जो लोग जीतना चाहते हैं, ऐसे लोगों से पैसे तो ले
लो मगर इनको वोट मत देना! यह बात आप हमारी तरफ से कहिये! ये लोग कहते हैं, कि अपने
बच्चों पर, गीता पर, कुरान पर हाथ रख कर कसम खाओ (कि हमें वोट करोगे) और पैसा देते
हैं! आप लोगों को बताओ, कि ‘गुरूजी तैयार हैं, आपका पाप लेने
के लिए, आपको कोई पाप नहीं लगेगा’| (मुस्कुराते हुए), ‘आपको कोई पाप नहीं लगने देंगे| पाप तब लगेगा जब जिससे
पैसा लेता हो, उसी को वोट करोगे!’ यह खबर सब जगह फैला दें, कि
‘पैसा ले लेना और उनको वोट न देकर किसी और को वोट देना|
और खाली घर मत बैठिये| वोट करिये, और वोट करने के लिए सबको
मजबूर करिये| यह अपना अधिकार है, अपना हक है, इसी से हरा सकते
हैं इनको! वोट ही एक ऐसी ताकत है! जगह जगह आप लोग इकठ्ठे हो जाईये| अब ५ राज्यों में चुनाव आ रहा है, आप सब जुड़िये| जुड़
के इन सब भ्रष्ट लोगों को किनारे कर दो, (मुस्कुराते हुए) दोबारा आने मत देना इनको!
प्रश्न: गुरूजी, एक समष्टिकत (कारपोरेट/कंपनी
के) वातावरण में व्यवहार कुशल कैसे रहें जहाँ सच की कोई अहमियत ही नहीं है?
श्री श्री रविशंकर: सुनिए, कभी कभी आपको ऐसा
लगता है, कि आप सच बोल रहें हैं, जबकि आप वास्तव में बहुत कठोर है| आपको सच बोलते वक्त कठोर होने की आवश्यकता
नहीं है| क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान किया है, कि जो लोग रूखे
ढंग से बात करते हैं, वे सच बोलने का दावा कर रहें होते हैं, और उनकी बात वाकई सच भी
होती हैं, शायद इसीलिए वे असभ्य तरीक से बात करते हैं! लोग अपनी असभ्यता के कारण नकारे
जाते हैं, नाकि सच की वजह से| आप इन दोनों चीज़ों को अलग कर सकते
हैं| एक बहुत पुराना संस्कृत का छंद है, ‘न ब्रुयाथ्सत्यम्प्रियम’, अर्थात ‘मीठा झूठ और कड़वा सच न बोले’| यही पुरातन धर्म है|
आप दृढ़ भी हों सकते है और मधुर भी| आपको दृढ़ होने के लिए रूखा, अशिष्ट
और उत्तेजित होने की ज़रूरत नहीं हैं| और मधुर बनने के लिए आपको
बात को गोल गोल घुमाने की भी ज़रूरत नहीं हैं| सीधी बात करिये
और मीठा बोलिए|
प्रश्न: गुरूजी, मैं अपनी जो भी परेशानियां लिखकर
यहाँ टोकरी में रखता हूँ, क्या वे मेरे यहाँ रहते ही हल हों जायेंगी, या मेरे घर वापिस
जाने पर लौंट आएँगी?
श्री श्री रविशंकर: रुकिए और देखिये! अगर आपने
सिर्फ रखने की औपचारिकता निभाने के लिए रखीं हैं, तो मतलब आपने सचमुच अपनी परेशानियों
को समर्पित नहीं किया है, तब फिर शायद आप उन्हें अपने साथ ही वापिस ले जायेंगे|
प्रश्न: भावनाओं को कैसे संभालें? साधना, सेवा करते रहने पर भी कभी कभी
नकारात्मक भावनाएँ उभर आती हैं और बेहद परेशान करतीं हैं| मैं
इसका समाधान नहीं ढूँढ पा रहा हूँ|
श्री श्री रविशंकर: क्या आपने ध्यान दिया है,
कि यह अपने आप ही पहले से बहुत कम हो गया है? (उत्तर आया – ‘हाँ, करीब ६० प्रतिशत कम हो गया है’) तो यह अच्छा है| क्या आपको उम्मीद है, कि आगे आगे यह और कम ही होगा?
