बैंगलुरू
आश्रम
प्रश्नः गुरुजी कभी कभी ऐसा लगता है कि पढाई करना, नौकरी करना, शादी करना इस तरह के सामान्य कार्य करके मैं अपना जीवन बर्बाद कर रहा हूँ। मैं अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां पूरी करते हुऐ समाज के लिये कुछ करना चाहता हूँ?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, आप अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां पूरी करते हुऐ समाज के लिये कुछ करना चाहते हैं। अगर आप ये सोचते हैं के ये दोनों काम एक दूसरे के विरुद्ध हैं तो आप एक कदम की भी प्रगति नहीं कर सकते। ये पहले जान लें कि ये ऐसा नही है। अगर आप विवाहित बालबच्चेदारहैं तो आपको पहले अपने परिवार के प्रति कर्तव्यों का पालन करना चाहिये और साथ ही साथ सामाज के प्रति ज्ञान और धर्म की जिम्मेदारियां भी निभानी चाहिए। ये जान लें की ये काम आप कर सकते हैं। अगर आप अविवाहित हैं और आप अपने आप को शत प्रतिशत समर्पित करना चाहते हैं तो आपका स्वागत है | आप पूरे विश्व में भ्रमण कर कुछ अच्छा हासिल कर सकते हैं |
प्रश्नः गुरुजी कभी कभी मैं सेवा सत्संग ज्ञान से ऊब जाता हूँ । क्या मेरे साथ कुछ गलत हो रहा है, क्या मै सही दिशा मे जा रहा हूँ?
श्री श्री रविशंकर: तुम्हें पता है कि योग के पथ में ९ बाधाएं हैं। मैं ने पहले ही पतंजलि योग सूत्र के विवेचन में इसके बारे में बात की है | ये है व्याधि, स्त्यान, समस्या, प्रमद, आलस्य, अविरति, भ्रांतिदर्शन, अलब्ध्वा भुमीकत्व और अनवस्थितत्व । ये नौ बाधाएं हैं
शारीरिक व्याधी मानसिक जडता मन में मार्ग के प्रति अविश्वास और कुछ ना हासिल कर पाना, अरुचि, ये व्याधियाँ योगी के पास कुछ पल के लिये आती हैं और जाती हैं इसमें कुछ बडी बात नहीं है।
आप लोगों मे से बहुतों ने ऐसी मुश्किल देखी होगी कभी ध्यान करने का मन नही करता , कभी गहरा ध्यान होता है या कभी इस तरह के संदेह मन मे आते हैं और अचानक गायब भी हो जाते हैं।
प्रश्नः गुरुजी "मैं सर्वव्याप्त हूँ साथ मैं कहीं भी नहीं हूँ" इस के पीछे क्या तंत्र है, क्या ये आप हमें सिखा सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: आप खाली और खोखले हो जाओ, शांत होकर सारी चिंताओं को छोड़ दें| अपना अहंकार "मैं हूँ" ये हमें हमारे असली रुप से अलग कर देते हैं और अपने आपको हम सर्वव्यापक से अलग समझते हैं|
प्रश्नः गुरुजी मैं अपने कार्यों के परिणाम से स्वतंत्र कैसे हो सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर: जब आप सब पिछले कार्यों को समर्पित कर और उन कार्यों के परिणामों का सामना करने के लिए तैयार हैं. अगर मैंने कुछ चुरा लिया है और मैं कहता हूँ, " हाँ मैं चुराया है, जो भी सजा आप मुझे देना चाहते हैं मुझे दें, मैं सज़ा भुगतने के लिए तैयार हूँ | यही समर्पण का असली मतलब होता है |
मैं ने चोरी की है लेकिन मुझे सजा नहीं दीजिए, समर्पण का मतलब यह नहीं है |
जब आप सजा कबूल करते हो तो सजा देनेवाला कहता है, मैं तुम्हें माफ़ करता हूँ और वो आपको आपके कर्म फ़ल से मुक्त करता है। आपके द्वारा कोई कृत्य हुआ है और उसके परिणाम भी आ गये हैं तो उसके निर्मूलन के लिये आप कुछ अच्छे कर्म करते हो इसको प्रायश्चित्त कहते हैं। उदाहरण के लिये मैंने कुछ गलत शब्द कहे उससे कोई दुखीः हुआ तो मुझे प्रायश्चित्त करना होगा। क्या प्रायश्चित्त करना है यह आपको गुरु, या वो व्यक्ति जो दुखी हुआ है वो बता सकता है या आप को अपनी अंतरात्मा बतायेगी। मैं कुछ अच्छा काम करूँगा या बहुत सारे लोगों को खुश करुंगा।
प्रश्नः गुरुजी, भगवत् गीता मे श्री कृष्ण कहते हैं "आनन्यश्चिन्त यन्तो माम ये जन परी उपासते तेषाम् नित्य भियुक्तनाम योगक्शेमम् वहाम्यहम्"। इसका अर्थ क्या है?