(उत्तर आया –‘हाँ, गुरूजी’ ) तो बस! यही
आपका जवाब है!
प्रश्न:हमारे धर्म में उपास और अन्य अनिवार्य रस्में
सिर्फ महिलाओं के लिये क्यों हैं, पुरुषों के लिये क्यों नहीं? जैसे करवा चौथ का व्रत महिलायें
अपने पति के लिये रखती हैं और कुछ अन्य व्रत माताएं अपने पुत्र के लिये रखती हैं? पुरुष मंगल सूत्र नहीं पहनते
और मांग नहीं भरते? तो क्या हमारा धर्म लिंग में पक्षपात करता हैं?
श्री श्री रविशंकर: नहीं ऐसा नहीं हैं| शायद पुरुषों ने नियम बनाये और महिलाओं पर थोप दिए| वास्तव में महिलायें घर पर होती हैं और उनके पास खाली समय बहुत होता हैं, इसलिये
वे खुद ही इन रस्मों को निभाती हैं| पुरुष अधिकतर नियम और रस्मों का पालन नहीं करते| महिलायें सभी रस्मों का पालन धार्मिक रूप से करती हैं क्योंकि वे भावुक होती
हैं और वहीँ घर में सबसे बीच में बंधनकारी शक्ति होती हैं| वह
सबके कल्याण का ध्यान रखती हैं|
प्राचीन काल में जो लोग बाहर जाकर काम करते थे, वे भी एकादशी का व्रत रखते थे|यह सबके लिये समान हैं| पुरुषों को भी यह करना चाहिये लेकिन कई बार वे ऐसा करते नहीं हैं| सभी पुरुषों को तिलक लगाना अनिवार्य हैं और विवाहित पुरुषों को दो जनेयु पहनना
होता हैं| इस तरह
इस देश में पुरुष और महिलाओं को कुछ रस्मे निभानी होती हैं|
इस देश में महिलाओं का सम्मान का कद पुरुषों से ऊँचा था| जैसे पहले राधे कहा जाता है फिर श्याम, पहले सीता फिर राम, गौरी फिर शंकर|प्राचीन काल के पूर्व से महिलाओं का सम्मान किया जाता हैं| इसलिये पुरुष और महिलायें समान हैं;बल्कि इस देश में महिलाओं का कद पुरुषों की तुलना में एक कदम आगे ही हैं|
प्राचीन काल में भारत में एक प्रथा थी जिसे स्त्रीधन कहते थे| पूर्ण महाद्वीप, भारत, बंगलादेश, नेपाल,श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, में पुरुष कुछ धन अपने घर में स्त्री के पास रख देते थे और उसे कोई हाथ भी नहीं लगता था| इसको ‘स्त्रीधन’ कहा जाता था| घर में वह इन पैसों में बढोत्तरी करती थी|
इस देश में महिलाओं का सम्मान का कद पुरुषों से ऊँचा था| जैसे पहले राधे कहा जाता है फिर श्याम, पहले सीता फिर राम, गौरी फिर शंकर|प्राचीन काल के पूर्व से महिलाओं का सम्मान किया जाता हैं| इसलिये पुरुष और महिलायें समान हैं;बल्कि इस देश में महिलाओं का कद पुरुषों की तुलना में एक कदम आगे ही हैं|
प्राचीन काल में भारत में एक प्रथा थी जिसे स्त्रीधन कहते थे| पूर्ण महाद्वीप, भारत, बंगलादेश, नेपाल,श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, में पुरुष कुछ धन अपने घर में स्त्री के पास रख देते थे और उसे कोई हाथ भी नहीं लगता था| इसको ‘स्त्रीधन’ कहा जाता था| घर में वह इन पैसों में बढोत्तरी करती थी|
किसी भी और चीज़ की तुलना में महिलाओं का सबसे अधिक सम्मान हुआ करता था| जैसे कन्या भ्रूण हत्या जो इस देश में
हो रही हैं, वह बहुत ही गलत हैं| वह भी उस देश में जहाँ औरतों
को सबसे अधिक सम्मान दिया जाता था| गाय की हत्या करना सबसे बड़ा
पाप माना गया हैं|
यदि आप १०० गायों की हत्या करते हैं तो वह एक विद्वान की हत्या करने के बराबर हैं| १०० विद्वानों की हत्या करना एक संत
की हत्या करने के बराबर हैं| और यदि १०० संतों की हत्या की जाये
तो वह एक कन्या की हत्या करने के बराबर हैं| इसका अर्थ क्या है?