श्री श्री रविशंकर: जो सिर्फ़् मेरे ही बारे मे सोचता है, जो मुझे अपने दिलो दिमाग में रखता है, मैं उसको मुक्त करता हूँ, उसकी हर तरह से रक्षा करता हूँ और उसकी हर जरुरत को पूरी करता हूँ |
प्रश्नः गुरुजी, मंगलसूत्र क महत्व क्या है? पालक क्यूँ कहते है कि शादी के बाद इसे उतारना नहीं चाहिये? क्या इसे ना पहनना उचित है?
श्री श्री रविशंकर: मुझे एक बार पैरिस हवाई अड्डे पर एक महिला ने अपनी अंगूठी दिखाते हुऐ पूछा क्या ये जरुरी है ? मेरे लिये तो वह सिर्फ़ अंगूठी थी तो मैने कहा अगर वो समझती है कि इसकी जरुरत नहीं है तो वह उसे मत पहने | उसने वापस जाकर अपने पति को तलाक के लिए पत्र लिखा। उसके पति ने मुझे ई मेल किया - क्या गुरुजी आप ने मेरे पत्नी को मुझे तलाख देने के लिये कहा है | मैने कहा मैने ऐसा कभी कुछ नही कहा, उससे मैंने उसकी पत्नी से फोन पर बात करवाने के लिये कहा। पत्नी ने कहा गुरुजी मैंने हवाई अड्डे पर आपसे पूछा था कि मुझे इस अंगूठी की जरुरत है क्या ? दरअसल वो उसके शादी की अंगूठी थी | पश्चिमी संस्कृति मैं अगर कोई अपनी शादी की अंगूठी उतार देता है तो इसका अर्थ है उसने अपने प्रेमी को अलविदा कह दिया। शादी एक पवित्र बंधन है, उस पवित्रता को महसूस करने के लिये मंगलसूत्र पहनते हैं । मंगलसूत्र वो शुभ धागा है जिसे पकड़ कर आप धर्म के रास्ते पर चलते हैं इसलिये उसे उतारते नहीं हैं, सदैव साथ रखते हैं । लोग अपने जीवन में शुभ की कामना करते हैं इसलिये लोग मंगलसूत्र के साथ भावनाओं को जोड़ देते हैं और उसे पहनते हैं। इसके साथ कुछ अंधविश्वास भी इसके साथ जुड़ा है । कोई डॉक्टर ऑपरेशन के वक्त मरीज से गहने उतरने के लिए कहता है, और मरीज यह कहता है कि ये मंगलसूत्र है, इसे कैसे उतर सकते हैं । आप को किसी मानसिक अथवा बौद्धिक रूप से परेशान होने कि जरुरत नहीं है । ये सिर्फ़ एक धागा है या श्रंखला है | तो जब जरुरी हो तो आप इसे उतार सकते हैं। लेकिन आमतौर पर इसके साथ एक पवित्रता जुडी है तो इसे उतारना नहीं चाहिए।
प्रश्नः गुरुजी, मैं बहुत बार मूर्ख बन जाता हूँ। मुझे बुद्धिमानी सीखने के लिये क्या करना चहिये?
श्री श्री रविशंकर: आप मूर्ख सिर्फ़ बुद्धिहीनता के कारण नहीं बनते, उसके साथ लोभ भी जुड़ा होता है। मैंने देखा है वो लोग जो बहुत लोभी रहते हैं बहुत जल्दी मूर्ख बन जाते हैं। अगर आप महत्वाकांक्षी और लोभी है तो आप आसानी से मूर्ख बन सकते हैं लेकिन आप शांत, स्थिर और सतर्क हैं तो आपको मूर्ख बनाना मुश्किल है।
प्रश्नः गुरुजी हमें दूसरों से अपेक्षा नहीं करनी चाहिए चहिये लेकिन क्या अपने आपसे अपेक्षा करना गलत है?