१ लाख गायों की हत्या करना १ कन्या की हत्या करने के बराबर हैं| इस तरह महिलाओं को उच्च स्थान पर रखा जाता था|
प्रश्न: गुरूजी, मैने आपकी एक पुस्तक “विनोद प्रिय प्रभु”
में पढ़ा हैं कि जिससे हम प्रेम करते हैं उसे हासिल करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये| क्या इसका अर्थ यह हैं कि
जिससे हम प्रेम करते हैं उससे विवाह नहीं करना चाहिये? क्या विवाह करना हासिल करने
के जैसा हैं?
श्री श्री रविशंकर: मैंने ऐसा कभी नहीं कहा|
मैं कहता हूँ “चुनाव आपका और मेरा उसके लिये आशीर्वाद”! विवाह के पहले या विवाह के
बाद, यदि आप उस पर बहुत अधिकार जमायेंगे तो अगला व्यक्ति भाग जायेगा| किसी को नियंत्रित करना, या किसी पर
अधिकार जमाना कोई बुद्धिमत्ता नहीं हैं|
प्रश्न: गुरूजी कृपया कर के मेरी रक्षा करे| मैंने झूट
बोला ( यह एक लंबी कहानी हैं ) और एडवांस कोर्स के लिये आया लेकिन अब मेरे बॉस को पता
लग हैं कि मैं आश्रम में हूँ| बॉस के नाराजगी से बचने लिये मैं अपनी रक्षा कैसे करूँ?
श्री श्री रविशंकर: चिंता न करे!
यदि आपने बिमारी के कारण छुट्टी ली हैं या यदि आपने कहा है कि “मैं बीमार हूँ”
तो आप उसका औचित्य साबित कर सकते हैं| बिमारी सिर्फ शारीरिक स्तर पर ही नहीं होती बल्कि वह मानसिक और
आध्यात्मिक स्तर पर भी हो सकती हैं, क्योंकि कई बार लोग आध्यात्मिक स्तर पर भी बीमार
होते हैं| जब कभी भी आप खुश नहीं है, तो आप बीमार है|
उन्हें बताए कि आश्रम में आयुर्वेदिक चिकित्सालय है| कल जाकर नाड़ी परीक्षण करवाये|
आप उनसे यह भी कह सकते हैं कि आप यहां पर अपने शरीर के असंतुलन में संतुलन बनाने
आये हैं और चिकित्सा के अभाव में आप उनके कार्यालय में कैसे काम कर सकते हैं? आपको शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक
रूप से संतुलित रहना हैं|
प्रश्न:गुरूजी, यदि हम जो देखते और सुनते हैं और वह
सत्य नहीं हैं फिर भी मन जीवन का अनुभव इन्द्रियों से करते हैं| जब ९९.९% हमारे कृत्य गलत
धारणा पर आधारित हैं, तो फिर किसी कृत्य में भागीदार बनने का क्या फायदा?