श्री श्री रविशंकर: अपेक्षा करना ठीक है लेकिन अगर वो पूरी नहीं होती है तो उसे महत्व नहीं देना चाहिए, शांत रहिये।
प्रश्नः गुरुजी, मैं किसी से भावनात्मक स्तर पर बंध गया हूँ लेकिन मुझे अब ये प्रतीत हो रहा है कि इस वजह से मैं सेवा नहीं कर पा रह हूँ। मै अब इससे बाहर निकलना चाहता हूँ लेकिन ये आसान नहीं है, मैं क्या करुँ?
श्री श्री रविशंकर: आप जाप करें, अगर आप जाप कर रहे हैं तो आप चिंतित नहीं होंगे। जब आप ॐ का उच्चारण करते हैं तो भावनाएं शांत हो जाती हैं और उसके बाद अवसाद, चिंताएं गायब हो जाती हैं। भौतिक जगत से जुड़े रहने के कारण चिंतित हो जाते हो। दिन रात अपने बारे मे सोच के चिंतित रहते हो।
जब तुम सुबह उठते हो तो अपने आप से कहो कि मैं क्या सेवा कर सकता हूँ | मै इस विश्व के लोगों के लिये क्या कर सकता हूँ इस ज्ञान के पथ पर इस संस्था को कैसे काम आ सकता हूँ । अगर ये नही आता तो सोचो मैं गुरुजी के कैसे काम आ सकता हूँ। कम से कम इस तरह से सोचो।
अगर आप इस तरह से सोचते हो और जाप करते हो, ध्यान करते हो, ये जान के कि ये जीवन अस्थाई है, यहाँ का सब नाशवंत है और ॐ नमः शिवाय का जाप करते हो तो चिंतित नहीं होंगे। निराशा आपसे दूर भाग जायेगी| इसीलिये पुराने जमाने में लोग तीन बार संध्यावंदन करते थे। प्रातः काल मे उठके सूर्य देवता को आगे आने वाले सुंदर दिवस के लिये, पृथ्वी पर जीवन संभव करने के लिये आभार प्रदर्शित करके, फ़िर दोप्रहर और फिर शाम को बीते हुए सुंदर दिवस केलिये संध्यावंदन करके पूर्ण ब्रम्हांड के साथ एकरुपता महसूस करते थे |
जब आप ये सब करते हो तो निराश, चिंतित होने का कोई प्रश्न नहीं है। जब आप ये नहीं जानते कि आप पूर्ण ब्रम्हांड से जुड़े हैं और खुद को एक छोटा मामूली इंसान समझते हो और अपने आपको कमजोर समझ के कोसते रहते हो, ये नहीं है, वो नहीं है | कहते हो मैं ध्यान करता हूँ, क्रिया करता हूँ, लेकिन मुझे कुछ हो नहीं रहा, इस तरह की सोच मन का छोटापन दर्शाती है। आपको इससे बाहर आना होगा। आप इससे बाहर आने की और अपना जीवन समर्पित करने कि जिम्मेवारी उठाइये।
वे लोग जो आत्महत्या करना चाहते हैं मै उनसे कहता हूँ कि ये मूर्खता है । आप आत्महत्या करना चाहते हैं क्यूंकि आप सिर्फ़ अपने आराम, आनंद के बारे मे सोचते हैं। आप अपना जीवन किसी और महान कार्य के लिये लगा दीजिए, निराशा भाग जायेगी |
जब आप ये कहते है कि मै जान नहीं दूंगा बल्कि ये जीवन विश्व के प्रति, मानवता के प्रति, देश के प्रति समर्पित करुंगा तो आनंद उपजता है। चाहे जो हो मै लडूंगा | मुझे लगता है सभी निराशा से ग्रस्त लोगों को ये यकीन दिलाना चहिये कि जाप से उनकी निराशा दूर होगी ।
या तो अपने आप को विश्व को, देश को, संस्कृति को, धर्म को समर्पित कर दीजिए या ईश्वर को, उस पूर्ण महासत्ता को, पवित्र ज्ञान को समर्पित कर दीजिए|
यह निश्चय आप को इस अंधकार से बाहर निकालेगा|
© The Art of Living Foundation
प्रश्नः गुरुजी कभी कभी ऐसा लगता है कि पढाई करना, नौकरी करना, शादी करना इस तरह के सामान्य कार्य करके मैं अपना जीवन बर्बाद कर रहा हूँ। मैं अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां पूरी करते हुऐ समाज के लिये कुछ करना चाहता हूँ?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, आप अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां पूरी करते हुऐ समाज के लिये कुछ करना चाहते हैं। अगर आप ये सोचते हैं के ये दोनों काम एक दूसरे के विरुद्ध हैं तो आप एक कदम की भी प्रगति नहीं कर सकते। ये पहले जान लें कि ये ऐसा नही है। अगर आप विवाहित बालबच्चेदारहैं तो आपको पहले अपने परिवार के प्रति कर्तव्यों का पालन करना चाहिये और साथ ही साथ सामाज के प्रति ज्ञान और धर्म की जिम्मेदारियां भी निभानी चाहिए। ये जान लें की ये काम आप कर सकते हैं। अगर आप अविवाहित हैं और आप अपने आप को शत प्रतिशत समर्पित करना चाहते हैं तो आपका स्वागत है | आप पूरे विश्व में भ्रमण कर कुछ अच्छा हासिल कर सकते हैं |
प्रश्नः गुरुजी कभी कभी मैं सेवा सत्संग ज्ञान से ऊब जाता हूँ । क्या मेरे साथ कुछ गलत हो रहा है, क्या मै सही दिशा मे जा रहा हूँ?
श्री श्री रविशंकर: तुम्हें पता है कि योग के पथ में ९ बाधाएं हैं। मैं ने पहले ही पतंजलि योग सूत्र के विवेचन में इसके बारे में बात की है | ये है व्याधि, स्त्यान, समस्या, प्रमद, आलस्य, अविरति, भ्रांतिदर्शन, अलब्ध्वा भुमीकत्व और अनवस्थितत्व । ये नौ बाधाएं हैं
शारीरिक व्याधी मानसिक जडता मन में मार्ग के प्रति अविश्वास और कुछ ना हासिल कर पाना, अरुचि, ये व्याधियाँ योगी के पास कुछ पल के लिये आती हैं और जाती हैं इसमें कुछ बडी बात नहीं है।
आप लोगों मे से बहुतों ने ऐसी मुश्किल देखी होगी कभी ध्यान करने का मन नही करता , कभी गहरा ध्यान होता है या कभी इस तरह के संदेह मन मे आते हैं और अचानक गायब भी हो जाते हैं।
प्रश्नः गुरुजी "मैं सर्वव्याप्त हूँ साथ मैं कहीं भी नहीं हूँ" इस के पीछे क्या तंत्र है, क्या ये आप हमें सिखा सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: आप खाली और खोखले हो जाओ, शांत होकर सारी चिंताओं को छोड़ दें| अपना अहंकार "मैं हूँ" ये हमें हमारे असली रुप से अलग कर देते हैं और अपने आपको हम सर्वव्यापक से अलग समझते हैं|
प्रश्नः गुरुजी मैं अपने कार्यों के परिणाम से स्वतंत्र कैसे हो सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर: जब आप सब पिछले कार्यों को समर्पित कर और उन कार्यों के परिणामों का सामना करने के लिए तैयार हैं. अगर मैंने कुछ चुरा लिया है और मैं कहता हूँ, " हाँ मैं चुराया है, जो भी सजा आप मुझे देना चाहते हैं मुझे दें, मैं सज़ा भुगतने के लिए तैयार हूँ | यही समर्पण का असली मतलब होता है |
मैं ने चोरी की है लेकिन मुझे सजा नहीं दीजिए, समर्पण का मतलब यह नहीं है |
जब आप सजा कबूल करते हो तो सजा देनेवाला कहता है, मैं तुम्हें माफ़ करता हूँ और वो आपको आपके कर्म फ़ल से मुक्त करता है। आपके द्वारा कोई कृत्य हुआ है और उसके परिणाम भी आ गये हैं तो उसके निर्मूलन के लिये आप कुछ अच्छे कर्म करते हो इसको प्रायश्चित्त कहते हैं। उदाहरण के लिये मैंने कुछ गलत शब्द कहे उससे कोई दुखीः हुआ तो मुझे प्रायश्चित्त करना होगा। क्या प्रायश्चित्त करना है यह आपको गुरु, या वो व्यक्ति जो दुखी हुआ है वो बता सकता है या आप को अपनी अंतरात्मा बतायेगी। मैं कुछ अच्छा काम करूँगा या बहुत सारे लोगों को खुश करुंगा।
प्रश्नः गुरुजी, भगवत् गीता मे श्री कृष्ण कहते हैं "आनन्यश्चिन्त यन्तो माम ये जन परी उपासते तेषाम् नित्य भियुक्तनाम योगक्शेमम् वहाम्यहम्"। इसका अर्थ क्या है?