श्री श्री रविशंकर: वह कृत्य भी वास्तविक नहीं है| आप जब भी कोई कृत्य करते हैं वह वास्तविक
नहीं हैं|जब सबकुछ वास्तविक नहीं हैं, सिर्फ आपके विचार ही नहीं
बल्कि आपके कृत्य भी वास्तविक नहीं हैं|
प्रश्न: मेरे बेटे का वेतन बहुत अधिक हैं और मैं सेवानिवृत्त
हो चुका हूँ| उसके जानकारी के बिना मैं
समाज कल्याण के लिये उसके पैसों में कुछ ले लेता हूँ| मुझे अपने कृत्य से पीड़ा
होती हैं, क्योंकि मुझे लगता हैं कि मैं चोरी कर रहा हूँ और यह मेरी आदत बन गयी हैं? मुझे समझ नहीं आता कि मैं
ऐसा क्यों करता हूँ लेकिन मैं अपने आप को रोक भी नहीं पाता हूँ?
श्री श्री रविशंकर: उसे चोरी के रूप में न देखे| आप कुछ अच्छा काम कर रहे हैं,आप उससे
बातचीत करे कि आप समाज कल्याण के लिये कुछ योगदान करना चाहते है और इसे एक सीमा तक
ही करे| यदि वह नहीं सुनता तो चिंता न करे|
जब आप एक घर में साथ रहते हैं तो आप यह नहीं कहते कि यह उसका पैसा हैं या यह मेरा
पैसा हैं| वह पैसा
सबका हैं| आपने घर बनाया हैं जिसमे आप दोनों साथ में रह रहे हैं
और आप उससे घर में साथ रहने के लिये किराया नहीं लेते| ठीक हैं|
आप गरीब बच्चों कि मदद करके नेक काम कर रहे हैं| यह देखे उन असहाय बच्चों में आप
कितना आनंद ला रहे हैं| इसलिये
आपको उस बात के लिये दोषी नहीं समझना चाहिये|
यदि कोई चोरी शराब पीने के लिये कर रहा हैं या उसके जैसे काम करने लिये तो फिर
ऐसा करना उचित नहीं हैं|
प्रश्न: गुरूजी मैं जैसा हूँ वैसा अपने आप को स्वीकार
नहीं कर पाता| जब मैं किसी और को देखता हूँ तो मुझे लगता हैं कि वह मुझ बेहतर हैं और
फिर मैं हीनता महसूस करता हूँ| इससे कैसे निपटा जाये?
श्री श्री रविशंकर:जीवन को एक बड़े परिपेक्ष्य
के साथ देखे|
ऐसे कितने लोग हैं जो आप से बेहतर हैं|और ऐसे कितने करोड़ों लोग और आयेंगे जो आप से बेहतर होंगे| फिर आप क्या करेंगे| आप तुलना क्यों करते हैं|
भगवान सबसे प्रेम करता हैं,और आप से भी प्रेम कर रहा हैं| सिर्फ इतना याद रखे|ऐसे कितने लोग हैं जो आप से बेहतर हैं|और ऐसे कितने करोड़ों लोग और आयेंगे जो आप से बेहतर होंगे| फिर आप क्या करेंगे| आप तुलना क्यों करते हैं|
सबके अपने तौर तरीके और भाग्य होता हैं और आपको वह सब मिलेगा जो आपके लिये आवश्यक हैं| सिर्फ योग्यता होने से आप सफल होंगे ऐसा कोई मापदंड नहीं हैं, यह ऐसा नहीं होता| यदि आप आसपास देखेंगे तो यह पायेंगे कि जो लोग बाबू की नौकरी पाने के लिये भी योग्य नहीं थे वे करोड़पति बन गये हैं| इसलिये भाग्य भी होता हैं और आपके भाग्य से भी आपको मिलेगा| इस वास्तविकता को समझ जाये और दूसरों से अपनी तुलना करना बंद कर दे और यह जान जाये कि आप भी अच्छे हैं| जब आपका दिल साफ होता हैं तो आप सुंदर होते हैं और जब आप सुंदर होते हैं फिर आपको सबकुछ प्राप्त होता हैं|
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