श्री श्री रविशंकर: जो सिर्फ़् मेरे ही बारे मे सोचता है, जो मुझे अपने दिलो दिमाग में रखता है, मैं उसको मुक्त करता हूँ, उसकी हर तरह से रक्षा करता हूँ और उसकी हर जरुरत को पूरी करता हूँ |
प्रश्नः गुरुजी, मंगलसूत्र क महत्व क्या है? पालक क्यूँ कहते है कि शादी के बाद इसे उतारना नहीं चाहिये? क्या इसे ना पहनना उचित है?
श्री श्री रविशंकर: मुझे एक बार पैरिस हवाई अड्डे पर एक महिला ने अपनी अंगूठी दिखाते हुऐ पूछा क्या ये जरुरी है ? मेरे लिये तो वह सिर्फ़ अंगूठी थी तो मैने कहा अगर वो समझती है कि इसकी जरुरत नहीं है तो वह उसे मत पहने | उसने वापस जाकर अपने पति को तलाक के लिए पत्र लिखा। उसके पति ने मुझे ई मेल किया - क्या गुरुजी आप ने मेरे पत्नी को मुझे तलाख देने के लिये कहा है | मैने कहा मैने ऐसा कभी कुछ नही कहा, उससे मैंने उसकी पत्नी से फोन पर बात करवाने के लिये कहा। पत्नी ने कहा गुरुजी मैंने हवाई अड्डे पर आपसे पूछा था कि मुझे इस अंगूठी की जरुरत है क्या ? दरअसल वो उसके शादी की अंगूठी थी | पश्चिमी संस्कृति मैं अगर कोई अपनी शादी की अंगूठी उतार देता है तो इसका अर्थ है उसने अपने प्रेमी को अलविदा कह दिया। शादी एक पवित्र बंधन है, उस पवित्रता को महसूस करने के लिये मंगलसूत्र पहनते हैं । मंगलसूत्र वो शुभ धागा है जिसे पकड़ कर आप धर्म के रास्ते पर चलते हैं इसलिये उसे उतारते नहीं हैं, सदैव साथ रखते हैं । लोग अपने जीवन में शुभ की कामना करते हैं इसलिये लोग मंगलसूत्र के साथ भावनाओं को जोड़ देते हैं और उसे पहनते हैं। इसके साथ कुछ अंधविश्वास भी इसके साथ जुड़ा है । कोई डॉक्टर ऑपरेशन के वक्त मरीज से गहने उतरने के लिए कहता है, और मरीज यह कहता है कि ये मंगलसूत्र है, इसे कैसे उतर सकते हैं । आप को किसी मानसिक अथवा बौद्धिक रूप से परेशान होने कि जरुरत नहीं है । ये सिर्फ़ एक धागा है या श्रंखला है | तो जब जरुरी हो तो आप इसे उतार सकते हैं। लेकिन आमतौर पर इसके साथ एक पवित्रता जुडी है तो इसे उतारना नहीं चाहिए।
प्रश्नः गुरुजी, मैं बहुत बार मूर्ख बन जाता हूँ। मुझे बुद्धिमानी सीखने के लिये क्या करना चहिये?
श्री श्री रविशंकर: आप मूर्ख सिर्फ़ बुद्धिहीनता के कारण नहीं बनते, उसके साथ लोभ भी जुड़ा होता है। मैंने देखा है वो लोग जो बहुत लोभी रहते हैं बहुत जल्दी मूर्ख बन जाते हैं। अगर आप महत्वाकांक्षी और लोभी है तो आप आसानी से मूर्ख बन सकते हैं लेकिन आप शांत, स्थिर और सतर्क हैं तो आपको मूर्ख बनाना मुश्किल है।
प्रश्नः गुरुजी हमें दूसरों से अपेक्षा नहीं करनी चाहिए चहिये लेकिन क्या अपने आपसे अपेक्षा करना गलत है?
श्री श्री रविशंकर: अपेक्षा करना ठीक है लेकिन अगर वो पूरी नहीं होती है तो उसे महत्व नहीं देना चाहिए, शांत रहिये।
प्रश्नः गुरुजी, मैं किसी से भावनात्मक स्तर पर बंध गया हूँ लेकिन मुझे अब ये प्रतीत हो रहा है कि इस वजह से मैं सेवा नहीं कर पा रह हूँ। मै अब इससे बाहर निकलना चाहता हूँ लेकिन ये आसान नहीं है, मैं क्या करुँ?
श्री श्री रविशंकर: आप जाप करें, अगर आप जाप कर रहे हैं तो आप चिंतित नहीं होंगे। जब आप ॐ का उच्चारण करते हैं तो भावनाएं शांत हो जाती हैं और उसके बाद अवसाद, चिंताएं गायब हो जाती हैं। भौतिक जगत से जुड़े रहने के कारण चिंतित हो जाते हो। दिन रात अपने बारे मे सोच के चिंतित रहते हो।
जब तुम सुबह उठते हो तो अपने आप से कहो कि मैं क्या सेवा कर सकता हूँ | मै इस विश्व के लोगों के लिये क्या कर सकता हूँ इस ज्ञान के पथ पर इस संस्था को कैसे काम आ सकता हूँ । अगर ये नही आता तो सोचो मैं गुरुजी के कैसे काम आ सकता हूँ। कम से कम इस तरह से सोचो।
अगर आप इस तरह से सोचते हो और जाप करते हो, ध्यान करते हो, ये जान के कि ये जीवन अस्थाई है, यहाँ का सब नाशवंत है और ॐ नमः शिवाय का जाप करते हो तो चिंतित नहीं होंगे। निराशा आपसे दूर भाग जायेगी| इसीलिये पुराने जमाने में लोग तीन बार संध्यावंदन करते थे। प्रातः काल मे उठके सूर्य देवता को आगे आने वाले सुंदर दिवस के लिये, पृथ्वी पर जीवन संभव करने के लिये आभार प्रदर्शित करके, फ़िर दोप्रहर और फिर शाम को बीते हुए सुंदर दिवस केलिये संध्यावंदन करके पूर्ण ब्रम्हांड के साथ एकरुपता महसूस करते थे |
जब आप ये सब करते हो तो निराश, चिंतित होने का कोई प्रश्न नहीं है। जब आप ये नहीं जानते कि आप पूर्ण ब्रम्हांड से जुड़े हैं और खुद को एक छोटा मामूली इंसान समझते हो और अपने आपको कमजोर समझ के कोसते रहते हो, ये नहीं है, वो नहीं है | कहते हो मैं ध्यान करता हूँ, क्रिया करता हूँ, लेकिन मुझे कुछ हो नहीं रहा, इस तरह की सोच मन का छोटापन दर्शाती है। आपको इससे बाहर आना होगा। आप इससे बाहर आने की और अपना जीवन समर्पित करने कि जिम्मेवारी उठाइये।
वे लोग जो आत्महत्या करना चाहते हैं मै उनसे कहता हूँ कि ये मूर्खता है । आप आत्महत्या करना चाहते हैं क्यूंकि आप सिर्फ़ अपने आराम, आनंद के बारे मे सोचते हैं। आप अपना जीवन किसी और महान कार्य के लिये लगा दीजिए, निराशा भाग जायेगी |
जब आप ये कहते है कि मै जान नहीं दूंगा बल्कि ये जीवन विश्व के प्रति, मानवता के प्रति, देश के प्रति समर्पित करुंगा तो आनंद उपजता है। चाहे जो हो मै लडूंगा | मुझे लगता है सभी निराशा से ग्रस्त लोगों को ये यकीन दिलाना चहिये कि जाप से उनकी निराशा दूर होगी ।
या तो अपने आप को विश्व को, देश को, संस्कृति को, धर्म को समर्पित कर दीजिए या ईश्वर को, उस पूर्ण महासत्ता को, पवित्र ज्ञान को समर्पित कर दीजिए|
यह निश्चय आप को इस अंधकार से बाहर निकालेगा|
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